Sunday, September 25, 2011

जीत में विनम्र, हार में गरिमामय

रविवासरीय हिन्दुस्तान के एडिट पेज 25 सितम्बर 2011 को प्रकाशित मेरा कॉलम



जीत में विनम्र, हार में गरिमामय


विश्व स्तर किये गए एक सर्वे के अनुसार टेनिस के सुपरस्टार रोजर फेडरर दुनिया के सबसे सम्माननीय खिलाड़ी और दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के बाद दूसरे सबसे सम्माननीय और विश्वसनीय सेलेब्रिटी हैं. इसी सूची में अमेरिकी बेसबाल खिलाड़ी डेरेक जेटर और ब्रिटिश फुटबालर डेविड बेकहम का नाम भी है, लेकिन सोलहवें और चौबीसवें नंबर पर. रतन टाटा भी इस सूची में नौवें नंबर पर हैं. सर्वे में यह बात सामने आई कि लोग ज्यादा कमाने वाले व्यक्ति को नहीं, समाज सेवा में ज्यादा से ज्यादा धन और समय देने के साथ ही अच्छी भावना रखनेवाले व्यक्ति के प्रति यह सम्मान भाव रखते हैं. सम्माननीय और विश्वसनीय सेलेब्रिटी का यह ख़िताब ऐसा है जिसे कोई भी उनसे नहीं छीन सकता. आखिर क्या क्या बातें हैं जिनके कारण रोजर फेडरर इतने लोकप्रिय हैं? उनकी सफलता के कुछ सूत्र:
हमेशा बुद्धिमतापूर्ण प्रदर्शन
इस दौर में जबकि टेनिस पावर गेम बन चुका है, फेडरर हमेशा अपनी बुद्धि का उपयोग करते हैं और हमेशा विविधतापूर्ण तरीके से खेलते हैं उनका अपने टेनिस रैकेट की गति, शक्ति और टॉपस्पिन पर पूरा नियंत्रण रहता है. फेडरर जब भी सर्व करते हैं तब उनकी कोई न कोई रणनीति होती है. उनका फोरहैण्ड (यानी रैकेट वाले हाथ की तरफ से मारा गया) शॉट दूसरे खिलाड़ी के लिए खतरनाक होता है और जब खेल चरम पर पहुंचता है और फैसला अंतिम क्षणों में होना हो तब फेडरर तांडव करते हैं जिसे 'एडवांटेज फेडरर' कहा जाता है. खेल के दौरान उनका आत्मविश्वास देख लोग दंग रह जाते हैं.
निरंतर श्रेष्ठतम खेल
रोजर फेडरर टेनिस में लगातार अपना श्रेष्ठतम प्रदर्शन करते रहे हैं. ऐसी निरंतरता शायद ही किसी ने दिखाई हो. वे लगातार 237 सप्ताह तक विश्व टेनिस रेंकिंग में नंबर वन पर बने रहे.( वैसे वे कुल 285 सप्ताह तक नंबर वन रेंकिंग में रहे हैं) विम्बलडन और यू एस ओपन में लगातार पाँच पाँच बार विजेता रहे. लगातार बीस बार ग्रांड स्लेम सेमीफायनल में मुकाबला करते नज़र आये. वे पीट सेम्प्रास और आंद्रे अगासी की तुलना में फिट रहे हैं और हर बार अपना शानदार प्रदर्शन करते रहे हैं. चपलता, पैनापन और दृढ़ता ने उन्हें बेहतरीन खिलाड़ी बनाया.
मानसिक मज़बूती आवश्यक
रोजर फेडरर जैसा खेलने के लिए मानसिक तौर पर मज़बूत होना ज़रूरी है. जब खेल के मैदान में मैच हाथ से छूटता नज़र आता हो तब भी वे पाना आप बनाये रखते हैं और रत्तीभर भी बेचैनी प्रकट नहीं करते. खेल में लव लव के हालात हों या प्रेशर कुकिंग टाई ब्रेकर, उन्हें जब कभी भी बाउंस, ग्राउंड स्ट्रोक, ड्रॉप शॉट, वॉली या हाफ वॉली की ज़रुरत होती है, वे वैसा ही खेल जाते हैं. वे टेनिस कोर्ट में इतने मानसिक मज़बूती दिखाते हैं कि सामनेवाले के होश फाख्ता हो जाते हैं. मैदान में उन्हें किसी ने कभी चिढचिढाते नहीं देखा. वे जो सोच लेते हैं, कर डालते है.
जीत में विनम्र, हार में गरिमामय
फेडरर के बारे में मशहूर है कि वे कभी अहंकारी नहीं हुए; क्या जीत में, क्या हार में. जीत उन्हें विनम्र बना देती है और वे पराजय होने पर ऐसी गरिमा से उसे स्वीकारते हैं जैसे वह भी उनकी जीत ही हो. जीत के बाद जब भी वे ट्रॉफी लेने जाते हैं तब उन्हें पहली बार देखनेवाले को लगता है कि शायद यह उनकी पहली जीत है और जब (कभी ऐसा मौका आये तो) हारने के बाद भी वे मैदान में रहते हैं, विजेता के खेल की तारीफ करते हैं और उसे खुलकर बधाई तथा शुभकामनाएं देते हैं. पराजय उनके दिल में कभी भी कड़वाहट नहीं घोल पाती.
भाषा पर पकड़ महत्वपूर्ण
फेडरर ने 17 देशों में अपने टाइटल जीते हैं, इसका अर्थ यह है कि वे दुनिया के कई देशों में घूमते रहते हैं. वे स्विटज़रलैंड और दक्षिण अफ्रीका की दोहरी नागरिकता रखते हैं और सात भाषाएँ जानते हैं. अंग्रेज़ी, स्विश, स्विश-जर्मन वे अच्छी तरह जानते हैं और इटालियन, स्वीडिश और स्पैनिश भी बोलते -समझते हैं. मीडिया से बातें करते वक़्त वे स्विटज़रलैंड की स्थानीय बोली भी बोलते हैं और मीडिया तथा लोगों से तादात्म्य बना लेते हैं. लोग कहते हैं कि केवल एक ही भाषा के महारत रखते हैं और वह है कोर्ट में टेनिस की भाषा!
निरंतर बढ़त ज़रूरी
जीत के लिए फेडरर का फार्मूला यही है कि अपने प्रतिस्पर्धी से लगातार बढ़त बनाये रखो. यही कामयाबी का श्रेष्ठतम और पक्का रास्ता है. अगर खेल में आपको पहले लीड मिल गयी हो तो उसे और आगे बढ़ा लेना चाहिए और उस बढ़त को इतना आगे ले जाना चाहिए कि खेल के उत्कर्ष पर वह बढ़त ऐसी हो जाए कि उसका मुकाबला नामुमकिन हो जाए. खेल का यह सूत्र निजी जीवन की प्रतिस्पर्धाओं में भी अपनाया जाना चाहिए. उन्होंने अपने लिए कोच की सेवाएं नहीं लीं. शायद इसीलिये वे इतने निश्छल होकर खेल पाते हैं क्योंकि उन्हें किसी को सफाई देने की ज़रुरत नहीं होती.
परिवार को अव्वल रखें
फेडरर के लिए अपना परिवार हमेशा महत्वपूर्ण रह है. वे अपनी पत्नी मिर्का को बहुत मानते हैं. वे 2000 में सिडनी ओलिम्पिक्स के दौरान मिले थे और बाद में दोनों ने ब्याह रचा लिया. खेल के दौरान गंभीर चोट लगने के कारण मिर्का को खेल छोड़ देना पड़ा, लेकिन मिर्का ने फेडरर के खेल को विकसित करने में काफी मदद की. मिर्का मैच के दौरान दर्शकों के बीच मौजूद रहतीं और फेडरर की हौसला अफजाई करतीं. फेडरर को मानसिक तौर पर शांत चित्त रखने में मिर्का की बड़ी भूमिका है, जिसके लिए फेडरर उन्हें सबके सामने धन्यवाद करने से नहीं चूकते.
मददगार रवैया अपनाएं
रोजर फेडरर की आय करीब सवा दो अरब रुपये के बराबर थी. यह कमाई उन्होंने खेल की पुरस्कार राशि की थी. दुनिया के अनेक खेल सामग्री उत्पादनों के विज्ञापन से भी उन्हें करोड़ों की आय होती है. उन्होंने इस कमाई को सही तरीके से खर्चने के लिए भी उन्होंने व्यवस्था कर ली है और रोजर फेडरर फाउंडेशन के मार्फ़त अविकसित देशों के बच्चों के कल्याण के लिए कार्य करते हैं. हाल ही वे इथियोपिया के बच्चों के बीच जाकर टेबल टेनिस खेलते पाए गए. वे अपनी संस्था के जरिये कई तरीकों से धन संग्रह भी करते हैं और मदद करने भी जाते हैं. अक्टूबर में वे शंघाई रोलेक्स मास्टर्स खेलेंगे और फिर स्विश इन्डूर्स, बी एन पी और नवम्बर में बर्कले एटीपी वर्ल्ड टूर. रोजर फेडरर की कामयाबी के सूत्र बेहद सरल और दिलचस्प हैं और उन्होंने शिखर तक का सफ़र कड़ी मेहनत, साफ़ मन और बुलंद हौसलों से किया है.
--प्रकाश हिन्दुस्तानी

(दैनिक हिन्दुस्तान 25 सितम्बर 2011 को प्रकाशित )

Sunday, September 18, 2011

आंतरिक सौन्दर्य से बनीं मिस यूनिवर्स

रविवासरीय हिन्दुस्तान के एडिट पेज पर 18 सितम्बर 2011 को प्रकाशित मेरा कॉलम




भीतरी खूबसूरती से मिला मिस यूनिवर्स का ताज


दुनिया में केवल तीन तरह की स्त्रियाँ होती हैं : सुन्दर, अति सुन्दर और कोई अद्वितीय सुन्दर. अंगोला की 25 वर्षीया लीला लोपेज़ तीसरी श्रेणी की हैं जो हाल ही 2011 की मिस यूनिवर्स चुनी गयीं. 88 दूसरी सुंदरियों को पीछे छोड़ते हुए आंतरिक सौन्दर्य और बुद्धि के बूते उन्होंने 60 वां मिस यूनिवर्स का ताज अपने माथे पर रखवाया. अंगोला की इस अश्वेत सुन्दरी ने साबित कर दिखाया कि असली सौन्दर्य त्वचा का रंग, चेहरा और शारीरिक अंकगणित नहीं, उससे कहीं बढ़कर अंतर्मन में है. अंगोला की निवासी और ब्रिटेन में व्यवसाय प्रबंधन की छात्रा लीला लोपेज़ की सफलता के कुछ सूत्र:
सौन्दर्य के मापदंडों को चुनौती
मिस यूनिवर्स स्पर्धा में अंतिम दौर में लीला लोपेज ने सौन्दर्य के मापदंडों को ही चुनौती देने का हौसला दिखाया और मिस यूनिवर्स का ताज झटक लिया. एक निर्णायक ने जब उनसे पूछा था कि यदि संभव हो तो वह अपने रंग - रूप में किस तरह का बदलाव करना चाहेंगी? प्रश्नकर्ता का आशय रहा होगा कि शायद लीला अपने अश्वेत होने पर श्यापा करेंगी और कुछ कहेंगी, लेकिन उनके जवाब ने निर्णायकों के चुप करा दिया क्योंकि उनका जवाब था --ऊपरवाले ने मुझे जैसा बनाया है मैं वैसी ही बहुत खुश हूँ. मैं कोई भी ऊपरी बदलाव नहीं चाहती. मैं खुद को एक ऐसी ही स्त्री के रूप में देखना चाहती हूँ जो भीतर से सुन्दर हो. लीला के जवाब ने सौन्दर्य के तयशुदा मापदंडों पर नयी समझ का मार्ग खोल दिया और आंतरिक सुन्दरता की तरफ देखने पर बल दिया.
असली सौन्दर्य की पहचान
लीला लोपेज़ अंगोला की पहली युवती हैं जिन्होंने मिस यूनिवर्स का ख़िताब जीता है.(भारत की सुष्मिता सेन 1994 में और लारा दत्ता 2000 में यह ताज जीत चुकी हैं.).जब वे मिस अंगोला चुनी गयीं थीं, तब 'मिस फोटोजनिक' का ख़िताब भी उन्हें ही मिला था. मिस यूनिवर्स स्पर्धा में शामिल कई युवतियों का कद लीला के समान ही पांच फीट दस इंच का था लेकिन लीला को पता था कि यह केवल शारीरिक सौन्दर्य की प्रतियोगिता नहीं है और इसमें इंटरव्यू का एक दौर भी है. सौन्दर्य को समझाने के लिए उन्होंने बुद्धि और ह्रदय को बराबरी के स्थान पर रखा और इन्हीं के भरोसे अपने इंटरव्यू का सामना किया. इस तरह लीला ने उन लोगों को असली सौन्दर्य की पहचान करा दी जो त्वचा के रंग को सुन्दरता से जोड़कर देखते हैं.
नकलीपन से दूरी
लीला लोपेज़ ने कभी भी किसी भी तरह की कॉस्मेटिक सर्जरी नहीं कराई. ना ही नकली बत्तीसी का सहारा लिया, जैसा कई प्रतियोगी करती रही है. उनका मानना है कि यदि आप खुद अपनी सुन्दरता को नहीं देखेंगे तो दूसरा कोई कैसे देखेगा? अगर आप नकली चीज़ों का उपयोग करके खुद को सुन्दर दिखाना चाहते हैं तो यह एक तरह का धोखा होगा. कोई भी दूसरा इतना नासमझ नहीं है कि आपके नकलीपन के भुलावे में आ जाये. जब आप एक नकली रूप धरते हैं तो फिर वही नकलीपन आपके आचार व्यवहार और रोज़मर्रा के जीवन का अंग बनाने लगता है और आप असली चीज़ों से दूर होने लगते है.
धूप, नींद और पानी
आज लोग कृत्रिम प्रसाधनों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और सौन्दर्य के असली प्रसाधनों को भूलते जा रहे हैं. लीला लोपेज़ के अनुसार सौन्दर्य के असली प्रसाधन हमें प्रकृति से मुफ्त में मिल रहे हैं और वे हैं धूप, नींद और पीने का पानी. लीला का ब्यूटी सीक्रेट उनका यही फार्मूला है -- धूप और सूरज की रोशनी से दूर मत भागो, हमेशा पूरी नींद लो और पूरे दिन भरपूर पानी पीयो. इस बारे में ब्यूटी क्लिनिक चलानेवाले चाहे जो कहें, सबसे बड़ा सौन्दर्य का स्रोत तो प्रकृति है और वह हमें पूरी ज़िन्दगी सारे सौन्दर्य प्रसाधन मुफ्त में उपलब्ध कराती है. लीला लोपेज़ रोजाना सात से आठ घंटे सोती हैं और भरपूर पानी पीती हैं. ये बातें मुझे तरोताज़ा दिखने में मदद करती हैं. धूप सेंकना और भरपूर स्नान करना भी उन्हें पसंद है.
परिवार के आदर्श न भूलें
आप चाहे जहाँ भी पहुँच जाएँ, कितनी भी ऊंचाई को छू लें, लेकिन कभी अपने परिवार के आदर्शों को न भूलें. आप जिस दुनिया के सदस्य हैं, परिवार उसकी पहली कड़ी है. अगर परिवार को महत्व दिया जाए तो आपके तनाव पल में ही दूर हो जाते हैं और परिवार के आदर्शों पर चलकर आप अपनों के बीच तो जगह बना ही लेते हैं नए लक्ष्यों को भी आसानी से पा सकते हैं. लीला का परिवार समाजसेवा के अनेक कार्यों में लगा है और अंगोला के गरीब बच्चों की मदद करने के साथ ही बीमारों को इलाज के लिए धनराशि उपलब्ध कराता है. लीला भी एड्स पीड़ितों को इलाज के लिए धन मुहैया करने का कम करती है. अनेक एनजीओ से जुड़कर वे यह कार्य करती हैं और इसे अपना कर्तव्य समझती हैं.
दोस्तानापन और निश्छल व्यवहार
मिस यूनिवर्स चयन के गलाकाट स्पर्धा के माहौल में लीला की सह प्रतियोगी उनकी तारीफ करते नहीं थकतीं कि पूरीप्रतियोगिता के दौरान उनका व्यवहार पूरी तरह से दोस्ताना बना रहा. किसी भी प्रतियोगी से खौफ खाए बिना वे मित्रवत बनी रहीं, और इसी का नतीजा था कि उनके मिस यूनिवर्स बनने की घोषणा होते ही बहुत सी प्रतियोगियों ने उन्हें मंच पर ही घेर लिया. लीला का कहना है कि जब भी कभी आप किसी के प्रति कटु होते हैं तब अपना ही चैन गंवाते हैं जो किसी भी दशा में अच्छा नहीं कहा जा सकता. इसका एक और लाभ यह है कि अच्छे बर्ताव के बदले आपको भी अच्छा बर्ताव मिलता है.
स्वास्थ्य ही सौन्दर्य है
लीला लोपेज़ अपनी कामयाबी का श्रेय अपनी सेहत को देना भी नहीं भूलतीं. उनका मानना है कि केवल स्वस्थ व्यक्ति ही सुन्दर हो सकता है. अगर कोई बीमार हो तो सुन्दर कैसे लगेगा? वे उन सैकड़ों खिलाड़ियों की तारीफ करती हैं जो अपने सौन्दर्य के लिए कुछ भी नहीं करती, लेकिन फिर भी बेहद खूबसूरत नज़र आती हैं. खेलने से शरीर स्वस्थ रहता है और स्वस्थ इंसान अपनाप ही सुन्दर नज़र आता है. उन्हें स्विमिंग का शौक है और कहती हैं कि यह भी प्रकृति का वरदान है कि इंसान पानी में तैर सकता है.
-- प्रकाश हिन्दुस्तानी


(दैनिक हिंदुस्तान 18 सितम्बर 2011 को प्रकाशित)

Sunday, September 11, 2011

दस साल बाद 9 / 11 की याद

रविवासरीय हिन्दुस्तान के एडिट पेज पर 11 सितम्बर 2011 को प्रकाशित मेरा कॉलम




फौलादी इरादों की कामयाबी

रूडी (रुडोल्फ विलियम लुइस) गुलियानी ने न्यूयॉर्क के मेयर रहते हुए 11 सितम्बर 2001 के बाद हालात को अच्छी तरह से संभाला, वरना न्यू यॉर्क शहर की मुश्किलें और बढ़ जातीं. उन्होंने आतंकी हमले से सहमे शहर के जख्मों पर मरहम और इरादों को फौलाद की परत दी. उन्होंने मेयर के सीमित अधिकारों और असीमित हौसलों से काम किया. उससे उनका कद बढ़ गया और वे राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरे. न्यूयॉर्क पर हमले के पहले अप्रैल 2000 में 55 वर्षीय गुलियानी को पता चला कि उन्हें प्रारंभिक अवस्था का प्रोस्टेट कैंसर है और उन्हें नेओअडजुवेंट लुप्रोनहार्मोनल थैरेपी और फिर एक्सटर्नल बीम रेडियोथैरेपी लेनी होगी. वे अपने कैंसर का इलाज करा रहे थे, तभी आतंकवाद के कैंसर ने न्यू यार्क शहर पर हमला कर दिया. उन्होंने अपनी बीमारी और न्यूयार्क शहर के जख्मों से राहत दिलाने की मज़बूत कोशिश की. रूडी गुलियानी के हौसले और सफलता के कुछ सूत्र :
'मेयर ऑफ़ द वर्ल्ड'
जिस दिन न्यूयॉर्क पर आतंकी हमला हुआ, गुलियानी अपनी कैंसर की बीमारी से पूरी तरह उबरे नहीं थे और परिवार के मोर्चे पर वे तनावग्रस्त थे. न्यू यॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद वे अपने स्टाफ,दमकलों, नागरिकों और पत्रकारों के साथ तत्काल पीड़ितों की मदद करने पहुंचे. उस वक़्त वहां धुल और धुंएँ के गुबार उठ रहे थे, वे जलती हुई बिल्डिंग के अंदर घायलों की मदद के लिए पहुंचे और वहां पर पूरे दिन और पूरी रात डटे रहे, एक मिनिट के लिए भी आराम करने नहीं रुके.मौके पर ही सुरक्षा और बचाव के सैकड़ों फैसले लेने थे, उन्होंने तत्काल फैसले किये और राहत कार्य शुरू किये. 'टाइम' पत्रिका ने उन्हें २००१ का 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' चुना और शीर्षक दिया 'मेयर ऑफ़ द वर्ल्ड'.
त्वरित मदद की तैयारी
न्यूयॉर्क पर आतंकी हमले के बाद अगले दिन सुबह करीब तीन बजे पहली बार टीवी देखा. उन्होंने टीवी यह सोचकर चालू रखा कि कहीं कोई और आतंकी हमला ना हो जाए. जब जागना असंभव हो गया तब वे धूल और कीचड़ से सने जूते अपने बिस्तर के पास ही रखकर लेटे, इस तैयारी से कि अगर ज़रुरत पड़े तो मिनट भर में ही मदद के लिए दौड़ सकें. मुश्किल दौर में उन्हें नींद नहीं आई तो उन्होंने राय जेन्किन्स की लिखी चर्ची की जीवनी में दूसरे विश्वयुद्ध से सम्बंधित अध्याय पढ़ना शुरू कर दिया. जिस बात ने उन्हें प्रभावित किया, वह थी चर्चिल का भाषण --मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है सिवाय खून, आंसू और पसीने के. गुलियानी ने उस वक़्त की तुलना विश्व युद्ध के दिनों से करते हुए अपनी तैयारी कर ली थी.
पुनर्निर्माण का हौसला
गुलियानी ने १९४० के लन्दन को याद किया, जब युद्ध की विभीषिका के बीच वहां पुनर्निर्माण का दौर शुरू हुआ था. बर्बादी के उस मंज़र में उन्होंने कल्पना कर ली कि न्यूयॉर्क को फिर से उसके उसी दौर में कैसे लौटाया जाए. लोगों के हौसलों को बनाये रखने में क्या क्या मददगार हो सकता है. उनके हर वाक्य ने लोगों को हौसला दिया -- ''हमें कोई भी हमला आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता...हम फिर नया न्यूयॉर्क बनायेंगे, जो पहले से भी ज्यादा मज़बूत और शानदार होगा...हम दुनिया को बता देंगे कि हमारे हौसलों को कोई तोड़ नहीं सकता...हम दुनिया के सामने मिसाल रखेंगे.'' उनकी इस हौसला अफजाई का एक एक लफ्ज़ लोगों के दिलों पर राज करने लगा और लोगों ने गुलियानी को अपना असली नेता माना.
हर दिन उत्साह बरकरार
11 सितम्बर 2001 गुलियानी के लिए फिसलन का दौर शुरू होने का दिन था जो उनके लिए शीर्ष पर जाने का दिन बना. दो बार मेयर रहने के बाद 11 सितम्बर को ही न्यूयॉर्क में नए मेयर के चुनाव के लिए प्रारम्भिक वोट डलने थे और गुलियानी भूतपूर्व मेयर होने की कगार पर थे, लेकिन उन्होंने अपने काम से 'भूतपूर्व' को 'अभूतपूर्व' में तब्दील कर दिया. मेयर के पद पर वे हर दिन संघर्ष करते रहे, कभी अपने राजनैतिक विरोधियों से, कभी खुद के अधीनस्थ सहयोगियों से, कभी मीडिया से, कभी सडकों पर कब्ज़ा जमाये लोगों से. मेयर के रूप में उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि अब वे इस पद से हटने ही वाले हैं.
प्रशासन पर पकड़
मेयर के रूप में गुलियानी की प्रशासन पर मज़बूत पकड़ रही. उनके कार्यकाल में पुलिस की व्यवस्था चक चौबंद रही. अपराधों में एक -तिहाई कमी हुई. आर्थिक सुधार के लिए उन्होंने ऐसे करीब सात लाख लोगों की पहचान की जो हकदार नहीं होते हुए भी सरकारी सेवा का लाभ ले रहे थे. अपराधों में कमी और सेवा में सुधार से न्यूयॉर्क में संपत्तियों के दाम बढ़ गए थे.जनता कि शिकायतों पर तत्काल ध्यान दिया जाने लगा था और लोगों में यह भाव वापस आने लगा था कि वे एक 'वैश्विक शहर' के बाशिंदे है.
सिद्धातों से समझौता नहीं
अपने सिद्धांतों से समझौता गुलियानी को मंज़ूर नहीं रहा. न्यूयॉर्क के पुनर्निर्माण के लिए सउदी अरब के प्रिंस वालिद बिल तलाल का एक करोड़ डॉलर का चेक उन्होंने इस बात पर लौटा दिया कि प्रिंस ने इस्राईल का समर्थन नहीं करने की शर्त रख दी थी. अपने सिद्धांतों पर अड़े रहने के कारण उन्होंने मेयर रहते कई अफसरों को हटा दिया था. उनका कहना है कि आज का न्यूयॉर्क दस साल पुराने शहर से ज्यादा सशक्त और गरिमामय है. वे मानते हैं कि अगर लोगों को बराक ओबामा और उनके बीच चुनाव करना हो तो लोग ओबामा की जगह उन्हें चुनना पसंद करेंगे. अपनी सेहत, ख़राब वैवाहिक रिश्ते, बच्चों के कारण विवादों में रहने के बावजूद गुलियानी आम तौर पर शांत रहते हैं और यह बात पादरी पर छोड़ते हैं कि मैं कैसा कैथलिक हूँ.
प्रकाश हिन्दुस्तानी


(दैनिक हिंदुस्तान के एडिट पेज पर 11 सितम्बर 2011 को प्रकाशित)

Sunday, September 04, 2011

कलात्मक खेल ने बनाया स्टार



रविवासरीय हिन्दुस्तान, ४ सितंबर २०११ के एडिट पेज पर मेरा कॉलम



कलात्मक खेल ने बनाया स्टार

लियोनेल आंद्रेस मेसी अर्जेंटीना फ़ुटबाल टीम के स्टार स्ट्राइकर हैं, जर्सी नबर टेन. उम्र 24 साल, लेकिन दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फुटबाल खिलाड़ियों में नाम शुमार है. 21 की उम्र में ही वे 'फीफा वर्ल्ड प्लेयर ऑफ़ ईयर' का ख़िताब पा चुके हैं. डिएगो मेराडोना उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुके हैं. फुटबालप्रेमियों का एक बड़ा वर्ग उन्हें पेले से बेहतर खिलाड़ी मानता है.फुटबाल के दीवाने कहते हैं कि मेसी खिलाड़ी नहीं,कलाकार हैं; क्योंकि वे फुटबाल खेलते नहीं, बल्कि मैदान में फ़ुटबाल से कविता लिखते हैं, चित्रकारी करते हैं, या संगीत की तान छेड़ते लगते हैं. उनके खेल में नशा पैदा करने की ताकत है. वे फ़ुटबाल मैदान के जादूगर हैं और वे मैदान में दर्शकों और साथी खिलाड़ियों को भी अपने खेल से विस्मित कर देते है.भारत भी उनके दीवानों का बड़ा वर्ग है. फेसबुक पर जब उनके नाम का अधिकारिक पेज बनाया गया तो केवल एक दिन में सत्तर लाख लोग उस से जुड़े, जो एक रिकार्ड है. मैसी के जादू और उनकी सफलता के कुछ सूत्र :
तकदीर से मुकाबला
मेसी अपनी तकदीर से मुकाबला करके इस मुकाम पर पहुंचे हैं. अर्जेंटीना के स्टील मिल मजदूर और सफाईकर्मी मां की चार संतानों में से एक मेसी ने पाँच साल के होते ही फुटबाल का खेल सीखना शुरू कर दिया था. 11 की उम्र में वे ग्रंडोली क्लब की तरफ से खेलने लगे थे लेकिन उनके पिता को पता चला कि मेसी को ग्रोथ हार्मोन डिफिशियंसी है और इलाज का खर्च है करीब 900 डॉलर हर माह. एक फुटबाल क्लब के संचालक मैसी की प्रतिभा से वाकिफ थे, उन्होंने मदद के पहले मैसी का खेल देखा और कलब की तरफ से एक एग्रीमेंट तैयार किया. उस एग्रीमेंट का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि वह टॉयलेट पेपर पर लिखा गया था. इस तरह अपनी तकदीर से मैसी की पहले जंग शुरू हुई.
फुटबाल ही इबादत है
मेसी के रोम रोम में फुटबाल है. लगभग सभी महान खिलाड़ी केवल अपने पैरों से नहीं, अपने रोम रोम से फुटबाल खेलते हैं. पैर, टखना, घुटना, सिर सब फुटबाल के लिए होता है, लेकिन मेसी के खेल में खास बात होती है बिजली की तेज़ी से कौंधता उनका दिमाग और उससे संचालित उनका शरीर जो अनपेक्षित को अपेक्षित कर दिखता है और मैदान में मौजूद हजारों लोग बार बार जोश और जुनून से भर जाते हैं. फुटबाल के प्रति ऐसी प्रतिबद्धता देखने के मौके बिरले ही मिल पाते है.
ख़ास ट्रिक्स का इस्तेमाल
हर खिलाड़ी की अपनी ख़ास ट्रिक्स होती है, इसमें रचनात्मकता, अलग अंदाज़ और मनोरंजन का पुट भी होता है और सबसे अहम् बात है यह खेल की जीत में बड़ा योगदान देती हैं. दूसरे खिलाड़ियों की ट्रिक्स को समझकर उन्हें उलझाना और अपनी खास ट्रिक्स के जरिये संकट के दौर में बाहर आ जाने की यह कला ही फ़ुटबाल को कलात्मक बना देती है. होपिंग, अल्टरनेटिव होपिंग, नी लेमंस, नी होपिंग, फ्लिप, नो टच बेक, नी अल्टरनेटिव जैसी ट्रिक्स की भी दर्ज़नों शैलियाँ मैसी ने विकसित कर ली हैं, जिन्हें केवल देखकर मज़ा लिया जा सकता है, लिखा नहीं जा सकता.
परिपूर्णता के साथ खेलें
मैसी की जर्सी का नंबर दस है और वे खेल में भी परफैक्ट टेन हैं. किसी भी खिलाड़ी के लिए यह ग्रेड पाना आसान नहीं होता. मैदान में उनका फुटबाल पास करने का तरीका बहुत तेज़ होता है. वे आम तौर पर इतनी तेजी से पास देते हैं कि सामनेवाली टीम का खिलाड़ी उसे रोक ही नहीं पाता. विरोधी टीम का खिलाड़ी फुटबाल को लेकर किस किस तरफ जा सकता है, इसका अंदाज़ वे लगा लेते हैं और आगे की रणनीति बना लेते हैं, यह सब इतनी तेज़ी से होता है कि सामनेवाला खिलाड़ी भौंचक रह जाता है. उन्हें अपनी प्रतिभा पर तो भरोसा होता ही है, स्पर्धी खिलाड़ी की गलतियों का लाभ लेने की कला पर भी विश्वास रहता है.
छोटा कद, बड़े इरादे
मैसी केवल पांच फुट सात इंच ऊँचे है. जापान की फुटबाल टीम में भी इस कद से लम्बे खिलाड़ी हैं. छोटे कद को उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया और अपनी बिजली की गति और खेल कौशल से इस प्राकृतिक कमी को छुपा लिया. वे हमेश इसी कोशिश में रहते हैं कि भले ही उनका रिकार्ड ना बने, लेकिन टीम जीतना चाहिए. गोल के पास जाने के बाद भी वे खुद गोल मारने का लालच नहीं करते और निर्णायक गोल बनने के लिए पास देने से नहीं चूकते. बीते साल फीफा वर्ल्ड कप के चार मैचों में वे खुद एक भी गोल नहीं मार सके, लेकिन उनके निर्णायक पास के कारण उनकी टीम के दूसरे खिलाड़ियों को गोल बनाने के मौके मिले.
अच्छा खेलकर जीतें
मैसी का लक्ष्य केवल जीतना नहीं, अच्छा खेलना और अच्छा जीतना होता है. वे जानते है कि फ़ुटबाल टीम का खेल है और इसीलिये वे अपनी टीम के सदस्यों को पूरा तवज्जो देते हैं. अर्जेन्टीना की टीम में मैसी के अलावा जेवियर मैस्केरानो, एजेंलो डी मारिया, कार्लोस तेवेज भी अच्छे खिलाड़ी माने जाते हैं और ये चरों खिलाड़ी किसी भी टीम की नक् में दम करने के लिए बड़ी शक्ति हैं. इंटरपासिंग के मामले में अर्जेंटीना दुनिया की नंबर एक टीम है। टीम का मिडफील्ड ताकतवर है और मैसी सबसे जानदार खिलाड़ी
नेतृत्व क्षमता विकसित करें
मैसी ने अपने भीतर नेतृत्व के ऐसे गुण विकसित कर लिए हैं कि कई बार टीम के कोच की बजाय उनकी बातें सुनने को ज्यादा पसंद करती है. उनके साथी खिलाड़ियों को विश्वास में लेने की कला उनमें खूब है. मैसी को ड्रिब्लिंग में उस्तादी है जो उन्होंने अपने साथी खिलाड़ियों को भी सिखाने में सफलता पाई है. स्ट्राइकर के वे रूप में बेहद आक्रामक खिलाड़ी हैं और उनका गज़ब का फुटवर्क है. वे पास लेने और देने में माहिर हैं और निशाने पर गोल साधने में चुस्त. वे अपना हर हुनर साथी खिलाड़ियों के साथ शेयर करना टीम के हित में मानते हैं.
सामाजिक कार्य भी ज़रूरी
मैसी ने 2007 में लियो मैसी फाउंडेशन की स्थापना की थी जिसका मकसद है जरूरतमंद बच्चों को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना.उनका कहना है कि अगर आप मशहूर हैं तो दूसरों की मदद करना आसान हो जाता है. यह एक जरिया है जिससे आप उपकार का बदला चुकाने की कोशिश करते हैं. मैसी यूनीसेफ के सद्भावना राजदूत के रूप में भी कार्य कर रहे हैं. प्रो इव्योल्युशन सॉकर के वीडियो गेम में उनकी तस्वीर कवर पर ली गयी है और उनके खेलतर कार्यों में फुटबाल का खेल प्रोत्साहित करना शामिल है. अपने आभामंडल से उन्होंने साबित कर दिया कि भारत में क्रिकेट ही नहीं, फुटबाल का जादू भी चलता है.
प्रकाश हिन्दुस्तानी

(हिन्दुस्तान, ४ सितंबर २०११ को प्रकाशित)