Saturday, September 27, 2014

जीतन राम मांझी के ७ बिंदास बचन


वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (27 सितम्बर   2014)


मुझे बिहार  मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की साफगोई पर फ़ख़्र  होता है।  कम से कम एक मुख्यमंत्री तो है जो सच बोलने की हिम्मत रखता  है. यह बात दीगर है कि लोग उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते और यह पापी मीडिया उनके ख़िलाफ़ ज़हर उगलता है।  अपने जीवन  में वे हमेशा खरे उतरे हैं। गौर कीजिए कि जिस बन्दे ने कड़ी  मेहनत के बाद  पढ़ाई की, फिर क्लर्क  नौकरी की और फिर राजनीति में पैर रखा, विधायक बना और जब मंत्री बना तो मुख्यमंत्री ने शपथ लेते ही आरोपों चलते कुछ ही घंटों में हकाल दिया. कोर्ट ने आरोप ख़ारिज कर दिए। आज वहीँ बंदा सीएम होकर भी सच बोलता है तो लोगों को तकलीफ क्यों?

बयान नंबर  एक : ''दारू को दवा समझकर थोड़ी-थोड़ी ले लेने में हर्ज़ नहीं।''  इसी बात को जब  पंकज उधास ने गाकर कहा --'महँगी बहुत हुई शराब तो थोड़ी थोड़ी पिया करो'  तो सारी  दुनिया के लोग इसे गाने लगे. पंकज उधास ने तो यहाँ तक कहा कि 'पियो लेकिन रखो हिसाब ! थोड़ी थोड़ी पिया करो' !! तब भी किसी को बुरा नहीं लगा। मांझी साहब ने तो केवल पीनेभर की बात कही। मैं मांझी साहब की साफगोई पर उनके बयां  समर्थन करने में कुछ गलत  नहीं समझता। महंगाई बहुत है, ऐसे में भरपेट पीना संभव भी नहीं है. 

बयान नंबर दो : ''चूहा मारकर खाना खराब बात नहीं है. मैं भी चूहा खाता था''.  श्री  मांझी शौकिया तौर पर चूहा खाने की बात कर रहे थे जबकि लोगों ने उन पर तोहमतें लगाना शुरू कर दिया। लोग बैंकाक, सिंगापुर, शंघाई, टोकियो और न कहाँ कहाँ जाते हैं और वहां हजारों खर्च करके क्या खाते हैं पता है आपको? केंकड़े, साँप, बन्दर, कीड़े-मकोड़े, घोंघे, कॉक्रोच  और समुद्री जीव-जंतु!  हमारे बॉलीवुड की दर्जनों हीरोइनें कहती हैं --आई लव सी फ़ूड ! ये सी फ़ूड क्या होता है कभी सोचा है? चूहे फ़ोकट में मिलते हैं. इस पर कहे की आपत्ति?

बयान नंबर तीन : ''बच्चों की पढ़ाई के लिए अगर व्यवसायी कालाबाजारी करते हैं तो इसमें कोई गलत बात नहीं है. दो-चार हजार करोड़ की कालाबाजारी करने वालों पर सख्ती की जरूरत है।'' अब आप ही बताइए क्या गलत कहा? पटवारी, इंजीनियर, डॉक्टर, क्लर्क के यहाँ छापा मारना और 'तीन करोड़ का क्लर्क' जैसी फालतू खबरें बनवाना केवल समय खोटी करना ही तो है।  जब दो दो हजार करोड़ के घोटालेबाज छूट जाते हैं तब ये भी छूट ही जाएंगे। टाइम बर्बाद करने का कोई औचित्य नहीं है। 

बयान नंबर चार :  ''कालाबाजारी  और टैक्स चोरी सही है, बशर्त है कि चोरी थोड़ी मात्रा में हो और नेक इरादे से की जाए।'' हर कोई तो कहता है कि आटे में नमक बराबर चोरी चलती है, नमक में आटे समान नहीं. फिर माननीय सी एम ने यह भी तो कहा कि यह नेक इरादे से की जाए तो....अब आप ही देखिए उन्होंने यह नहीं कहा कि बलात्कार सही है अगर नेक इरादे से हो तो। उन्हें पता है कि बलात्कार नेक इरादे से हो ही नहीं सकते, इसलिए यह कहा ही नहीं। 

बयान नंबर पांच :''घूस खानी है तो खुद खाओ, दूसरों को मत खिलाओ''. कितने पवित्र विचार ! हम सुधरेंगे युग सुधरेगा। हम बदलेंगे युग बदलेगा। सच है या नहीं?

बयान नंबर छह : ''अगर दलितों को राजनीतिक ताकत बनना है तो उन्हें जनसंख्या भी बढ़ानी  होगी।  हमें अपनी जनसंख्या को 16 से बढ़ाकर 22 फीसदी करनी पड़ेगी।'' ऐसी बात कहने के लिए कलेजा चाहिए क्योंकि इस ज़माने में जहाँ जमात, वहीँ करामात!

बयान नंबर सात : ''सरकारी स्कूल की हालत पब्लिक  ट्रांसपोर्ट की गाड़ी जैसी ''.  हमारे प्रदेश में भी तो यही हाल है।  आगे नाथ न पीछे.... 

मैं सोचता हूँ कि काश ! हमारे प्रदेश में भी कोई ऐसा ही सच्चा सीएम होता जो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में जाकर भाषण पेल सकता। आजकल मांझी साहब  ब्रिटेन में विदेशी निवेश को आकर्षित करने गए  हैं। वे ब्रिटेन की संसद में भी जाएंगे। 
Copyright © प्रकाश हिन्दुस्तानी
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (27 सितम्बर   2014)

Saturday, September 20, 2014

वेबदुनिया के सौ टंच खरे 15 साल



23 सितंबर को हिन्दी का पहला पोर्टल www.webdunia.com 15 साल का हो रहा है. इसके संस्थापक-संपादक के रूप में मेरी शुभकामनाएँ. 





वेबदुनिया और हिन्दी एक दूसरे के पर्याय- प्रकाश हिन्दुस्तानी





शुक्रवार, 19 सितम्बर 2014 (18:58 IST)




वरिष्ठ पत्रकार और वेबदुनिया के पहले संपादक प्रकाश हिन्दुस्तानी ने कहा कि 23 सितंबर 1999 को शुरु हुआ इसका सफर अपने आप में विलक्षण रहा है। वेबदुनिया ने अपने 15 साल के सफर में बहुत उपलब्धियां भी हासिल की हैं। आज के दौर में यह पोर्टल कई देशों में हिन्दी का पर्याय बन गया है।
उन्होंने कहा कि इंटरनेट वह माध्यम है, जिसमें प्रिंट की भी खूबियां हैं और टेलीविजन की भी। हालांकि शुरुआती दौर में तो इंटरनेट की कनेक्टिविटी बहुत कम होती थी। मोबाइल भी गिने-चुने थे। मोबाइल पर इंटरनेट होता नहीं था। मगर चीजें तेजी से बदली हैं। इसका फायदा वेबदुनिया को और उसके पाठकों को भी होगा।

वीडियो देखने के लिए क्लिक करें...
http://www.youtube.com/watch?v=2B6xS59D5Yc

हिन्दुस्तानी ने कहा कि अब आश्चर्य होता है कि जो काम आज अमेजोन कर रहा है, वह वेबदुनिया पहले ही कर चुका है। इस दौर में बहुत सारे दबाव और लाचल भी रहे कि आप हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाएं छोड़ दें और अंग्रेजी को अपना लें या दूसरी यूरोपीय भाषा अपना लें तो ज्यादा कमाई सकते हैं, लेकिन वेबदुनिया के प्रबंधकों की यह नीति सराहनीय कही जाएगी कि उन्होंने हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का दामन नहीं छोड़ा। आज दुनिया के कई देशों में वेबदुनिया और हिन्हीं एक दूसरे के पर्याय हैं।

वेबदुनिया ने अपने 15 साल के सफर में बहुत उपलब्धियां हासिल की हैं और अभी और भी करना है। वेबदुनिया एक सशक्त मंच बनकर उभरा है, जो भारतीय भाषाओं का झंडाबरदार है। मैं वेबदुनिया और उसके लाखों पाठकों को इसके लिए शुभाकामनाएं देता हूं।

तू फोन क्यों नहीं करता?

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (20 सितम्बर   2014)




अभी एक पुराने  मित्र का फ़ोन आया --- क्या हाल चाल है? यार, तुम तो  याद ही नहीं करते.

मैने कहा -- ग़लत ! हमेशा ही याद करता हूँ.

वह बोला --तो फिर कभी फ़ोन क्यों नहीं करते?

मैने पूछा -- तुम याद करते हो मुझे?

कहने लगा -- बिल्कुल रोजाना याद करता हू.

मैने कहा -- तो फिर फ़ोन क्यों नहीं करते?

उसने कहा -- यह सवाल तो मेरा है.

मैने कहा -- नहीं, अब यह सवाल मेरा है.

उसने कहा --मैने शिकायत की तो अब मुझसे ही सवाल कर रहे हो?

मैने जवाब दिया -- मैने प्रतिप्रश्न  किया ये  मुझ पर ही तोहमत क्यों ?

उसने कहा --पहले सवाल मैने पूछा था...

मैने कहा --तूने पूछा तो....

उसने कहा --हाँ, एक तो कभी फ़ोन नहीं करता, ऊपर से आरोप?

मैने कहा--मैने कोई आरोप नहीं लगाया. तुमने फ़ोन किया और पूछा कि फ़ोन क्यों नहीं करता? 

मैने तुमसे भी यही सवाल कर डाला. इसमें आरोप क्या है?

वह बोला -- तू साले खुद को मेरा दोस्त बोलता है और फ़ोन करने की बात पर हंगामा कर रहा है?

मैने कहा -- तू भी तो साले मेरा दोस्त बोलता है खुद को! तू ही फ़ोन कर लिया कर.

वह बिफरा -- साले मोबाइल में तो 10 डिज़िट भी डायल नहीं करने पड़ते....फिर भी तू मेरे को कॉल नहीं लगा सकता?

मैने साफ़ कहा -- यही तो मैं कह रहा हूँ बे; तू क्यों नहीं कर लेता कभी फ़ोन वोन?

वह तैश में आ गया --पहले मैने शिकायत की थी कि तू कॉल क्यों नहीं करता?

मैने कहा -- तूने कहा तो क्या तेरा इस पर कॉपीराइट हो गया?

वह बका -- तो...? 

मैने कहा --तो.....? तो....तो....तो का तो...?

वह बोला -- तेरी बात ज़रा भी जायज़ नहीं है. तू कभी फ़ोन नहीं करता.

मैं बोला -- तेरी भी शिकायत कहाँ जायज़ है? तू करता है फ़ोन? साल में चार बार भी कॉल करता है क्या?

वह बोला -- तू मेरा दोस्त है ना, फिर क्यों बात नहीं करता?
मैने कहा -- तू भी तो मेरा दोस्त है, तू क्यों नहीं करता बात?....तभी नेटवर्क की कुछ परेशानी आई और फ़ोन कट गया. मैने तत्काल कॉल लगाया, बिजी टोन. दो मिनट बात फिर लगाया, फिर बिजी टोन. री डॉयल किया तब भी यही हाल. फ़ोन एक तरफ रखकर मैं काम मे जुटा ही था कि फिर उसका फ़ोन आ गया --- साले तूने फ़ोन क्यों काट दिया मेरा?

मैने कहा -- मैंने नहीं काटा, तू ने ही काटा होगा?

वह उखड़ गया --एक तो बात नहीं करता, ऊपर से कॉल करो तो फ़ोन काट देता है?

मैने सफाई दी --शायद नेटवर्क की दिक्कत होगी!

वह भड़क गया -- अब नेटवर्क का बहाना बना रहा है तू?

मैने कहा--अब नेटवर्क में दिक्कत हो तो कोई क्या करे?

वह चीखा--क्या करे? तू तो बहुत बड़ा आदमी हो गया है! तेरे पास दोस्त को फ़ोन करने का वखत भी नही बचा?

मैने कहा -- तू भी तो प्राइम मिनिस्टर हो गया है साले.

वह बिगड़ गया -- तू क्या घर पर झगड़ा करके आया है साला? कोई बात का जवाब ठीक से नहीं देता?

मैने कहा -- मैं न तो घर पर झगड़ा करता हूँ, न बाहर.

वह बोला--तू मेरे पर तंज़ कर रहा है क्या? मैं सबसे झगड़ा ही करता हूँ?
मैने उसे शांत करने के अंदाज़ में कहा --नहीं नहीं, भैया, मेरा यह मतलब नहीं था. तू तो मेरा फास्टेस्ट फ्रैंड था, है और रहेगा, इतने दिन बाद तूने कॉल किया है, यह बता घर पर सब ठीक है? भाभी जी कैसी है? बच्चे मज़े में हैं? 

वह बोला - अब क्यों पूछ रहा है? कॉल मैने किया और हाल तू पूछ रहा है?

मैने दूर से ही हाथ जोड़े -- मेरे प्रभु, यह बता कि काल क्यों किया? कैसे याद किया? ....पर अभी यह बता कि फ़ोन करने का कोई ख़ास कारण?

वह बोला -- क्या मैं तेरे को बिना कारण के फ़ोन नहीं कर सकता? तू मेरा दोस्त, और कारण होना चाहिए फ़ोन करने के लिए?

मैने कहा --- नहीं नहीं महाप्रभु, आदेश  करो....क्यों फ़ोन किया?

उसने कहा -- इसीलिए कि तू फ़ोन क्यों नहीं करता?

मेरा धीरज जवाब दे चुका था. मैने फ़ोन दूर रख दिया और उसकी आवाज़ें सुनता रहा, बगैर काटे. भरोसा हो गया था कि जवाब दूँगा तो रिपीट टेलीकास्ट फिर चालू हो जाएगा. 
ये विज्ञापन वाले भी सचमुच कमाल करते हैं. 

....हर दोस्त कमीना होता है..... 

''फोन क्यों नहीं करता''.... इसका क्या जवाब दूँ मैं?
Copyright © प्रकाश हिन्दुस्तानी
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (20 सितम्बर   2014)

Monday, September 15, 2014

एबीपी न्यूज की तरफ से हिन्दी के 10 ब्लॉगर सम्मानित

नई दिल्ली। हिन्दी दिवस  पर एबीपी न्यूज ने हिन्दी के 10 चुनिंदा ब्लॉग लेखकों को सम्मानित किया गया। इस आयोजन में प्रकाश हिन्दुस्तानी के साथ ही 9 अन्य प्रमुख ब्लॉग लेखक सम्मानित किए गए।  ब्लॉग लेखकों का चयन प्रसून जोशी, कुमार विश्वास,  सुधीश पचौरी और  मिश्र ने किया था। इंदौर के प्रकाश हिन्दुस्तानी को समसामयिकी विषयों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया।



हिन्दी के विकास में इन ब्लॉग लेखकों के योगदान को रेखांकित करने के लिए यह आयोजन किया गया। सम्मान समारोह में खास मेहमान के तौर पर गीतकार प्रसून जोशी, कवि कुमार विश्वास, मीडिया विशेषज्ञ सुधीश पचौरी और रेडियो के प्रस्तुतकर्ता नीलेश मिश्र मौजूद थे। इस अवसर पर हिन्दी जगत के अनेक नामचीन साहित्यकार और पत्रकार भी मौजूद थे। सम्मानित होने वालों में पांच ब्लॉग लेखक दिल्ली के है और १ अनिवासी भारतीय। प्रकाश हिन्दुस्तानी को उनके इसी ब्लॉग के लिए सम्मानित किया गया।






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दिल्ली के पंकज चतुर्वेदी को पर्यावरण के मुद्दों पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया. पंकज पर्यावरण से जुड़े मुद्दे पर लगातार लिखते रहे हैं।
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अलवर राजस्थान के  शशांक द्धिवेदी  को विज्ञान के मुद्दे पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया।
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दिल्ली के प्रभात रंजन को हिंदी साहित्य और समाज पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया।
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दिल्ली की रचना को महिलाओं के मुद्दे पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया। 
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दिल्ली की फिरदौस ख़ान को साहित्य के मुद्दों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया।
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फतेहपुर (यूपी) के प्रवीण त्रिवेदी को स्कूली शिक्षा और बच्चों के मुद्दों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया।
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दिल्ली के पंकज तिवारी को राजनीतिक मुद्दों पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया।  
किन्हीं कारणों से लंदन से शिखा वार्ष्णेय और मुंबई से अजय ब्रह्मात्मज समारोह में उपस्थित नहीं हो सके.

समाचार का वीडियो लिंक :

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एबीपी न्यूज ने किया हिंदी के 10 सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगरों को सम्मानित


'हिंदी दिवस' के अवसर पर खबरिया चैनल 'एबीपी न्यूज' ने रविवार को नई दिल्ली में 10 ब्लॉगरों का सम्मान किया। एबीपी न्यूज द्वारा पुरस्कृत किए जाने वाले इन 10 ब्लॉगरों का चयन एबीपी के खास मेहमान सुधीश पचौरी, डॉ. कुमार विश्वास, प्रसून जोशी और नीलेश मिश्र ने किया। 
एबीपी न्यूज ने हिंदी के जिन सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगरों को सम्मानित किया वे निम्न हैं :
·     मुंबई के अजय ब्रह्मात्मज को सिनेमा व लाइफस्टाइल पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया। फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज ने पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन से अपना विशेष स्थान बनाया है। लोकप्रिय हिंदी सिनेमा के प्रति गंभीर दृष्टिकोण रखते हुए उसके विपुल प्रभाव को समझने की कोशिश में वे फिल्मी हस्तियों के संपर्क में आए। संप्रति वे दैनिक जागरण में फिल्म–प्रभारी हैं। (http://chavannichap.blogspot.in/)

·    दिल्ली की फिरदौस खान को साहित्य के मुद्दों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया। वह युवा पत्रकार हैं। उन्होंने दूरदर्शन और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में कई साल तक अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का संपादन भी किया और ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के लिए एंकरिंग भी की। वे देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और समाचार व फीचर्स एजेंसी के लिए लेखन भी करती हैं। उन्होंने 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब भी लिखी है। इसके अतिरिक्त डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलिविजन चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी किया है। (http://firdausdiary.blogspot.in/)
·    दिल्ली के मुकेश तिवारी को राजनीतिक मुद्दों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया। मूल रूप से जौनपुर के रहने वाले मुकेश ने गाजियाबाद में रहकर शिक्षा और पत्रकारिता के सफर को आगे बढ़ाया। इस क्षेत्र में चार साल से अधिक कार्य करने के बाद वे अपने अनुभवों को लोगों से'आजाद लब' कॉलम के जरिए बांटने की कोशिश करते हैं, जोकि नवभारत टाइम्स की डिजिटल वेबसाइट पर प्रकाशित होता है।(http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/mukeshtiwari)   

·   दिल्ली के पंकज चतुर्वेदी को पर्यावरण मुद्दों के लेखन के लिए सम्मानित किया गया। वह हिंदी के प्रसिद्ध लेखक हैं। वह बच्चों के लिए तो लिखते रहते हैं, या यूं कहिए वह बाल मन के विशेषज्ञ हैं,परंतु देश की ज्वलंत समस्याओं पर भी उनकी लेखनी का पैनापन सबको अपना बना लेने की क्षमता रखता है। शायद ही कोई अखबार हो,जिसके पृष्ठों पर पंकज के आलेख नजर न आते हों। वह नेशनल बुक ट्रस्ट में सहायक संपादक के पद पर हैं। (http://pankajbooks.blogspot.in/)

·    दिल्ली के प्रभात रंजन को हिंदी साहित्य और समाज पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया। युवा कथाकार, संपादक, डॉ. प्रभात रंजन, दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में अध्यापक और चर्चित ई-पत्रिका ‘जानकी पुल’ के संपादक हैं।(http://www.jankipul.com/)

·    इंदौर के प्रकाश हिन्दुस्तानी को समसामयिकी विषयों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया। प्रकाश हिन्दुस्तानी का ब्लॉग समसामयिक मुद्दों के अलावा पत्रकारिता के अनुभव और लेखन पर आधारित है। प्रकाश हिन्दुस्तानी को हिंदी के पहले वेब पोर्टल के संस्थापक-संपादक होने का गौरव प्राप्त है, उन्होंने अपनी पी.एच.डी. का शोध प्रबंध भी हिंदी की इंटरनेट पत्रकारिता पर लिखा है और हिंदी की नेट पत्रकारिता पर उनके कई शोध प्रबंध भी प्रकाशित हो चुके हैं।(http://prakashhindustani.blogspot.in/)
·   लंदन की शिखा वार्ष्णेय को महिला और घरेलू विषयों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया। इन्होंने मोस्को स्टेट यूनिवर्सिटी से टीवी जर्नलिज्म में परास्नातक करने के बाद कुछ समय भारत में एक टीवी चैनल में न्यूज प्रोडूसर के तौर पर काम किया। वर्तमान में वह लंदन में स्वतंत्र पत्रकारिता और लेखन में साक्रिय भूमिका निभा रही हैं। (http://www.shikhavarshney.com)

·   उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के प्रवीण त्रिवेदी को स्कूली शिक्षा और बच्चों के मुद्दों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया।  वह बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत प्राइमरी के मास्टर के रूप मे कार्यरत हैं। वह ब्लॉगिंग की दुनिया में हमेशा सक्रिय रहते हैं। दैनिक जागरण के जागरण जंक्शन पर ‘प्राइमरी का मास्टर’ नाम से उनका एक कॉलम भी है। (http://blog.primarykamaster.com)

·    दिल्ली की रचना को महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया। उन्होंने‘नारी’ के नाम से 5 अप्रैल 2008 को बनाया था। नारी ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग है, जिसकी सदस्या वे नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं। नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था, जहां महिला ब्लॉगर ही लिखती थीं।  15 अगस्त 2011 को ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा लेकिन इसके बाद फिर 15 अगस्त 2012 को ये ब्लॉग साझा मंच बन गया। (http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/)

·   अलवर के शशांक द्विवेदी के विज्ञान के मुद्दों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया। शशांक विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में देश के प्रमुख अखबारों के लिए नियमित रूप से स्वतंत्र लेखन के कार्य से भी जुड़े हुए हैं। पिछले 12 वर्षों से स्वतंत्र लेखन कर रहे शशांक आम आदमी तक विज्ञान की उपलब्धियों को सरल भाषा में पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इनके लेख कई राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। वे राजस्थान के अलवर जिले के नीमराना स्थित सेंट मार्गेट इंजीनियरिंग कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। (http://www.vigyanpedia.com)

हिंदी दिवस के प्रमुख कार्यक्रम का संचालन संगीता तिवारी ने किया। वे एबीपी न्यूज में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं। उन्हें करीब एक दशक के बाद एंकरिंग की भूमिका में देखा गया। संगीता ने भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता की पढ़ाई की और इस वक्त वे एबीपी न्यूज में निर्णायक भूमिका अदा कर रही हैं।  
हिंदी दिवस के खास मौके पर एबीपी न्यूज द्वारा आयोजित किए गए हिंदी उत्सव कार्यक्रम में हिंदी के जरिए सिनेमा और समाज में अपनी खास पहचान बनाने वाले बॉलिवुड के लेखक प्रसून जोशी, रेडियो पर जाना-पहचाना नाम नीलेश मिश्र, अपनी कविताओं के जरिए युवाओं में खास जगह बना चुके कवि डॉ. कुमार विश्वास और जाने माने मीडिया विश्लेषक सुधीश पचौरी ने अपनी बात कही।
साभार :  समाचार4मीडिया ब्यूरो

http://samachar4media.com/10-hindi-bloggers-have-been-awarded-by-abp-news.html#comments

Saturday, September 13, 2014

सेलेब्रिटी लोगन का आइस बकेट का 'खेल' !

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (13 सितम्बर   2014)

आम अमेरिकी खुद को मस्त मौला और लोगों की मदद करनेवाला दिखाता है, लेकिन ऐसा है नहीं। भारतीयों ने उनके 'आइस बकेट चैलेन्ज' को 'राइस बकेट चैलेन्ज ' बनाकर इस फर्जी सेवा अभियान की हवा निकाल दी। ए. एल. एस. ( अम्योट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस ) नामक बीमारी के खिलाफ अभियान चलाने के नाम पर  'एएलएस  आइस बकेट' की धूम मच रही थी। पिछले साल तक 'कोल्ड वाटर बकेट' नाम  चल रहा था जिसका मकसद कैंसर रोगियों की मदद का था पर 30 जून 2014 से यह खेल मीडिया के प्रभाव में आकर आइस वाटर बकेट बन गया।  

खेल  का नियम यह था कि  कोई भी शख़्स खेल को खेलने ( अपने सर पर बर्फीले  पानी की बाल्टी उंडेलने) की चुनौती स्वीकार करेगा और उसका वीडियो रेकार्ड बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर कर किसी दूसरे को चुनौती देगा कि वह  ऐसा ही करे। चुनौती स्वीकारी तो 10 डॉलर और नहीं स्वीकारी तो 100 डॉलर के बराबर धनराशि अमेरिका के  एएलएस फाउंडेशन को दान देगा। बिल गेट्स, मार्क जकरबर्ग, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला,  हॉलीवुड अभिनेता रॉबर्ट डाउनी जूनियर, टेनिस खिलाड़ी नोवाक जोकोविच, लेडी गागा,  जस्टिन बीबर और फुटबॉलर रोनाल्डो जैसी हस्तियां जब यह कर चुकी तो हमारे यहाँ भी नक़ल होने लगी.  सनी लिओनी, सानिया मिर्ज़ा, महेश भूपति, रितेश देशमुख, युवराज सिंह, अक्षय कुमार, अभिषेक बच्चन, सिद्धार्थ मल्होत्रा, पुलकित सम्राट आदि  ने यह खेल खेला। जब दक्षिण भारत  के कुछ युवाओं को इसकी सचाई पता चली तब उन्होंने इसे 'राइस बकेट' नाम देकर चावल दान देना शुरू कर दिया।  'आइस बकेट' की हवा निकल गयी। 

'आइस बकेट चैलेन्ज' के नाम पर अब तक 100 मिलियन डॉलर (10 करोड़ डॉलर अथवा 600 करोड़ रुपए से अधिक) जमा हो चुके हैं. 

यह सारी धनराशि  एएलएस फाउंडेशन को मिली है।  लेकिन  सोच रहे  हैं कि इसका लाभ  एएलएस मरीजों को होनेवाला है, तो आप गलत हैं। अमेरिकी एनजीओ भी फैशन और दिखावे पर  खर्च ज्यादा करते हैं। इस पूरे धन का  चौथाई यानी 27 प्रतिशत ही बीमारी के लिए जाएगा, 73 प्रतिशत दूसरे मद में खर्च होंगे। 

31 जनवरी 2014 को समाप्त हुए वर्ष में एएलएस फाउंडेशन का  खर्च चौंकानेवाला है। इस संस्था ने  73 प्रतिशत धन गैर चिकित्सा  लगाया है। जितना धन इसने मरीजों के लिए खर्च किया लगभग उतना ही (21 प्रतिशत) प्रशासकीय और धन संग्रह के मद में उड़ा  दिया। कम्युनिटी सेवा के नाम पर 19 प्रतिशत और शिक्षा व जागृति के बहाने 32 प्रतिशत धन हवा कर दिया। इसके सीईओ को 2 करोड़ सालाना दिए जा रहे हैं और उसके  बाद के 10 अधिकारीयों को  75 लाख से 125 लाख रुपए मिल रहे हैं। इनके नीचे सैकड़ों कर्मचारी हैं, जिनमें से कई तो शायद ही कोई काम करते हों, लेकिन वेतन के नाम पर लाखों वसूल रहे हैं। पी आर, फाइनेंस, प्लानिंग, पब्लिसिटी, लीगल आदि विभाग हैं, जिनके दफ्तर का खर्च करोड़ों में है। 

भारत का हाल तो हमें पता ही है, लेकिन अमेरिका में भी हाल अच्छा  नहीं है। यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल ऐड और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने ऐसे भ्रष्टाचार को रोकने के लिए एंटी फ्रॉड ऑनलाइन सेवा शुरू की है. इसकी ज़रुरत पड़ी होगी? भारत में ऐसे करीब 15 एनजीओ हैं जिन्हें 60 करोड़ से 230 करोड़ की मदद हर साल विदेश से मिलती है। इनमें ज्यादातर केरल, तमिलनाडु, सीमांध्र, पश्चिम  बंगाल और दिल्ली के हैं। ऐसा लगता है की सेवा के नाम पर मेवा खानेवाले पूरी दुनिया में बराबरी से फैले  हैं। 
Copyright © प्रकाश हिन्दुस्तानी
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (13 सितम्बर   2014)

Monday, September 08, 2014

चेतन भगत और गुलशन नंदा

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (06 सितम्बर   2014)



एक ज़माने में टाइम्स ऑफ़ इंडिया की हिंदी पत्रिका 'धर्मयुग' का बड़ा जलवा था। 'धर्मयुग' में एक कहानी छप जाने पर ही लोग किसी को लेखक मान  लेते थे और एक कविता भर छपने से कवि।  मैं धर्मयुग में  उप संपादक बनने के लिए  फाइनल इंटरव्यू दे रहा था। प्रसिद्ध साहित्यकार  डॉ धर्मवीर भारती उसके संपादक थे।  डॉ भारती ने पूछा --''क्या-क्या पढ़ते हो?''

''सब कुछ।''

''सब कुछ मतलब?''

''सब कुछ।  सभी लेखकों को पढ़ता  हूँ।''

''तुम्हारा प्रिय लेखक कौन है?'' 

भारती जी को लगा कि शायद उनका नाम लूँगा।  पर मैंने कहा --''गुलशन नंदा।'' 


भारती जी मुस्कराए -- ''क्या अच्छा  लगता है उनके लेखन में?''
''बढ़िया पारिवारिक कहानी, सीधी  सपाट भाषा और रोचक प्रस्तुति। ''

इंटरव्यू देकर बाहर आया तो दोस्तों  ने कहा -- ''तुम तो गए काम  से।  क्या ज़रुरत थी यह  कहने की? कह देते कि प्रिय लेखक भारती जी ही हैं, वे खुश हो जाते; जॉब पक्का  जाता।'' 

मेरे अजरज का ठिकाना न रहा जब मेरा चयन 'धर्मयुग' में हो गया जबकि मेरे साथ इंटरव्यू देनेवाले राजीव शुक्ला जैसे शख़्स का चयन नहीं हो सका। दो साल बाद ही मुझे गुलशन नंदा  इंटरव्यू  मौका मिला।  यह बात और है  कि वह इंटरव्यू 'धर्मयुग' में नहीं, 'दिनमान' में प्रकाशित हुआ था।  गुलशन नंदा उन दिनों 'सुपरस्टार' लेखक थे।  उनकी किताब 'झील के उस पार' का पहला संस्करण पांच लाख प्रतियों का था. तीस साल पहले के मान से यह बहुत बड़ी संख्या थी। उनकी तुलना में चेतन भगत कमतर ही माने जा सकते हैं। 'आराधना', 'खिलौना', 'काजल','शर्मीली', 'दाग','नया ज़माना','मेहबूबा', 'नीलकमल' 'पत्थर के सनम', 'सावन की घटा',जोशीला', 'जुगनू', अजनबी', 'बड़े दिल वाला', 'भंवर','आजाद', 'नजराना' आदि उनकी लिखी  फ़िल्में हैं। वे सलीम-जावेद के काफी पहले 'स्टार रायटर' का दर्जा पा चुके  थे। वे अपनी कमाई से बांद्रा के पाली हिल पर 'शीशमहल' नामक बंगला खरीद चुके थे और अपना लेखन कार्य केवल फाइव स्टार होटल में बैठकर  करते थे। उन्हें भी दिलीप कुमार की तरह हिन्दी या देवनागरी लिपि  ज्ञान नहीं था और वे भी उर्दू की तरह लिखते थे। करीब 30 उपन्यासों में से 20 से ज़्यादा पर फ़िल्में बनी थी. हाल यह था कि उनकी कोई किताब बाज़ार में आती, इसके पहले ही उस पर फिल्म बनना शुरू हो जाती।  अपनी फिल्मों के डॉयलॉग और स्क्रीन प्ले लिखने से वे हमेशा बचते रहते। 

गुलशन नंदा को कई लोग महिला समझते थे, क्योंकि नंदा उन दिनों की एक बेहद कामयाब हीरोइन थीं।  गुलशन नंदा ने अपने लेखन की शुरुआत साहित्यिक लेखन से ही की थी. 'सांवलीरात', 'रक्त और अंगारे', 'कलंकिनी' उनके शुरूआती उपन्यास थे जिनमें साहित्यिक पुट था, लेकिन वे बिके नाम मात्र के।  समीक्षा भी अच्छी नहीं छपी. इससे उन्होंने अपने लेखन की शैली बदली और लोकप्रियता का दामन थामा।उनके लिखे उपन्यासों को लोग आज भी याद करते हैं जिनमें 'सिसकते साज', झील के उस पार', 'गेलॉर्ड','जलती चट्टान', 'नीलकंठ', 'घाट  का पत्थर', 'पालेखां ' आदि प्रमुख हैं।  मुझे दिए इंटरव्यू में गुलशन नंदा कहा था कि उन्हें समीक्षकों की कोई परवाह नहीं। वे अपने अनुभवों के आधार पर लिखते हैं। अपने लेखन के प्रारंभिक दिनों में उन्हें आजीविका के लिए चश्मे की दूकान पर काम करना पड़ा था, जहाँ उनकी मुलाकातें अलग अलग वर्ग  से होती रहती थी. उनके उपन्यासों के बारे में  दिलचस्प बात यह कि उनके नाम पर कई प्रकाशक घोस्ट लेखन करवाकर छापते रहते थे।  

आज जब लोग चेतन भगत की बात हैं तब शायद उन्हें पता नहीं होता कि लेखकों का दौर पहले भी रहा है. फर्क है तो बस यह कि गुलशन नंदा हिंदी में प्रकाशित होते थे, और युवाओं-किशोरों में छाए हुए थे।  चेतन भगत अंग्रेज़ी में लिखते और मार्केटिंग करते हैं, लेकिन गुलशन नंदा के उपन्यासों जैसा सामाजिक सन्देश उनमें काम नज़र आता है. 
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वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (06 सितम्बर   2014)