Thursday, November 27, 2014

धंधा, भीख मांगने और वेश्यावृत्ति का

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एच.एल. दत्तू ने कहा है कि भीख मांगने और वेश्यावृत्ति करने को अपराध मानना ठीक नहीं। इसका अर्थ यहीं हुआ कि भीख मांगना और वेश्यावृत्ति करने को कानूनी रूप से मान्यता मिल जाए और यह भी एक धंधा मान लिया जाए। कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति मजबूरी में ही यह धंधे करने के लिए बाध्य होता है। अब यह बात अलग है कि यह दोनों ही धंधे मुनापेâ के धंधे बन गए है। अच्छे खासे ह्रष्ट-पुष्ट लोग भीख मांगते या मंगवाते पाए गए है और वेश्यावृत्ति भी योग्यता से अधिक आसानी से कमाई का जरिया बन चुकी है।
शुक्र है कि दत्तू साहब ने यह नहीं कहा कि इन धंधों के लिए सरकारी बैंकों से कम ब्याज पर लोन मिलना चाहिए। जरा कल्पना तो कीजिए कि इन दोनों को धंधा बना लिया जाए और सरकारी बैंकों के आदेशित किया जाए कि इन धंधों के लिए आसान शर्तों और कम ब्याज दरों पर लोन दिया जाए। ताकि इस धंधे का कल्याण हो सवेंâ। अगर ऐसा हुआ तो सरकारी बैंकों के दरवाजे पर कर्ज लेने वालों की भारी भीड़ जमा हो जाएगी। हो सकता है कि भिखारियों को दिया गया पैसा कभी वापस न आए और वेश्यावृत्ति के लिए दिया गया पैसा कम पड़ जाए।
सरकारी बैंकों में इन कर्जों के लिए अलग से विभाग खोले जा सकते है। इन विभागों को जो आवेदन मिल सकते है वे भी कोई कम दिलचस्प नहीं होंगे। जैसे भिक्षावृत्ति के लिए दिए गए आवेदनों में तमाम यह जानकारी हो सकती है कि उसके कितने बच्चे है और वह कितने बच्चे और पैदा करने की वूâवत रखता है। उन बच्चों को को इस धंधे में लगाकर कितना पैसा कमाया जा सकता है। नए बच्चों को कौन-कौन सी शारीरिक विकलांगता पैदा की जाएगी, ताकि लोग द्रवित होकर ज्यादा भीख दे सके। हो सकता है कि आवेदक के लिए एक कॉलम यह भी हो कि वह किस क्षेत्र में भिक्षावृत्ति करेगा और क्या उसके लिए उसने स्थान बुक कर रखा है। यह स्थान पुâटपॉथ, मंदिर के सामने या आजू-बाजू की जगह, शहर का व्यस्त इलाका अथवा मॉल के सामने की जगह इस धंधे में कितनी फायदेमंद हो सकती है। हो सकता है कि इस मुद्दे को लेकर राजनीति भी गरमा जाए और अलग-अलग जातियों के लोग अपनी जाति के लिए अधिक से अधिक आरक्षण कराने के लिए संघर्ष करने लगे। जिसका नतीजा हो सकता है चुनाव परिणामों पर भी पड़े। 
वेश्यावृत्ति के लिए कर्ज मांगने वाले अपने आवेदन में बता सकता है कि उनके परिवार में कितनी लड़कियां या महिलाएं है, जो इस धंधे को आगे बढ़ाने में योगदान दे सकती है। हो सकता है कि सौंदर्य स्पर्धाओं की तरह यहां भी आवेदन के साथ शरीर से संबंधित विभिन्न फिगर्स लिखे जाएं। अलग-अलग एंगल से लिए गए फोटो आवेदकों को चिपकाना पड़ेंगे, जिसका उपयोग बैंक के अधिकारी कर्ज देते वक्त कर सवेंâगे। हो सकता है कि यहां बैंक के अधिकारियों को रिश्वत तो मिले, लेकिन वह नकद रुपयों में न हो। अगर ज्यादा आवेदन आए तो बैंकों के भीतर भी अराजकता हो सकती है, क्योंकि तमाम अधिकारी इस विभाग में आने के लिए तिकड़में भिड़ा सकते है। 
बहुत सारे बुद्धिजीवियों को इसमें कोई आपत्ति नजर नहीं आती। उनका कहना है कि जब सरकार भिक्षावृत्ति और वेश्यावृत्ति को खत्म नहीं कर पा रही है, तो उसे कानूनी रूप दे देने में क्या बुराई है। उन लोगों के लिए एक यहीं तर्वâ काफी है कि सरकार रिश्वतखोरी, चोरी, डवैâती, बलात्कार जैसे अपराधों को भी रोकने में कामयाब नहीं हो पा रही है, तो क्या इसका अर्थ यह कि इन सब अपराधों को कानूनी मान्यता दे दी जाए। रिश्वत के रेट तय कर दिए जाए, चोरी-डवैâती को रोजगार मान लिया जाए। जिन चीजों को सरकार नहीं रोक पा रही है, उन्हें रोकने की कोशिश तो जरूर करनी चाहिए। यहां बात सही और गलत की है। क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए, इसकी है। अपराध रुक नहीं पा रहे है, तो उन्हें कम से कम होने देने की कोशिश करना प्राथमिकता होनी चाहिए। यह बात वैâसे हो सकती है कि अगर अपराधों पर अंकुश नहीं लगा सके तो उन्हें वैध कर दिया जाए।
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27 nov.2014

Friday, November 21, 2014

इंदौर के ट्रैफिक रूल्स और बाकी इंडिया के

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (03 मई 2014)

इंदौर इंडिया का अनूठा शहर है। यह वैसे तो इंडिया में ही है, लेकिन यहां के अपने ट्रैफिक रूल्स हैं। अगर आपको नहीं मालूम हों तो कृपया नोट कर लें या इस कॉलम को काटकर अपने पर्स में रख लें। 


अगर आपने अपनी गाड़ी पर 'प्रेस' नहीं लिखवाया है तो अभी लिखवा लें।  इससे कोई फायदा-वायदा नहीं होता, पर यहां पर यही चलन में है। अगर आप ऑटो रिक्शा, टेम्पो या ट्रक भी चलाते हैं, तो यह लिखवाने में कोई हर्ज नहीं। 90 प्रतिशत वाहनों पर यह लिखा होता है। 

यहां सबसे ज्यादा जल्दी में मोटरसाइकिल चालक होते हैं। इंदौर में उनके लिए यातायात का कोई भी नियम लागू नहीं है। वे चाहें तो तीन या चार लोगों को बैठाएं, अकारण हॉर्न बजाएं, प्रेशर हॉर्न फिट करा लें, दुपहिया को ट्रक बनाकर सामान लाद लें, गलत लेन में चलें, कैसे भी ओवरटेक करें,  सड़कों पर बाइक से स्टंट करें, पान-गुटका ऐसे थूकें कि दूसरों के मुंह पर जाकर गिरे, दोनों कानों में ईयरफोन लगाकर घूमें आदि-आदि की छूट घोषित की गई है। हेल्मेट की खोज अभी नहीं की गई है उनके लिए। 

इंदौर में अंध गति से केवल कारें, बसें, ट्रक, डम्पर आदि ही चलते हैं। कभी भी  मीडिया में खबर देखी है कि अंध गति से आ रही मोटरसाइकल टकरा गई।

पूर्ण स्वराज इंदौर में केवल ऑटो रिक्शा वालों को ही प्राप्त है। वे यात्री को कहीं लेकर जाएं, न जाएं, उनकी मर्जी। मनमाना भाड़ा मांगें,  उनकी मर्जी। कहीं भी सांई बाबा का मंदिर बनाने का कॉपीराइट उन्हीं के पास है। उनकी मर्जी कि कहां गाड़ी लगाएं। अगर आपके पास मोबाइल है (जैसा कि हरेक के पास है ही) तो उसका उपयोग वाहन चलाते समय ही करें, क्योंकि फोन ही मोबाइल है! अगर वाहन चलाते समय मोबाइल का उपयोग  नहीं करेंगे तो कब करेंगे।

वन वे बने ही इसलिए हैं कि कोई भी रांग साइड का  उपयोग करके शार्ट काट मार सके।  जो लोग नियमों का पालन करते हैं वे निहायत ही मूर्ख हैं। 

इंदौरियों का नियम है कि वे नौकरी ऐसे करते हैं मानो उनके लिए रुपया बिलकुल जरूरी नहीं, सड़कों पर डांस ऐसे करते हैं मानो डीआईडी के लिए नाच रहे हों और वाहन ऐसे चलाते हैं जैसे उनका इस संसार में कोई है ही नहीं। 

और अंतिम नियम -आप खुद भी कोई नियम बना सकते हैं। आजाद देश के आजाद नागरिक हैं आप!
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चुनाव की आपाधापी में भूले एक जन्मदिन

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (17 मई 2014)
11 मई को मदर्स डे मनाया गया था और 12 मई को नौ चरणों वाले लोकसभा चुनाव का आख़िरी दिन का मतदान था और फिर शुरू हो गये एक्ज़िट पोल और उनका विश्लेषण. ऐसी आपाधापी में भी पत्रकार अपनी भूमिका कैसे भूल जाते? ज़्यादा नहीं तो एक अख़बार ने तो पहले पेज पर ऐसी खबर छापी, जिससे मन को अपार सुकून मिला. विश्वास हो गया कि गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, राजेंद्र माथुर आदि महान पत्रकारों की परंपरा अवश्य जारी रहेगी. खबर भी यहाँ-वहाँ नहीं, बल्कि पहले पेज पर. वह भी चित्र सहित! पूरी खबर एक झटके में पढ़ गया. खबर क्या थी पूरी जीवनी ही थी, महान शख्सियत की उपलब्धियों का बयान भी था.


खबर में लिखा था--उन्होंने आज 13 मई के दिन ही  1981 में जन्म लिया था. बचपन से हॉकी खेलने का शौक था,  आइस स्केटिंग में भी उनकी रूचि थी. यह भी बताया गया था  कि  उन्होंने अपना करीयर एक बेकरी से शुरू किया था. साथ ही यह भी लिखा था कि केवल 11 साल की उम्र में उन्होंने पहला चुंबन लिया था और 16 साल की उम्र में उन्होने एक बॉस्केटबॉल खिलाड़ी के लिए अपनी वर्जीनिटी खो दी थी. वे मॉडल हैं, पॉर्न स्टार हैं और बिजनेस वूमन हैं.  अख़बार ने उस महान आत्मा का फोटो भी छापा था, इसलिए किसी को भी खबर का मर्म समझने में दिक्कत नहीं हुई होगी. शीर्षक भी था ही -   सनी लिओनी का जन्मदिन आज। 

पत्रकारिता में महान योगदान के लिए देश उस अख़बार का आभारी रहेगा. अगर वह खबर नहीं छापता तो? क्या देश को पता चल पाता कि नग्नता की साक्षात मूर्ति श्रीमती सनी लिओनी का बर्थ डे आज है. अख़बार ने यह नहीं बताया कि 13 मई के इस  पावन पर्व पर देश भर में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं; जैसे मदर टेरेसा, इंदिरा गाँधी आदि के जन्मदिन मनाते  हैं. लोग उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं. कसमें खाई जाती है महान हस्तियों के नाम पर. लेकिन यह क्या? इतनी महान शख्सियत की खबर तो पहले पेज पर, लेकिन उनकी जलाई मशाल को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं ! धिक्कार है इस देश की अहसानफ़रमोश जनता पर. बेचारी ने कितने बड़े बड़े त्याग किए है. 11 साल की होते ही त्याग शुरू हो गये, जो आज तक चल रहे हैं .

मुझे तो लगा कि बिग बॉस दिखानेवाला चैनल इस हस्ती पर स्पेशल प्रोग्राम दिखाएगा. उनकी तमाम धार्मिक फिल्मों के अंश दिखाए जाएँगे. कुछ नहीं दिखाया सालों ने. अख़बार से प्रेरणा ले लेते थोड़ी तो! नहीं ली कम्बख़्तों ने. और तो और महेश भट्ट भी उनको हार फूल चढ़ाने  नहीं गये. उनकी पिक्चर की हीरोइन थी. इतना फ़र्ज़ तो बनता ही  था.  पर क्या किया जाये इन अवसरवादियों का? 

किसी ने इस हस्ती  में 
के बारे में लिखा था कि  वे पॉर्न स्टार हैं , कोई प्रास्टीट्यूट नहीं. उन्होंने भी 
कहीं 

 इंटरव्यू में कहा था कि मैं कोई ऐसी वैसी नहीं हूँ. मेरी 'तमाम फिल्मों' में मैने अपने पति के साथ ही काम किया है.!

ऐसी महान पतिव्रता का जन्मदिन केवल एक ही अख़बार ने मनाया, इसका मुझे दुख है. अगले साल फिर 13 मई को उनकी जयंती आएगी. तब कृपया ध्यान रखिएगा !!! 

पत्रकारिता के उसूलों को मत भूलना .
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Saturday, November 15, 2014

‘चुम्बनिस्टों’ का अखिल भारतीय गाल सलाम

'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम ((15 नवंबर  2014) 





पिछले हफ्ते पूरे देश में ‘किस ऑॅफ लव’ के चर्चे रहे। केरल के कोच्चि शहर में आपस में चुम्मा-चाटी करते हुए युवक-युवती को पीटने वाले लोगों के खिलाफ यह अभियान था। इस अभियान को चलाने वाले लोगों का मानना है कि उन्हें चुम्मा-चाटी करना पसंद है और वे इसे खुलेआम करना बुरा नहीं मानते। इन लोगों का कहना है कि चूमना एक निजी प्रक्रिया है और इससे किसी को कोई खतरा नहीं है। नफरत पैâलाने वालों को रोकना चाहिए, मोहब्बत करने वालों को नहीं। ये लोग आईपीसी के अनुच्छेद २९४(ए) के तहत अभद्र हरकतों में चूमने को नहीं मानते। इन लोगों का कहना है कि सोशल पोलिसिंग के बहाने आरएसएस के लोग युुवाओं को तंग करते है। गुस्से में इन लोगों ने पेâसबुक पर पेज बना डाला और देशभर में चुम्बन प्रेमियों को यह संदेश दे डाला कि मोहब्बत खतरे में है। लिहाजा देशभर के नौजवान आरएसएस के खिलाफ लामबंद हो गए और अंतत: उन्होंने दिल्ली के झंडेवालान स्थित आरएसएस कार्यालय के सामने खुलेआम चुम्मा-चाटी की। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इन लोगों की आत्मा को शांति मिली। अब ये आगे और भी बड़े कार्यक्रम की योजना बना रहे है। 

कुछ साल पहले तक फिल्मों में चुम्बन के दृश्यों की इजाजत नहीं थी। चुम्बन की जगह अठखेलियां करते दो पूâलों को साथ-साथ दिखाकर काम चला लिया जाता था। जब से फिल्मों में चुम्बन की अनुमति मिली है तब से चुम्बन पर गाने भी आने लगे है। हिन्दी में ‘जुम्मा-चुम्मा दे दे’ और ‘एक चुम्मा तु मुझको उधार दे दे’ जैसे गाने चल पड़े, तो भोजपुरी में चुम्मा गीतों की बहार आ गई। इन्तेहा यह हो गई कि भोजपुरी में ‘लहंगा उठा के चुम्मा ले जा राजाजी’ जैसे गाने तक चल पड़े। बॉलीवुड वालों की तो हिम्मत ही नहीं है कि वे उसकी नकल कर सवेंâ। वैसे बॉलीवुड में अब श्लील-अश्लीलता की कोई सीमा बची नहीं है और फिल्में समाज का दर्पण है इसलिए आप आम जन-जीवन में भी ऐसे दृश्य देख सकते है। 

आमतौर पर एयरपोर्ट इलाके में और मुंबई के मेरिन ड्राइव, बांद्रा रिक्लेमेशन, वर्ली सी पेâस और दिल्ली के लोधी गार्डन जैसे इलाकों में प्रेमी-प्रेमिकाओं को गलबहिया और चुम्बन करते आसानी से देख सकते है। मध्यप्रदेश जैसे पिछड़े इलाकों में ऐसे नजारे देखने हो तो सुनसान पार्वâ में जाना पड़ता है। ‘चुम्बनिस्टों’ ने जनता की भावना को समझा है और उनके दीदार के लिए यह सुविधा अखिल भारतीय स्तर पर उपलब्ध कराने की ठानी है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। 

अभी भी भारत के कई इलाके बहुत पिछड़े है। लोगों की सोच आगे नहीं बढ़ रही। दोनों प्रेमी-प्रेमिका हैं और वे किस करना चाहते है तो करने दो। उनको भी मजे लेने दो और आप भी मजे लो। लेकिन नहीं। यह विघ्नसंतोषी लोग मोहब्बत के दुश्मन बने है। इनकी छाती पर क्यों सांप लौटता है? यह बात जगजाहिर है कि इन विघ्नसंतोषियों में से अधिकतर अविवाहित है और भारतीय संस्कृति का झंडा लेकर चल रहे है। 

ऐसा नहीं है कि ‘किस ऑफ लव’ जैसे अभियानों के पहले भारत में कोई और ‘शालीन’ आंदोलन नहीं हुए है। लोकतंत्र का पूरा मजा भारत के लोग उठा रहे है। पहले भी पब जाने वाले युवक-युवती ‘पिंक चड्डी’ आंदोलन कर चुके है। तहलका वाली निशा सूजन इस आंदोलन की अगुवाई कर चुकी है और तहलका के संपादक किस दौर से गुजर रहे है यह तो किसी को बताने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा देशभर में जगह-जगह ‘बेशर्मी मोर्चा’ के आंदोलन भी हो चुके है। महिला आजादी की दीवानी औरतें ब्रा जलाने के अभियान भी चौराहों-चौराहों पर कर चुकी है। आजादी के यह अभियान अभी महानगरों तक ही सीमित है। 

आप किसी से प्रेम करते हो यह अच्छी बात है, लेकिन इसका दिखावा करना कौन-सी शान की बात है? कोई भी मां अपने बच्चे से बेइंतेहा मोहब्बत करती है तो क्या यह जरूरी है कि वो उसका सार्वजनिक प्रदर्शन करें? लोग अपने पालतू जानवरों से भी बेपनाह प्यार करते है। कई लोग उसका दिखावा भी करते है। निश्चित ही यह एक निजी मामला है, लेकिन अगर प्यार करना ही है तो उन लोगों से करो, जो शोषित-उपेक्षित हैं। उन बेजुबानों से करो जो यहां-वहां भटक रहे है और कोई उन्हें देखने वाला नहीं। अंत में यहीं कहना चाहूंगा कि सभी ‘चुम्बनिस्टों’ को गाल सलाम। 
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Friday, November 07, 2014

15 लाख की प्लॉनिंग

'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम ((08 नवंबर  2014) 
एक साल से 15 लाख रुपए की प्लॉनिंग कर रहा हूं। 15 लाख कहां-कहां खर्च हो
सकते है, इससे किस-किस का कर्जा पटाया जा सकता है, घर में क्या सामान आ
सकता है, बीवी को कितने गहने दिला सकता हूं, बच्चों को कौन-सी गाड़ी सूट
करेगी, बुढ़ापे के लिए कितने पैसे बचाकर रखना मुनासिब होगा आदि-आदि में
उलझा हुआ हूं। मुझ जैसे मध्यवर्गीय आदमी के लिए 15 लाख बहुत मायने रखते
हैं। कभी 15 लाख रुपए इकट्ठे देखे नहीं। हां, बैंक में जरूर देखे है,
लेकिन वो अपने कहां। अने १५ लाख नगद हो तो बात ही क्या। कुछ न करो 15 लाख
रुए खाते में ही रखे रहने दो, तो 12 - 13  हजार रुपए के आसपास ब्याज ही आ
जाएगा। एक तरह से पेंशन समझो और मूल धन तो अपना है ही। यह पंद्रह लाख
रुपए तो मेरे अपने है। बीवी, बच्चों सबके अपने-अपने पंद्रह लाख होंगे पर
बीवी बच्चों के पैसे पर मैं निगाह क्यों डालूं। मेरा अपना भी तो
स्वाभिमान है।


लोकसभा चुनाव के पहले जब यह पता चला कि विदेश में भारत का इतना काला धन
जमा है कि अगर वह भारत लाया जाए तो हर आदमी को 15 लाख रुपए मिल सकते है।
मेरे घर में कुल 5 सदस्य है, तो इस हिसाब से मेरे घर के लोगों को मिलाकर
75 लाख रुपए होते है। पर मैं ठहरा लोकतांत्रिक आदमी। बीवी, बच्चों को
करने दो उनका हिसाब-किताब। मैं तो अपने 15 लाख पर ही अडीग रहूंगा। न किसी
को पैसा दूंगा, न किसी से पैसा लूंगा।


हिसाब लगा-लगाकर कई रजिस्टर फाड़ चुका हूं। 3-4 लाख रुपए की एक कार आ
जाएगी। 1 लाख रुपए से घर का सामान खरीद लूंगा। 50 हजार रुपए में अपने लिए
शानदार वार्ड रोब बनवाउंगा। डिजाइनर घड़ी 20-25 हजार की। 50 हजार रुपए का
शानदार मोबाइल। 1 लाख रुपए घर की रंगाई-पुताई पर खर्च। इस सब के बाद भी
अच्छा खासा पैसा बचा रहेगा। बचे हुए पैसे को अगर में बैंक में रख दूं और
उसके ब्याज से काम चलाऊं, तो भी ज्यादा तकलीफ नहीं होने वाली। 


बीवी से इन सब बातों पर चर्चा करने का कोई मतलब है नहीं क्योंकि वह ठहरी बचत की
प्रवृत्ति वाली। जिंदगी जीना उसे कहां आता है? पाई-पाई का हिसाब तो पूछती
रहती है। पर मैं उससे उसके पंद्रह लाख रुपए के बारे में कुछ भी नहीं
पूछुंगा। लोकतंत्र है सबको अपने पैसे खर्च करने का हक है और मैं कोई इतना
गयागुजरा नहीं कि दूसरे के पैसे पर नजर डालूं। इतना डरपोक भी नहीं कि
अपने पैसे किसी और को उड़ाने दूं।
रजिस्टर पर रजिस्टर, डायरी पर डायरी भरी पड़ी है। कईयों को तो फाड़-फाड़कर
पेंâक चुका हूं। रोज रात को सपने में 15 लाख रुपए दिखाई देते है। सुबह
पंद्रह लाख रुपए की कल्पना में बीत जाती है। आते-जाते सोते-उठते गरीबी
दूर होने का विचार ही जिंदगी को नई ऊर्जा से भर देता है। जिंदगी में इतनी
खुशियां पहले कभी नहीं देखी। अब जाकर जीवन धन्य हुआ है।
कई नासमिटे कहते है कि पंद्रह लाख तो मिलेंगे, पर उसमें से टीडीएस कट
जाएगा। भई आपको इतने पैसे मिलेंगे, तो सरकार का भी हक है कि उससे इनकम
टैक्स काट लें। अधिकतम इनकम टैक्स है 30 प्रतिशत। अब अगर सरकार ये मानें
कि हम ३० प्रतिशत के ब्रेकेट में है, तो भी 4.50 लाख काटकर 10 लाख 50
हजार रुपए तो बनते ही है। वैसे अपन 30 प्रतिशत के ब्रेव्रेâट में नहीं
है, पर अगर सरकार चाहें तो देश के लिए साढ़े चार लाख रुपए का सहयोग करने
के लिए भी तैयार है। एक जागरुक नागरिक होने के नाते हमें पता है कि हमारे
पैसे से ही सरकार चलती है। मंत्रियों के हवाईजहाज हमारे टैक्स के पैसे से
उड़ते है। करोड़ों के शपथ समारोह में हमारे खून-पसीने की कमाई उड़ाई जाती
है। सब ठीक है। खूब घूमो हवाईजहाज में, ताजपोशी के शानदार प्रोग्राम करो,
महंगी-महंगी कारों में घूमो, सेवन स्टार होटलों में ऐश करो, कोई बात
नहीं। बस हमारे15 लाख रुपए हमें लौटा दो। चाहो तो उसमें से भी टैक्स काट
लो।


हिसाब बनाते-बनाते काफी वक्त बीत गया है। एक सीए कह रहे है कि यह 15 लाख
रुपए सरकारी खजाने में जमा हो जाएंगे। आपको एक पैसा भी मिलेगा नहीं। आपने
जब कमाया ही नहीं है, तो सरकार आपको यह पंद्रह लाख रुपए क्यों दें। राहु
लगे ऐसे सीए को। हमारे पैसे हमको देने में उसकी नानी मर रही है। सीए न
हुआ, अरुण जेटली हो गया। हमारा पूरा पैसा ही खाने के मूड में है। पर वह
खा नहीं पाएंगे। हमारी बद्दुआ लगेगी। चुनाव के पहले इतना ज्ञान देते थे
कि भैया हमारा इतना पैसा विदेश के बैंकों में है कि हरेक को पंद्रह लाख
रुपए मिल सकते है। 5-10 प्रतिशत कम ज्यादा कर लो, पर पैसे तो लौटाओ।
भरोसा है कि अगले चुनाव तक मेरे 15 लाख रुपए का हिसाब हो जाएगा।


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