वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (19 जुलाई 2014)
आजकल महंगाई इतनी ज्यादा है कि बगैर पीपीपी मॉडल के मोहब्बत भी संभव नहीं ! पीपीपी या पी3 मॉडल का अर्थ है पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप ! पब्लिक चुनी हुई सरकार का पब्लिक सेक्टर भी जब प्राइवेट पार्टनरशिप से काम कर रहा है तो आम आदमी की क्या औकात? सरकार रेल चलाने में पीपीपी से काम चला रही है, तेल निकालने में पीपीपी का उपयोग हो रहा है, सड़कें, एयरपोर्ट और बंदरगाह बनाने में प्राइवेट सेकटर जा रही है तो महंगाई के मारे आम आदमी के लिए और क्या विकल्प है?
हमारी निजी सरकार भी महंगाई से परेशान है. तनख्वाह से तो गुजारा ही नहीं हो पाता है. मोहब्बत की पींगें आखिर कहाँ से मारे? मकान और गाड़ी की ईएमआई, बीमे की क़िस्त, बच्चों की फीस-किताबें-युनिफार्म और फिर कोचिंग क्लास वालों की मोटी फीस में ही सारी कमाई स्वाहा हो जाती है, बिजली, पानी, अखबार, फोन-मोबाइल-इंटरनेट,प्रॉ पर्टी टैक्स चुकाने में कमर टूट जाती है. दूध, राशन, सब्जी, फल तक खरीदने को पैसे ही नहीं बचते। पाव पाव भर में काम चलाना पड़ता है। ऐसी कड़की के दौर में कौन गर्ल फ्रेंड बनना चाहेगी? बीवी को ही गर्ल फ्रेंड बना लेना बड़ा इकोनॉमिक पड़ता है। खर्चे बच जाते हैं। घर से ही साथ साथ निकल जाओ, पैसा बचता है। बीवी को पता रहता है कि घर पर सुबह की चार रोटियां और थोड़ी सब्जी फ्रिज में है, इसलिए बाहर एक कचोरी में ही काम चला लेते हैं। पिज्जा-बर्गर वगैरह तो हम खाना ही पसंद नहीं करते। ये चीजें सेहत खराब करती हैं। कोल्ड ड्रिंक पीना हो तो घर में बनी छाछ सर्वश्रेष्ठ है। हमारी सरकार यानी मैडम जी दही जमा देती हैं, हम उसे घोंट देते हैं। वे सरकार, हम पब्लिक। दोनों मिलकर बाबा रामदेव को धन्यवाद देते हैं, जिनके कारण कोक जैसे क्लीनिंग द्रव्य से हमें और हमारी जेब को मुक्ति मिली।
बहुत मन करता है इस पीपीपी मॉडल से बाहर जाने का। इच्छा होती है कि क्यों न प्राइवेट सेक्टर में ही मोहब्बत का प्रोग्राम जमा लिया जाए। हर जगह पीपीपी की क्या जरूरत? पर बजट है तो परमिशन नहीं देता। हर महीने डेफिशिट में चला जाता है कम्बख्त ! रुपये की वेल्यू और अपनी -- दोनों कम होती जा रही है। वहां सरकार एफडीआई पर निर्भर, हम अपने निजी एफडीआई यानी ससुराल पर ! वहां से पावर न मिले तो भट्टा बैठते देर न लगे। बाजार में भाव गिर जाए अगर जरा सी भी चूक तो। अब जरा भी हालात हैं, तत्काल अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को कोसकर अपनी इज्ज़त बचाने की कोशिश होती है।
देश में प्राइवेट सेक्टर में ठीक काम हो रहा है। लेकिन सरकार है जो खुद भी कई मोर्चों पर डटी है। मेरे घर का निजी प्राइवेट सेक्टर अगर कुछ करना चाहे तो 'सरकार' राह में आ जाती है। सरकार का काम ही है प्राइवेट सेक्टर पर बंदिश लगाना। किसी तरह हमारे पीपीपी मॉडल पर थोड़ा बहुत काम चल रहा है,प्राइवेट सेक्टर को इतनी आजादी नहीं मिल सकी है . तब तक पीपीपी मॉडल ही सही!
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