Friday, March 13, 2015

मुंबई, दिनांक 12 मार्च 1993 ; वह काला शुक्रवार


उस दिन भी शुक्रवार था।   तारीख 12,  महीना मार्च का और साल 1993 .  दोपहर  करीब सवा बजे हमारे वीटी ऑफिस के सामने से एक के बाद एक,  लगातार कई  दमकलें सायरन  बजाते हुए फ़्लोरा फाउंटेन की तरफ़ दौड़ी जा रही थीं।  मैं अपने सहकर्मी पत्रकार सुमंत मिश्र के साथ भयपूर्ण उत्सुकता  के साथ उस दिशा में पैदल ही लगभग दौड़ते हुए पहुंचा तो पाया कि स्टॉक एक्सचेंज में बहुत प्रभावशाली बम  विस्फोट हुआ है। वहां खून ही खून और जख्मी लोगों और शवों  को देख  रिपोर्ट करने अपने अखबार नवभारत टाइम्स के दफ़्तर  आए और अपने प्रधान सम्पादक श्री विश्वनाथ सचदेव को पूरा किस्सा बताने उनके केबिन में पहुंचे। हमें घबराया सा देखकर उन्होंने पहले तो बैठने का कहा और फिर पानी पिलवाने के बाद बताया कि और भी करीब  दर्ज़न स्थानों पर बम धमाके हुए हैं और यह कोई बड़ी आतंकी साजिश है। 
तब मोबाइल  व इंटरनेट का ऐसा वजूद था नहीं; न प्राइवेट न्यूज़ चैनल थे, न एफ़एम रेडियो। हम टेलीप्रिंटर कक्ष में बम धमाकों के समाचार देख देख कर उत्तेजना और डर महसूस कर रहे थे, क्योंकि तीन-चार महीने पहले  भारी सांप्रदायिक उन्माद हम देख चुके थे। उधर टेलीप्रिंटर बम धमाकों  खबरें उगलते जा  रहे  थे : 
*बॉम्बे  स्टॉक एक्सचेंज - बम  ब्लॉस्ट  13.30 बजे  - 84 मृत 

* कालबादेवी - बम ब्लॉस्ट 14.15 बजे - 5 मृत 

* शिव सेना भवन - बम ब्लॉस्ट 14.30 बजे - 4 मृत 

* एयर  इंडिया बिल्डिंग, नरीमन पॉइंट - बम ब्लॉस्ट 14.33 बजे - 20 मृत 

* मच्छीमार  कॉलोनी, माहिम - बम ब्लॉस्ट 14.45 बजे - 3 मृत 

* वर्ली  सेंचुरी बाज़ार - बम ब्लॉस्ट 14.45 बजे  - 113 मृत 

* ज़वेरी बाज़ार -  बम ब्लॉस्ट 15.00 पीयेम - 17 मृत 

* होटल सी रॉक  (वर्तमान में होटल ताज लैंड्स एंड ), बांद्रा -  बम ब्लॉस्ट 15.10 बजे - 

* प्लाज़ा सिनेमा , दादर -  बम ब्लॉस्ट 15.15 बजे - 10 मृत 

* होटल जुहू सेंटोर (वर्तमान होटल ट्यूलिप स्टार) -  बम ब्लॉस्ट 15.20 बजे - 3 जख्मी 

* सहार एयरपोर्ट के समीप   -  बम ब्लॉस्ट 15.30 बजे 

* होटल  एयरपोर्ट सेंटोर (वर्तमान में होटल सहारा स्टार) -  बम धमाका 15.40 बजे - 2 मृत 

* पासपोर्ट कार्यालय, वर्ली 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक  बम ब्लॉस्ट में 317  जानें गईं और करीब 1400  लोग ज़ख़्मी हुए थे।  करोड़ों की संपत्ति की क्षति भी हुई।  षड्यंत्रकारी दहशतगर्दों ने मुंबई की हर उस जगह  निशाना बनाया था, जिससे मुंबई की पहचान दुनियाभर में होती रही है।  शेयर बाज़ार, पब्लिक ट्रांसपोर्ट केंद्र, भीड़भरे बाजार, प्रमुख होटल, एयरपोर्ट जैसी जगहें खास निशाने पर थीं. इसी दिन न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर भी बम ब्लॉस्ट किये गए  थे, पर वहां कोई जनहानि नहीं हुई थी। अधिकांश बम कार या स्कूटर में लगाए गए थे । होटल में, सूटकेस बम कमरे में छोड़ दिया गया। यह करतूत पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की थी और उसमें दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन, अयूब मेमन और याकूब मेमन सहित उसके अंडरवर्ल्ड सहयोगियों ने मदद की थी।

मुम्बईकर लोगों के ज़ज्बे को सलाम ! इस भीषण हमले के बाद मुंबई महानगरी फिर दुगुने जोश के साथ खड़ी है और जख़्मों के बावजूद दुनिया को अमन का पैगाम दे रही है। 
................................................................................................................................

संजय दत्त ,बम ब्लॉस्ट , द डेली में बलजीत परमार की ब्रेकिंग न्यूज़


इन सीरियल बम ब्लॉस्ट में ही संजय दत्त को दोषी ठहराया गया और अवैध हथियार रखने के लिए 5 साल जेल की सजा सुनाई गई। संजय दत्त को कथित तौर पर दाऊद इब्राहिम के गिरोह द्वारा एके 56 और गोलियों की आपूर्ति की गई। कहा गया कि बम विस्फोट के बाद संभावित सांप्रदायिक दंगों के दौरान सुरक्षा के लिए संजय दत्त ने ये हथियार लिए थे। संजय दत्त के पास से कोई हथियार ज़ब्त नहीं हुआ था क्योंकि वह नष्ट किया जा चुका था। संजय को यह सजा उनके द्वारा कुबूलनामे के कारण हुई है।

इस मामले में संजय दत्त की खबर सबसे पहले 'द डेली' अखबार के क्राइम रिपोर्टर बलजीत परमार ने ब्रेक की थी। 15 अप्रैल 1993 को जब यह खबर ब्रेक की गई तब देश भर में सनसनी फ़ैल गई। उस दिन संजय दत्त मॉरिशस में 'आतिश' फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. उनके पिता अभिनेता सुनील दत्त संसद सदस्य थे और उन्होंने ही संजय को भारत आने के लिए कहा था। सहार एयरपोर्ट से बाहर आते ही संजय को पुलिस ने पूछताछ हिरासत में ले लिया था. अभी वे पुणे की यरवदा जेल में हैं।

--प्रकाश हिन्दुस्तानी 

Tuesday, March 03, 2015

ओशो ने भी मदर टेरेसा के बारे में कहा था...

मदर टेरेसा की अप्रत्यक्ष आलोचना करने वालों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत की बात विवादों में घिरी रही है। संसद में भी इस पर चर्चा की और अनेक राजनैतिक दलों ने मोहन भागवत की आलोचना की। शिवसेना ने जरूर भागवत के बयान का एक हद तक समर्थन किया, लेकिन मोहन भागवत पहले व्यक्ति नहीं है, जिन्होंने मदर टेरेसा के बारे में खुलकर अपने विचार रखें। मोहन भागवत ने कहीं भी मदर टेरेसा की सेवा की आलोचना नहीं की। उन्होंने यहीं कहा कि मदर टेरेसा की सेवा के पीछे धर्म परिवर्तन का उद्देश्य छुपा था। अगर हम अपने लोगों की सेवा करें तो किसी और व्यक्ति को यहां आकर सेवा करने की जरुरत ही नहीं पड़े।


मोहन भागवत से उल्टे विचार ओशो के रहे है। वे खुलकर महात्मा गांधी और मदर टेरेसा के बारे में बोलते रहे है। ओशो के अनुसार भारत के दुर्भाग्यों में से एक दुर्भाग्य यह है कि हम अपने महापुरुषों की आलोचना करने में समर्थ नहीं हो पा रहे है। या तो हम अपने महापुरुषों को इस योग्य नहीं समझते कि उनकी आलोचना की जा सवेंâ या हम यह समझते है कि हमारी आलोचना के सामने महापुरुष टिक नहीं पाएंगे। महात्मा गांधी के बारे में ओशो ने कहा था कि वे ऐसे व्यक्ति नहीं है जो आलोचना से धूमिल होंगे। मेरी नजर में महात्मा गांधी ऐसी हस्ती है जो पत्थर की महान प्रतिमाओं की तरह अगर उन पर आलोचना की बारिश होगी तो उस पर जमीं धूल-मिट्टी बह जाएगी और उनकी प्रतिभा और ज्यादा निखर कर प्रकट होगी, लेकिन मदर टेरेसा के बारे में ओशो के ख्याल ऐसे नहीं थे। उन्होंने मदर टेरेसा के बारे में साफ-साफ कहा था- ‘‘मेरे लिए मदर टेरेसा और उनके जैसे लोग पाखण्डी है, क्योंकि वो कहते एक बात है, लेकिन यह सिर्पâ बाहरी मुखौ टा होता है। वे करते दूसरी बात है, यह पूरा खेल राजनीति का है- संख्या बल की राजनीति’’।

दरअसल जब मदर टेरेसा को नोबल पुरस्कार की घोषणा की गई थी। तब ओशो ने मदर टेरेसा के कामों का विश्लेषण किया था, जिससे मदर टेरेसा नाराज हो गई थी और उन्होंने ओशो को एक पत्र लिख दिया। उस पत्र को लेकर ओशो ने अपने प्रवचनों में साफ-साफ कहा कि राजनेता और पादरी हमेशा से मनुष्यों को बांटने की साजिश करते आए है। इन दोनों ने मानवता के खिलाफ गहरी साजिशें की है। इन्हें खुद पता नहीं होता कि यह क्या कर रहे है? कई बार इनकी नियत ठीक होती है, लेकिन चेतना के अभाव में ये समझ नहीं पाते है कि यह क्या कर रहे है? मदर टेरेसा ने ओशो को जो पत्र लिखा था : संदर्भ- नोबल पुरस्कार और इसके आगे मदर टेरेसा ने ओशो को लिखा था कि आपने मेरे नाम के साथ जो विशेषण इस्तेमाल किए उसके लिए मैं पूरे प्रेम से क्षमा करती हूं।

ओशो ने अपने प्रवचन में कहा कि मैंने मदर टेरेसा की आलोचना की थी और कहा था कि उन्हें नोबल पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए था। उन्होंने मेरी बात को अन्यथा ले लिया। वह आदमी, नोबल दुनिया के सबसे बड़े अपराधियों में से एक था। वह हथियारों का बहुत बड़ा निर्माता था। पहला विश्व युद्ध उसके हथियारों से ही लड़ा गया था। ऐसे आदमी के नाम पर पुरस्कार मिलने पर मदर टेरेसा मना नहीं कर सकी। प्रशंसा पाने की चाह, सारे विश्व में सम्मान पाने की चाह, नोबल पुरस्कार वह सम्मान दिलवाता है सो उन्होंने पुरस्कार सहर्ष स्वीकार कर लिया। ओशो ने मदर टेरेसा के लिए अमग्न्ी (धोखेबाज, कपटी, धूर्त) शब्द का इस्तेमाल किया था। मोहन भागवत ने मदर टेरेसा के सेवा के काम की सराहना की थी और भारतीयों की कमी बताई थी कि अगर वे सेवा कार्य ठीक से करते तो बाहरी लोगों को यहां आकर सेवा कार्य की जरूरत नहीं पड़ती।

ओशो ने अपने प्रवचन में साफ किया कि मदर टेरेसा कि नियत धोखा देने की कभी नहीं रही होगी, लेकिन यह बात महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है परिणाम। ऐसे लोग चाहते है कि समाज में शोषण का पहिया, अत्याचार का पहिया यूं ही आसानी से घूमता रहे। ऐसे लोग न केवल दूसरों को बल्कि खुद को भी धोखा देते है।

मदर टेरेसा को नोबल पुरस्कार इसलिए दिया गया कि वे हजारों अनाथों की सहायता करती है और उनकी संस्था में हजारों अनाथालय है। अचानक एक दिन उनकी संस्था के पास एक भी बच्चा गोद देने के लिए उपलब्ध नहीं हो पाता। क्या यह संभव है कि भारत जैसे देश में कोई बच्चा अनाथ न हो। दरअसल मदर टेरेसा केवल ईसाई परिवार को ही बच्चे गोद देने का काम करती है। जब मदर टेरेसा को पता होता था कि यह अनाथ बच्चा हिन्दू धर्म का है तब उसकी परिवरिश हिन्दू परिवार में हिन्दू रीति-रिवाजों से क्यों नहीं होती? जब भारतीय संसद में धर्म की स्वतंत्रता के ऊपर एक विधेयक प्रस्तुत किया गया तब उसका विरोध करने वाली पहली व्यक्ति थी मदर टेरेसा। धर्म की स्वतंत्रता विधेयक का उद्देश्य क्या था? यहीं था कि किसी को भी दूसरे धर्मावलम्बी को धर्म परिवर्तन कराने की अनुमति नहीं होनी चाहिए, जब तक वह व्यक्ति खुद अपनी इच्छा से अपना धर्म छोड़कर किसी और धर्म की शरण में न जाना चाहे। मदर टेरेसा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा और कहा कि यह विधेयक किसी भी हालत में पास नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह हमारे काम के खिलाफ जाता है। हम लोगों को बचाने के लिए प्रतिबद्ध है और लोग केवल जब ही बचाए जा सकते है जब वे ईसाई बन जाए। मदर टेरेसा ने उस विधेयक पर इतना हो-हल्ला, इतना हो-हल्ला मचाया कि वह विधेयक पास नहीं हो सका। उसे भुला दिया गया। अगर मदर टेरेसा इतनी ईमानदार थी, तो उन्हें किसी भी धर्म के व्यक्ति की मदद करने में संकोच नहीं करना चाहिए था। अगर कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से धर्म बदल लें तो यह उसकी मर्जी। मेरे लिए मदर टेरेसा और उनके जैसे लोग पाखंडी है।

ओशो अपनी भूमिका को लेकर बहुत स्पष्ट रहे है। वे साफ कहते थे कि मैं गरीब लोगों की सेवा नहीं करना चाहता। मैं गरीबों की गरीब खत्म करके उन्हें समर्थ बनाना चाहता हूं। मेरी रूचि किसी भी गरीब को गरीब बनाए रखने में नहीं है। लोगों की गरीबी दूर होना मेरे लिए आनंद का विषय है। मेरी राय में पोप और मदर टेरेसा जैसे लोग अपराधी है और उनके अपराध को देखने के लिए बहुत सूक्ष्म बुद्धि की आवश्यकता है।

मैं गरीबों की सेवा करना नहीं चाहता। गरीबों की सेवा करने के लिए बहुत सारे लोग मौजूद है। आप तो बेचारे अमीरों को मेरे लिए बख्श दीजिए। मैं अमीरों का गुरू हूं और अमीरों की ही सेवा करना चाहता हूं।- ओशो

कॉपीराइट © 2015 प्रकाश हिन्दुस्तानी