Sunday, January 15, 2012

जिंदगी में हर जगह है इम्तिहान

रविवासरीय हिन्दुस्तान (15-01-2012)के एडिट पेज पर मेरा कॉलम



जिंदगी में हर जगह है इम्तिहान


जिनकी मदद से आप कामयाब हुए हैं, उन्हें क्या आपने श्रेय दिया है? सबसे बड़ी बात यह है कि आपमें विजय या कामयाबी के बाद मानवीयता का अंश बढ़ा है या नहीं? अगर सफलता से मानवीयता का अंश नहीं बढ़ता, तो वह उपयोगी नहीं रह जाएगी।


नंदन नीलेकणि फिर परीक्षा दे रहे हैं। संसद की स्थायी समिति ने उस परियोजना को खत्म करने की सिफारिश की है, जिसके तहत देश के हरेक नागरिक के लिए ‘आधार’ नाम से विशिष्ट पहचान प्रणाली के कार्ड दिए भी जा रहे थे। केंद्र सरकार यूनीक आइडेंटीफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया की इस योजना को लोगों को, खासकर गरीबों को मिलने वाली कई सुविधाओं से जोड़ा जाना था।
योजना की तकनीकी जटिलता और इसके लिए इनोवेशन की जरूरत को देखते हुए यह जिम्मेदारी नंदन नीलेकणि को सौंपी गई थी। लेकिन अब इस पर ब्रेक लग गया है। इस झटके के बावजूद वह अपने काम में व्यस्त हैं और भविष्य की योजनाएं बना रहे हैं। नीलेकणि इतनी जल्दी हार मानने वाले नहीं हैं। उनके पास भारत की और उसके भविष्य की एक परिकल्पना है। इन्हें उन्होंने अपनी किताब इमेजिंग इंडिया नाम की किताब में विस्तार से दिया है।
स्पष्ट लक्ष्य, ध्यान निशाने पर
नंदन नीलेकणि मानते हैं कि उनकी कामयाबी का एक प्रमुख कारण यह रहा है कि उन्होंने इन्फोसिस की स्थापना के पहले अपना लक्ष्य तय कर रखा था और उसी पर अपना सारा ध्यान केंद्रित भी कर लिया था। ‘हम सभी इस बात पर एकमत और दृढ़ थे कि हमें किस इंडस्ट्री में जाना है और उसके किस क्षेत्र पर ध्यान टिकाना है। हमारा बिजनेस मॉडल क्या होगा और हम किस वैल्यू सिस्टम को अपनाएंगे। हमारे मुखिया कौन होंगे, उनके क्या अधिकार होंगे और किन बातों का फैसला वह अपने सहयोगियों से पूछे बिना नहीं करेंगे।
...स्पष्ट लक्ष्य के कारण ही इन्फोसिस नास्दाक में लिस्टेड पहली भारतीय कंपनी बनी। अपने कर्मचारियों को स्टॉक ऑप्शन देने वाली पहली कंपनी भी बनी। अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहने के कारण ही केवल दस हजार रुपये और एक फ्लैट के ड्रॉइंग रूम से शुरू होने वाली यह कंपनी 2004 में एक अरब डॉलर के कारोबारी लक्ष्य तक पहुंच सकी।’
जीत के लिए मैदान में होना जरूरी
‘मैदान में डटे रहो, डटे रहो, डटे रहो। जब आप कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए मैदान पकड़ते हैं, तो सबसे बड़ी चुनौती होती है मैदान में बने रहने की।कई लोग आपकी स्पर्धा में आ जाते हैं, कई लोगों को आपके काम से बाधा पहुंचती है और कई किसी और को खुश करने के इरादे से आपको नुकसान पहुंचाने के लिए मैदान में आकर खड़े हो जाते हैं। ऐसे में अगर जीत हासिल करना है, तो मैदान में बने रहना जरूरी है। अगर मैदान ही छोड़ दिया, तो जीत की आस ही नहीं रहती। इसलिए आप किसी भी कार्यक्षेत्र में हों, मैदान छोड़कर न हटें।
फिल्मों के अलावा कोई भी चमत्कार मिनट या घंटों में नहीं होता, उसके लिए संघर्ष व साधना करनी पड़ती है। इन्फोसिस को ही लें, उसे पब्लिक कंपनी बनाने में 12 वर्ष लग गए। एक अरब डॉलर का कारोबारी लक्ष्य पाने में 23 वर्ष लग गए, पर एक बार अगर आपने लक्ष्य को पा लिया तो, अगला लक्ष्य पाना आसान होता है। एक अरब डॉलर तक पहुंचने में भले 23 साल लगे हों, दस अरब डॉलर का लक्ष्य पाने में 23 महीने भी नहीं लगे।’
झटकों से घबराएं नहीं
‘आप जीवन में कुछ भी करें, झटके लगना लाजिमी है। याद रखिए, कामयाबी का सफर हमेशा ही सुखकर नहीं होगा। उसमें झटके आएंगे व नाकामियां भी मिलेंगी। सारा सफर हाइवे-सा ही हो, जरूरी नहीं। कोई भी कार्य करने के पहले संतुष्ट हो जाएं कि इसे करने में कुछ न कुछ दिक्कतें आनी ही हैं। इससे निपटने का बढ़िया तरीका यह है कि हर झटके से सबक सीखते रहें, ताकि अगली बार वैसा ही झटका न सहना पड़े। यह भी जरूरी है कि आप हर झटके के लिए मानसिक तैयारी रखें। हर झटके के बाद की शिक्षा को गांठ बांधना न भूलें।
सबसे बड़ी बात यह कि सफर छोड़े नहीं। अगर मंजिल तक पहुंचना है, तो सफर जारी रखना एकमात्र उपाय है। अपनी नाकामी के लिए किसी और को जिम्मेदार मत ठहराइए, क्योंकि आपकी विफलता के लिए कोई और जिम्मेदार हुआ, तो आपकी सफलता का श्रेय भी उसे ही देना होगा। अपनी नाकामी का जिम्मा लें और कामयाबी का जश्न मानते चलें।’
सफलता में दिमाग ठीक रखें
‘खुद को उन लोगों में शुमार होने से बचाएं, जो कामयाबी हजम नहीं कर पाते। ...तेनजिंग नोर्गे ने एवरेस्ट पर, नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर झंडा गाड़ा, तो क्या वे वहीं बस गए? याद रखिए, जो ऊपर जाता है, कभी न कभी नीचे भी आता है। सफलता स्थायी नहीं होती। अत: उसे कभी दिमाग खराब मत करने दो। याद करो कि क्या किया, जो सफल रहे और अगली बार उसे किस तरह दोहराओगे कि फिर सफलता मिले। विफल होनेवालों का उपहास न करो, उनकी नाकामी की भी समीक्षा करो। जिस कार्य के लिए आप सफल हुए हैं, जरा सोचो कि क्या उसका कोई और बड़ा लक्ष्य भी हो सकता है। जिन लोगों की मदद से आप कामयाब हुए हैं, उन्हें क्या आपने श्रेय दिया है? सबसे बड़ी बात यह है कि आपमें विजय या कामयाबी के बाद मानवीयता का अंश बढ़ा है या नहीं? अगर सफलता से मानवीयता का अंश नहीं बढ़ता, तो वह उपयोगी नहीं रह जाएगी।’
नए नजरिये की जरूरत
नीलेकणि मानते हैं कि 60 व 70 के दशक में हम आबादी को चिंता के रूप में देखते थे। आज हमें लगता है कि वह मानव संपदा है। ‘आज चीन व जापान सहित दुनिया के कई देशों में बुजुर्गों की संख्या बहुत ज्यादा है। भारत ही ऐसा देश है, जो युवाओं का देश है। हम उद्यमियों को अब शंका की निगाह से नहीं, विकास के सारथी के रूप में देखते हैं। अब हम अंग्रेजी को साम्राज्यवाद की भाषा नहीं कहते, बल्कि दुनिया से जुड़ने का औजार मानते हैं। आजादी के बाद बरसों तक हम अपने अधिकारों के प्रति उतने सजग नहीं थे, पर आज हैं। टेक्नोलॉजी ने हमें पूरी तरह बदलकर रख दिया है।
जरा देखिए तो, देश के करोड़ों लोगों ने टेलीफोन का उपयोग नहीं किया था, पर आज वे मोबाइल क्रांति का लाभ ले रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल भी एक क्रांतिकारी कदम है। आज भारत का जो वैश्विक नजरिया है, कितने लोगों ने इसकी कभी कल्पना की थी?’

प्रकाश हिन्दुस्तानी

Sunday, January 08, 2012

ताउम्र सीखने की ईमानदारी बरतें

रविवासरीय हिन्दुस्तान (08-01-2012) के एडिट पेज पर मेरा कॉलम


ताउम्र सीखने की ईमानदारी बरतें



‘याद रखिए, आप केवल अपने लिए ही नहीं, अपने घर-परिवार और समाज के लिए भी काम करते हैं। आप जो भी पाते हैं, इसी समाज से शेयर करते हैं। इसलिए आपका समाज के लिए भी कुछ दायित्व बनता है।’

मेट्रो मैन के नाम से विख्यात ई. (ईलात्तूवल्पिल) श्रीधरन साल 1990 में ही भारतीय रेल सेवा से रिटायर हो गए थे, लेकिन दिल्ली मेट्रो के एमडी पद से वह करीब एक सप्ताह पहले सेवानिवृत्त हुए हैं। केरल के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि श्रीधरन अब कोच्चि मेट्रो का कामकाज संभाल लें।
12 जून, 1932 को जन्मे ई. श्रीधरन को अस्सी साल में भी लोग नई जिम्मेदारियां सौंपना चाहते हैं। दरअसल, रेल सेवा से रिटायर होने के बाद उन्होंने कोंकण रेलवे की जिम्मेदारी संभाली थी और उसे पूरा करने के बाद बेहद चुनौतीपूर्ण दिल्ली मेट्रो का दायित्व संभाला।
पद्म विभूषण से सम्मानित श्रीधरन का मानना है कि जीवन में वही लोग कामयाब हो पाते हैं, जो हमेशा सीखने को तैयार रहते हैं। आईआईएलएम इंस्टिटय़ूट ऑफ हायर एजुकेशन के समारोह में साल 2008 में उन्होंने अपने अनुभव इस प्रकार बांटे थे :
हर जगह सीखें
मित्रो, सीखना जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है। आप कहीं भी हों, उम्र के किसी भी पड़ाव पर हों, सीखने का कोई मौका नहीं छोड़ें। पढ़ाई के बाद आप जहां कार्य करेंगे, वहां भी सीखने के अनेक अवसर आपको मिलते रहेंगे। प्रोजेक्ट मैनेजमेंट के तरीके की बात करें, तो मुझे लगता है कि दिल्ली मेट्रो में हमने कुछ ऐसी शैली अपनाई, जो प्रेरणादायी हो सकती है।
दिल्ली मेट्रो देश की कोई पहली मेट्रो नहीं है, पहली मेट्रो का श्रेय कोलकाता को है, जहां 17 किलोमीटर लंबी रेल लाइन है और वह भी ज्यादातर अंडरग्राउंड। लेकिन कोलकाता का अनुभव सुखद नहीं रहा, न तो कोलकाता के लिए और न ही देश के लिए। 17 किलोमीटर की लाइन डालने में 22 साल लग गए और इस बीच लागत भी करीब 14 गुना बढ़ गई। यह कोलकाता का ही सबक था कि हमने दिल्ली मेट्रो के लिए अलग शैली अपनाई। हमने वहां 10,500 करोड़ रुपये की 65.1 किलोमीटर की लाइन रिकॉर्ड सवा सात साल में बिछाई।
जब यह प्रोजेक्ट हमें सौंपा गया था, तब दस साल में इसे पूरा करने का लक्ष्य था, हमने पौने तीन साल पहले ही लक्ष्य प्राप्त कर लिया और वह भी तय बजट के भीतर। मैनेजमेंट के छात्रों के लिए यह एक सबक है। हमने दिल्ली मेट्रो को वर्ल्ड क्लास बनाया है, और वह भी मुख्य रूप से उधार के धन से। 10,500 करोड़ में से दो तिहाई धनराशि कर्ज की है और एक तिहाई सरकार की।
दिल्ली मेट्रो पर यह जवाबदारी है कि वह कर्ज ली गई राशि लौटाए। आज हम न केवल अपने मेट्रो परिचालन के खर्चें निकाल पा रहे हैं, बल्कि कर्ज चुकाने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था कर रहे हैं। हमने इस बात का पूरा खयाल रखा कि मेट्रो निर्माण के दौरान दिल्ली के लोगों को कम से कम असुविधा हो। इसके लिए मेट्रो के कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया था। लेकिन कोलकाता में ऐसा नहीं हो सका था।
वक्त की पाबंदी का महत्व
दिल्ली मेट्रो में वक्त की पाबंदी का अर्थ है, एकदम ठीक वक्त पर। हमें इस बात का इल्म था कि अगर हमें अपना प्रोजेक्ट वक्त पर पूरा करना है, तो हम में से हर एक को वक्त का पाबंद होना पड़ेगा। यह एक बुनियादी जरूरत थी। मुझे गर्व है कि दिल्ली मेट्रो में हम वक्त की पाबंदी मिनटों में नहीं, सेकंडों में मापते हैं। अगर कोई ट्रेन 60 सेकंड्स देर से चल रही है, तो हमारी नजर में वह विलंब से है। टोक्यो, सिंगापुर, हांगकांग जैसी जगहों पर भी तीन मिनट तक की देरी को ‘विलंब’ नहीं माना जाता।
मुझे यह बताते हुए खुशी है कि 1997-98 में हमारी 99.78 प्रतिशत मेट्रो ट्रेनें वक्त की पाबंद रहीं। मुझे लगता है कि वक्त की पाबंदी और कुछ नहीं, दूसरों के प्रति आपकी शालीनता है। आप लोगों को सेवा के लिए इंतजार नहीं करा सकते।
ईमानदार होने का मतलब
दिल्ली मेट्रो की दूसरी खूबी यह है कि वह अपने कर्तव्य के प्रति सत्यनिष्ठ है। सत्यनिष्ठ यानी सत्य के प्रति निष्ठा रखने वाला, जिसके नैतिक मूल्य ऊंचे हैं। सत्य के प्रति यही निष्ठा अच्छे चरित्र का आधार है। इसलिए करियर शुरू करते ही युवाओं को यह छवि अजिर्त करनी चाहिए। ईमानदार और सत्यनिष्ठ होने की छवि एक पासपोर्ट की तरह है। आप जहां भी जाएंगे, इनकी बदौलत अपनी छाप छोड़ते जाएंगे। हां एक और बात। अपने व्यवसाय में आगे बढ़ने के लिए आपको एक और चीज चाहिए और वह है ज्ञान यानी नॉलेज। आपको अपने विषय का श्रेष्ठ ज्ञाता होना ही चाहिए। अगर आप अपने विषय के ज्ञाता हैं, तो आपको कोई चोट नहीं पहुंचा सकता। अगर आप अपना काम ठीक से करना जानते हैं और उसे ठीक से करते हैं, तो लोग आपकी इज्जत करेंगे। आपके वरिष्ठ अधिकारी जहां आपके काम की सराहना करेंगे, वहीं जूनियर साथी आपके प्रशंसक बन जाएंगे।
तीन बातों का रखें ध्यान
दिल्ली मेट्रो परिवार में हमने एक बात का खास ध्यान रखा है और वह है सेहत। जी हां, मेरा कहना है कि आप अपनी सेहत का खास ध्यान रखें, क्योंकि अगर आप जीवन में कुछ भी पाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपका फिट रहना जरूरी है। अच्छी सेहत के बिना आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। अगर आप मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं, तो आप में कार्य करने की अद्भुत क्षमता महसूस होगी। इसलिए आप अपने जीवन को व्यवस्थित कीजिए। दिल्ली मेट्रो के प्रशिक्षण विद्यालय में हमने इस बात का खास ध्यान रखा है। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि दिल्ली मेट्रो वह संस्थान है, जहां मेडिकल बिल सबसे कम है।
दूसरी जरूरी बात यह है कि आप पौष्टिक भोजन और भोजन के वक्त का भी ध्यान रखें। यह बहुत कठिन काम नहीं है, पर आपकी सेहत के लिए जरूरी है। तीसरी और सबसे बड़ी बात यह है कि आपको व्यायाम जरूर करना चाहिए। आप एयरोबिक्स, वॉकिंग, जॉगिंग और योगासन में कोई या एकाधिक तरीका चुन सकते हैं। आप स्वस्थ होंगे, तभी तो आपका दिमाग चौकन्ना रहेगा।
याद रखिए, आप केवल अपने लिए ही नहीं, अपने घर-परिवार और समाज के लिए भी काम करते हैं। आप जो भी पाते हैं, इसी समाज से शेयर करते हैं। इसलिए आपका समाज के प्रति भी कुछ दायित्व है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान (08-01-2012) के एडिट पेज पर प्रकाशित

Sunday, January 01, 2012

भविष्य को देखें और समझें

रविवासरीय हिन्दुस्तान (1 -1- 2012) के एडिट पेज पर मेरा कॉलम


भविष्य को देखें और समझें

रतन टाटा ग्रुप दुनिया के शीर्ष 50 व्यवसाय समूह में गिना जाता है. यह समूह 96 तरह के व्यवसाय करता है और कहा जाता है कि उनकी संपत्ति बिल गेट्स और वारेन बफेट से भी ज्यादा है, लेकिन फ़ोर्ब्स की सूची में उनका नाम बाद में इसलिए है कि इस समूह की 28 प्रमुख कम्पनियाँ दुनिया के अलग अलग शेयर मार्केट में विभिन्न नामों से लिस्टेड है. सामाजिक जवाबदेही के कारण टाटा का नाम एक अलग ही इज्ज़त से लिया जाता है. उनके कर्मचारियों ने भी हमेशा अपने दायित्व का पालन किया. 26 /11 के आतंकी हमले के दौरान मुंबई के ताज होटल के स्टाफ ने बहादुरी और समझदारी का ऐतिहासिक परिचय दिया और होटल के सैकड़ों मेहमानों की जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने से नहीं चूके. उस दिन होटल में एक शादी समारोह था, यूनीलीवर के सी ई ओ की अंतरराष्ट्रीय मीटिंग थी और दो प्रमुख कार्पोरेट बैठकें भी थीं जिनमें अनेक विदेशी मेहमान भी थे. टाटा ने आतंकी हमले में हताहत उस हरेक कर्मचारी को 36 लाख से 85 लाख रुपये तक की मदद की, चाहे उस कर्मचारी ने एक दिन ही काम क्यों न किया हो. टाटा अपने स्टाफ के ज़िम्मेदार व्यवहार के लिए उनकी ट्रेनिंग को श्रेय देते हैं. हैदराबाद के इंडियन स्कूल ऑफ़ बिजनेस में 8 अप्रैल 2006 को दिया गया उनका भाषण विद्यार्थियों के लिए इसी मायने में महत्वपूर्ण था कि उसमें सही नेतृत्व को परिभाषित किया गया था और बजाय दूसरों का अनुसरण करने के, खुद नेतृव करने पर जोर दिया गया था.
चेयरमैन का महत्व
रतन टाटा कहा करते हैं "मैं सही निर्णय लेने का दावा कतई नहीं करता. मैं तो निर्णय ले लेता हूँ और फिर काम करके उसे करके सही साबित कर देता हूँ." अपने भाषण की शुरुआत में रतन टाटा ने एक कहानी सुनायी, जो कुछ ऐसी थी.
एक आदमी तोता खरीदने दुकान में गया और एक तोते की कीमत पूछी. दुकानदार ने दाम बताया पांच हज़ार डॉलर.
''यह तो बहुत ज्यादा है. ऐसा क्या करता है वह ?'' उस ग्राहक ने पूछा.
''वह अपनी चोंच से अंग्रेज़ी में टाइप कर लेता है''
''यह तो बहुत ज्यादा है. दूसरे की कितनी कीमत है?''
''दूसरा दस हज़ार डॉलर का है क्योंकि वह तीन या चार भाषाओँ का जानकार है और वह एसएपी में भी माहिर है.''
''नहीं, यह भी नहीं चाहिए, उस तीसरे के बारे में बताइए.''
"वह तीस हज़ार का है.''
''वह क्या करता है?"
दुकानदार ने कहा --''मुझे नहीं मालूम, लेकिन बाकी उसे चेयरमैन कहते हैं''
रतन टाटा कहते हैं कि मेरे संगठन में लोग ऐसा समझते हैं.
इंडियन स्कूल ऑफ़ बिजनेस के सभी विद्यार्थियों के बारे में मैं इत्मीनान से कह सकता हूँ कि यहाँ के विद्यार्थी शीर्ष पदों पर कार्य करेंगे और उनकी अपनी पहचान देश में होगी. व्यवसाय का नेतृत्व करते हुए ये विद्यार्थी दुनिया भर में जायेंगे जहाँ देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
यह स्वर्ण काल है
"मैं यहाँ आपके बीच खड़े होकर अपने अफसोस का इजहार कर रहा हूँ कि मैं इस हर्षित करनेवाले वास्तविक समय में मैं आपकी उम्र का नहीं हूँ . मुझे पता है कि आप में से ज़्यादातर लोगों के आने वाले साल पूर्ण संतुष्टि के होंगे जब आप देश के विकास के लिए खड़े होंगे और उसमें हिस्सेदारी निभा रहे होंगे. आपमें कई आनेवाले वर्षों में देश का नेतृत्व भी करेंगे. आपके कंधों पर एक महान जवाबदारी है. आपके कन्धों पर जो भी जवाबदारी दी गयी है वह बहुत बड़ी है मुझे पता है किया आपमें से ज़्यादातर लोगों के आनेवाले साल सफलता और संतुष्टि के होंगे क्योंकि तब आप देश के विकास के लिए खड़े होंगे. आनेवाले वर्षों में आपमें से कई इस देश का नेतृत्व कर रहे होंगे. इस भूमिका में आपको केवल श्रेष्ठतम कार्य ही करना है. मैं आश्वस्त हूँ कि आप में से कई अपने आसपास के लोगों के बीच, अपने नियोक्ताओं के बीच और अपने समुदाय और बिरादरी के सामने अपनी शानदार नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन करेंगे.
नेतृत्व करो, पीछे न चलो
मैं आशा करता हूँ कि आपमें से ज़्यादातर लोग सिद्धांतों पर आधारित नेतृत्व के लिए मूल्यों की स्थापना के लिए प्रयास करेंगे. क्योंकि यही तो वह बुनियाद है जिसकी ज़रुरत इस देश को है ताकि वह दुनिया में अपनी जगह बना सके. मैं आशा करता हूँ कि आपमें से हर एक एक उदहारण प्रस्तुत करेगा. मैं यह भी अपेक्षा करता हूँ कि आपमें से हर एक अपने जीवन मूल्यों के लिए जीएगा आप जिसके साथ जीवन भर के बंधन में बाँधे हैं. ...मैं उम्मीद करता हूँ कि आप में से हर एक में भविष्य का ज्ञानबोध होगा क्योंकि जिस बात की इस देश में कमी है वह यही है-- भविष्य को देख और समझ पाने की क्षमता. इसी के माध्यम से आप देश को एक दिशा दे सकते हैं. यह हमारी कमजोरी है कि हमारे बिजनेस लीडर नेतृत्व करने की जगह अनुसरणकर्ता बन जाते हैं.
दृढ़ निश्चयी होना आवश्यक
"नेतृत्व करने के लिए आपमें दृढ़ निश्चयी होना आवश्यक है. इसके लिए आपमें यह विश्वास होना चाहिए कि आपका यही इरादा भी है. मैं यह मानता हूँ कि कई बार ऐसे मौके आयेंगे जब आप के मान में संशय की स्थिति उत्पन्न होगी. ऐसे में आपको सही पथ चुनना होगा और लगातार उसी का अनुसरण दृढ़ता पूर्वक करना होगा. मुझे यकीन है कि आप कामयाब होंगे. इस सभी में आपकी एक विशेष भूमिका रहेगी. इस तरीके से सही राह पर दृढ़तापूर्वक चलकर ही आप यह साबित कर सकते हैं कि आपने, आपके अभिभावकों ने आपकी शिक्षा में जो कुछ निवेश किया है वह जीवन का सबसे बेशकीमती निवेश है. इसी ने आपका जीवन संवारा है.
"मैं यकीन करता हूँ कि वे लोग जो कुलीन पदों पर पहुंचेंगे वे देश के कुलीन वर्ग में होंगे, और आप उन सभी के प्रति मानवीय और संवेदनापूर्ण काम करेंगे जो चाहे आपके साथ काम कर रहे हों या न कर रहे हों. आप जो भी काम करेंगे, जिस भी क्षेत्र में काम करेंगे, पूरे जोश और जुनून के साथ, उत्कंठा के साथ ही करेंगे. आपके काम में आपको संतुष्टि मिले, कार्य का उचित प्रतिसाद भी मिले, जो न्यायपूर्ण हो. आपको जो भी भूमिका निभानी हो, छोटी या बड़ी, उससे लोगों का जीवन स्तर सुधरे, खासकर गाँव के लोगों का. वे एक हो या अनेक, ६ हों या ७० करोड़. मैं आशा करता हूँ कि आप जो कुछ भी करें,उससे लोगों का जीवन स्तर किसी न किसी रूप में ज़रूर सुधरे, प्रत्यक्ष तरीके से या अप्रत्यक्ष तरीके से. और इसी से देश विकास की राह पर आगे जा सकेगा.

"आपमें से अधिकांश लोग भविष्य में अपने काम में पूरी तरह डूब हो जायेंगे और व्यवसाय जगत में अत्यधिक तल्लीन हो जायेंगे. लेकिन याद रखिये कि आप केवल व्यवसाय जगत में ही नहीं जा रहे हैं,केवल उद्योग जगत के सहकर्मियों में ही नहीं, आप जा रहे हैं भारत भर में, दुनिया भर में. यहाँ आपको अपनी अमित छाप छोड़नी होगी ताकि दुनिया आपके दिए अभिदान को, आपके सहयोग को, आपके यो गदान को आनेवाली पीढियां भी देख सकें कि आपने उनके लिए क्या किया है"

साबुन से लेकर स्टील तक और नमक से लेकर नेनो तक बनानेवाले रतन टाटा का ख्वाब है कि उनके समूह में महिलाओं की भागीदारी बढाई जाए, खासकर इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्र में, और इसके लिए युवावस्था में ही उन्हें प्रबंधन में जगह देकर ट्रेनिंग दी जाए जिससे वे शीर्ष पदों पर पहुंचकर अपनी प्रतिभा का सिक्का जमा सके.
प्रकाश हिन्दुस्तानी


हिन्दुस्तान (1 -1- 2012) के एडिट पेज पर प्रकाशित