Sunday, June 26, 2011

संघर्ष ही बनाता है सिकंदर

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आईएएस चुने गए सुखसोहित सिंह हजारों थैलेसीमिया पीड़ितों के संघर्ष और सफलता के प्रतीक बन गए है. पंचकुला के इस नौजवान ने अपनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट और प्रधानमंत्री कार्यालय तक लड़ी.

संघर्ष ही बनाता है सिकंदर

सुखसोहित सिंह आईएएस के लिए चुने गए, इसमें कोई नयी बात नहीं है. उनकी पोज़ीशन दूसरी सूची में 42 वीं ( पहली सूची जोड़ने पर 833 वीं) थी. वे हमेशा अव्वल आते रहे, इसमें भी कोई खास बात नहीं, लेकिन उन्होंने वह काम कर दिखाया है जो आजाद भारत में किसी ने नहीं किया. सुखसोहित सिंह ने अपने अधिकार के लिए हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और स्वास्थ्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक अपने हक़ की लड़ाई लड़ी और जीते. दरअसल वे थेलेसिमिया नामक आनुवंशिक रोग से पीड़ित हैं और उन्हें इस आधार पर नियुक्ति नहीं दी जा रही थी कि वे भी सरकार के लिए बोझ साबित हो सकते हैं. सुखसोहित सिंह ने साबित किया कि जिस बीमारी के आधार पर पर उन्हें उनकी योग्यता के मुताबिक रोजगार के अधिकार से वंचित किया जा रहा है, वह बीमारी मैनेज करने योग्य है और इसका उनकी कार्यक्षमता कम नहीं होगी और वे किसी पर भी बोझ तो हर्गिज़ नहीं ही होंगे. जल्द ही सुखसोहित सिंह की नियुक्ति उचित पद पर होगी और वे अपनी योग्यता के मुताबिक काम कर सकेंगे. 2008 में हुई यूपीएससी की चयन परीक्षा की मेरिट में जगह पाने वाले सुखसोहित सिंह की सफलता के कुछ मन्त्र :

थेलेसिमिया बाधक नहीं

सुखसोहित को बचपन में ही इस बीमारी का पता चल गया था लेकिन उन्होंने किसी को भी अपने लक्ष्य में बाधा नहीं बनने दिया. यहाँ तक कि थेलेसिमिया को भी. उन्हें पता था कि इस बीमारी में कई बच्चे जवानी की दहलीज तक ही नहीं पहुँच पाते. बेशक इसमें उनके परिवार का रोल महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन सारा संघर्ष तो सुखसोहित सिंह का ही है. सुखसोहित का मानना है कि बीमारी अदृश्य है लेकिन वह मेरे हौसले को तोड़ नहीं सकी. बीमार कोई भी, कभी भी हो सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप पराजय को स्वीकार कर लें.

मंजिल का पीछा मत छोड़ो
जब तक मंजिल मिल ना जाए, उसका पीछा करते रहे. सुखसोहित को यूपीएससी चयनl परीक्षा में पहले दो बार सफलता नहीं मिल सकी, लेकिन उन्होंने निराश होकर भाग्य को कोसने की अपेक्षा मेहनत करने की राह चुनी. उन्होंने कामयाबी पाई लेकिन तीसरी बार. और जब रिज़ल्ट आया तब उनका नाम मेरिट लिस्ट में था. 'फेसबुक' पर अपने परिचय में सुखसोहित ने लिखा है कि अतीत के कैदखाने में वक़्त गंवाने से बेहतर है कि अपने महान भविष्य का शिल्पकार बनना. आप अतीत को नहीं बदल सकते, लेकिन शानदार भविष्य की संरचना कर सकते है.

मेहनत निवेश की तरह है

सुखसोहित पंचकुला के हैं और वहां के एक बुजुर्ग उनसे कहते रहते थे कि जो जवानी सोने में खोएगा, वह बुढ़ापे में रोयेगा. इसका अर्थ यही हुआ कि जवानी को सोने, घूमने -फिरने और बेकार के कामों में जाया ना करो, यही समय है जब आप अपने स्वर्णिम भविष्य बना सकते हैं. फेसबुक पर सुखसोहित ने लिखा है कि खुशी और कड़ी मेहनत एक तरह से भविष्य के लिए किया गया निवेश है. यह मेहनत कभी भी बेकार नहीं जाती. बस, आप आयेज बढ़ने के लिए एक पायदान पर चढ़ते हैं और फिर चढ़ते ही चले जाते हैं. सुखसोहित ने लगातार कई कई बरसों तक सोलह से अठारह घंटों तक पढ़ाई की है, और यह उनकी सफलता का आधार है.

जहाँ तक दिखाई दे, जाओ

एक पंजाबी कहावत है कि जहाँ तक दिखाई दे, वहाँ तक जाओ, वहाँ पहुँचने पर और आगे का रास्ता दिखाई देगा. आईएएस में चयन होने के बाद जब वे दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में अपने मेडिकल परीक्षण के लिए गये तब उन्हें नियमों के अनुसार अनफिट करार दिया गया, जबकि डॉक्टरों ने उनसे कहा था कि थेलेसेमिया कोई ऐसी बीमारी नहीं है जो उन्हें उनके काम में बाधा बनेगी. आई ए एस में ही चयनित एक दूसरे युवक एम. श्रीनिवासु को भी मेडिकल बोर्ड ने अनफिट कर दिया था क्योंकि श्रीनिवासू को डायबीटीज़ का रोग था. सुखसोहित से प्रेरणा लेकर उन्होंने भी अपील की कि उन्हें अनफिट करार देकर काम से वंचित न किया जाए. सबक यह है की अगर मंज़िल नज़र न आ रही हो तो भी रास्ता छोड़कर भागना उचित नहीं.

परीक्षा से मत हिचको

बीते 10 जून को सुखसोहित का पहला मेडिकल परीक्षण हुआ और फिर 17 जून को दूसरा. वे ससम्मान इस परीक्षण के लिए पहुँचे. उन्होंने अपनी बीमारी के बारे में कोई भी बात छुपाने की कोशिश नहीं की. उन्होंने यही कहा कि यह भी एक तरह की परीक्षा है और वे इसमें पास होकर रहेंगे. उन्होंने अपनी बात अधिकारियों को समझने की कोशिश की कि उनकी इस बीमारी से उनके एक आईएएस अधिकारी के रूप में काम करने पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा क्योंकि वे सिविल सेवा के लिए मानसिक और बौद्धिक रूप से पूरी तरह सक्षम हैं. जहाँ तक शारीरिक क्षमता का सवाल है उन्होंने एक एक्सपर्ट चिकित्सक का प्रमाण पत्र पेश किया कि उन्हें इसके लिए अपने शरीर में मौजूद खून में लौह कणों के असंतुलन के कारण नियमित रूप से ब्लड ट्रांसफ़्यूज़न करना होगा.

बहुकोणीय प्रयास

कामयाबी के लिए बहुकोणीय प्रयास करने चाहिए क्योंकि इसमें कामयाबी की गुंजाइश ज़्यादा होती है और सफलता के पास पहुंचने की गति तेज़ हो जाते है. यूपीएससी क्रेक करनेवाले वे पहले युवा हैं जो थेलेसिमिया रोगी हैं. क़रीब 24 साल पहले उनके परिवार को इस बीमारी का पता चला और उन्होंने सुखसोहित का खास ध्यान रखा. अपने हक के इए उन्होंने न्यायालय का दरवाज़ा भी खटखटाया और मंत्री स्तर पर भी बातचीत की. केंद्रीय मंत्री अंबिका सोनी ने उनका मामला प्रधानमंत्री के पास पहुँचाया और 23 जून को प्रधानमंत्री ने उनकी राह आसान बना दी. सुख़सोहित सिंह आज थेलेसिमिया के हज़ारों रोगियों के लिए बन गये हैं, ऐसे मार्गदर्शक जिन्होंने न केवल अपनी राह खुद बनाई, बल्कि दूसरों को भी रास्ता दिखाया है.

प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान june 26,2011

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