Sunday, August 28, 2011
जीने की कला ने पहुंचाया शीर्ष पर
रविवासरीय हिन्दुस्तान (28 अगस्त 2011) के एडिट पेज पर मेरा कॉलम
जीने की कला ने पहुंचाया शीर्ष पर
रवि शंकर रत्नम अन्ना हजारे के समर्थक और सहयोगी हैं. वे महर्षि महेश योगी के शिष्य थे. उन्होंने २६ साल की उम्र में १९८२ में आर्ट ऑफ़ लिविंग की स्थापना की थी. आज इसकी शाखाएं १५२ देशों में है. २०१० में फ़ोर्ब्स ने उन्हें भारत का पांचवां सबसे प्रभावशाली व्यक्ति लिखा था. उन्होंने दलाईलामा के साथ जेनेवा में भी एक संस्था खोली है जो गरीबों की मदद करती है. सितार वादक रवि शंकर ने उन पर आरोप लगाया था कि योगी रवि शंकर उनकी ख्याति का लाभ उठा रहे हैं, तब उनके शिष्यों ने उन्हें 'श्री श्री रवि शंकर' नाम दिया. अपने शिष्यों में वे 'श्री श्री' नाम से ही पहचाने जाते हैं.लोग कहते हैं कि वे खुद बहुत बड़े 'ब्रांड' हैं. उनकी संस्थाएं करोड़ों रुपये सेवा कार्य पर खर्च करती हैं.गंगा और यमुना के सफाई अभियान में भी वे जुड़े हैं. योग क्रिया 'कपाल भांति' और 'सुदर्शन क्रिया' को आजमाकर उसके माध्यम से लाखों लोगों को प्रभावित करनेवाले 'श्री श्री' की सफलता के कुछ सूत्र :
बचपन मत भूलो
आप कितने भी बड़े हो जाएँ, बचपन को ना भूलें. बचपन की सहजता, मासूमियत और ईमानदारी को कलेजे से लगाये रखें, जिससे कि आप हमेशा तनावमुक्त और अपनत्व से भरे रह सकते हैं. श्री श्री अब भी अपने आप को बच्चा ही कहते हैं, ऐसा बच्चा जो शरीर से बड़ा हो चुका है लेकिन मन से पूरी तरह निश्छल है.अगर बचपन की कोई कटुता मन में है तो उसे निकाल देने में ही भलाई होती है. अपने बचपन को याद करने के अलावा आप अपने आसपास के बच्चों से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं.
सहजता ही अध्यात्म
मैंने जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं किया है जो सहज नहीं है या बनावटी है. बनावटीपन और दिखावा तो बोझ की तरह होते हैं जिन्हें ढोना पड़ता है. मेरे लिए सहज रहना अध्यात्म का ही एक अंग है. यही मेरी जीवनशैली है. मैं सहज और सरल जीवन जीता हूँ और इसी में खुश हूँ. मेरी सलाह पर हजारों लोगों ने जीवन जीने का यही मार्ग चुना है और वे सब इससे खुश है.
यथार्थ को स्वीकारो
सहज-सरल जीने का तरीका यह है कि 'एक्सेप्ट द सिचुएशन एज इट इज़'. इसका मतलब यह नहीं है कि आप गलत बातों का समर्थन करे, बल्कि इसका अर्थ यह है कि आप गलत बात की तह में जाने की कोशिश करें और उसे दूर करे. अगर आप किसी समस्या में फंस गए हैं तो वहीँ रहना यथार्थ नहीं है, बल्कि आप हालात को समझ कर समस्या से निजात पायें तो आप ज्यादा सहज जीवन जी सकते हैं.
हंसो, पर फंसो मत
हमेशा हंसने यानी खुश रहने की दशा तभी आ सकती है, जब आप कहीं भी फंसे ना हों. हमेशा विवादों से दूर रहने की कोशिश करो. अगर विवाद की दशा आ ही जाए तो जीतनी जल्दी हो सके, बाहर निकालने की कोशिश करो. अपनी ऊर्जा का हमेशा सकारात्मक उपयोग आप तभी कर सकते हैं, जब आप तनावरहित और प्रसन्नचित्त हों.
शाश्वत कुछ भी नहीं
जीवन का कोई भी नियम शाश्वत नहीं. दूध पीना अच्छा होता है, पर हमेशा अच्छा नहीं. कई रोगी दूध पीकर और बड़े रोगी हो सकते हैं. ज़हर किसी की जान ले सकता है, लेकिन ज़हर से ही कई जीवनरक्षक दवाइयाँ बनाती है. डीडीटी का आविष्कार करनेवाले वैज्ञानिक को नोबेल प्राइज़ दिया गया था, आज डीडीटी दुनिया के अधिकांश देशों में प्रतिबंधित है. कोई भी बात हर व्यक्ति और हर काल में अच्छी ही हो, ज़रूरी नहीं होता. इसलिए बात बात पर शोक मनाना अच्छी आदत नहीं.
मुफ्त कुछ भी नहीं
प्रकृति ने हमें हमारी सबसे बहुमूल्य वस्तु मुफ्त में दी है, ऑक्सीजन,लेकिन हम उसका मोल कहाँ समझ पाते हैं? कोई भी वस्तु मुफ्त में दो तो उसका महत्व लोग नहीं समझते, इसलिए शुल्क लेना ज़रूरी है, और उस आय से वही वस्तु उन लोगों को मुफ्त उपलब्ध कराना ज़रूरी है, जिसकी उसे सख्त ज़रुरत हो. यह व्यवसाय नहीं, समाज का हिट करने के लिए है. इसीलिये 'आर्ट ऑफ़ लिविग' के लिए शुल्क रखा गया है.
नयी तकनीक अपनाओ
नयी तकनीक केवल उपकरणों के मामले में ही नहीं, जीवन जीने के बारे में भी अपनानी चाहिए तभी बेहतर जीवन जी सकते हैं. हम नयी तकनीक कार और नयी तकनीक के फोन पर ही अटक जाते हैं और नयी तकनीक से सांस लेने के बारे में सोचने का वक़्त नहीं है. हम दूसरों की ख़ुशी में अपनी खुशी पाने की तकनीक भी खोते जा रहे हैं. जबकि हमें वैसी नयी तकनीक खोजते रहना चाहिए जो हमें सुख प्रदान करे.
संगीत की शक्ति
संगीत में हमें शक्ति देने और नयी ऊर्जा से भर देने की अपार ताकत मौजूद है, लेकिन हमने गाना, बजाना, नृत्य करना कम कर दिया है. मेरी ऊर्जा का एक खास स्रोत संगीत है, और कई तरह का संगीत मैं सुनाता हूँ,जिसमें से कई बार तो मुझे वह समझ में भी नहीं आता, लेकिन फिर भी आनंद देता है. संगीत में एक और शक्ति है, और वह शक्ति है एकात्मकता पैदा करने की.
हमारे जीवन का लक्ष्य है आनंद की प्राप्ति और अहिंसा तथा शांति के बिना वह संभव नहीं है. हमारे पास जो है उससे संतुष्ट हुए बिना हम हर तरीके से साधन जुटाने में लगे हैं. और यह हमारे दुःख का कारण बन जाता है. मैंने तय कर लिया है कि मैं खुश रहूंगा और मैं खुश हूँ. आप भी यह करके देखिये.
प्रकाश हिन्दुस्तानी
हिन्दुस्तान, 28 अगस्त 2011 (संपादकीय पेज)
Sunday, August 21, 2011
बदल डाले सफलता के मायने
रविवासरीय हिन्दुस्तान (21 अगस्त 2011) के एडिट पेज पर मेरा कॉलम
बदल डाले सफलता के मायने
सफलता का अर्थ केवल पद, दौलत और शोहरत ही नहीं होता. सफलता का असली अर्थ है आप जो सही समझते हों, उसे हिम्मत के साथ कर रहे हों. कुछ कुछ ऐसा करना जिससे पूरे समाज को लाभ होता हो, इस तरह अन्ना हजारे के आन्दोलन के प्रमुख रणनीतिकार अरविन्द केजरीवाल ने सफलता के मायने ही बदल डाले. हरियाणा के हिसार में 1968 में जन्मे अरविन्द केजरीवाल में आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली और कुछ समय जमशेदपुर में टाटा स्टील में काम करने के बाद यूपीएससी के जरिये आईआरएस में चुने गए. दिल्ली में आयकर विभाग में 1992 में नौकरी शुरू की. 2006 में वे एडिशनल कमिश्नर (इनकम टेक्स) के पद से नौकरी छोड़कर 'परिवर्तन' नामक संस्था में काम करने लगे. उन्होंने पीसीआरएफ (पब्लिक काज़ रिसर्च फंड) नामक संस्था भी खादी की. सूचना के अधिकार, जन लोकपाल कानून के पक्ष में और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके संघर्ष उनकी अलग ही पहचान बने, जो आयकर अधिकारी रहते संभव नहीं थी. उन्हें अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिल चुके हैं, जिनमें मैग्सेसे अवार्ड भी है. अरविन्द केजरीवाल की सफलता के कुछ सूत्र :
पद नहीं, कर्म बनाते हैं बड़ा
अरविन्द केजरीवाल अगर अभी भी आयकर विभाग में ही होते तो और भी बड़े पद तक पहुँच जाते. भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात आयकर विभाग में हजारों लोग नौकरी पाने के लिए बड़ी कीमत देने को तैयार रहते हैं, ऐसे में अरविन्द केजरीवाल का नौकरी छोड़ना कई लोगों को अजीब लगा. हिसार और नांगल में पढ़ाई करनेवाले अरविन्द ने साबित किया कि अगर कोई व्यक्ति ठान ले तो फिर कुछ भी करना मुश्किल नहीं होता. वे आज किसी पद पर नहीं है लेकिन अपने रणनीतिक कौशल, ईमानदारी और बुद्धिमत्ता से उन लोगों को बेनकाब कर दिया जो बड़े बड़े पदों पर काबिज हैं.
सही रणनीति ज़रूरी
अरविन्द केजरीवाल ने अपने आन्दोलनों की सही शुरुआत पर ध्यान रखा. उन्होंने हमेशा सही लोगों को साथ लिया और सही लोगों के साथ ही रहे. उन्होंने अपने अभियान की शुरूआत मज़दूर किसान शक्ति संगठन में अरुणा राय और हर्ष मंदार के साथ की. पानीवाले बाबा संदीप पांडे और शेखर सिंह भी उनके सह-कार्यकर्ता रहे. हर्ष मंदार लोकपाल के मुद्दे पर लोगों की राय बना रहे थे लेकिन अरविंद केजरीवाल यह मुद्दा अपने तरीके से उठाने लगे और अन्ना के खास रणनीतिकार बने. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक घंटे बिजली बंद रखने के उनके अनुरोध का भी कई जगह असर पड़ा. उन्होंने जन लोकपाल बिल के बारे में चांदनी चौक इलाके में यह जनमत संग्रह करवाकर कि कपिल सिब्बल के चुनाव क्षेत्र में भी 85 प्रतिशत वोटर जन लोकपाल के पक्ष में हैं, लोगो को चौंका दिया. युवाओं को अन्ना के आन्दोलन से जोड़ने में उनकी प्रमुख भूमिका रही.
आरोपों से ना घबराएँ
अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ लोगों ने आरोपों की झड़ी लगा दी लेकिन वे उससे विचलित नहीं हुए. शासकीय सेवा में उनके वरिष्ठ रहे लोगों ने भी आरोप लगाये. उनकी पत्नी (जो आयकर विभाग में ही प्रमुख पद पर हैं) के तबादले को लेकर भी उन पर आरोप लगाये गए. कॉंग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने भी उन पर आरोप लगाए थे. बिहार में नीतीश कुमार सरकार के लिए लोकायुक्त बिल का खाका बनाने में भी अरविंद केजरीवाल ने मदद की थी, उस पर भी आरोप लगे. अन्ना के आन्दोलन में मुस्लिमों और ओबीसी की भागीदारी को लेकर भी अरविन्द केजरीवाल पर आरोप लगाये गए.
हवा के रुख को पहचानो
अच्छा नाविक वह है जो केवल अपनी पतवार के भरोसे नहीं रहता, बल्कि हवा के रुख को भी पहचानता और उसकी मदद लेता हो. अरविन्द केजरीवाल ने यह बात तभी समझ ली थी जब वे आरटीआई आन्दोलन से जुड़े. उन्होंने पाया कि लोग भ्रष्टाचार से तो सभी लोग पीड़ित हैं लेकिन बहुत कम लोग ही खुलकर सामने आते हैं. छोटी मोटी जनसुविधाओं के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है. भ्रष्टाचार के प्रति लोगों के गुस्से को सामने लाकर कोई भी बड़ा आन्दोलन खड़ा किया जा सकता है. उन्होंने आरटीआई को भ्रष्टाचार से लड़ाई का हथियार बनाकर इस्तेमाल किया और उसके फायदे को हजारों लोगों तक पहुँचाया. सार्वजानिक वितरण प्रणाली की खामियों की तरफ भी उन्होंने ध्यान दिलवाया, जिससे बड़ी संख्या में लोग उनसे जुड़े.
पारदर्शिता से काम करो
अपने सभी आंदोलनों के लिए अरविन्द केजरीवाल के एनजीओ लोगों से चंदा लेते है और उस चंदे के बारे में एनजीओ की वेबसाइट पर उसकी पूरी जानकारी भी देते हैं. वे वहां पर अपने बारे में कम और अपनी संस्था के काम के बारे में ज्यादा सूचनाएं देते हैं, जिससे यह नहीं लगता कि वे अपने आप को आगे बढ़ा रहे हैं. अपनी किसी भी संस्था में काम करनेवाले सभी सहयोगियों के बारे में भी पूरी जानकारी देते हैं. इण्डिया अगेंस्ट करप्शन की वेबसाइट पर भी इसी तरह की जानकारी मौजूद है. इतना ही नहीं, वे अपनी भावी योजनाओं के बारे में भी खुलकर चर्चा कराते हैं.
लड़ाई जीतना, युद्ध जीतना नहीं
बहुत कम नेता और कार्यकर्ता 'लड़ाई' और 'युद्ध' का अंतर समझ पाते हैं. एक युद्ध जीतने के लिए कई कई लड़ाइयाँ लड़नी होती है. हर लड़ाई युद्ध की जीत में महत्वपूर्ण होती है, लेकिन कई बार कुछ लड़ाई हारकर भी युद्ध जीत लिए जाते हैं. इसके लिए ज़रूरी है अपने हथियारों की धार कराते रहना, जीत का हौसला बुलंद रखना और हर रणनीति सोच समझकर बनाना और सही तरीके से उस पर अमल करना. अन्ना के आन्दोलन के दौरान कई बार लगा कि अब शायद मामला उलटा हो गया है लेकिन वक़्त ने साबित किया कि बात कुछ और ही है.
प्रकाश हिन्दुस्तानी
हिन्दुस्तान, 21/08/2011
बदल डाले सफलता के मायने
सफलता का अर्थ केवल पद, दौलत और शोहरत ही नहीं होता. सफलता का असली अर्थ है आप जो सही समझते हों, उसे हिम्मत के साथ कर रहे हों. कुछ कुछ ऐसा करना जिससे पूरे समाज को लाभ होता हो, इस तरह अन्ना हजारे के आन्दोलन के प्रमुख रणनीतिकार अरविन्द केजरीवाल ने सफलता के मायने ही बदल डाले. हरियाणा के हिसार में 1968 में जन्मे अरविन्द केजरीवाल में आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली और कुछ समय जमशेदपुर में टाटा स्टील में काम करने के बाद यूपीएससी के जरिये आईआरएस में चुने गए. दिल्ली में आयकर विभाग में 1992 में नौकरी शुरू की. 2006 में वे एडिशनल कमिश्नर (इनकम टेक्स) के पद से नौकरी छोड़कर 'परिवर्तन' नामक संस्था में काम करने लगे. उन्होंने पीसीआरएफ (पब्लिक काज़ रिसर्च फंड) नामक संस्था भी खादी की. सूचना के अधिकार, जन लोकपाल कानून के पक्ष में और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके संघर्ष उनकी अलग ही पहचान बने, जो आयकर अधिकारी रहते संभव नहीं थी. उन्हें अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिल चुके हैं, जिनमें मैग्सेसे अवार्ड भी है. अरविन्द केजरीवाल की सफलता के कुछ सूत्र :
पद नहीं, कर्म बनाते हैं बड़ा
अरविन्द केजरीवाल अगर अभी भी आयकर विभाग में ही होते तो और भी बड़े पद तक पहुँच जाते. भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात आयकर विभाग में हजारों लोग नौकरी पाने के लिए बड़ी कीमत देने को तैयार रहते हैं, ऐसे में अरविन्द केजरीवाल का नौकरी छोड़ना कई लोगों को अजीब लगा. हिसार और नांगल में पढ़ाई करनेवाले अरविन्द ने साबित किया कि अगर कोई व्यक्ति ठान ले तो फिर कुछ भी करना मुश्किल नहीं होता. वे आज किसी पद पर नहीं है लेकिन अपने रणनीतिक कौशल, ईमानदारी और बुद्धिमत्ता से उन लोगों को बेनकाब कर दिया जो बड़े बड़े पदों पर काबिज हैं.
सही रणनीति ज़रूरी
अरविन्द केजरीवाल ने अपने आन्दोलनों की सही शुरुआत पर ध्यान रखा. उन्होंने हमेशा सही लोगों को साथ लिया और सही लोगों के साथ ही रहे. उन्होंने अपने अभियान की शुरूआत मज़दूर किसान शक्ति संगठन में अरुणा राय और हर्ष मंदार के साथ की. पानीवाले बाबा संदीप पांडे और शेखर सिंह भी उनके सह-कार्यकर्ता रहे. हर्ष मंदार लोकपाल के मुद्दे पर लोगों की राय बना रहे थे लेकिन अरविंद केजरीवाल यह मुद्दा अपने तरीके से उठाने लगे और अन्ना के खास रणनीतिकार बने. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक घंटे बिजली बंद रखने के उनके अनुरोध का भी कई जगह असर पड़ा. उन्होंने जन लोकपाल बिल के बारे में चांदनी चौक इलाके में यह जनमत संग्रह करवाकर कि कपिल सिब्बल के चुनाव क्षेत्र में भी 85 प्रतिशत वोटर जन लोकपाल के पक्ष में हैं, लोगो को चौंका दिया. युवाओं को अन्ना के आन्दोलन से जोड़ने में उनकी प्रमुख भूमिका रही.
आरोपों से ना घबराएँ
अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ लोगों ने आरोपों की झड़ी लगा दी लेकिन वे उससे विचलित नहीं हुए. शासकीय सेवा में उनके वरिष्ठ रहे लोगों ने भी आरोप लगाये. उनकी पत्नी (जो आयकर विभाग में ही प्रमुख पद पर हैं) के तबादले को लेकर भी उन पर आरोप लगाये गए. कॉंग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने भी उन पर आरोप लगाए थे. बिहार में नीतीश कुमार सरकार के लिए लोकायुक्त बिल का खाका बनाने में भी अरविंद केजरीवाल ने मदद की थी, उस पर भी आरोप लगे. अन्ना के आन्दोलन में मुस्लिमों और ओबीसी की भागीदारी को लेकर भी अरविन्द केजरीवाल पर आरोप लगाये गए.
हवा के रुख को पहचानो
अच्छा नाविक वह है जो केवल अपनी पतवार के भरोसे नहीं रहता, बल्कि हवा के रुख को भी पहचानता और उसकी मदद लेता हो. अरविन्द केजरीवाल ने यह बात तभी समझ ली थी जब वे आरटीआई आन्दोलन से जुड़े. उन्होंने पाया कि लोग भ्रष्टाचार से तो सभी लोग पीड़ित हैं लेकिन बहुत कम लोग ही खुलकर सामने आते हैं. छोटी मोटी जनसुविधाओं के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है. भ्रष्टाचार के प्रति लोगों के गुस्से को सामने लाकर कोई भी बड़ा आन्दोलन खड़ा किया जा सकता है. उन्होंने आरटीआई को भ्रष्टाचार से लड़ाई का हथियार बनाकर इस्तेमाल किया और उसके फायदे को हजारों लोगों तक पहुँचाया. सार्वजानिक वितरण प्रणाली की खामियों की तरफ भी उन्होंने ध्यान दिलवाया, जिससे बड़ी संख्या में लोग उनसे जुड़े.
पारदर्शिता से काम करो
अपने सभी आंदोलनों के लिए अरविन्द केजरीवाल के एनजीओ लोगों से चंदा लेते है और उस चंदे के बारे में एनजीओ की वेबसाइट पर उसकी पूरी जानकारी भी देते हैं. वे वहां पर अपने बारे में कम और अपनी संस्था के काम के बारे में ज्यादा सूचनाएं देते हैं, जिससे यह नहीं लगता कि वे अपने आप को आगे बढ़ा रहे हैं. अपनी किसी भी संस्था में काम करनेवाले सभी सहयोगियों के बारे में भी पूरी जानकारी देते हैं. इण्डिया अगेंस्ट करप्शन की वेबसाइट पर भी इसी तरह की जानकारी मौजूद है. इतना ही नहीं, वे अपनी भावी योजनाओं के बारे में भी खुलकर चर्चा कराते हैं.
लड़ाई जीतना, युद्ध जीतना नहीं
बहुत कम नेता और कार्यकर्ता 'लड़ाई' और 'युद्ध' का अंतर समझ पाते हैं. एक युद्ध जीतने के लिए कई कई लड़ाइयाँ लड़नी होती है. हर लड़ाई युद्ध की जीत में महत्वपूर्ण होती है, लेकिन कई बार कुछ लड़ाई हारकर भी युद्ध जीत लिए जाते हैं. इसके लिए ज़रूरी है अपने हथियारों की धार कराते रहना, जीत का हौसला बुलंद रखना और हर रणनीति सोच समझकर बनाना और सही तरीके से उस पर अमल करना. अन्ना के आन्दोलन के दौरान कई बार लगा कि अब शायद मामला उलटा हो गया है लेकिन वक़्त ने साबित किया कि बात कुछ और ही है.
प्रकाश हिन्दुस्तानी
हिन्दुस्तान, 21/08/2011
Saturday, August 13, 2011
सच और साहस की कामयाबी
रविवासरीय हिन्दुस्तान के एडिट पेज पर (14 जुलाई 2011) प्रकाशित मेरा कॉलम
सच और साहस की कामयाबी
ग्लोबल क्रेडिट रेटिंग कंपनी एस एंड पी ( स्टैण्डर्ड एंड पुअर) के अध्यक्ष देवेन शर्मा (मूल नाम देवेन्द्र शर्मा ) ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग एक पायदान नीचे कर दुनिया भर की अर्थ व्यवस्था में खलबली मचा दी है. लाखों लोग उन्हें नायक बता रहे हैं तो लाखों लोगों का कहना है कि उन्होंने खलनायक जैसा काम किया है. अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग सर्वोच्च 'एएए' से घटाकर 'एए प्लस' किये जाने के बाद उन पर इसकी सूचना लीक करने जैसे आरोप भी लग रहे हैं. रेटिंग घटने के बाद आ रही मंदी के लिए कोई उन्हें दोषी कह रहा है तो कोई कह रहा है कि इसके दूरगामी परिणाम अच्छे ही होंगे क्योंकि अमेरिका अपनी आर्थिक स्थिति को मज़बूत बनाने में जुट जाएगा और अपनी क्रेडिट रेटिंग में वापस सुधार कर लेगा. देवेन शर्मा के लिए भी ये फैसला कोई आसान नहीं रहा होगा. कोल नगरी धनबाद में जन्मे और धनबाद के 'डे नोबिली' स्कूल के छात्र रहे देवेन ने बिट्स के मेसरा इंस्टीटयूट से मैकेनिकल इंजीनियरिग, अमेरिका के विसकॉन्सिन से उन्होंने मास्टर्स डिग्री और फिर ओहायो से मैनेंजमेंट में पीएच. डी. की डिग्री ली. शुरू में मैन्युफैक्चरिंग कंपनी और बाद में कंसल्टेंसी कंपनी में काम करें लगे २००२ में वे मैक्ग्रा हिल्स में काम शुरू किया. २००७ में वे इरस कंपनी के प्रेसिडेंट बने. क्रेडिट रेटिंग के क्षेत्र में हो रही लगातार आलोचनों के कारण देवेन शर्मा का काम आसान कभी नहीं रहा. झारखण्ड के धनबाद से लेकर मैनहट्टन के ५१ मंजिला मैक्ग्रा हिल्स टॉवर तक उनके सफ़र की सफलता के कुछ सूत्र :
स्पष्ट निगाहें, सही लक्ष्य
देवेन शर्मा ने अपने करीयर में हमेशा ही सही संस्थान चुने. वे शुरू से ही जानते थे कि उन्हें क्या करना है. उन्हें अपने करियर के शुरू में भले ही मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में काम कारण पड़ा हो, लेकिन वे जल्दी ही पसंदीदा कन्सल्टेन्सी इंडस्ट्री में आ गए. जल्दी ही वे अपनी कंपनी बूज एलेन एंड हैमिल्टन में पार्टनर भी बन गए और चौदह साल तक इस कंपनी में रणनीतिकार के साथ ही उसके विस्तार, सेल्स, मार्केटिंग आदि का कार्य करने के बाद 2002 में उन्होंने मैकग्रा हिल्स में काम संभाला और लगातार कंपनी का कारोबार बढाने में जुटे रहे. उन्होंने इस कंपनी के लिए उच्च शिक्षा, वित्तीय सेवाओं, मीडिया और इन्फार्मेशन के क्षेत्र में द्वार खोले और कंपनी को विस्तार दिया. उन्हें लगा कि वे एक बड़े परिदृश्य में बेहतर कार्य कर रहे हैं. ठीक चार साल पहले अगस्त 2007 में वे एस एंड पी के अध्यक्ष बने थे.
सच पर टिकने की हिम्मत
सन 2001 में एनरॉन स्कैंडल के बाद अमेरिकी संसद में रेटिंग कंपनियों में सुधार की बात सामने आ रही थीं. देवेन शर्मा के कंपनी अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने रेटिंग की शैली और तौर तरीका बदलने के साथ ही रेटिंग की विश्वसनीयता पर ध्यान दिया जाने लगा था. अमेरिका की आर्थिक हालात की सच्चाई जानने और उस पर टिके रहने के हौसले ने देवेन शर्मा के ज़मीर को वह ताकत दी कि उनकी कंपनी ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग का सही विश्लेषण किया और उसे उजागर किया. बीते कई वर्षों से क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को आलोचना का शिकार होना पड़ रहा था क्योंकि अच्छी रेटिंग वाली कई कम्पनियाँ बाज़ार में दीवाला निकाल चुकी थीं. देवें शर्मा को इस बात का पूरे इल्म था कि इस रेटिंग से बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा और उन्हें किस तरह की प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ेगा.
आलोचना से डरे नहीं
एस एंड पी ने जब ग्रीस के बारे में रेटिंग 'सीसीसी' से घटाकर 'सीसी' की थी तब भी भारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. एस एंड पी से सम्बद्ध 'क्रिसिल' भारत की क्रेडिट रेटिंग करती है. अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग को कमतर करने का फैसला केवल आर्थिक निर्णय नहीं है. इसका मतलब यह है कि अमेरिका की सरकार का प्रभाव, स्थिरता, फैसले लेने का वक्त और तरीका, नीतियां बनाने और उन पर अमल का काम समीक्षा के दायरे में है. इसका अर्थ यह नहीं है कि अमेरिका बर्बाद हो रहा है, बल्कि यह है कि अब अमेरिका को पुनरावलोकन कर लेना चाहिए. रेटिंग के बारे में फैसला लेते ही एस एंड पी की आलोचना भी शुरू हो गयी. डेमोक्रेट पार्टी के सांसद मेक्सिम वाटर्स ने तो कंपनी को अनैतिक कहते हुए यह भी आरोप लगा दिया कि एस एंड पी ने अपने फैसले की घोषणा के पहले ही इस बात को कुछ वित्तीय संस्थाओं को लीक कर दिया था. एस एंड पी की गणना में दो ट्रिलियन डॉलर की गलती के आरोप भी लगे हैं. देवेन शर्मा के मुताबिक इन आरोपों में कुछ भी अनपेक्षित नहीं था.
विमर्श के बाद ही फैसला
देवेन शर्मा ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग को बदलने का फैसला कोई जल्दबाजी में नहीं लिया. ऐसा भी नहीं कि अमेरिकी राष्ट्रपति को इसकी भनक नहीं थी. एस एंड पी ने रेटिंग के बारे में घोषणा से पहले लगातार छह घंटों तक अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय से टेलीफोन, ई मेल और वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये चर्चा की थी. यह बात राष्ट्रपति के सामने रख दी गयी थी कि इस रेटिंग के मायने क्या हैं और इसकी ज़रुरत क्यों है? देवेन शर्मा को इस बात का पूरा अंदेसा था कि इस घोषणा के बाद वित्तीय बाजारों के क्या हाल होंगे और उन्हें भरोसा है कि कुछ समय के बाद इसके नतीजे बहुत अच्छे होंगे और अमेरिका अपनी साख रेटिंग को सुधारने में सफल होगा.
स्वतंत्रता और निष्पक्षता
देवेन शर्मा का विश्वास है कि केवल स्वतंत्रता और निष्पक्षता ही हैं जो किसी भी वित्तीय सलाहकार कंपनी के लिए ऑक्सीजन होती है. हमारी कंपनी का मुख्यालय न्यूयार्क में है तो केवल यही कोई कारण नहीं हो सकता कि हम अमेरिका की साख उच्चतम स्तर पर दिखाते रहें. हमारे लिए स्वतंत्रता और निष्पक्षता का अर्थ है अपने कारोबार में ज्यादा ईमानदारी और पारदर्शिता. सच्चाई बताने से तात्कालिक हानि हो सकती है, लेकिन सच्चाई से किसी का बुरा नहीं होता. हमारी जवाबदारी अपने निवेशकों के साथ है और सदैव रहेगी इसीलिये उन्हें निष्पक्ष होकर सलाह देना हमारा दायित्व है.
भविष्य की सोचें
वर्तमान हालात बहुत अच्छे नहीं हो तो भी भविष्य के बारे में सोचना बंद नहीं किया जा सकता. देवेन शर्मा ने अपने फैसले को साफ़ किया कि वित्तीय संस्थाएं भविष्य को देखते हुए ही रेटिंग करती हैं. निवेशकों को नुकसान पहुँचाना हमारा काम नहीं, हमारा काम है उन्हें फायदा पहुँचाना. क्रेडिट के विकास के सन्दर्भ में हम अपने निवेशकों को आगाह कराते हैं कि उन्हें किस तरह की जोखिम उठानी पड़ सकती है, और यही हमारा काम है, जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता.
स्वदेश का महत्व
देवेन शर्मा साल में एक बार भारत ज़रूर आते हैं. वे यहाँ वित्त मंत्रालय ज़रूर जाते हैं और मौका मिले तो भारत आकर यहीं रहना चाहते हैं. उनके पिता रामनाथ शर्मा और भाई झारखण्ड में ही रहते हैं. करीब सत्तर साल पहले उनके दादा पाकिस्तान के लायलपुर से भारत आकर बसे थे. वे भारत को आर्थिक मोर्चे पर मज़बूत देखने के लिए समय समय पर अपने सुझाव वित्त मंत्रालय को देते रहते हैं.
प्रकाश हिन्दुस्तानी
हिन्दुस्तान 14 जुलाई 2011को प्रकाशित
सच और साहस की कामयाबी
ग्लोबल क्रेडिट रेटिंग कंपनी एस एंड पी ( स्टैण्डर्ड एंड पुअर) के अध्यक्ष देवेन शर्मा (मूल नाम देवेन्द्र शर्मा ) ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग एक पायदान नीचे कर दुनिया भर की अर्थ व्यवस्था में खलबली मचा दी है. लाखों लोग उन्हें नायक बता रहे हैं तो लाखों लोगों का कहना है कि उन्होंने खलनायक जैसा काम किया है. अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग सर्वोच्च 'एएए' से घटाकर 'एए प्लस' किये जाने के बाद उन पर इसकी सूचना लीक करने जैसे आरोप भी लग रहे हैं. रेटिंग घटने के बाद आ रही मंदी के लिए कोई उन्हें दोषी कह रहा है तो कोई कह रहा है कि इसके दूरगामी परिणाम अच्छे ही होंगे क्योंकि अमेरिका अपनी आर्थिक स्थिति को मज़बूत बनाने में जुट जाएगा और अपनी क्रेडिट रेटिंग में वापस सुधार कर लेगा. देवेन शर्मा के लिए भी ये फैसला कोई आसान नहीं रहा होगा. कोल नगरी धनबाद में जन्मे और धनबाद के 'डे नोबिली' स्कूल के छात्र रहे देवेन ने बिट्स के मेसरा इंस्टीटयूट से मैकेनिकल इंजीनियरिग, अमेरिका के विसकॉन्सिन से उन्होंने मास्टर्स डिग्री और फिर ओहायो से मैनेंजमेंट में पीएच. डी. की डिग्री ली. शुरू में मैन्युफैक्चरिंग कंपनी और बाद में कंसल्टेंसी कंपनी में काम करें लगे २००२ में वे मैक्ग्रा हिल्स में काम शुरू किया. २००७ में वे इरस कंपनी के प्रेसिडेंट बने. क्रेडिट रेटिंग के क्षेत्र में हो रही लगातार आलोचनों के कारण देवेन शर्मा का काम आसान कभी नहीं रहा. झारखण्ड के धनबाद से लेकर मैनहट्टन के ५१ मंजिला मैक्ग्रा हिल्स टॉवर तक उनके सफ़र की सफलता के कुछ सूत्र :
स्पष्ट निगाहें, सही लक्ष्य
देवेन शर्मा ने अपने करीयर में हमेशा ही सही संस्थान चुने. वे शुरू से ही जानते थे कि उन्हें क्या करना है. उन्हें अपने करियर के शुरू में भले ही मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में काम कारण पड़ा हो, लेकिन वे जल्दी ही पसंदीदा कन्सल्टेन्सी इंडस्ट्री में आ गए. जल्दी ही वे अपनी कंपनी बूज एलेन एंड हैमिल्टन में पार्टनर भी बन गए और चौदह साल तक इस कंपनी में रणनीतिकार के साथ ही उसके विस्तार, सेल्स, मार्केटिंग आदि का कार्य करने के बाद 2002 में उन्होंने मैकग्रा हिल्स में काम संभाला और लगातार कंपनी का कारोबार बढाने में जुटे रहे. उन्होंने इस कंपनी के लिए उच्च शिक्षा, वित्तीय सेवाओं, मीडिया और इन्फार्मेशन के क्षेत्र में द्वार खोले और कंपनी को विस्तार दिया. उन्हें लगा कि वे एक बड़े परिदृश्य में बेहतर कार्य कर रहे हैं. ठीक चार साल पहले अगस्त 2007 में वे एस एंड पी के अध्यक्ष बने थे.
सच पर टिकने की हिम्मत
सन 2001 में एनरॉन स्कैंडल के बाद अमेरिकी संसद में रेटिंग कंपनियों में सुधार की बात सामने आ रही थीं. देवेन शर्मा के कंपनी अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने रेटिंग की शैली और तौर तरीका बदलने के साथ ही रेटिंग की विश्वसनीयता पर ध्यान दिया जाने लगा था. अमेरिका की आर्थिक हालात की सच्चाई जानने और उस पर टिके रहने के हौसले ने देवेन शर्मा के ज़मीर को वह ताकत दी कि उनकी कंपनी ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग का सही विश्लेषण किया और उसे उजागर किया. बीते कई वर्षों से क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को आलोचना का शिकार होना पड़ रहा था क्योंकि अच्छी रेटिंग वाली कई कम्पनियाँ बाज़ार में दीवाला निकाल चुकी थीं. देवें शर्मा को इस बात का पूरे इल्म था कि इस रेटिंग से बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा और उन्हें किस तरह की प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ेगा.
आलोचना से डरे नहीं
एस एंड पी ने जब ग्रीस के बारे में रेटिंग 'सीसीसी' से घटाकर 'सीसी' की थी तब भी भारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. एस एंड पी से सम्बद्ध 'क्रिसिल' भारत की क्रेडिट रेटिंग करती है. अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग को कमतर करने का फैसला केवल आर्थिक निर्णय नहीं है. इसका मतलब यह है कि अमेरिका की सरकार का प्रभाव, स्थिरता, फैसले लेने का वक्त और तरीका, नीतियां बनाने और उन पर अमल का काम समीक्षा के दायरे में है. इसका अर्थ यह नहीं है कि अमेरिका बर्बाद हो रहा है, बल्कि यह है कि अब अमेरिका को पुनरावलोकन कर लेना चाहिए. रेटिंग के बारे में फैसला लेते ही एस एंड पी की आलोचना भी शुरू हो गयी. डेमोक्रेट पार्टी के सांसद मेक्सिम वाटर्स ने तो कंपनी को अनैतिक कहते हुए यह भी आरोप लगा दिया कि एस एंड पी ने अपने फैसले की घोषणा के पहले ही इस बात को कुछ वित्तीय संस्थाओं को लीक कर दिया था. एस एंड पी की गणना में दो ट्रिलियन डॉलर की गलती के आरोप भी लगे हैं. देवेन शर्मा के मुताबिक इन आरोपों में कुछ भी अनपेक्षित नहीं था.
विमर्श के बाद ही फैसला
देवेन शर्मा ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग को बदलने का फैसला कोई जल्दबाजी में नहीं लिया. ऐसा भी नहीं कि अमेरिकी राष्ट्रपति को इसकी भनक नहीं थी. एस एंड पी ने रेटिंग के बारे में घोषणा से पहले लगातार छह घंटों तक अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय से टेलीफोन, ई मेल और वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये चर्चा की थी. यह बात राष्ट्रपति के सामने रख दी गयी थी कि इस रेटिंग के मायने क्या हैं और इसकी ज़रुरत क्यों है? देवेन शर्मा को इस बात का पूरा अंदेसा था कि इस घोषणा के बाद वित्तीय बाजारों के क्या हाल होंगे और उन्हें भरोसा है कि कुछ समय के बाद इसके नतीजे बहुत अच्छे होंगे और अमेरिका अपनी साख रेटिंग को सुधारने में सफल होगा.
स्वतंत्रता और निष्पक्षता
देवेन शर्मा का विश्वास है कि केवल स्वतंत्रता और निष्पक्षता ही हैं जो किसी भी वित्तीय सलाहकार कंपनी के लिए ऑक्सीजन होती है. हमारी कंपनी का मुख्यालय न्यूयार्क में है तो केवल यही कोई कारण नहीं हो सकता कि हम अमेरिका की साख उच्चतम स्तर पर दिखाते रहें. हमारे लिए स्वतंत्रता और निष्पक्षता का अर्थ है अपने कारोबार में ज्यादा ईमानदारी और पारदर्शिता. सच्चाई बताने से तात्कालिक हानि हो सकती है, लेकिन सच्चाई से किसी का बुरा नहीं होता. हमारी जवाबदारी अपने निवेशकों के साथ है और सदैव रहेगी इसीलिये उन्हें निष्पक्ष होकर सलाह देना हमारा दायित्व है.
भविष्य की सोचें
वर्तमान हालात बहुत अच्छे नहीं हो तो भी भविष्य के बारे में सोचना बंद नहीं किया जा सकता. देवेन शर्मा ने अपने फैसले को साफ़ किया कि वित्तीय संस्थाएं भविष्य को देखते हुए ही रेटिंग करती हैं. निवेशकों को नुकसान पहुँचाना हमारा काम नहीं, हमारा काम है उन्हें फायदा पहुँचाना. क्रेडिट के विकास के सन्दर्भ में हम अपने निवेशकों को आगाह कराते हैं कि उन्हें किस तरह की जोखिम उठानी पड़ सकती है, और यही हमारा काम है, जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता.
स्वदेश का महत्व
देवेन शर्मा साल में एक बार भारत ज़रूर आते हैं. वे यहाँ वित्त मंत्रालय ज़रूर जाते हैं और मौका मिले तो भारत आकर यहीं रहना चाहते हैं. उनके पिता रामनाथ शर्मा और भाई झारखण्ड में ही रहते हैं. करीब सत्तर साल पहले उनके दादा पाकिस्तान के लायलपुर से भारत आकर बसे थे. वे भारत को आर्थिक मोर्चे पर मज़बूत देखने के लिए समय समय पर अपने सुझाव वित्त मंत्रालय को देते रहते हैं.
प्रकाश हिन्दुस्तानी
हिन्दुस्तान 14 जुलाई 2011को प्रकाशित
Sunday, August 07, 2011
गरिमामय हास्य ने दिलाई पहचान
रविवासरीय हिन्दुस्तान के एडिट पेज पर मेरा कॉलम (06/08/2011)
गरिमामय हास्य ने दिलाई पहचान
एकपात्रीय मंचीय कॉमेडी की दुनिया में भारत का नाम रोशन करनेवाले कॉमेडियन पापा सी जे ने वैश्विक मंच पर कॉमेडी को स्थापित किया है. उनके आठ सौ से ज्यादा मंचीय शो को अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और यूरोप में लाखों लोग देख चुके हैं. बीबीसी, एनबीसी,एम टीवी जैसे चैनलों पर वे अपनी कॉमेडी के शो से लोगों का ध्यान खींच चुके हैं. मुकेश अम्बानी से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया तक उनके प्रशंसकों में से हैं. वे अपने कॉमेडी के शो नोकिया, ऑडी, ब्रिटिश कौंसिल जैसे संस्थानों में भी देते रहते हैं. कहा जाता है कि उन्होंने स्टैंड अप कॉमेडी को एक नया मुकाम दिया है और खुद एक कॉर्पोरेट हस्ती बन गए हैं. पापा सी जे नाम से प्रसिद्ध सफलता के शीर्ष पर पहुंचे इस ग्लोबल कॉमेडियन की कामयाबी के कुछ सूत्र :
असली नाम छुपाने का राज़
पापा सी जे उनका असली नाम नहीं है, लेकिन वे अपना असली नाम किसी को भी ना तो बताना चाहते हैं और ना ही बता सकते हैं. असली नाम की बात पर वे यही बात वे लोगों से कहते हैं कि खतरनाक हत्यारों द्वारा की गई एक हत्या के मामले में उन्होंने गवाही दी थी और वे हत्यारे उनके पीछे पड़ गए. ऐसे में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने उन्हें विटनेस प्रोटेक्शन प्रोग्राम के तहत अपनी पहचान छुपाकर रखने का आदेश और अनुमति प्रदान की. और इसी कारण वे अपनी असली पहचान छुपाकर जी रहे हैं. वे एक ऐसे नागरिक हैं जो अपनी जान को जोखिम में डालकर भी क़ानून की मदद करने से नहीं चूकता हो.
नया करने का जुनून
ज़िंदगी में कुछ नया करने के जुनून ने पापा सी जे को भीड़ से अलग जाकर नया कुछ करने को मज़बूर किया. १९७७ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को जन्मे पापा ने शुरुआती २० साल भारत में बिताये. सनावर और कोलकाता में पढ़ाई के बाद वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में एमबीए की डिग्री लेने पहुंचे. उन्होंने पढ़ाई के साथ साथ बहुत से खेत्रों में काम किया और नाम (शोहरत) तथा नामा (दौलत) अर्जित किया. पापा इस बात से असहमत रहते कि जो कुछ चल रहा है, ठीक है. कुछ नया करने का जुनून उन पर सदा सवार रहता है और इसीलिये वे कुछ खास कर सके.
टीवी शो ने बदली दुनिया
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही उन्हें टीवी चैनल पर कॉमेडी के शो में प्रतियोगी के रूप में भाग लेने का मौका मिला. इस शो में ऑडिशन के लिए हजारों लोग आये थे. पापा सी जे ने भी इसमें भाग लिया और उनकी कॉमेडी को लोगों ने पसंद किया. वे इस शो में टॉप टेन प्रतियोगियों तक पहुंचे.लोगों की पसंद को देखते हुए उन्होंने कॉमेडी जारी रखी. लोगों ने उन्हें कार्यक्रमों में बुलाना शुरू कर दिया और धीरे धीरे उनके शो लोकप्रिय होते चले गए.
अश्लीलता से दूरी
पापा सी जे ने अपने शो को अश्लीलता, फूहड़पन और दो अर्थोंवाले संवादों से मुक्त रखा है. वे जानते हैं यह लोगों को हंसाने का सरल रास्ता है लेकिन यह एक घटिया काम है. उनका मानना है कि यही किसी कॉमेडियन की असली परीक्षा भी है कि वह किस तरीके से अपना काम करता है. पापा सी जे हर बार नए नए तरीके से लोगों को हंसाने की कोशिश करते हैं और इसमें कामयाब भी रहते हैं क्योंकि वे विषय का चयन बहुत सावधानी से करते हैं और तात्कालिक घटनाओं का भी उसमें समावेश करने से नहीं चूकते जो लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं.
मौलिक लेखन
पापा सी जे अपने हर शो में नयापन रखते हैं और हर बार अपनी स्क्रिप्ट खुद लिखते हैं. वे चाहें तो यह काम दूसरे लेखकों से भी लिखवा सकते हैं लेकिन उनका मानना है कि अगर शो की स्क्रिप्ट मेरी अपनी है तो मैं उस शो में अपने हावभाव बेहतर तरीके से व्यक्त कर सकता हूँ. दुनिया के कई देशों में घूम चुके होने से उन्हें लोगों के अलग अलग स्वाभाव का अंदाजा है और इसीलिये उनकी विषयवस्तु हर जगह अलग होती है.
बहुधन्धी व्यक्तित्व
पापा सी जे बहुधन्धी व्यक्तित्व के धनी हैं. वे जाने-पहचाने जाते हैं अपनी स्टैंडअप कॉमेडी की वजह से, जो उन्होंने २७ साल की उम्र में २००४ में शुरू की थी, लेकिन उनके कामों में लन्दन में मैनेजमेंट कंसल्टेंसी देना और प्रोफेशनल वर्कशॉप आयोजित करना भी शामिल रहा है. अब वे अपने काम को नए मुकाम तक पहुँचाना चाहते हैं जिसके तहत उनके शो के डीवीडी बनाकर बेचना और फिल्मों में काम करना शामिल है. वे भारत के सभी प्रमुख शहरों में अपने शो करने की योजना भी बना रहे हैं.
चैरिटी कार्य
पापा सी जे चैरिटी के काम को भी महत्व देते हैं. 'वन चाइल्ड' नाम की एक संस्था का खर्च वे अपने कार्यक्रम की पूरी कमाई देकर उठाते हैं. इस कार्यक्रम के टिकिट पंद्रह पौंड में बेचे जाते हैं और एक धेला भी वे नहीं लेते. इस संस्था द्वारा संसाधनहीन बच्चों की पूरी देखभाल की जाती है, उनकी पढ़ाई से लेकर निवास, भोजन और खेलकूद तक का खर्च यही संस्था उठाती है. इसके अलावा बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य, भारत के ग्रामीण इलाकों में लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने के काम में भी वे मदद करते हैं. संस्था के कामों की यजन बनाने से लेकर उन योजनाओं पर अमल करने तक के काम में उनकी भूमिका रहती है.
सौ प्रतिशत भारतीय
पापा सी जे भले ही अंतर्राष्ट्रीय नाम हो गया हो, लेकिन वे अपने आप को सौ प्रतिशत भारतीय ही मानते हैं. वे कहते हैं कि मैं एक पतंग की तरह हो गया हू, जो उड़ती तो ऊपर आसमान में है, लेकिन एक डोर से जुडी होती है. भारतीय भोजन, भारतीय परिधान, हिन्दी और पंजाबी फ़िल्में और उनका संगीत उन्हें भाता है. भारत में वे नए कलाकारों को स्टैंड अप कॉमेडी के लिए प्रशिक्षित भी कराते हैं और उन्हें विविधतापूर्ण कामों के लिए प्रेरित भी करते हैं.
प्रकाश हिन्दुस्तानी
हिन्दुस्तान 6 auguest 2011
गरिमामय हास्य ने दिलाई पहचान
एकपात्रीय मंचीय कॉमेडी की दुनिया में भारत का नाम रोशन करनेवाले कॉमेडियन पापा सी जे ने वैश्विक मंच पर कॉमेडी को स्थापित किया है. उनके आठ सौ से ज्यादा मंचीय शो को अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और यूरोप में लाखों लोग देख चुके हैं. बीबीसी, एनबीसी,एम टीवी जैसे चैनलों पर वे अपनी कॉमेडी के शो से लोगों का ध्यान खींच चुके हैं. मुकेश अम्बानी से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया तक उनके प्रशंसकों में से हैं. वे अपने कॉमेडी के शो नोकिया, ऑडी, ब्रिटिश कौंसिल जैसे संस्थानों में भी देते रहते हैं. कहा जाता है कि उन्होंने स्टैंड अप कॉमेडी को एक नया मुकाम दिया है और खुद एक कॉर्पोरेट हस्ती बन गए हैं. पापा सी जे नाम से प्रसिद्ध सफलता के शीर्ष पर पहुंचे इस ग्लोबल कॉमेडियन की कामयाबी के कुछ सूत्र :
असली नाम छुपाने का राज़
पापा सी जे उनका असली नाम नहीं है, लेकिन वे अपना असली नाम किसी को भी ना तो बताना चाहते हैं और ना ही बता सकते हैं. असली नाम की बात पर वे यही बात वे लोगों से कहते हैं कि खतरनाक हत्यारों द्वारा की गई एक हत्या के मामले में उन्होंने गवाही दी थी और वे हत्यारे उनके पीछे पड़ गए. ऐसे में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने उन्हें विटनेस प्रोटेक्शन प्रोग्राम के तहत अपनी पहचान छुपाकर रखने का आदेश और अनुमति प्रदान की. और इसी कारण वे अपनी असली पहचान छुपाकर जी रहे हैं. वे एक ऐसे नागरिक हैं जो अपनी जान को जोखिम में डालकर भी क़ानून की मदद करने से नहीं चूकता हो.
नया करने का जुनून
ज़िंदगी में कुछ नया करने के जुनून ने पापा सी जे को भीड़ से अलग जाकर नया कुछ करने को मज़बूर किया. १९७७ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को जन्मे पापा ने शुरुआती २० साल भारत में बिताये. सनावर और कोलकाता में पढ़ाई के बाद वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में एमबीए की डिग्री लेने पहुंचे. उन्होंने पढ़ाई के साथ साथ बहुत से खेत्रों में काम किया और नाम (शोहरत) तथा नामा (दौलत) अर्जित किया. पापा इस बात से असहमत रहते कि जो कुछ चल रहा है, ठीक है. कुछ नया करने का जुनून उन पर सदा सवार रहता है और इसीलिये वे कुछ खास कर सके.
टीवी शो ने बदली दुनिया
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही उन्हें टीवी चैनल पर कॉमेडी के शो में प्रतियोगी के रूप में भाग लेने का मौका मिला. इस शो में ऑडिशन के लिए हजारों लोग आये थे. पापा सी जे ने भी इसमें भाग लिया और उनकी कॉमेडी को लोगों ने पसंद किया. वे इस शो में टॉप टेन प्रतियोगियों तक पहुंचे.लोगों की पसंद को देखते हुए उन्होंने कॉमेडी जारी रखी. लोगों ने उन्हें कार्यक्रमों में बुलाना शुरू कर दिया और धीरे धीरे उनके शो लोकप्रिय होते चले गए.
अश्लीलता से दूरी
पापा सी जे ने अपने शो को अश्लीलता, फूहड़पन और दो अर्थोंवाले संवादों से मुक्त रखा है. वे जानते हैं यह लोगों को हंसाने का सरल रास्ता है लेकिन यह एक घटिया काम है. उनका मानना है कि यही किसी कॉमेडियन की असली परीक्षा भी है कि वह किस तरीके से अपना काम करता है. पापा सी जे हर बार नए नए तरीके से लोगों को हंसाने की कोशिश करते हैं और इसमें कामयाब भी रहते हैं क्योंकि वे विषय का चयन बहुत सावधानी से करते हैं और तात्कालिक घटनाओं का भी उसमें समावेश करने से नहीं चूकते जो लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं.
मौलिक लेखन
पापा सी जे अपने हर शो में नयापन रखते हैं और हर बार अपनी स्क्रिप्ट खुद लिखते हैं. वे चाहें तो यह काम दूसरे लेखकों से भी लिखवा सकते हैं लेकिन उनका मानना है कि अगर शो की स्क्रिप्ट मेरी अपनी है तो मैं उस शो में अपने हावभाव बेहतर तरीके से व्यक्त कर सकता हूँ. दुनिया के कई देशों में घूम चुके होने से उन्हें लोगों के अलग अलग स्वाभाव का अंदाजा है और इसीलिये उनकी विषयवस्तु हर जगह अलग होती है.
बहुधन्धी व्यक्तित्व
पापा सी जे बहुधन्धी व्यक्तित्व के धनी हैं. वे जाने-पहचाने जाते हैं अपनी स्टैंडअप कॉमेडी की वजह से, जो उन्होंने २७ साल की उम्र में २००४ में शुरू की थी, लेकिन उनके कामों में लन्दन में मैनेजमेंट कंसल्टेंसी देना और प्रोफेशनल वर्कशॉप आयोजित करना भी शामिल रहा है. अब वे अपने काम को नए मुकाम तक पहुँचाना चाहते हैं जिसके तहत उनके शो के डीवीडी बनाकर बेचना और फिल्मों में काम करना शामिल है. वे भारत के सभी प्रमुख शहरों में अपने शो करने की योजना भी बना रहे हैं.
चैरिटी कार्य
पापा सी जे चैरिटी के काम को भी महत्व देते हैं. 'वन चाइल्ड' नाम की एक संस्था का खर्च वे अपने कार्यक्रम की पूरी कमाई देकर उठाते हैं. इस कार्यक्रम के टिकिट पंद्रह पौंड में बेचे जाते हैं और एक धेला भी वे नहीं लेते. इस संस्था द्वारा संसाधनहीन बच्चों की पूरी देखभाल की जाती है, उनकी पढ़ाई से लेकर निवास, भोजन और खेलकूद तक का खर्च यही संस्था उठाती है. इसके अलावा बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य, भारत के ग्रामीण इलाकों में लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने के काम में भी वे मदद करते हैं. संस्था के कामों की यजन बनाने से लेकर उन योजनाओं पर अमल करने तक के काम में उनकी भूमिका रहती है.
सौ प्रतिशत भारतीय
पापा सी जे भले ही अंतर्राष्ट्रीय नाम हो गया हो, लेकिन वे अपने आप को सौ प्रतिशत भारतीय ही मानते हैं. वे कहते हैं कि मैं एक पतंग की तरह हो गया हू, जो उड़ती तो ऊपर आसमान में है, लेकिन एक डोर से जुडी होती है. भारतीय भोजन, भारतीय परिधान, हिन्दी और पंजाबी फ़िल्में और उनका संगीत उन्हें भाता है. भारत में वे नए कलाकारों को स्टैंड अप कॉमेडी के लिए प्रशिक्षित भी कराते हैं और उन्हें विविधतापूर्ण कामों के लिए प्रेरित भी करते हैं.
प्रकाश हिन्दुस्तानी
हिन्दुस्तान 6 auguest 2011
Wednesday, August 03, 2011
फेसबुक सरकारी होता तो...
ख़ाता खोलने के पहले (पूरा पढ़ें)
1.. फार्म भरो -- नाम, बाप का नाम, उम्र, पता, फ़ोन-मोबाइल नंबर, आय, ईमेल, ब्लड ग्रुप आदि-आदि.
2. उम्र, आय और स्थायी निवासी के प्रमाण पत्र नत्थी करो जो राजपत्रित अधिकारी से प्रमाणित हो.
3. खाता खोलने की ज़रुरत क्यों है, इसका सर्टिफिकेट कलेक्टर से लेकर लगाओ.
4. इनकम टेक्स के फार्म १६ ए की तीन साल की फोटोप्रति
5. जाति का प्रमाण पत्र फलां अफसर से प्रमाणित हो.
6. अजा, अजजा, ओबीसी,एम एल ए-एमपी के लिए फलां प्रतिशत आरक्षण है, कोशिश करेंगे कि आपका खाता खुल जाए.
7. एक शपथपत्र लगाओ कि तुम इसका दुरपयोग नहीं करोगे, अगर १८ साल से कम के हो तो अपने बाप से ऐसा शपथ पत्र बनवाकर लगवाओ और साथ में एक और शपथ पत्र लगवाओ कि वही तुम्हारा बाप है और उसके निवास और पहचानपत्र का प्रमाणपत्र लगवाओ.
............तेरा थैंक यू हो यार मार्क एलियट ज़ुकेरबर्ग, तेरा शुक्रिया , तूने तो भोत सारी माथा-फोड़ी से बचा लिया, वरना अगर ये फेसबुक भारत सरकार की होती तो ये सब तो करना ही पड़ता फिर भी खाता .......
What do you say?
(स्वर्गीय शरद जोशी जी की प्रेरणा से उनकी डाक को आगे बढ़ते हुए )
1.. फार्म भरो -- नाम, बाप का नाम, उम्र, पता, फ़ोन-मोबाइल नंबर, आय, ईमेल, ब्लड ग्रुप आदि-आदि.
2. उम्र, आय और स्थायी निवासी के प्रमाण पत्र नत्थी करो जो राजपत्रित अधिकारी से प्रमाणित हो.
3. खाता खोलने की ज़रुरत क्यों है, इसका सर्टिफिकेट कलेक्टर से लेकर लगाओ.
4. इनकम टेक्स के फार्म १६ ए की तीन साल की फोटोप्रति
5. जाति का प्रमाण पत्र फलां अफसर से प्रमाणित हो.
6. अजा, अजजा, ओबीसी,एम एल ए-एमपी के लिए फलां प्रतिशत आरक्षण है, कोशिश करेंगे कि आपका खाता खुल जाए.
7. एक शपथपत्र लगाओ कि तुम इसका दुरपयोग नहीं करोगे, अगर १८ साल से कम के हो तो अपने बाप से ऐसा शपथ पत्र बनवाकर लगवाओ और साथ में एक और शपथ पत्र लगवाओ कि वही तुम्हारा बाप है और उसके निवास और पहचानपत्र का प्रमाणपत्र लगवाओ.
............तेरा थैंक यू हो यार मार्क एलियट ज़ुकेरबर्ग, तेरा शुक्रिया , तूने तो भोत सारी माथा-फोड़ी से बचा लिया, वरना अगर ये फेसबुक भारत सरकार की होती तो ये सब तो करना ही पड़ता फिर भी खाता .......
What do you say?
(स्वर्गीय शरद जोशी जी की प्रेरणा से उनकी डाक को आगे बढ़ते हुए )
Subscribe to:
Posts (Atom)