Saturday, June 27, 2015

सिंहस्थ के पहले उज्जैन बन जाएगा स्मार्ट सिटी

सिंहस्थ 2016  (4)





सिंहस्थ 2016 इक्कीसवीं सदी में विश्व का सबसे बड़ा और सफल आयोजन होने वाला है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान चाहते है कि सिंहस्थ के पहले उज्जैन  स्मार्ट सिटी के रूप में तैयार हो जाए, ताकि यहां आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। स्मार्ट सिटी के पैमाने पर उज्जैन शहर को संवारा जा रहा है। भले ही घोषित तौर पर उज्जैन को स्मार्ट सिटी न बताया जाए, लेकिन तैयारियां उसी को ध्यान में रखकर की जा रही है। सिंहस्थ के दौरान आने वाले श्रद्धालुओं को स्वास्थ्य, परिवहन, पर्यावरण, जल संरक्षण, नागरिक सुविधाओं और अत्याधुनिक तकनीक का संगम देखने को मिलेगा। सिंहस्थ के लिए आवश्यक एक-एक सुविधा का ध्यान रखा जा रहा है। कोशिश की जा रही है कि सिंहस्थ से लौटकर हर श्रद्धालु अपने मन में उज्जैन को कभी भुला नहीं पाए। 




उज्जैन आने वाले श्रद्धालुओं का स्वागत हाईटैक तरीके से होगा, जब उन्हें उज्जैन में प्रवेश करते ही मोबाइल पर स्वागत संदेश पढ़ने को मिलेगा। उज्जैन के सिंहस्थ क्षेत्र में आने वाले सभी मंदिरों, घाटो, विश्राम स्थलों और अखाड़ों की जानकारी उन्हें विशेष मोबाइल एप से मिल जाएगी। पैसे के लिए उन्हें बैंक तक नहीं जाना पड़ेगा, बल्कि चलित एटीएम सेवा का लाभ वे ले सकेंगे। विदेशी मुद्रा विनियम के लिए भी उन्हें कहीं भटकना नहीं पड़ेगा। मोबाइल की बैटरी चार्ज करने जैसे छोटे से छोटे पहलु का भी ध्यान रखा जा रहा है। मोबाइल पर ही श्रद्धालु सिंहस्थ से जुड़ी तमाम जानकारियां सिंहस्थ की वेबसाइट पर पढ़ सकेंगे। 

उज्जैन में पहले से ही अनेक होटल और धर्मशालाएं मौजूद है। इस बार अनेक नए होटल श्रद्धालुओं के लिए तैयार मिलेंगे। मध्यप्रदेश का पर्यटन विकास निगम श्रद्धालुओं के लिए स्विस कॉटेजों का एक अलग नगर ही बसाने जा रहा है। इन कॉटेजेस में किसी स्टार होटल की सुविधाओं की तरह सुविधाएं होंगी। अपनी गाड़ियों से आने वाले लोगों के लिए स्थायी पेट्रोल पम्प तो हैं ही, साथ में करीब 12 अस्थायी पेट्रोल पम्प भी खोले जा रहे हैं। उज्जैन में आने वाले अखाड़ों के लिए पानी की पाइप लाइन डाली जा रही है। अखाड़ों को बिजली, गैस, सड़क आदि की सुविधाएं भी उपलब्ध रहेगी। स़ड़कों का जाल बिछाया जा रहा है, जिससे मेला क्षेत्र में कहीं भी आना-जाना आसान होगा। पुल और ओवरब्रिज भी बनाए जा रहे है और कोशिश की जा रही है कि उज्जैन का संपर्वâ इंदौर-भोपाल और आगर जैसे मार्गों से सुविधाजनक बन जाए। 

श्रद्धालुओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा। अस्पताल में बिस्तरों की संख्या बढ़ाई जा रही है। चिकित्सकों की लम्बी-चौड़ी फौज सिंहस्थ के दौरान मौजूद रहेगी। व्यवस्था यहां तक की जा रही है कि अगर किसी श्रद्धालु गर्भवती महिला को प्रजनन की नौबत आए तब भी उन्हें कोई दिक्कत नहीं हो। आईसीयू, हाईरिस्क वार्ड, रिकवरी रूम और विशेष ओपीडी तैयार की जा रही है। उज्जैन में एक नया अस्पताल बन रहा है, जिसमें 450 बिस्तरों की व्यवस्था है, लेकिन सिंहस्थ के लिए वहां 1800 अतिरिक्त पेशेंट के इलाज की व्यवस्था भी रहेगी। सिंहस्थ के दौरान उज्जैन में चौबीस घंटे बिजली रहेगी, चौबीस घंटे जल प्रदाय होगा और पुलिस के इंतजाम भी इस तरह होंगे कि किसी भी क्षण जरूरत पड़ने पर पुलिस मौजूद रहे। 

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की कोशिश है कि उज्जैन आने वाला कोई भी व्यक्ति यादगार अनुभव लेकर जाए। उसे किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हो। इतना ही नहीं, सिंहस्थ में आने वाले धर्मगुरुओं, अखाड़ों और भक्तों के लिए भी बेहतर सुविधाएं जुटाई जा रही है। 2004 के सिंहस्थ के मुकाबले चार गुना ज्यादा जगह धार्मिक प्रयोजनों के लिए रखी जा रही है। अखाड़ों को पंडाल बनाने के लिए आठ सौ वर्गमीटर या उससे बड़े प्लॉट आवंटित किए जा रहे है। बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को सिंहस्थ में किसी तरह की परेशानी न हो, इसका भी ध्यान रखा जा रहा है। सफाई और सुरक्षा ऐतिहासिक रहेगी। इसकी भी कोशिश की जा रही है। 
--प्रकाश हिन्दुस्तानी

Monday, June 22, 2015

विचारों का महाकुंभ भी


सिंहस्थ 2016 (3)                          

 मानव सभ्यता से जुड़े लगभग हर क्षेत्र के विषय पर इस विचार कुंभ में चर्चा होगी। धर्म का हो या राजनीतिक का हो या मानवीय सभ्यता  के विकास का मानव सभ्यता से जुड़े लगभग हर क्षेत्र के विषय पर इस विचार कुंभ में चर्चा होगी।                                           
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सिंहस्थ 2016 एक तरह से अनूठा होने जा रहा है। यह सिंहस्थ केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं एक वैचारिक आयोजन भी होगा। इतिहास में कभी भी सिंहस्थ पर इस तरह वैचारिक आयोजन नहीं हुए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंहस्थ के मौके पर होने वाले वैचारिक कुंभ की चर्चाओं को अंतिम रूप दे दिया है। 


मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मानना है कि 12 साल में एक बार होने वाले विश्व के इस सबसे बड़े मेले का उपयोग केवल धार्मिक पर्यटन के लिए नहीं, वैचारिक क्रांति के लिए भी होना चाहिए। दुनिया में होने वाले हर परिवर्तन की शुरुआत विचारों से ही होती है और सिंहस्थ के मौके पर जब करोड़ों लोग एक ही जगह आ रहे हो तब उन करोड़ों दिमागों को उद्वेलित कर जनजागृति का शंखनाद करना एक अच्छी शुरुआत कहीं जा सकती है। 

सिंहस्थ पर होने वाले वैचारिक कुंभ में जिन विषयों पर चर्चा होगी, उनके बारे में धर्मगुरुओं, साधुु-महात्माओं, बुद्धिजीवियों आदि से चर्चा हो चुकी है। इस सिंहस्थ पर कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के परिसंवाद, चर्चाएं, गोष्ठियां आदि होंगी। दुनियाभर से आए श्रद्धालु इन बौद्धिक चर्चाओं का लाभ ले सकेंगे। इस तरह विचारों की यह गंगोत्री पूरी दुनिया में फैलेगी। मानव सभ्यता से जुड़े लगभग हर क्षेत्र के विषय पर इस विचार कुंभ में चर्चा होगी। चाहे वह विषय धर्म का हो या राजनीतिक विज्ञान का हो या मानवीय सभ्यता के विकास का। समाज शास्त्र से संबंधित विषय हो या बाजार की अर्थव्यवस्था से जुड़ा, समाज के बदलते मूल्यों की चर्चा भी होगी और अतीत के शासत मूल्यों पर भी चिंतन होगा। 

सिंहस्थ पर होने वाले इस वैचारिक कुंभ में मानवीय मूल्यों की महत्ता बार-बार परिभाषित की जाएगी। चाहे यह वैचारिक मूल्य प्रशासन के क्षेत्र से जुड़े हो या बाजार से। शिक्षा में मूल्यों के महत्व पर और स्वास्थ्य चेतना के क्षेत्र में मूल्य आधारित सिद्धांतों पर भी चर्चा होगी। मीडिया में मूल्यों पर भी आयोजन किए जाएंगे। पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर भी अलग-अलग चर्चा सत्र होंगे, जिनमें धरती को सुरक्षित और संरक्षित करने, महिला शक्ति की महत्ता को प्रतिपादित करने, शासन चलाने में मूलत: मालवीय सिद्धांतों को बढ़ावा देने जैसे विषयों पर भी चर्चा सत्र होंगे। पूरी दुनिया के विद्वतजन इन चर्चाओं में शिरकत करेंगे। 

सिंहस्थ 2016 तो उज्जैन में आयोजित होगा, लेकिन यह विचार कुंभ केवल उज्जैन तक सीमित नहीं रहेगा। इसके चर्चा सत्र ओंकारेश्वर, महेश्वर, इंदौर, भोपाल और अन्य निकटवर्ती क्षेत्रों में भी आयोजित किए जाएंगे। इनका मूल उद्देश्य यह है कि विचारों का लाभ उन लोगों को भी मिले, जो उज्जैन के अलावा दूसरे शहरों में भी रहते है। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस आयोजन के लिए अनेक शक्तिपीठ और आश्रमों में भी चर्चा कर चुके है। अनेक धर्मगुरुओं ने सिंहस्थ पर होने वाले इस वैचारिक महायज्ञ में आने की स्वीकृति दी है। इस कारण सिंहस्थ 2016 केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं बल्कि संपूर्ण जीवनशैली का आयोजन बन जाएगा। 
--प्रकाश हिन्दुस्तानी

Monday, June 15, 2015

इस सिंहस्थ में प्रवाहमान रहेगी क्षिप्रा

सिंहस्थ 2016 (2)



नर्मदा-क्षिप्रा लिंक योजना से 16 साल पुराना एक सपना साकार हुआ है। कालिदास ने मेघदूत में  सुंदर क्षिप्रा तट का उल्लेख किया था, उसी कल्पना को साकार करने में इससे मदद मिलेगी।



सिंहस्थ 2016 में जब करोड़ों श्रद्धालु उज्जैन में क्षिप्रा में स्नान करने के लिए आएंगे, तब उन्हें प्रवाहमान क्षिप्रा नदी का निर्मल जल मिलेगा। विगत कई दशकों से जल स्तर में भारी गिरावट के कारण क्षिप्रा सतत् प्रवाहमान नहीं रही। भू-जल स्तर भी नीचे गिरकर करीब एक हजार फीट तक हो गया था, लेकिन अब हालात बदल रहे है। नर्मदा-क्षिप्रा लिंक योजना के कारण अब क्षिप्रा नदी में पानी सतत् प्रवाहमान है। इससे न केवल श्रद्धालुओं को लाभ होगा, बल्कि पूरे मालवा क्षेत्र में कृषि क्रांति एक नए रूप में जन्म ले रही है। मालव भूमि गहन गंभीर पग-पग रोटी, डग-डग नीर वाली कहावत वापस चरितार्थ होने जा रही है। क्योंकि नर्मदा क्षिप्रा का मिलन सिर्फ दो नदियों का मिलन नहीं, बल्कि एक अनूठी जल क्रांति है। 

नर्मदा क्षिप्रा मिलन का लाभ वनीकरण के क्षेत्र में होगा। इससे पर्यावरण का संतुलन सुधरेगा। वनों के कारण अच्छी वर्षा की संभावनाएं बढ़ेगी। स्टॉप डेम की संख्या बढ़ जाएगी। जिससे जल स्तर ऊंचा रखने में मदद मिलेगी। पिछले साल तक क्षिप्रा केवल 4-5 महीने ही प्रवाहित रहती थी। अब बारह महीने पानी रहने से क्षिप्रा नदी के पानी का स्तर भी ज्यादा होगा और पानी की शुद्धता भी बेहतर होगी। अब क्षिप्रा नदी में त्रिवेणी से लेकर सिद्धवट साफ पानी उपलब्ध है। श्रद्धालु यहां जल का आचमन भी कर सकते है। इससे उज्जैन आने वाले श्रद्धालुओं के उत्साह में वृद्धि होगी। उज्जैन आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या इससे बढ़ेगी और उज्जैन तीर्थ का महत्व वैश्विक स्तर पर वापस स्थापित होने में मदद मिलेगी। 

नर्मदा क्षिप्रा मिलन से केवल तीर्थयात्री ही लाभांवित नहीं होंगे, बल्कि उज्जैन क्षेत्र में खेती और कारोबार को भी बढ़ावा मिलेगा। उज्जैन इलाके में रबी की फसल का रकबा 4 लाख 32 हजार हेक्टेयर है, लेकिन पानी की कमी के कारण करीब सवा लाख हेक्टेयर में ही खेती हो पाती थी। अब इस संपूर्ण क्षेत्र में खेती करना आसान होगा। खाद्यान और तेलहनों के अलावा सब्जी और फूलों का उत्पादन भी बढ़ेगा। इस पानी का उपयोग उज्जैन का नगर निगम भी कर सकेगा। इसके अलावा करीब 300 गांव के लोग इससे लाभांवित होंगे और देवास जिले को भी इसका हर तरह से लाभ मिलेगा। 

नर्मदा-क्षिप्रा लिंक योजना से 16 साल पुराना एक सपना साकार हुआ है। कवि कालिदास ने मेघदूत में जितने सुंदर क्षिप्रा तट का उल्लेख किया था, उसी कल्पना को साकार करने में इससे मदद मिलेगी। अगले चरण में काली सिंध, पार्वती और गंभीर नदी को भी जोड़ने की योजनाएं है। तीनों चरण पूरे होने के बाद मध्यप्रदेश के सम्पूर्ण मालवा क्षेत्र की स्थिति अलग होगी। पर्यावरण संबंधी चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी। बेहतर पर्यावरण संतुलन का असर यह होगा कि हरा-भरा मध्यप्रदेश सम्पन्न मध्यप्रदेश के रूप में विकास करेगा। 
--प्रकाश हिन्दुस्तानी

Monday, June 08, 2015

'सिंहस्थ 2016' में पहली बार होगा थर्ड जेंडर का स्थान



सिंहस्थ 2016 (1)


ज्जैन में आयोजित होने वाले सिंहस्थ 2016 में पहली बार थर्ड जेंडर को भी सम्मान मिलेगा। इसके पहले किसी भी सिंहस्थ में ऐसी व्यवस्था नहीं थी। इस बार सिंहस्थ में थर्ड जेंडर के सदस्यों के लिए न केवल ठहरने  की व्यवस्था होगी, बल्कि उनके लिए विशेष स्नान का प्रबंध भी होगा। स्नान के पहले उनकी पेशवाई भी  निकलेगी। 

 धर्म नगरी उज्जैन में आयोजित होने वाले सिंहस्थ 2016 में पहली बार थर्ड जेंडर को भी सम्मान मिलेगा। इसके पहले किसी भी सिंहस्थ में ऐसी व्यवस्था नहीं थी। इस बार सिंहस्थ में थर्ड जेंडर के सदस्यों के लिए न केवल ठहरने     की व्यवस्था होगी, बल्कि उनके लिए विशेष स्नान का प्रबंध भी होगा। स्नान के पहले उनकी पेशवाई भी  निकलेगी।  उज्जैन से करीब 12 किलोमीटर दूर हासामपुरा क्षेत्र में एक विशेष आश्रम बनाया जा रहा है। जैन तीर्थ के पास ऋषि अजयदास महाराज द्वारा बनवाया जा रहा यह आश्रम थर्ड जेंडर के लिए आध्यात्मिक गतिविधियों का केन्द्र होगा। एक अनुमान के अनुसार इस सिंहस्थ में करीब 500 किन्नरों के आने की संभावना है। ऋषि अजय दास महाराज के दुनियाभर में हजारों अनुयायी ऐसे है जो थर्ड जेंडर के है। ऋषि अजय दास महाराज का मानना है कि थर्ड जेंडर की समुदाय में हमेशा उपेक्षा की गई है और कोई संत उनके उत्थान के लिए कभी आगे नहीं आता। इसीलिए यह आश्रम बनवाया जा रहा है। 


करीब 2 एकड़ में बनने वाले इस आश्रम में देश-विदेश से आने वाले थर्ड जेंडर के संतों के लिए हर तरह की व्यवस्था जुटाई जा रही है। यहां यज्ञशाला, कछुए की आकृति का महांकाली मंदिर, आध्यात्मिक चेतना केन्द्र, वाचनालय और ए.सी. कक्षों का निर्माण भी किया जा रहा है। यूक्रेन, यूएसए, कनाडा, दुबई आदि स्थानों से अनुयायियों को आमंत्रित किया गया है। 

उज्जैन का सनातन धर्म में विशेष स्थान है। क्योंकि यहां 84 महादेव, 7 सागर, 9 नारायण, 2 शक्तिपीठ और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाराजाधिराज महाकालेश्वर स्वयं विराजित है। भगवान कृष्ण ने उज्जैन में शिक्षा पाई। भगवान श्रीराम खुद अपने पिता का तर्पण करने क्षिप्रा स्थित घाट पर पहुंचे थे, जो आज राम घाट कहलाता है। शास्त्रों में उज्जैन और महाकालेश्वर की महत्ता अनेक तरीके से व्यक्त की गई है। सिंहस्थ के मौके पर कुछ दुर्लभ संयोग होते है, जिनके कारण सिंहस्थ स्थान का योग बढ़ जाता है। इनमें अवंतिका नगरी, वैशाख माह, शुक्ल पक्ष, सिंह राशि में गुरु, तुला राशि में चन्द्र, स्वाति नक्षत्र, पूर्णिमा, व्यातिपात और सोमवार जैसे दस पुण्य प्रयोग होेने के कारण सिंहस्थ पर्व के स्नान पर मोक्ष की प्राप्ति वर्णित की गई है। यों तो सिंहस्थ के आकर्षणों में साधु समाज की उपस्थिति बेहद उल्लेखनीय मानी जाती है। अनेक मतों को मानने वाले साधु यहां आते है और सिंहस्थ के वक्त उज्जैन में निवास करते है। इन साधु समाजों के अलग-अलग अखाड़े और उनके निशान सिंहस्थ में शामिल होते है। इनमें श्री पंच दशनाम जुना अखाड़ा, पंचायती अखाड़ा महानिर्माणी, निरंजनीय अखाड़ा पंचायती, पंचायती अटल अखाड़ा, तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़ा, श्री पंचदशनाम आव्हान अखाड़ा, श्री पंचअग्नी अखाड़ा और श्री उदासीन अखाड़ा प्रमुख है। इन विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत अपने विशिष्ठ निशान जैसे डंका, भगवा ध्वज, भाला, छड़ी, वाघ, हाथी, घोड़े, पालकी आदि निशान लेकर आते है। ऐसा पहली बार होगा कि इस सिंहस्थ में इनके अलावा थर्ड जेंडर के साधु-संतों का आगमन भी होगा। शवाई भी निकलेगी। 
--प्रकाश हिन्दुस्तानी





Thursday, June 04, 2015

ये सेल्फीवाले भी नार्सासिस्ट हैं, आत्मरति में लिप्त

सेल्फी से आगे जहां और भी हैं
पिछले पांच महीनों में तीन देशों की यात्रा का अवसर मिला- भूटान, यूएसए और श्रीलंका। आमतौर पर पर्यटन स्थलों पर जाने का उद्देश्य प्रकृति को निहारना और वहां के जनजीवन को समझना होता है, लेकिन इन तीनों देशों की यात्राओं में सेल्फी टूरिज्म का अलग ही रूप देखने को मिला। 
 कितनी भी सुंदर जगह पर आप हो, मौसम कितना भी अनुकूल हो और लोग कितने भी दिलचस्प हो- अधिकांश लोगों को केवल और केवल सेल्फी में व्यस्त पाया। इन सेल्फी टुरिस्टों को किसी भी ऐतिहासिक या प्राकृतिक सुंदरता वाले स्थान पर न तो प्रकृति से कोई ताल्लुक समझ में आता था और न ही उन्हें उस स्थान की ऐतिहासिक विरासत से कोई मतलब था। किसी भी जगह पहुंचे कि लगे सेल्फी खींचने। अच्छी बात है कि आप किसी विशेष जगह पर गए है और वहां की यादें हमेशा के लिए संजोना चाहते है, लेकिन यह क्या़? लोग तो केवल और केवल सेल्फी में ही दिलचस्पी रखते है। जिनके पास कैमरे है वे दूसरों को कैमरा थमा रहे है और फोटो खींचने का अनुरोध कर रहे है। जिनके मोबाइल में कैमरे है वे अपने हाथ से तरह-तरह की मुख-मुद्रा बनाकर फोटो खींच रहे है। कुछ बुद्धिमान तो ऐसे भी है जिन्होंने सेल्फी स्टिक ले रखी है और उसे में मोबाइल या कैमरा फंसाकर रिमोट से क्लिक करके फोटो खींचने में व्यस्त है। इन सेल्फी स्टिक वालों का हाल तो यह था कि वे अपने साथ उसी गाड़ी में आए अन्य पर्यटकों से भी बातचीत नहीं कर रहे थे। गाड़ी में बैठे है तो कैमरा चालू। कोई भी प्राकृतिक नजारा देखा, ऐतिहासिक जगह देखी कि लगे क्लिक-क्लिक करने या फिर वीडियो उतारने। भाड़ में जाए सहयात्री, भाड़ में जाए सामाजिकता। सबसे बुरा हाल तो इन सेल्फी स्टिक वालों का ही था। ऐसा लगा कि इनकी पूरी यात्रा ही फोटो खींचने के लिए हो रही है। इनमें से 95 प्रतिशत प्रोफेशनल फोटोग्राफर नहीं हैं, लेकिन फोटो खींचने में इनकी कोई कोताही नहीं। हर गंतव्य पर यह अपने कपड़े बदल लेते। ऐसे रंग-बिरंगे कपड़े जिनमें तस्वीर अलग नजर आए। दिलचस्प बात तो यह है कि न्यूयॉर्क और नियाग्रा जैसी जगहों पर जब जहां भीषण ठंड थी और तेज हवाएं चल रही थीं, अनेक सेल्फी टूरिस्ट केवल शर्ट, टी-शर्ट या टॉप में सेल्फी खींचने में मग्न नजर आ रहे थे। सेल्फी हुई कि सी सी करते हुए लगे कोट-स्वेटर ठांसने। किसी भी जगह के 20-25 सेल्फी हुए कि वे लगते हाय तौबा मचाने। अब आगे चलो, यह जगह तो हो गई कवर। 


किसी भी स्थान पर जाकर वहां की तस्वीर खींचना निहायत ही दिलचस्प कार्य है। अपनी यात्रा को चित्रों में संजोना किसे पसंद नहीं। आजीवन आप अपने साथ यह यादें समेट कर ले जा सकते है। अपने लोगों से शेयर कर सकते है। इन तस्वीरों के सहारे अपना एकाकीपन दूर कर सकते है, लेकिन यात्रा का अर्थ केवल सेल्फी ही नहीं होना चाहिए। सेल्फी खींचने के लिए कोई सड़क पर लेटा हुआ है, कोई गधे के कान ऐंठ रहा है, कोई अधनंगा होकर अपने बल्ले दिखा रहा है, कोई रेल की पटरी पर चलने की कोशिश कर रहा है, कोई पानी में छलांग लगाने को उद्यत है, कोई आसमान को बाहों में भर लेना चाहता है। एक से बढ़कर एक सुंदर नजारे लोगों के केन्द्रों और मोबाइल में कैद है और यह सब सोशल मीडिया पर यहां-वहां देखने को भी मिलते है। आपका वक्त है, आपका कैमरा है, सोशल मीडिया पर आपका प्रोफाइल है, आपको पूरा अधिकार है कि आप अपने आप को जैसा चाहें, वैसा पेश करें। इसमें भला किसी को क्या आपत्ति होगी, लेकिन क्या यह उचित नहीं है कि आप जिस जगह पर गए है वहां की महत्ता को भी समझे। अगर आप प्राकृतिक स्थान पर है तो प्रकृति से कुछ बात-चीत करें। अपने मन-मस्तिष्क में उस प्राकृतिक नजारे को याद रखें। यह क्या बात हुई कि यादों को इकट्ठा करने के बहाने आप एक महान सुख से वंचित हो जाएं। सेल्फी अपनी जगह ठीक है, लेकिन अगर आप नियाग्रा के विशालतम झरने को देख रहे हैं तो क्यों नहीं उस क्षण को जी लेते हैं। जैसे बच्चों की तस्वीरें बहुत अच्छी लगती है, लेकिन उन बच्चों से मिलना और बात करना दुनिया की सबसे बड़ी नियामत है, यह बात नहीं भूलनी चाहिए। सेल्फी में भौतिक वस्तुएं तो आ सकती है, आप नाटकीय तरीकों से उन्हें मैनेज करके छवि के रूप में भी सुरक्षित रख सकते है, लेकिन प्रकृति के सबसे बड़े वरदान को आप सेल्फी में कहा सहेज सकते है? क्या आप सेल्फी में वहां की खुशबू, हवाओं के झोंके और मौसम की रंगत सहेज सकते है? इन सब चीजों को भूलकर उसके भौतिक रूप को ही सहेज लेना अच्छा है, लेकिन कोई बहुत बड़ी अक्लमंदी की बात नहीं। दुर्भाग्य से अधिकांश लोगों को यह पता ही नहीं होता कि वे उस क्षण में कितनी अनमोल अवसरों को नासमझी में गंवा रहे हैं।

टीवी चैनलों के कैमरामैन और अखबारों के फोटोग्राफरों की बात समझ में आती है। यह तो उनकी रोजी-रोटी है, लेकिन उन बेचारों को क्या कहें जो दुर्लभ स्थानों पर खड़े होकर सेल्फी के लिए मरे जा रहे हैं। इन सैकड़ों हजारों सेल्फी में से कुछ वे अपने सोशल मीडिया में शेयर कर पाएंगे और बाकि या तो खुद डिलीट कर देंगे या स्पेस के अभाव में उन्हें उसे डिलीट करना पड़ेगा। तकनीकी दिक्कतों के कारण भी कई पर्यटक बाद में दुखी नजर आते है जिनके सारे के सारे डाटा या छवियां करप्ट हो जाती है। ये बेचारे न तो उस क्षण को जी पाए और न ही उनके पास उसकी आभासी छवि बची। अखबारों में आए दिन ऐसी खबरें छपति रहती है कि सेल्फी के चक्कर में पर्यटकों ने जान गंवा दी। कोई पहाड़ की चोटी से फिसल गया, तो कोई नहर में बह गया। किसी को जंगली जानवर ने काट लिया, तो किसी ने सेल्फी के चक्कर में ऐतिहासिक महत्व की कलाकृतियों को ही नष्ट कर दिया। सेल्फी के दीवानों ने हर किसी घटना या दुर्घटना को सेल्फी टूरिज्म के रूप में अपना लिया है। यहां तक कि ज्वालामुखी फटने जैसी घटनाओं के समय भी सेल्फी खींचने का मोह लोग छोड़ नहीं पाते। इन लोगों ने भूकम्प पर्यटन, ज्वालामुखी पर्यटन, सुनामी पर्यटन,  युद्ध पर्यटन जैसी नई व्यावसायिक गतिविधियों को जन्म दे दिया है। कई देशों की सरकारों ने बाकायदा सेल्फी टूरिस्टों को न्यौता देना शुरू कर दिया है। होटलों के विज्ञापन भी इस बात की पुष्टि करते है जैसे सेल्फी समर्स इन बरमुडा। बरमुडा के पर्यटन प्राधिकरण ने तो अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को लुभाने के लिए बाकायदा इश्तिहार जारी कर दिए है। जिसमें कहा गया है कि बरमुडा द्वीप पर आइए और अपनी शानदार सेल्फी का मजा लीजिए। सेल्फी न हुई, आईस्क्रीम हो गई। इतने पर से भी पेट नहीं भरा तो सेल्फी की प्रतियोगिता रख दी। अच्छी सेल्फी खींचने वालों को शराब की बोतलें और होटलों में स्टे फ्री देने का भी वादा किया गया। 

कई लोगों का मानना है कि ज्यादा सेल्फी के चक्कर में पढ़ने वाले लोग एक तरह की आत्मरति में रत रहने वाले लोग होते हैं। यह भी एक तरह का नार्सि़जम ही है। दुनिया में सभी को अपने तरीके से जीने का अधिकार है और सभी अपनी तरह से जी भी रहे है। यहां उनको परिभाषित करने की कोशिश की गई है। उनकी आलोचना की नहीं। दुनिया में पर्यटन खूब बढ़े, लोग घूमे-फिरें और दूसरे लोगों और प्रकृति से तारतम्य बनाए। सेल्फी अपनी जगह है, लेकिन उससे आगे भी जहां और भी हैं। 
कॉपीराइट © 2015 प्रकाश हिन्दुस्तानी

Tuesday, June 02, 2015

श्रीलंका में भारत के प्रति अदावत का रिश्ता

कोलंबो एयरपोर्ट पर उतरने के बाद ऐसा लगा नहीं कि किसी पराए देश की जमीन पर हैं। यह एहसास थोड़ी ही देर रहा। हमारे साथ ही उतरी दो महिला यात्रियों को कस्टम विभाग ने रोक लिया। वे दोनों महिलाएं तमिल भाषी थीं। हमारा वीसा और पासपोर्ट देखने के बाद हमें तो ग्रीन चैनल से जाने दिया गया, लेकिन हमारे ही एक साथी को कहा गया कि आपका वीसा नकली है। आपको फिर से आवेदन करना होगा और वीसा फीस भी देनी होगी। हमारे साथी अड़ गए और काफी हुज्जत के बाद एयरपोर्ट से बाहर आ सके। दरअसल वीसा की जांच कर रहे अधिकारी ने उनकी जन्मतिथि गलत फीड कर दी थी। जिससे उनकी यात्रा की पुष्टि नहीं हो पा रही थी। गलती सामने आने के बाद भी उस अधिकारी ने कोई खास विनम्रता नहीं दिखाई। कायदे से उसको माफी मांगनी चाहिए थी।


एयरपोर्ट के तमाम होर्डिंग्स और सूचनापट सिंहली में लिखे गए थे या अंग्रेजी में। हिन्दी का कहीं नामो निशान नहीं था। एयरपोर्ट पर बताया गया कि श्रीलंका में विदेशी यात्रियों से भुगतान या तो श्रीलंकाई रुपए में लिया जाता है या अमेरिकी डॉलर में। मेरे पास कुछ अमेरिकी डॉलर थे, तो मैंने उन्हें श्रीलंकाई रुपए में बदलने के लिए कहा। एक डॉलर के बदले 133 श्रीलंकाई रुपए मिले। भारत में एक डॉलर के 64 भारतीय रुपए मिल रहे थे। इस बात की राहत हुई कि श्रीलंका में भारतीय रुपये की कीमत दो गुने से भी ज्यादा है। कोलंबो एयरपोर्ट के रेस्तरां में भारतीय रुपया स्वीकार नहीं था। उन्हें डॉलर में भुगतान पसंद था। यहीं पता चला कि श्रीलंका के अंदर भारतीय रुपया  दुकानदार स्वीकार कर लेते है और उनकी कीमत श्रीलंकाई रुपए की तुलना में दोगुनी है।


कोलंबो एयरपोर्ट पर आने वाले यात्रियों में भारतीयों की तादाद अच्छी-खासी थी, लेकिन विदेशी उससे भी अधिक थे। चीनी, जापानी, जर्मन, फ्रेंच और यूरोपीय देशों के यात्री बड़ी संख्या में नजर आ रहे थे। मुझ जैसे व्यक्ति के लिए सिंहली और तमिल में अंतर करना मुश्किल था। मैं जिस आयोजन में जा रहा था उसके अतिथियों में भी श्रीलंकाई सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं था। मुझे बताया गया कि श्रीलंका में भारतीयों से सरकार काफी डरी हुई लगती है। उसकी निगाह में सभी भारतीय पृथकतावादी, तमिल ईलम के समर्थक है। श्रीलंका में गृह युद्ध खत्म हो चुका है और अब वहां विकास की बात हो रही है। नए राष्ट्रपति बनने के बाद मैत्रिपाल सिरिसेना ने पहली विदेश यात्रा भारत की ही की थी, लेकिन अभी भी भारतवासियों के प्रति उनके मन में कुछ शक तो है। पिछले तीस साल में श्रीलंका गृह युद्ध की स्थिति से निपटता रहा है और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति आतंकवाद की भेंट चढ़ चुके हैं। पिछले तीस साल में करीब 70 हजार तमिलों की हत्या आतंकवाद के नाम पर की गई। तमिलनाडु में जब से यह खुलेआम ऐलान हुआ है कि हम श्रीलंका में स्वतंत्र तमिल राष्ट्र बनाने में पूरा सहयोग करेंगे, श्रीलंका की सरकार लगातार भारत से दूरी बनाए हुए है। यह बात और है कि श्रीलंका कि एकता बनाए रखने के लिए भारत के अनेक सैनिकों ने अपना बलिदान किया था। जो पीस कीपिंग फोर्स का हिस्सा थे। श्रीलंका को लगता है कि भारत से आतंकी उनके देश में कभी भी प्रवेश कर सकते है और वहां की एकता को खतरा हो सकते है। श्रीलंका के पास कच्चा तिवु द्वीप के इलाके में खूब मछलियां मिलती है और भारतीय मछुआरे वहां मछलियां पकड़ने जाया करते है। लंबे समय तक यह द्वीप विवादों में रहा और आखिरकार भारत ने उस पर से अपना दावा छोड़ दिया। भारतीय मछुआरे यहां जाकर विश्राम कर सकते है, लेकिन यहां मछलियां नहीं पकड़ सकते।



श्रीलंका के पर्यटन केन्द्रों पर जाए तो ऐसा लगता है मानो यूरोप के किसी देश में आए हो। ऐसे देश में जहां के लोग भारत जैसे ही दिखते है, लेकिन वास्तव में है नहीं। श्रीलंका के तमाम होटल यूरोपीय पर्यटकों को लुभाने में कोई कमी नहीं छोड़ते है। उन्हें शायद डॉलर का ज्यादा मोह है। होटलों की सभी सेवाएं यूरोप के पर्यटकों को ध्यान में रखकर तय की गई है। बेहद महंगी और औसत दर्जे की। कैंडी के होटल में मैंने अपनी तीन कमीज ड्रायक्लीन के लिए दी। जिनका बिल आया 155 रुपए प्रति शर्ट। माना की श्रीलंका के रूपए की कीमत भारतीय रुपए से आधी है, लेकिन फिर भी यह एक डॉलर से अधिक ही होती है। पानी की आधा लीटर की बोतल सौ रुपए से कम की नहीं। एक कोल्डड्रिंक की बोतल 150 रुपए की। ऐसा लगा मानो उन्हें भारतीय पर्यटकों में कोई रुचि नहीं है।

इस बात की पुष्टि तब हुई जब हमने अपने गाइड से कहा कि हमें अशोक वाटिका और सीता वाटिका देखना है। गाइड महोदय लगे हीला हवाला करने। वो खुद ईसाई थे, लेकिन गाइड का यह काम नहीं है कि वह अपनी राय किसी पर थोपे। गाइड ने कहा कि वहां देखने लायक कुछ है नहीं। आप वहां जाओगे तो निराश ही होओगे। हमने कहा कि हमें जाना ही है, तब उसने कहा कि अगर आप अशोक वाटिका और सीता वाटिका देखने जाएंगे तो आप बहुत सी जगहें नहीं देख पाएंगे। हमने कहा कि हमें तो वहां जाना ही जाना है। बड़े हताश मन से वह हमें सीता वाटिका और अशोक वाटिका लेकर गए। वहां रामायण कालीन इन धार्मिक स्थानों की दशा बहुत ही खराब थी। सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं। पर्यटकों के लिए कोई सूचना नहीं, पर्यटकों के लिए कोई सुविधा भी नहीं। सीधा सा ख्याल आया कि इन स्थानों को प्रचारित करके श्रीलंका करोड़ों पर्यटकों को बुलावा दे सकता है, लेकिन लगता है कि श्रीलंकाई सरकार के लिए हर भारतीय पृथकतावादी तमिल ही है।


श्रीलंका के भ्रमण में जगह-जगह चीन के सहयोग से बनी इमारतें नजर आ जाती है। भारत की रुचि श्रीलंका में दो बातों पर केन्द्रित है। पहली तो यह कि वहां रहने वाले भारतीय मूल तमिलों के अधिकारों की रक्षा हो और दूसरा भारत की सीमाओं पर कोई खतरा न मंडराए। श्रीलंका की सरकार ने भारत के साथ अपने संबंधों का उपयोग रणनीति के तौर पर किया। भारत के निवेश को कम प्राथमिकता दी और चीनी निवेश को बढ़ावा दिया। भारत श्रीलंका को बहुत बड़ी आर्थिक मदद देता आया है, लेकिन श्रीलंका चीन की गोदी में जाकर बैठ जाता है। भारत ने हमेशा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी श्रीलंका का साथ दिया, लेकिन श्रीलंका इतना वफादार नहीं रहा। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी श्रीलंका का यहीं रवैया जारी है और इसी के चलते उसने श्रीलंका बंदरगाह पर चीनी परमाणु पनडुब्बी को ठहरने की अनुमति दे दी थी।

श्रीलंकाई सरकार का चाहे जो रवैया हो, वहां के नागरिकों को भारतीयों से कोई शिकायत नहीं है। वे अपने आप को भारतीयों के ज्यादा करीब पाते है। जिस होटल में हम रुके थे, वहां भारतीय रुपया स्वीकार नहीं था, लेकिन डिनर के वक्त वहां लाइव म्युजिक के दौरान चार गायकों ने डेढ़ घंटे तक हिन्दी फिल्मी गाने सुनाकर हमारा दिल जीत लिया। होटल के कर्मचारी हमसे हिन्दी में ही बात करते। जब हम पूछते कि क्या आप भी भारत से है तो सभी एक सुर में यह कहना था कि हमने हिन्दी दुबई में सीखी है। पता नहीं वे भारत आए भी होंगे या नहीं। अगर वे आए भी होंगे कि वे यह कहने में सकुचाते हैं कि उनके भारत से संबंध हैं।

नोगेम्बो समुद्र तट पर एक छोटी सी चाय की दुकान में जब मैं चाय पीने गया तब वहां भारतीय ढाबों की तरह चाय उपलब्ध थी। इतना ही नहीं आलू बड़े, इडली, समोसे आदि भी उपलब्ध थे। चाय बना रहे व्यक्ति से हमने पूछा कि आप कहां से है तो उसने कहा कि मैं नेपाल से हूं। उसके हाव-भाव शक्ल सूरत कहीं से भी यह नहीं लग रहा था कि वह नेपाल से श्रीलंका गया होगा। बाद में मुझे पता चला कि श्रीलंका मे बड़ी संख्या में पाकिस्तानी और बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं। कुछ इलाके तो भारत के बिहार और उत्तरप्रदेश के किसी गांव-कस्बे की तरह नजर आते है। थोड़ी-थोड़ी दूर पर मस्जिदें और दरगाह नजर आती है। बुर्का पहने महिलाएं काम पर जाती हुई नजर आ जाती हैं। श्रीलंका के स्थानीय सिंहली लोगों से बात की तो उनका कहना था कि वे इन मुस्लिम समुदाय के लोगों से घुलना-मिलना पसंद नहीं करते। इन लोगों से उन्हें असुरक्षा की भावना पैदा हो जाती है।

एक निकटवर्ती पड़ोसी देश होने के नाते श्रीलंका में हमें जितना अपनत्व लगता है उतना अपनत्व वहां जाकर महसूस नहीं हुआ। यह अपनत्व नेपाल और भूटान में साफ नजर आता है। श्रीलंका में लगता है कि हम किसी अजनबी देश में है, जहां के लोग हम जैसे नजर आते है, लेकिन हैं नहीं।
कॉपीराइट © 2015 प्रकाश हिन्दुस्तानी

श्रीलंका में डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी सम्मानित

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कोलम्बो (श्री लंका) के कॉनकॉर्ड ग्रैंड होटल में 25 मई को हुए कार्यक्रम में प्रकाश हिन्दुस्तानी को ब्लॉग पर श्रेष्ठ समसामयिक लेखन के लिए 11,000 रूपए, प्रशस्ति पत्र, अंग वस्त्रम् और श्रीफल से सम्मानित किया गया।प्रकाश हिन्दुस्तानी को सम्मानित करते हुए श्रीलंका के सीनियर ड्रामेटिस्ट सोमरत्न विठाना, उत्तरप्रदेश के पूर्व मंत्री नकुल दुबे और आयोजन समिति के के के यादव। प्रकाश हिन्दुस्तानी  पांचवे इंटरनेशनल ब्लॉगर्स सम्मलेन के मुख्य सत्र के मुख्य वक्ता भी थे, उन्होंने सृजनात्मक साहित्य और ब्लॉग लेखन पर भाषण दिया
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पांचवे इंटरनेशनल ब्लॉगर्स सम्मलेन में  डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी  का भाषण 

सृजनात्मक साहित्य में हिन्दी ब्लॉग का योगदान

मैथ्यू अर्नाल्ड ने कहा है पत्रकारिता जल्दबाजी में लिखा गया साहित्य है, लेकिन मेरा कहना है कि ब्लॉगिंग सुविचारित और समयबद्ध साहित्य है। एक ऐसा साहित्य जो हर जगह उपलब्ध है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अभिव्यक्त किया गया साहित्य ब्लॉग साहित्य के रूप में सामने आ गया है। अब साहित्य को पढ़ने के लिए छपी हुई किताबों की निर्भरता खत्म हो गई है। त्रैमासिक, मासिक, साप्ताहिक और दैनिक अखबारों में भी अब साहित्य पढ़ने के लिए इंतजार करने की जरूरत नहीं। किताबों का वह दौर लगभग खत्म हो गया है, जब किताबों में गुलाब के फूल रखकर प्रेमी-प्रेमिका को भेजे जाते थे। अब यह बात अब केवल रोमांटिक कल्पना ही बची है। जिसकी मौत कगार पर है, लेकिन साहित्य हमेशा से ही सामूहिक प्रेम, बंधुत्व, भाईचारा और नई दिशाएं तलाशने तथा अभिव्यक्ति का माध्यम रहा है। साहित्य के बिना जीवन सुना सा है। 


साहित्यकारों और साहित्य के पाठकों के लिए ब्लॉग एक अनमोल तोहफा है। अभिव्यक्ति का बेजोड़ हथियार। यहां अभिव्यक्ति के बाद भरपूर आत्मसंतोष मिलता है। ब्लॉगिंग के माध्यम से बेहतर लेखन भी संभव हो पाया है, क्योंकि लेखक खुद अपने आप को बार-बार सुधार सकता है। इसके साथ ही लेखन के क्षेत्र में नेटवर्किंग भी आसान हो गई है।

किसी भी सृजनात्मक ब्लॉगर के लिए अपने पाठकों के सामने वैश्विक सौहाद्र्र को बढ़ाना एक प्रमुख लक्ष्य होता है। इसके साथ ही उसका लक्ष्य होता है साहित्य के लिए नई जमीन तलाशना। हिन्दी में ब्लॉगिंग अंग्रेजी की तुलना में देरी से शुरू हुई। 2003 में हिन्दी का पहला ब्लॉग 9-2-11 सामने आया। 2007 में यूनिकोड के आगमन के बाद हिन्दी की ब्लॉगिंग में तेजी आई। आज हिन्दी में करीब 50 हजार ब्लॉग मौजूद है। खुशी की बात यह है कि इसमें से एक चौथाई ब्लॉगर्स महिलाएं है। 

ब्लॉगिंग की कुछ बेमिसाल खूबियां है, जिसके कारण सृजनात्मक साहित्यिक के सृजनकर्ता ब्लॉगिंग की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यहां विधा का चयन करने की पूरी छूट है। कहानी, कविता, व्यंग्य, निबंध, समीक्षा आदि में से रचनाकार कुछ भी चुन सकता है। यहां भाषा के बंधन से भी मुक्त साहित्य रचने की आजादी है। ब्लॉगर चाहे तो अपने ब्लॉग में एक से अधिक भाषा में सृजन कर सकता है। 


ब्लॉगिंग के माध्यम से साहित्य के सृजन में सबसे बड़ी सुविधा यह है कि यह मुक्ति का मार्ग है। साहित्य के ठेकेदारों से मुक्ति यहीं संभव है। यहां विषय चयन की पूरी आजादी है और शब्द सीमाओं का भी कोई बंधन नहीं है। महात्मा गांधी ने कहा था कि अगर आपको गलतियां करने की आजादी नहीं है, तो ऐसी आजादी बेमानी है। ब्लॉगिंग की दुनिया में आपको गलतियां करने की पूरी आजादी है। ब्लॉगिंग मानसिक दबाव से मुक्ति दिलाती है। यह अपने पाठकों तक तत्काल पहुंच कराती है। भौगोलिक सीमाओं से बाहर ब्लॉगिंग के जरिये आप दुनियाभर में कहीं भी पहुंच सकते है। 

ब्लॉगिंग के माध्यम से रचनाकार पूरी तरह आत्मनिर्भर होकर सृजन कर सकता है। क्योंकि वह यहां खुद ही लेखक, प्रकाशक और मुद्रक है। गूगल ऐडसेन्स से जोड़कर वह अपने ब्लॉग में धनोपार्जन भी कर सकता है। हालांकि अभी हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में विज्ञापनों का अच्छा प्रतिसाद नहीं मिल रहा है, लेकिन अनेक ब्लॉगर सीधे विज्ञापन दाताओं से संपर्क कर ठीक ठाक पारिश्रमिक पा रहे है। यह एक बहुत बड़ी शुरूआत है। 

सृजनात्मक साहित्य जगत में महिला ब्लॉगर्स की प्रेरणादायक उपस्थिति पूरे समाज को उत्साहित करने वाली है। ब्लॉगिंग के क्षेत्र में करीब एक चौथाई महिलाएं है और अधिकांश सृजनात्मक साहित्य रच रही है। मुझे यह बताते हुए खुशी है कि इस सत्र के बाद का सत्र महिला ब्लॉगर्स के लिए विशेष तौर पर समर्पित है। यहां हम जिन विशिष्ठ महिला ब्लागर से मिलेंगे उनमें आकांक्षा यादव, सुनीता प्रेम यादव, डॉ. सर्जना शर्मा, डॉ. रचना श्रीवास्तव, डॉ. अनिता श्रीवास्तव और डॉ. उर्मिला शुक्ल सहित अनेक प्रमुख महिला ब्लागर मौजूद हैं। यहां सभी का नाम लेना संभव नहीं हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति मात्र प्रेरित करने और आशा जगाने वाली है। 

 इस कार्यक्रम में हिन्दी साहित्य जगत के अनेक सितारें है जो ब्लॉगिंग के जरिए विश्व भर में अपनी पहचान बना चुके हैं। इसका काफी श्रेय श्री रवीन्द्र प्रभात को जाता है। हिन्दी ब्लॉगिंग के क्षेत्र में एक आंदोलन तैयार करने और ब्लागर्स के लिए नई जमीन खोजने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वे भी बधाई के पात्र है। 

हिन्दी के साहित्यिक ब्लागर्स को सादर नमन करते हुए मैं उनके योगदान को रेखांकित करना चाहता हूं। यहां पर उपस्थित सर्वश्री रवीन्द्र प्रभात, कृष्णकुमार यादव, जीतेन्द्र दीक्षित, ललित शर्मा, सुनीता प्रेम यादव, आकांक्षा यादव जैसे प्रमुख हिन्दी ब्लॉगर्स की उपस्थिति में मैं उन हिन्दी साहित्य के ब्लॉगर्स कोे याद करना चाहता हूं, जिन्होंने अपनी साहित्यिक कृतियों को ब्लॉग के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने में अनूठा योगदान दिया है और साहित्य सृजन के लिए नई जमीन तोड़ी है। शायद ही कोई साहित्यकार हो, जो आज ब्लॉगिंग के क्षेत्र में न हो। कुछ ऐसे ब्लॉगर्स भी है, जिन्होंने साहित्यिक ब्लॉगिंग में विशेष कार्य किए है। उन सब के नाम यहां लेना संभव नहीं है। हो सकता है उनमें से कई नाम छूट गए हो और कई नाम इसलिए नहीं लिए जा सकते क्योंकि अगर वह सूची पढ़ी जाए तो उसमें घंटों बीत सकते है। मेरे ध्यान में उदय प्रकाश, अरुण आदित्य, मौलश्री, प्रभात रंजन, रमेश उपाध्याय, अशोक कुमार पाण्डेय, अरुण देव, देवेन्द्र कुमार देवेश, पंकज चतुर्वेदी, रचना, फिरदौस खान, शशांक द्विवेदी, अजय ब्रह्मात्मज, विभा रानी, शरद कोकास, कुमार अम्बुज, विवेक, अनुराग वत्स, महेश आलोक, गिरिश कुमार मौर्य, शशि भूषण, चन्दन, निलय उपाध्याय, अरविन्द श्रीवास्तव, कृष्णमोहन झा, प्रियंकर, शिखा वाष्र्णेय, अर्चना देव जैसे  अनेकानेक नाम बिना विचारें सामने आ रहे है। कबाड़खाना, जानकी पुल, परिकल्पना, समालोचना, हम कलम, समवादी, कलम, भोज पत्र, जनशब्द, आवाहन, अनहद नाद आदि ब्लॉग साहित्य सृजन में अपनी विशेष पहचान बना चुके है। मुझे मालूम है कि मैंने कुछ नाम ही लिए हैं। सभी तक पहुंच पाना संभव नहीं है। 

कोलंबो में आयोजित इस समारोह में आप सभी का हार्दिक धन्यवाद देते हुए शुभकामनाएं व्यक्त करना चाहता हूं कि साहित्य के क्षेत्र में आपका योगदान लगातार बना रहे। हिन्दी में ब्लॉगिंग भविष्य में और भी आसान और लोकप्रिय हो और ब्लॉगर्स के काले अक्सर दुधारू भैंस की तरह अर्थ प्राप्ति का माध्यम बने। 

आप सभी का धन्यवाद।