Tuesday, October 28, 2014

न्यूज़ चैनलों के प्रस्तावित नये नाम

'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (25 अक्तूबर 2014)


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जब सभी लोग सच जानते ही हैं तो फिर दिखावा किस बात का?
मेरी राय है कि भारतीय न्यूज़ चैनलों के नाम ऐसे होने चाहिए -- 
सच्चाई के करीब. 
  --अम्बानी न्यूज़   
  --अडाणी नाऊ 
  --बिड़ला टाइम 
  --लाइव लूट 
  --न्यूज़ एंटरटेनमेंट 
  --फेकू न्यूज़ 
  --चापलूस वर्ल्ड 
  --चरणस्पर्श टीवी 
  --नफे की दुनिया 
  --खाने तक 
   --चमचा इण्डिया 
  --ग्रेट 420 
   --लूट फोकस 
  --चोर एक्सप्रेस 
  --फ्रॉड ओके 
  --जोकर न्यूज़ 
  --भक्त चैनल 
  --फेक नेशन 
  --दलाल इण्डिया 
  --बिंदास चोर 
  --पॉलिटिकल प्लानेट 
  --टेंशन टीवी 
  --स्याह जगत 
  --खाना - पचाना 
  --वोट शॉप 18 

 --चोरी ओके 
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दो कारणों से न्यूज़ चैनलों के नाम बदलने की ज़रूरत है : 1. चैनलों के मालिक नियमित रूप से बदलने लगे हैं और 2. न्यूज़ चैनलों पर न्यूज़ के नाम पर जो तमाशा दिखाया जा रहा है, उस कारण भी नाम बदल दिए जाने चाहिए. अगर आप नियमित न्यूज़ चैनल देखते हों तो यह बताने और समझाने की कोई ज़रूरत नहीं है कि किस तरह की खबरों को कौन सा चैनल किस तरह से दिखाएगा. पुरानी फिल्मों में जैसे जगदीश राज और ए के हंगल इंस्पेक्टर के रोल में 'टाइप्ड' हो गये थे, वैसे ही हमारे पत्रकार और मीडिया के पंच लोग भी 'टाइप्ड' हो गये हैं, और उनके मुँह खोलने से पहले ही बताया जा सकता है कि किस मुद्दे पर कौन सा व्यक्ति क्या बोलेगा। ये मीडियाकर्मी सच्चाई से ज़्यादा अपनी वफ़ादारी को तरजीह देते हैं. एक दौर था जब प्रिंट मीडिया के एक हिस्से के लिए 'जूट प्रेस' शब्द का प्रयोग होता था क्योंकि उन अखबार समूह के मालिकों की जूट मिलें थीं और वे वहां से हुई कमाई को मीडिया के धंधे में लगा देते थे. अब ज्यादातर बड़े न्यूज़ चैनल चिट फण्ड कंपनियों द्वारा किये जा रहे हैं. इस तरह इसे 'चिट फण्ड मीडिया' कहा जा सकता है। ज्यादातर न्यूज़ चैनलों के नाम में 'इण्डिया', न्यूज़, टीवी, लोक, जन आदि शब्द जुड़े हैं और कई के नाम में 24, 7, 18 आदि। होना यह चाहिए था कि इण्डिया, लोक, जन, न्यूज़ सीधे सीधे पर चैनल होते जैसे -- अम्बानी टीवी, अडाणी टीवी, बिड़ला टीवी, भक्त चैनल आदि आदि और 24, 7, 18 आदि की जगह एक ही शब्द होना था 420 चैनल। मैं अपनी निजी योग्यता, अनुभव और दायित्व के आधार पर न्यूज़ चैनलों के कुछ नए नाम प्रस्तावित कर रहा हूँ. (जरूरी नहीं कि आप उससे सहमत हों ही.) --अम्बानी न्यूज़ --अडाणी नाऊ --बिड़ला टाइम --लाइव लूट --न्यूज़ एंटरटेनमेंट --फेकू न्यूज़ --चापलूस वर्ल्ड --चरणस्पर्श टीवी --नफे की दुनिया --खाने तक --चमचा इण्डिया --ग्रेट 420 --लूट फोकस --चोर एक्सप्रेस --फ्रॉड ओके --जोकर न्यूज़ --भक्त चैनल --फेक नेशन --दलाल इण्डिया --बिंदास चोर --पॉलिटिकल प्लानेट --टेंशन टीवी --स्याह जगत --खाना - पचाना --वोट शॉप 18 --चोरी ओके ........ अगर आप कोई नया न्यूज़ चैनल शुरू करने जा रहे हों तो इनमें से कोई भी नाम रजिस्टर करा सकते हैं. मेरा दावा है कि ये नाम सच्चाई करीब होने से जल्दी ही टीआरपी बटोरकर ले जाएंगे। Copyright © प्रकाश हिन्दुस्तानी

Tuesday, October 21, 2014

ज्ञानचंदों का बिज़ी सीजन

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (28 मई 2014)




कुछ दिन से ज्ञानचंद लोग बहुत बिज़ी हैं. चुनाव के आसपास उनका सीजन रहता है। वे ही सवाल खड़ा करते हैं और वे ही जवाब भी तैयार रखते हैं. जो पहले कहते थे कि एनडीए को बहुमत नहीं मिलेगा, अब कह रहे हैं--देखा ले आये न मोदी अपने  बूते पर भाजपा का बहुमत.
आजकल वे मोदी जी की चिंताओं को लेकर परेशान हैं. आज़ादी के बाद पैदा हुए सांसद ही मंत्री बनेंगे तो हमारी ताई का क्या होगा?  क्या वे स्पीकर के लिए मान  जायेंगी? पर वहां तो लालकृष्ण आडवाणी जी का नाम चल रहा है! अरे! सुषमा  स्वराज का नाम भी स्पीकर के वास्ते चल रहा है? ऐसा करना चाहिए कि पहले आडवाणी जी को स्पीकर बना देना चाहिए और बाद में प्रणब दा की जगह राष्ट्रपति !
अब ये ज्ञानचंद मोदी जी के टेंशन घर तक ले जा रहे हैं.  मोदी को मंत्रीमंडल में किस किस को लेना चाहिए और किस को नहीं. कुछ ज्ञानचंदों ने तो मंत्री बनाकर उनके विभागों का बंटवारा भी कर डाला.  जेटली वित्त मंत्रालय के लायक हैं या नहीं, राजनाथ को होम डिपार्टमेंट ठीक ही है। गडकरी को सडकों का अच्छा अनुभव है, भूतल परिवहन ठीक रहेगा. अमित शाह को यूपी में ही बिठाए रखना चाहिए, बन्दे में दम है.नहीं नहीं, शाह को तो होम मिनिस्टर बना दो
एक और ज्ञानचंद मंडली मोदी के विदेश मंत्रालय की कमान सभाले हुए है। पाकिस्तान के साथ यूं निपटना चाहिए। चीन को सुधारने का रास्ता ये है. ओबामा अबअफी मांगने आया समझो। जापान से तो मोदी जी के पुराने अच्छे सम्बन्ध हैं , पता है कि नहीं?
एक और ज्ञानचंद गंगा की सफाई पर चिंतित है। मोदी जी ने ज्यादा बोल दिया यार. गंगा साबरमती कैसे बन सकती है? गंगा की सफाई करने जायेंगे तो कानपुर के चमड़ा फैक्टरी वाले नाराज हो जायेंगे। वे कहेंगे कि मोदी ने  अल्पसंख्यकों को सताना शुरू कर दिया है। मोदी में  पोलिटिकल विल तो है पर वोट बैंक भी बड़ा मसाला है।
अब 26 को मोदी जी की शपथ हो जाएगी। मंत्री चुन लिए जाएंगे. ज्ञानचंद फिर नया टेंशन लेकर बिज़ी हो जायेंगे. अगली बार, फिर अगली अगली बार मोदी सरकार। बार बार मोदी सरकार।
Copyright © प्रकाश हिन्दुस्तानी

जिनको खड़ा नहीं होना चाहिए था ...... !

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (26 अप्रैल 2014)

जिनको खड़ा नहीं होना चाहिए था ...... !




इस चुनाव में बड़ी गड़बड़ी हो गई है. जिनको खड़ा नहीं होना चाहिए था, वे खड़े हो गए और जिनको घर बैठना था, वे दर दर वोट मांग रहे। यह हाल पूरे देश का है. अगर मेरे मनपसंद ये उम्मीदवार मैदान में होते तो चुनाव कितना दिलचस्प, रोमांटिक और ग्लैमरस हो जाता। अब आप ही बताइये--मैं ऐसी कौन सी गलत अपेक्षा रख रहा हूँ?

टोंक -सवाई माधोपुर से अजहरुद्दीन मैदान में क्यों हैं? संगीता बिजलानी क्यों नहीं? मथुरा से बसंती यानी हेमा क्यों चुनाव लड़ रही हैं-ऐशा या आहना क्यों नहीं? मुनमुन सेन क्यों  काली होने के लिए धूप में धूम रही हैं, जबकि उनकी दो दो जवान बेटियां यह काम अच्छी तरह कर सकती थीं। राइमा सेन आ जातीं, रिया सेन आ जातीं। राहुल गांधी मैदान संभाले हुए हैं; कल्पना कीजिये अगर उनकी बहन प्रियंका मैदान में होतीं तो माहौल कैसा होता! राखी सावंत चुनाव लड़ सकती हैं तो बेचारी सनी नियोनी ने क्या बिगाड़ा था? सनी को ज्यादा वोट मिल जाते, इसकी गारंटी महेश भट्ट ले सकते हैं।शत्रुघ्न सिन्हा लोकसभा के उम्मीदवार हैं, जो बीते 20 साल से अफवाह उड़वाते  रहते हैं कि बिहार के अगले मुख्यमंत्री वे ही होंगे। 20 साल में तो उनकी बेटी सोनाक्षी हीरोइन बन गई और तमाम बुड्ढे हीरो जैसे अक्षय कुमार, सलमान खान,अजय देवगन आदि की फिल्मों में टेका लगा रही हैं।बेचारे शत्रुघ्न को भी सहारा मिल जाता . अगर शत्रुघ्न की जगह सोनाक्षी का नाम उम्मीदवारी में होता तो मजा आ जाता। स्मृति ईरानी अब बहू से आंटी बन गई हैं, अगर टीवी कलाकार को ही लड़ना था तो सारा खान आ जातीं, प्रत्यूषा बनर्जी आ जातीं,करिश्मा तन्ना आ जातीं।  और कोई नहीं तो तारक मेहता वाली बबिताजी  यानी मुनमुन दत्ता आ जातीं, या फिर श्वेता साल्वे या मंदिरा बेदी क्या बुरी थीं? पर क्या कहें इन नेताओं को? इनमें कोई एस्थेटिक सेंस बचा है क्या? 

गुल पनाग को खड़ा कर डाला, बोले भूतपूर्व मिस इण्डिया है। तो फिर भूतपूर्व मिस वर्ल्ड ऐश्वर्या पर दांव लगाते. उसके तो सास - ससुर सब सांसद रह चुके हैं, बहू भी संसद में घूम आतीं। किसी का क्या चला जाता? यूं  भी सास से बनती नहीं है, बहस करना तो सीख ही गई होंगी।  सही रहता।  मनोज तिवारी, हेमंत बिरजे, कमाल खान कमाल, पिछली शताब्दी के हीरो विश्वजीत, किरण खेर, जावेद जाफरी,बप्पी लाहिड़ी, विनोद खन्ना आदि फुस्सी बमों की जगह एटम बमों, फुलझड़ियों, खिलते अनारों को मौका मिलता तो हमारा यह महान लोकतंत्र कहाँ जा पहुंचता? 

ये बात ठीक है कि  शाजिया इल्मी के पास मर्सीडीज़ गाड़ी है, पर टीवी  में तो एक से बढकर हीरोइन हैं।  किसी को भी दे    देते अंबिका आनंद या आभा सराफ़; श्वेता सिंह या सिक्ता देव; अफशा अंजुम या अवन्तिका सिंह; आरती पाठक या आफरीन क़िदवाई; अंजना कश्यप या शिरीन भान;बरखा दत्त या अलका सक्सेना; मिताली मुखर्जी या निधि राज़दान; निधि कुलपति या पाल्की उपाध्याय; रितुल  जोशी या ऋचा अनिरूद्ध; सुरभि भूटानी या अंकिता बेनर्जी; ऋतु वर्मा या आरफ़ा ख़ानम; ज्योतिका ग्रोवर या मोनीषा ओबेरॉय; सागरिका घोष या सोनिया वर्मा;सलमा सुल्तान या अविनाश कौर सरीन; सरला माहेश्वरी या वीना सहाय; कोई भी बेहतर ही होता। अगर किसी रेडियो  जॉकी  को भी मौका दे देते तो सोने  होता!

मेरी चिंता ग़लत  लोगों को टिकट को  है। लेकिन मैं  भी पक्का लोकतंत्रवादी हूँ। आशा छोड़नेवाला नहीं।  हूँ कि लोकसभा के  लोगों और लुगाइयों को ही मिलेंगे. आमीन !
Copyright © प्रकाश हिन्दुस्तानी

कहां मध्यप्रदेश, कहां हरियाणा?

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (05 जुलाई 2014)



हमारा मध्यप्रदेश उस बीपीएल परिवार की तरह है, जिसमें खाने के लाले पड़ते हैं, लेकिन शादी-ब्याह का जश्न बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। प्रदेश की हालत चाहे जो हो, सरकारी आयोजनों में करोड़ों रुपए खर्च करना सामान्य बात है। प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम होने के बावजूद मध्यप्रदेश में पेट्रोलियम पदार्थों पर सर्वाधिक टैक्स है। बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री जयंत मलैया इस पर कुछ नहीं कहते और बाद में जब पत्रकार पूछते हैं तब कहते हैं कि केन्द्र सरकार के बजट के बाद इस पर विचार होगा। शब्दों पर गौर करें 'इस पर विचार होगाÓ। उन्होंने यह नहीं कहा कि मध्यप्रदेश में पेट्रो पदार्थ सस्ते किए जाएंगे। विचार होगा और विचार तो किया ही जाता है, यह थोड़ी कहा कि बजट के बाद मध्यप्रदेश में भी गोवा जैसे टैक्स कम कर दिए जाएंगे। 

मध्यप्रदेश सरकार का सारा तामझाम प्रचार-प्रसार और आयोजनों में ही नजर आता है। आम आदमी तक सरकारी योजनाएं कितनी पहुंचती होंगी, इसका अंदाज भी हमारे नेताओं को शायद नहीं है। मध्यप्रदेश कल्याणकारी राज्य तो शायद नहीं बन पाया, लेकिन प्रचार बहुत हो रहा है। पिछले दिनों हरियाणा जाना हुआ, तो यह जानकर आश्चर्य हुआ कि अकेले हरियाणा में 250 से ज्यादा एमएनसी (मल्टी नेशनल कॉर्पोरेशन) हैं। हरियाणा में किसानों को 10 पैसे यूनिट में बिजली मिलती है। कोई किसान या मजदूर दुर्घटना में मर जाए तो उसके परिवार को 5 लाख रुपया मिलता है। शहरों की तरह गांवों में भी सफाई कर्मचारी नियुक्त हैं। मध्यप्रदेश से लगभग 3 गुना ज्यादा प्रतिव्यक्ति आय वहां पर है। पिछले 5 साल में 6 नई रेल लाइनें बिछना शुरू हुईं। एक रेलवे कोच फैक्टरी भी बन रही है। साइबर सिटी, मेडिसिटी, मॉल हरियाणा की पहचान बन गए हैं। पिछले पांच साल में नौगुना निवेश इस राज्य में बढ़ा। 2 साल में पंद्रह हजार करोड़ डॉलर का निवेश उद्योग धंधों में हुआ। देश में बनने वाले 50 प्रतिशत ट्रैक्टर, करीब 60 प्रतिशत कारें, 60 प्रतिशत दोपहिया वाहन, 50 प्रतिशत फ्रिज हरियाणा में बनते हैं। हरियाणा में महिलाओं का एक मेडिकल कॉलेज है। एज्युकेशन सिटी इस प्रदेश में है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हरियाणा में 96 प्रतिशत लोग पक्के घरों में रहते हैं, केवल 4 प्रतिशत लोग ही हैं, जिन्हें पक्के मकानों की छत उपलब्ध नहीं है। देश का सबसे ज्यादा बासमती चावल यही राज्य उत्पादित करता है और निर्यात करता है। प्रतिव्यक्ति दूध की उपलब्धता पौन लीटर है। दुधारू पशु की मौत हो जाए तो सरकार 50 हजार रुपए तक मुआवजा देती है। पिछले दिनों यहां एक दुधारू मुर्राह भैंस 25 लाख रुपए में बिकी थी। वहां सड़कों के किनारे गुजरो तो बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज और ऑडी कारें नजर आना सामान्य बात है। सड़क किनारे के ढाबों पर आप दाल-मखानी से लेकर पिज्जा-बर्गर तक खा सकते हैं। लोटो और एडीडास के जूते गुमटियों से खरीद सकते हैं। 

हरियाणा में वृद्धों को 1000 रुपए प्रतिमाह पेंशन मिलती है (मध्यप्रदेश में 300 रुपए देने का प्रावधान है)। अगर आप सेना में हैं और परमवीर चक्र जीतते हैं तो हरियाणा सरकार 2 करोड़ रुपए देती है। हरियाणा में भोजन का अधिकार सबसे पहले लागू किया गया है। हरियाणा में 20 लाख बच्चे 600 रुपए महीना पेंशन पाते हैं। खेलों में 'पदक लाओ, पद पाओÓ योजना लागू है। यानी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आपने कोई पदक जीता, तो सरकारी नौकरी पक्की। करीब 500 खिलाडिय़ों को इस योजना में नौकरी मिली हुई है। अजा-अजजा के लोगों को पानी मुफ्त में दिया जाता है और 200 लीटर की टंकी भी मुफ्त दी गई है। विधवा की बेटी की शादी पर सरकार 31000 रुपए की मदद करती है। किसानों के सारे कर्ज माफ हैं। किसानों की गिरफ्तारी नहीं हो सकती और न ही किसी किसान को हथकड़ी लग        सकती है। 

मध्यप्रदेश वाले अभी भी आदिवासी राज्य का ही रोना रोते हैं, जबकि बात नीयत की है। इतनी जमीन, इतने खनिज, इतने वन मध्यप्रदेश में हैं और हम उनका दोहन नहीं कर पा रहे हैं। विकास से ज्यादा विकास का दिखावा करना हमारा शगल है। कृषि प्रधान मध्यप्रदेश में हर जिले में कृषि विश्वविद्यालय क्यों नहीं खोले जाना चाहिए? जिले को छोड़ो, संभाग में ही खोल दो। यही हाल पशु चिकित्सा महाविद्यालय का है। हम अपने पशु धन का संवर्धन नहीं कर पा रहे हैं। मानव आबादी बढ़ती जा रही है और पशु धन घटता जा रहा है। कृषि में हमारी ग्रोथ इन्द्र देवता और नर्मदा मैया के भरोसे ज्यादा है। हमारे अपने बाहुबल और इच्छाशक्ति में कहीं कमजोरी है।
मध्यप्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश की बातें करने वाले जरा आस-पास के राज्यों में भी देख लें। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान तो हमारे पड़ोसी हैं। वहां भी यही कानून है, जो हमारे प्रदेश में है। फिर ऐसा क्यों कि वहां विकास ज्यादा तेज हो रहा है? गोवा, हिमाचल, केरल, पंजाब जैसे राज्यों से भी मध्यप्रदेश बहुत कुछ सीख सकता है। बस, एक बार पुनरावलोकन जरूरी है। 
Copyright © प्रकाश हिन्दुस्तानी
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (05 जुलाई 2014)

Saturday, October 18, 2014

इंदौर में आपका स्वागत है

'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (18 अक्टूबर 2014)



कुछ बरसों से इंदौर में होर्डिंग लगाने का चलन बहुत बढ़ गया है। होर्डिंग के ‘रचनाकारों’ ने अलग ही शब्दावली गढ़ दी है। इस शब्दावली में मध्यप्रदेश के सबसे ... शहर में आपका स्वागत लिखा जाना पहली प्राथमिकता बन गया है। यह ... स्थायी है इसके बीच में कोई भी अपना मनचाहा शब्द लिखकर होर्डिंग लगवा सकता है। 

इंदौर में आपका स्वागत है। इस बात को यूं सीधे तरीके से लिखने पर शायद प्रभाव कम पड़ता है, इसलिए लिखा जाता है- मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा शहर इंदौर, मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा व्यावसायिक केन्द्र इंदौर, मध्यप्रदेश का सबसे आधुनिक शहर इंदौर, मध्यप्रदेश का सबसे चिंतनशील शहर इंदौर, मध्यप्रदेश की संगीत की राजधानी इंदौर, मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर, मध्यप्रदेश का मिनी मुंबई इंदौर, मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा ट्रांसपोर्ट हब इंदौर, मध्यप्रदेश की पैâशन की राजधानी इंदौर, मध्यप्रदेश की विज्ञापन जगत की राजधानी इंदौर, मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा एज्युकेशन हब इंदौर, मध्यप्रदेश का सबसे सुव्यवस्थित शहर इंदौर, मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर, मध्यप्रदेश की पत्रकारिता की राजधानी इंदौर, मध्यप्रदेश की चिकित्सा की राजधानी इंदौर, मध्यप्रदेश की आधुनिक कला की राजधानी इंदौर, मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी इंदौर, मध्यप्रदेश की धार्मिक राजधानी इंदौर में आपका स्वागत है। 

अब होर्डिंग्स लगाने का चलन है तो उस पर कुछ न कुछ तो लिखा ही जाएगा। सीधे-सीधे इंदौर में आपका स्वागत है लिखने पर वह प्रभाव नहीं पड़ता। कुछ न कुछ लिखना जरूरी है। चाहे इंदौर को मिनी मुंबई लिखा जाए या मध्यप्रदेश की फलां-फलां राजधानी या मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा शहर इंदौर। इन तमाम होर्डिंग्स में यह बताने की होड़ रहती है कि इंदौर मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा शहर है। साथ ही सबसे आधुनिक और उन तमाम बातों की राजधानी भी जो भोपाल नहीं है। जैसे मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक, औद्योगिक, व्यावसायिक, कला, साहित्य, संस्कृति आदि की राजधानी या प्रदेश का सबसे बड़ा केन्द्र। 

बतोलेबाजी करने में कोई भोपाल का एकाधिकार तो है नहीं, हम इंदौर के लोग उनसे क्या कम है? भोपाल होगा मध्यप्रदेश की राजधानी। इंदौर राजधानी नहीं, तो उससे कुछ कम भी नहीं। भोपाल जैसी झीलें यहां नहीं है, वैसी प्राकृतिक सुंदरता भी नहीं है, राजधानी के सारे लाव-लश्कर और दिखावा भी नहीं है, लेकिन इंदौर में जो है वह भोपाल में कहां? भोपाल में प्रदेश का सबसे बड़ा जैसा विशेषण लिखने का अधिकार कहां? भोपाल में आईआईटी और आईआईएम दोनों कहां? भोपाल रेलवे स्टेशन से भले ही २०० ट्रेनें रोज आती-जाती हो और इंदौर से इसकी २५ प्रतिशत ट्रेनें भी नहीं हो, लेकिन क्या भोपाल के राजाभोज एयरपोर्ट से देवी अहिल्या बाई एयरपोर्ट जैसी विमानसेवाएं उपलब्ध है? क्या भोपाल में पोहे-जलेबी, सेव-कचोरी, नमकीन का इंदौरी लुत्फ मिल सकता है? क्या भोपाल में सराफा और छप्पन दुकान जैसा माहौल किसी ने देखा है? इंदौर में जिस तरह पैâशन पहले-पहल आता है भोपाल तक जाने में उसे ३ घंटे नहीं ३ साल लग जाते है। 

ऐसा कोई कानून नहीं है कि होर्डिंग्स पर सच-सच बातें लिखी जाए। ये सच बातें अगर लिख दी जाए, तो वास्तव में इंदौर की असलियत मेहमानों के सामने आ जाएगी। अब हम होर्डिंग्स पर यह लिखने से तो रहे कि जंगल राज की राजधानी इंदौर, अपराध की राजधानी इंदौर, चंदाखोरों के लिए आदर्श शहर इंदौर, भ्रष्ट अफसरों के लिए खाने-कमाने की सबसे बड़ी खेड़ इंदौर, अतिक्रमणों की राजधानी इंदौर, भूमि घोटालों की राजधानी इंदौर, फर्जी वंâपनियों की राजधानी इंदौर, धोखेबाजों की राजधानी इंदौर, गुंडे-बदमाशों की राजधानी इंदौर, गंदगी की राजधानी इंदौर, आवारा पशुओं का स्वर्ग इंदौर, नौटंकी बाजों का शहर इंदौर, 'गी में अव्वल इंदौर, माफियाओं गतिविधियों का केन्द्र इंदौर, आतंकितयों की शरणस्थली इंदौर में आपका स्वागत है।

इंदौर की और भी बहुत सी खूबियां है, जिनके लिए लोग इंदौर आना पसंद करते है। अगर वे अपनी बात और मंतव्य सच-सच बता दें तो उनकी नाक कट जाएगी। इसीलिए इंदौर की जरी की चादर पर टाट के पैबंद लगा दिए गए है और हर कोई कहता फिरता है मध्यप्रदेश का सबसे अच्छा, सबसे बड़ा आदि-आदि। असलियत केवल इंदौर के लोग ही जानते है। 

Copyright © प्रकाश हिन्दुस्तानी
'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (18 अक्टूबर 2014)

Tuesday, October 14, 2014

'विलफुल डिफाल्टर' के 'अनुकरणीय' कार्य !

'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (11 अक्टूबर 2014)

वैसे तो उनके हिन्दी में एक से बढ़कर एक शब्द हैं-चोर, चोट्टा, अमानत में खयानत करने वाला, गबनकर्ता, जेबकतरा, लुंठन, डाकू आदि-आदि। अंग्रेजी में भी इसके लिए एक से बढ़कर शब्द हैं, लेकिन जो मजा 'विलफुल डिफाल्टर' में है, वह कहीं नहीं ! विलफुल डिफाल्टर भी क्या गजब के 2  शब्द हैं। बेहद इज्जतदार!  विलफुल डिफाल्टर शब्दों में गरिमा है।  विलफुल डिफाल्टर बोलो तो लगता है कि टॉम क्रूज टाइप किसी महान इनसान की चर्चा हो रही है! भारत में विलफुल डिफाल्टर का जिक्र आते ही विजय माल्याजी का खयाल मन में आता है। 

विजय माल्या बेहद अनूठे कार्य करते हैं। वे दुनिया के तीसरे सबसे बड़े दारू भट्टीवाले हैं। बियर पिलाने वाले दुनिया के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक। सुंदर कन्याओं के अर्ध या उससे ज्यादा नग्न कन्याओं के कैलेंडर छापते हैं। फार्मूला वन रेस और घुड़दौड़ में दिलचस्पी रखते हैं। मीडिया जगत में भी उनकी दिलचस्पी है। वे एशियन एज और सिने ब्लिट्ज के मालिक हैं। ब्रिटेन में एक नीलामी में वे टीपू सुल्तान की असली तलवार लगभग पौने दो लाख ब्रिटिश पाउंड में खरीद लाए। शराब के अलावा उनका फर्टिलाइजर का भी धंधा है उनका। किंग फिशर विमान कंपनी भी उन्होंने ही शुरू की थी, जिस पर बैंकों का अरबों रुपया बकाया है और कर्मचारियों की महीनों की तनख्वाह खाकर वे बैठे हैं। वे कर्नाटक से चुनकर राज्यसभा में जा चुके हैं, वह भी निर्दलीय। उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता के लिए करोड़ों खर्च किए थे। राज्यसभा में उन्होंने अपने सभी सदस्यों को गिफ्ट में अपनी कंपनी की शराब के बक्से भिजवो थे, जिस पर मप्र से गए सांसद अनिल माधव दवे ने आपत्ति की थी और उनका 'गिफ्ट' बैरंग वापस कर दिया था। 

ऐसा नहीं है कि विजय माल्या कड़कनाथ हो गए हैं। उनके पास दूसरी कंपनियों में खासा धन है, लेकिन उन्होंने तय किया कि वे अपनी दूसरी कंपनियों का पैसा भोग-विलास में खर्च करेंगे। उनका बेटा सिद्धार्थ भी उन्हीं के नक्शेकदम पर है और कुछ समय पहले तक दीपिका पादुकोण का खास ब्वॉयफ्रेंड था। कहते हैं उसने दीपिका को 16 करोड़ का मामूली-सा फ्लैट गिफ्ट किया था। ये वही सिद्धार्थ है, जिसकी मां एयर इंडिया में एयर होस्टेस थी और विमान के यात्री विजय माल्या से इश्क लड़ाकर विवाह रचा बैठी थी। बाद में विजय माल्या अपनी एक भूतपूर्व पड़ोसन पर फिदा हो गए तो होस्टेस वाली बीवी को त्यागकर पड़ोसी का फर्ज निभाने लगे। 

विलफुल डिफाल्टर घोषित होने के बाद माल्या कोर्ट में गए। अर्जी दी थी कि उन्हें 'विलफुल डिफाल्टर' ना कहा जाए। गाँधी जयंती के एक दिन पहले कोलकाता की कोर्ट ने माल्या की अर्जी पर सुनवाई करते हुए उन्हें टेम्परेरी रूप से विलफुल डिफाल्टर की लिस्ट से बाहर कर दिया गया है। इसका मतलब समझे  आप? कोर्ट भी चाहता है कि अब आप उन्हें विलफुल डिफाल्टर नहीं, सीधे-सीधे चोर या चोट्टा कह सकते हैं। पर याद रखिए यह आदेश टेम्परेरी है। विश्वास है कि वे जल्द ही अपनी विलफुल डिफाल्टर वाली गरिमामयी पदवी पर कामयाब होंगे। 
Copyright © प्रकाश हिन्दुस्तानी
'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (11 अक्टूबर 2014)

Monday, October 06, 2014

आपकी निजी पत्नी कैसी हैं?

'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (04 अक्टूबर 2014)



वह मित्र नाराज हुए जब मैंने उनका हाल पूछने के बाद उनसे पूछा- 'आपकी निजी पत्नी कैसी हैं?

कहने लगे - 'पत्नी तो निजी ही होती है।

मैंने कहा - 'आप ही तो कहते हो  'हमारी वाइफ ने हमें मिस किया। हमारी वाइफ हमारे बिना खाना नहीं खाती। हमारे बिना हमारी वाइफ बिस्तर पर नहीं जाती क्योंकि हमारे बिना उन्हें नींद नहीं आती है।  'हमारी वाइफ और हम पिक्चर देखने गए थे। 'हमारी वाइफ ने आज बहुत शॉपिंग की। 'हमारी वाइफ आज बहुत बिजी है। मैंने यह तो नहीं पूछा कि 'हमारी वाइफ कैसी हैं?

वह बिदक गए - 'बड़े बदतमीज हो यार! अपनी भाभी को ऐसे बोल रहे हो? ऊपर से कह रहे हो कि मैंने 'हमारी वाइफ नहीं कहा।  कह के तो देखो अभी तुम्हारा मुंह तोड़ देता हूं

मैंने दोहराया- 'मेरी आदरणीय भाभी कैसी हैं?

'साले, आज से मेरी-तेरी दोस्ती खत्म! ईडियट! उसने कहा

'ओके! मैंने कहा। फिर सोचने लगा कि कई लोग हर जगह 'मैं की जगह 'हम क्यों बोलते हैं? हमारा घर, मोहल्ला, शहर जैसी बात तो ठीक है, पर हमारी वाइफ! यह बात बिलकुल हजम नहीं होती। (मेरी निगाह में 'हमारी वाइफ कहने का अधिकार तो केवल पांडवों को था, जिनकी 'हमारी द्रोपदी थी। दुर्योधन ने शायद ही भानुमति को 'हमारी धर्मपत्नी कहा हो। 'हम फस्र्ट आ  गए। 'हमने अकेले ही काम कर डाला। 'हम गूसलखाने जा रहे हैं। भैया, गूसलखाने जाते हो तो अकेले ही जाते हो या पूरे मोहल्ले साथ? गूसलखाने नहीं,  स्टेशन के पास रेल की पटरी पर सामूहिक दिशा-मैदान के लिए जाते हो क्या? सामूहिक रूप से।  'हम फर्स्ट आ गए! तो क्या एक-दो लाख लोग फर्स्ट आते हैं?

कई लोग 'मैं और 'हम के बीच अंतर नहीं कर पाते। उन्हें लगता है कि अगर वे 'मैं की जगह 'हम कहेंगे तो उनकी बात का वजन बढ़ जाएगा और वे भी नवाबों-राजा-महाराजाओं की तरह सम्मान पाएंगे। दिलचस्प बात यह है कि ये ही लोग अकसर 'हम की जगह 'मैं बोलने लगते हैं। कोई काम पूरी टीम कड़ी मेहनत के  बाद संपन्न करेगी तब बोलते हैं -'मैंने टास्क पूरा लिया।  मैंने  मेहनत की, मैंने रात-दिन काम किया, आदि आदि, जबकि असलियत यह होती है कि सारा का सारा काम पूरी टीम कर रही होती है और क्रेडिट लेने लग जाते हैं ऐसे लोग! राजनीति में यह हमेशा ही होता है, मेहनत कोई करता है और फल कोई और खा जाता है।

खुशी की बात है कि साहित्य में तो कम से कम ऐसा नहीं है। साहित्यकार मैं और हम का अर्थ खूब जानते हैं। तभी तो किसी कवयित्री ने लिखा है -मैं, मैं हूं और तुम, तुम! काश मैं और तुम मिलकर हम बन जाते!

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 'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (04 अक्टूबर 2014)