Saturday, July 02, 2011

टेक्नॉलॉजी की मदद से छू ली मंजिल

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टेक्नॉलॉजी की मदद से छू ली मंजिल


रजनी गोपाल पेशे से चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट हैं. वे इन्फोसिस में सीनियर पद पर कार्य करती है. उन्हें वीणा वादन का भी शौक है और सोशल वर्क में भी उनकी दिलचस्पी है. शतरंज उनका प्रिय खेल है और कुकिंग भी पसंद है. फिट रहने के लिए वे नियमित योग करती है. वे हमेशा ही अच्छे नंबरों से पास होती रही है. आप पूछेंगे कि इसमें खास बात क्या है? जी हाँ, खास बात यह है कि रजनी गोपाल पूरी तरह से दृष्टि बाधित हैं और वे जो कुछ भी देखती हैं वह आँखों से नहीं, बल्कि मन की आँखों से. वे भारत की पहली महिला सी ए हैं जो दृष्टि बाधित हैं. टेक्नॉलॉजी उनकी थोड़ी सी मदद ज़रूर करती है लेकिन वे हौसलों से ही सब कुछ करती-देखती है. सी ए बनना वैसे भी आसान नहीं होता लेकिन दृष्टि बाधिता के बावजूद सी ए बनना और फिर इन्फोसिस जैसी कंपनी में महत्वपूर्ण पद संभालना कोई आसान बात नहीं. आज रजनी गोपाल हजारों लोगों के लिए आदर्श बन चुकी हैं. रजनी की सफलता के कुछ सूत्र :

विलक्षण हौसले की दास्तान


रजनी गोपाल जब नौ साल की थीं, तब स्कूल में उन्हें तेज़ बुखार आया. स्कूल के शिक्षकों ने उन्हें तुरंत घर पहुंचाया. परिवार के लोगों ने उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया. इलाज में कुछ लापरवाही रही और जब विशेषज्ञ डॉक्टर्स पहुंचे तो उन्होंने बताया कि नन्हीं रजनी को स्टीवन जोंसन सिंड्रोम नाम की बीमारी हो गयी है जो शरीर के किसी ना किसी अंग को बर्बाद करके ही जाती है. रजनी के शरीर की आँखों को इस भयावह बीमारी ने अपना निशाना बनाया और रजनी के जीवन में घोर अँधेरा करके ही यह बीमारी वापस लौटी. उनकी एक आंख की रोशनी पूरी तरह से जाती रही और दूसरी आँख से भी बहुत कम दृष्टि बची थी. कोई और होता तो जीवन भर इस बीमारी को कोसता रहता और लाचारी का जीवन जीने को अभिशप्त रहता. लेकिन रजनी को यह मंज़ूर नहीं था. उन्होंने कहा कि वे खुद अपनी कामयाबी की कहानी लिखेंगी और उन्होंने जो कुछ भी सोचा था वह कर डाला.

टेक्नॉलॉजी ने की मदद

जब रजनी अपनी पढाई करने बैठतीं, तब कई बार लोगों ने उनकी मदद की, लेकिन अनेक मर्तबा उनकी सहपाठी छात्राओं ने ही उन पर फब्तियां भी कसीं. उनसे ज़रा भी हतोत्साहित हुए बिना रजनी ने पढाई जारी रखी. बी. कॉम. के बाद उन्होंने सी ए बनने की ठानी. उन्हें पता चला कि चिकित्सा जगत की लापरवाही से उनकी दृष्टि का नुकसान हुआ है विज्ञान की मदद से उन्हें कुछ राहत मिल सकती है. उन्हें एक एनजीओ के कार्यकर्ताओं ने स्क्रीन रीडिंग साफ्टवेयर जे ए डब्ल्यू एस के बारे में बताया और फिर यही साफ्टवेयर उनकी पढाई का सबसे मददगार हिस्सा बन गया. उन्होंने अपना सारा स्टडी मटेरियल इकठ्ठा किया और उसे स्क्रीन रीडिंग साफ्टवेयर की मदद से पढ़ा और समझा. सारी पढाई उन्होंने इसी की मदद से की और अंतत: सी ए का अंतिम इम्तहान भी पास किया.

संगठन ने की मदद

इंस्टीट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ़ इण्डिया (आईसीएआई )ने रजनी के लिए रोजगार उपलब्ध करने में बड़ी मदद की. सी ए की डिग्री लेने के बाद रजनी ने अपना बायो डाटा आईसीएआई के प्लेसमेंट सेल को भेज दिया और संगठन ने उसे गंभीरता से लेते हुए उन्हें पहला रोजगार इंडियन ग्रुप ऑफ़ होटल्स में मुहैया कराया. वे वहां पर कम्युनिटी को ऑर्डिनेटर बन गयीं. लेकिन इस काम में उनकी सी ए की डिग्री का ज्यादा योगदान नहीं था. कुछ ही दिनों में उन्हें नए जॉब का मौका मिला और उन्होंने उसे झपट लिया.

ज्ञान का विस्तार करते रहें

रजनी को अपने ज्ञान के विस्तार के कारण ही आज इन्फोसिस में महत्वपूर्ण जगह मिली है. वे वहां पर कंपनी के भारत और यू एस ए के जनरल अकाउंट्स की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है. वे यह काम अपने सहयोगियों के साथ मिलकर पूरा करती हैं. उन्हें अपने काम में कभी किसी कमी की शिकायत नहीं मिली है. सहयोगियों के बीच भी उनकी अच्छी साख है और वे अपने काम को एन्जॉय करती हैं. उन्हें कभी भी ये एहसास नहीं होता कि उन्हें कोई शारीरिक ब्याधि है. देश में एक और सी ए दिलीप लोयलका भी दृष्टि बाधित हैं, पर वे पुरुष है.

माहौल के अनुसार ढलें

रजनी गोपाल ने अपने जीवन में जो बात सीखी वह यह है कि हमें अपने आप में माहौल के मुताबिक ढलने की आदत भी डाल लेनी होनी चाहिए. हमें हर जगह एक जैसे सहयोगी और सकारात्मक माहौल मिले यह ज़रूरी नहीं. आप खुद कोशिश करके माहौल को थोड़ा तो बदल सकते हैं और थोड़ा खुद को बदलकर माहौल के अनुसार ढल सकते हैं. शुरू में जब वे बंगलुरु में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करती थीं, तब उन्हें थोड़ा असहज लगता था लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने आप को हालात के मुताबिक ढाल लिया.

समस्याओं का निदान खुद करें

रजनी के लिए शुरू में यह बात स्वीकार करनेलायक ही नहीं थी कि वे दृष्टि बाधित हैं. उन्हें इस दशा में बहुत असहज और बाध्यता लगती,लेकिन जल्दी ही वे इस से बाहर आ गयीं. उनके भाई ने जब उन्हें कहा कि खुद को दिमागी रूप से मज़बूत बनने के लिए योग का सहारा लेना उचित होगा तो उन्हें यह बात इन्सल्ट लगी. जल्दी ही उन्होंने अपने आप को संभाला और मानसिक रूप से मज़बूत बनाया. वे कहती हैं कि शुरू में तो मुझे यह लगाने लगा था कि मैं दृष्टि बाधित नहीं, बल्कि मानसिक रोगी हो गयी हूँ. आज मैं अपने परिजनों के सहयोग से मंजिल पाने में कामयाब हूँ.

प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान july 03,2011

1 comment:

shripal singh panwar said...

goog sir. himmat or badi thanks prakash ji