Sunday, October 31, 2010




छोटे परदे की परियां
ब्यूटी विथ ब्रेन !

कौन है सबसे आकर्षक भारतीय न्यूज़ एंकर ?


कौन है आप की राय में सबसे आकर्षक भारतीय न्यूज़ एंकर? अंबिका आनंद या आभा सराफ़? श्वेता सिंह या सिक्ता देव? अफशा अंजुम या अवन्तिका सिंह? आरती पाठक या आफरीन क़िदवाई? अंजना कश्यप या शिरीन भान? बरखा दत्त या अलका सक्सेना? मिताली मुखर्जी या निधि राज़दान? निधि कुलपति या पाल्की उपाध्याय? ऋिटुल जोशी या रिचा अनिरूद्ध? सुरभि भूटानी या अंकिता बेनर्जी? ऋतु वर्मा या आरफ़ा ख़ानम? ज्योतिका ग्रोवर या मोनीषा ओबेरॉय? सागरिका घोष या सोनिया वर्मा?सलमा सुल्तान या अविनाश कौर सरीन? सरला माहेश्वरी या वीना सहाय? ... या कोई और? (हो सकता है कि मैं बहुत से महत्वपूर्ण नाम भूल रहा हूँ.)..... क्या वह इनमें से है या ....?कौन है आप की राय में सबसे आकर्षक भारतीय न्यूज़ एंकर?

ये वे न्यूज़ एंकर हैं, जिनके होते लोग अपना चैनल नहीं बदलते. भूत, भभूत, लंगोट, नाग-नागिन, रेप, मुन्नी जैसे मुद्दों पर टीआरपी बटोरने वाले चैनल भी इन एंकर के सामने टिक नहीं पाते. प्रकृति इन पर मेहरबान रही और ये लोग भी अपने प्रोग्राम के लिए कोई कोई कसर नहीं छोड़ते. विषय की गहरी समझ, मेहनत और लगातार अध्ययन के कारण ये टीआरपी की पर्याय बन गयी हैं.

इन में से कई मॉडलिंग कर चुकी हैं, कई ऐसी हैं जो फिल्मों में काम करके करोड़ों कमाने के प्रस्ताव को लात मार चुकी हैं, कई ऐसे हैं जिन पर करोड़पति-अरबपति डोरे डालते रहते हैं, लेकिन मीडिया के लिए प्रतिबद्ध ये प्रोफेशनल युवतियाँ टस से मास नहीं हुईं. भारतीय महिलाओं की एक तस्वीर ये भी है.

भारतीय टीवी चैनल की न्यूज़ एंकर दुनिया की सबसे आकर्षक न्यूज़ प्रेज़ेंटेटर हैं. ये भारतीय न्यूज़ एंकर किसी भी मामले में ब्रिटिश, आस्ट्रेलियाई, कनाडाई, अमेरिकी न्यूज़ चैनलों की न्यूज़ प्रेज़ेंटेटर से ज़रा भी कम नहीं हैं. भारत में भी तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मराठी, बांग्ला न्यूज़ प्रेज़ेंटेटर की अपनी खूबियाँ हैं. भारतीय न्यूज़ एंकर को अगर कोई कड़ी टक्कर दे सकता है तो वे पाकिस्तानी न्यूज़ एंकर ही हैं...लेकिन मैं यहाँ भारतीय और उनमें भी हिन्दी न्यूज़ चैनल की बात कर रहा हूं.

---प्रकाश हिन्दुस्तानी
३.११.२०१० ( रूप चतुर्दशी के पूर्व)

एंग्री यंग मैन ऑफ़ क्रिकेट

विराट कोहली को अब तक सभी एक बेहतरीन स्टेपनी के रूप में जानते थे. सचिन या युवराज की एक अच्छी स्टेपनी. जिस का खेलना इस बात पर निर्भर होता था कि टीम में कोई अनफिट तो नहीं है. लेकिन अब विराट कोहली ने अपने इस स्टेपनी वाले रोल को बदलकर रख दिया है. विराट कोहली ने हाल ही में आस्ट्रेलिया के खिलाफ १२१ गेंदों पर ११८ रनों का पहाड़ खड़ा करने के बाद 'ट्विट्टर' पर लिखा था--''ग्लेड विथ टीम्स विन,ग्रेट बेटिंग बाय युवी पाजी एंड सुरेश रैना. मेमोरेबल गेम फॉर मी.''
भारत की यह जीत ऐसी है, जिस के बारे में जब भी चर्चा होगी, विराट कोहली की चर्चा करना ज़रूरी होगा. विराट कोहली का क्रिकेट में आना और खेलना हमेशा संघर्षपूर्ण रहा है. क्रिकेट कि दुनिया में उन्होंने लगातार झटके खाए हैं. विराट अपने हौसलों से उन झटकों कोसे वे और मात देते रहे और आज वे ऐसे मुकाम पर हैं जहाँ से वे ज्यादा कद्दावर खिलाडी बनकर सामने आये हैं.
वह 2006 का दिसंबर था और दिल्ली के कोटला स्टेडियम में वे दिल्ली टीम की तरफ से रणजी ट्राफी के लिए कर्णाटक के खिलाफ खेल रहे थे. बुरी खबर थी कि उनके पिता प्रेम कोहली का 54 साल की उम्र में हार्ट अटैक आने से निधन हो गया था. ....सभी को लग रहा था कि आज शायद विराट की परीक्षा है, पूरी टीम शोक व्यक्त कर चुकी थी और यह जांबाज़ खिलाडी अड़ा था कि मैं बेटिंग करूंगा. विराट ने उस दिन बेटिंग की और 90 रन बनाकर दिल्ली कि टीम को जिताया.
विराट कोहली ने अंडर 17 , अंडर 19 और इमर्जिंग प्लेयर्स टूर्नामेंट्स में अपनी क्षमता का लोहा मनवाया है. अब वन डे मैचों में उन्हें अपनी योग्यता दिखाने का अवसर मिला है. अगर आंकड़ों की बात की जाए तो उनका प्रदर्शन हमेशा शेयर बाज़ार के ग्राफ जैसा रहा है --- अकसर ऊपर-नीचे होने वाला. जैसे शेयर बाज़ार अब जाकर बीस हजार के आसपास टिका है,कुछ वैसा ही हाल विराट कोहली का भी है. आईपीएल के फर्स्ट सीजन में वे फ्लाप रहे. तेरह इनिंग में 165 रन. सेकण्ड सीजन में ग्यारह इनिंग में केवल 215 रन. आइडिया कप वन डे में सचिन और सहवाग के चोटिल होने पर मौका मिला और ओपनिंग की तो केवल बारह रन पर आउट. सीरिज के दूसरे मैच में उन्होंने 37 रन बनाये और फिर चौथे मैच तक आते आते निर्णायक 54 रन बना लिए.यह वन डे मैचों में श्रीलंका के खिलाफ श्रीलंका में भारत की पहली जीत थी. ...लेकिन भाग्य की बात यह थी कि वे भारत में हो रहे वन डे में श्रीलंका के खिलाफ मैचों में चुने तो गए, पर खेल नहीं सके, क्योंकि सचिन और सहवाग फिट हो चुके थे.
विराट कोहली युवा खिलाडियों में अपनी ख़ास पहचान बना चुके हैं. उन्हें अभी मीलों का सफ़र तय करना है, उनमें अपार संभावना की बात कही जा रही है. कई लोग उन में सचिन की छवि देखते हैं. खेल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता वास्तव में सराहना के काबिल है.
--प्रकाश हिन्दुस्तानी (दैनिक हिन्दुस्तान 24 अक्टोबर २०१० से)


'पत्रकारिता' का जेम्स बॉन्ड : जुलियन असान्जे


अब अगर किसी को अमेरिका का विरोध करना हो तो इसके लिए अमेरिकी झंडा जलाने की ज़रुरत नहीं; अब लोग विरोध करने के लिए अमेरिकी झंडे की धुलाई करने लगते हैं. 'विकिलीक्स डॉट ओआरजी' के मुख्य प्रवक्ता और एडिटर इन चीफ जुलियन असान्जे ने यही किया. उन्होंने २२ अक्टूबर की शाम ५ बजे अपनी साईट पर ३ लाख ९१ हज़ार ८३२ क्लासीफाइड सीक्रेट डाक्यूमेंट्स अपलोड किये, जिनसे व्हाईट हाउस, सीआईए, एफ़बीआई, अमेरिकी प्रशासन और मीडिया जगत में हड़कंप है. असान्जे ने 'दी इराक वार लॉग्स' शीर्षक से दुनिया को इराक युद्ध में अमेरिकी सैनिकों, अमेरिकी और इराकी सरकार की भूमिका पर सवाल दर सवाल किये हैं. दस्तावेजों, ग्राफिक्स और नक्शों के जरिये बताया है कि कैसे युध्ह में नागरिकों का कत्ले आम, औरतों पर ज़ुल्म और अमानवीयता की गयी. इसमें १ जनवरी २००४ से ३१ दिसंबर २००९ तक युद्ध की असली झलक है. ये दस्तावेज़ जारी होने के बाद व्हाईट हाउस के सामने सवाल है कि अब क्या होगा? ऐसे सवाल तो सत्तर के दशक में वॉटरगेट काण्ड और नब्बे के दशक में मोनिका लेविंस्की प्रकरण के बाद भी नहीं उठे थे.

असान्जे कौन? 'पत्रकारिता' का जेम्स बॉन्ड या इंटरनेशनल मैन ऑफ मिस्ट्री? इंटरनेट एक्टिविस्ट या साइबर क्रिमिनल? सजायाफ्ता
हैकर या तहलका के महाबाप,विकिलीक्स का जनक! न जाने क्या क्या उपमाएं दी जा रही हैं असान्जे को. असान्जे कहाँ हैं, कोई नहीं जानता. ये लाइनें लिखे जाने के वक़्त अमेरिकी ख़ुफ़िया तंत्र उनकी खोज में लगा है.दुनिया भर में या तो असान्जे की वाह-वाही हो रही है या फिर उन्हें धिक्कारा जा रहा है! असान्जे देश देश भटक रहे हैं, कभी स्टॉकहोम, कभी बर्लिन, कभी लन्दन...उन्होंने अपने सुनहरे बाल रंगवा लिए हैं, वे पकड़े जाने के डर से क्रेडिट कार्ड का उपयोग नहीं कर रहे हैं, होटलों में नाम बदल बदल कर रुकते हैं, यही जानकारी मिल रही है. कभी उनके लेपटॉप और चोरी होने की सूचना आती है तो कभी कोई महिला उन पर बदचलनी का इल्जाम लगाती और फिर उसका खंडन करने कि खबर आती है. एक अकेला इंसान जिसने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर पूरी को हिलाकर रख डाला. कोई उनकी व्हिसल ब्लोइंग वेबसाईट को दान देना चाहता है तो कोई उसे प्रतिबंधित कराना चाहता है.

असान्जे के दस्तावेज़ बताते हैं कि अमेरिकी सेना ने युद्ध के नाम पर नागरिकों पर सितम ढाये, छः साल में १ लाख ०९ हज़ार ०३२ लोग मारे थे. ६६ हज़ार ०८१ नागरिकों कि मौत हुई, इराकी और मित्र राष्ट्रों की सेना के १५,१९६ और ३७७१ जवान मारे गए जबकि २३,९८४ विद्रोही मारे गए.
छः साल की पूरी अवधि में औसतन ३१ नागरिक रोजाना मारे गए. बेकसूरों की ह्त्या और यातनाओं की जानकारी अमेरिकी अधिकारियों और शीर्ष नेताओं को थी, लेकिन उन्होंने टार्चर, रेप और मर्डर के इन 'मामले की आपराधिक अनदेखी' की.

असान्जे ने १९९९ में लीक्स डोट ओआरजी और २००६ में 'विकिलीक्स डॉट ओआरजी' रजिस्टर कराई थी. १९९९ में तो उन्हें कोई बेहतर प्रतिसाद नहीं मिला, लेकिन २००६ में अपनी व्हिसल ब्लोइंग साईट रजिस्टर कराने के बाद उन्होंने साफ़ किया था कि हमारी कोशिश एशिया, पूर्व रशियन ब्लाक्स, मध्य पूर्व और रेगिस्तान अफ्रीकी देशों में हो रहे अमानवीय कामों के साथ ही पूरी दुनिया की सरकारों के अनैतिक कामों पर निगाह रखने की रहेगी. असान्जे ने एक हद तक अपनी भूमिका निभाई भी है. पहले उन्होंने करीब ९२००० गोपनीय दस्तावेज उजागर कर यह साबित कर दिया था कि पाकिस्तान का आई एस आई आतंकियों को खुली मदद कर रहा है और ये आतंकी अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के खिलाफ लड़ाई में मदद दे रहे हैं. केन्या में फौज और पुलिस की दरिन्दगी को भी वे तथ्यों के साथ उजागर कर चुके हैं.


आज असान्जे के खिलाफ भी अनेक लोग काम कर रहे हैं. कई तो डरकर उन से दूर हो गए हैं और कई उन पर तानाशाहीपूर्ण रवैये का इलज़ाम लगाकर कन्नी काट गए हैं. अनेक लोग मानते हैं कि उनके काम से अमेरिकी हितों का नुकासा होगा और का मानते हैं कि उन्होंने लोकतान्त्रिक काम किया है और अमेरिका का लोकातान्रा इस से मज़बूत ही होगा. ब्रिटिश पत्रिका 'न्यू स्टेट्समैन' ने उनका नाम दुनिया के ५० सबसे प्रभावशाली लोगों में शुमार किया है और दुनिया को बदलनेवाले लोगों में उन्हें २३वे नंबर पर रखा है. उन्हें एमनेस्टी इंटर नेशनल मीडिया अवार्ड, इकानामिस्ट इंडेक्स आन सेंसरशिप मीडिया अवार्ड, सेम अडम अवार्ड आदि अनेक अवार्ड मिल चुके हैं.


आस्ट्रेलिया में १९७१ में जन्में जूलियन पॉल असान्जे के पास विश्वविद्यालय की कोई डिग्री नहीं है. माता पिता में अलगाव, प्रेमिका से अलगाव और बाधित पढ़ाई के बावज़ूद उन्होने अपनी जगह बनाई. विश्वविद्यालय और एक टेलीकॉम कंपनी की साइट हैक करने के मामले में वे फँस चुके हैं और जेल भी जा चुके हैं, जहाँ उन्हें २१०० डॉलर का ज़ुर्माना चुकाना पड़ा था. उन्हीं की तरह 'पेंटागान पेपर्स' लीक करनेवाले डेनियल एल्सबर्ग का कहना है --"असान्जे अमेरिकी डेमोक्रेसी की सेवा कर रहे हैं.."

-प्रकाश हिन्दुस्तानी
(दैनिक हिन्दुस्तान, ३१ अक्टोबर २०१० से)