Sunday, July 10, 2011

प्रयोगधर्मी गालीबाज़ आमिर

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प्रयोगधर्मी गालीबाज़ आमिर




आमिर खान को मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहा जाता है. वे 'मेथड एक्टर' हैं. बॉलीवुड में वन मेन इंडस्ट्री हैं आमिर खान. उनके पुरखे हेरात, अफगानिस्तान से आये थे. वे मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और डॉ. जाकिर हुसैन के वंशजों में से हैं और नज्मा हेप्तुलाह उनके करीबी रिश्ते में हैं. 46 साल के आमिर 38 साल से फिल्मों में हैं. 1973 में रिलीज फ़िल्म यादों की बारात में आठ साल का रोल करनेवाले बाल कलाकार आमिर ग्यारह साल बाद केतन मेहता की फ़िल्म होली में आये. आमिर खान अभिनीत 39 फ़िल्में रिलीज़ हो चुकी हैं, और दो बड़ी फ़िल्में धूम-थ्री और धुंआ बन रही है. तारे ज़मीन पर उन्होंने निर्देशित भी की थी और सात फिल्मों के वे निर्माता हैं. दस साल पहले 2001 में उनकी कंपनी की पहली फ़िल्म लगान आई थी, जो सुपर हिट रही और अब आई है डेल्ही बेली, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसने भाषा के कारण आमिर के दस साल के काम पर पानी फेर दिया है. आमिर को पहचान दिलानेवाली क़यामत से क़यामत तक थी और राख फ़िल्म को नेशनल फ़िल्म (स्पेशल जूरी) अवार्ड मिला था. उनको मिले सम्मानों की फेहरिश्त काफी लम्बी है. इस मुकाम तक आने के लिए आमिर खान ने कई तरह के पापड़ बेले और समझौते भी किये है. ज़रूरी नहीं कि आप उनसे इत्तफाक रखें पर ये हैं आमिर की सफलता के कुछ सूत्र :
परफेक्शन पर जोर
आमिर खान को बॉलीवुड में परफेक्शनिस्ट माना जाता है. जो भी करते हैं पूरी लगन और मेहनत से. अभिनय की बारीकी हो या निर्देशन की,फ़िल्म का प्रमोशन हो या विज्ञापन की शूटिंग.फ़िल्म के कलाकारों का एग्रीमेंट हो या फ़िल्म की बजटिंग, वे हर तरफ ध्यान रखते हैं. उनकी कोशिश रहती है कि हर काम पूरी परिपक्वता से हो हो और पूरी तरह से परिपूर्ण हो. थ्री इडियट फ़िल्म का एग्रीमेंट 25 पेज का था जिसमें हर तरह की बारीकी लिखी हुई थी.
बॉक्स ऑफिस पर निगाहें
बॉलीवुड समीक्षकों की नहीं, बॉक्स ऑफिस की ही भाषा जानता है. आमिर खान के लिए भी बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी ही सब कुछ है. इसके लिए वे सब कुछ करने को तैयार रहते हैं. हाल ही में समीक्षकों ने लिखा है कि लगान और तारे ज़मीन पर जैसी फ़िल्में बनानेवाले आमिर खान ने गालियों को अपनी यूएसपी बना लिया! इस फ़िल्म का काफी विरोध हुआ और एक वर्ग ने इसे पसंद भी किया. जो भी हुआ हो आमिर खान को इसका आर्थिक लाभ हुआ और फ़िल्म को अच्छी ओपनिंग मिली.खुद आमिर का कहना है कि यह फ़िल्म एक 'दुर्घटना' है. अपने ब्लॉग में उन्होंने चार मर्तबा सब हेड लिखा है -- शिट हेपंस !
प्रयोगधर्मिता आवश्यक
आमिर खान प्रयोगधर्मी कलाकार हैं. वे न केवल अपने अभिनय में नयापन खोजते रहते हैं, बल्कि अपने बालों और दाढ़ी मूंछों को लेकर भी प्रयोग करते रहते हैं. क़यामत से क़यामत तक वाले चिकने चुपड़े चाकलेटी आमिर ने गुलाम के लिए जबदस्त बॉडी बिल्डिंग की और फिर वापस छरहरे बदन के लिए जिम में वक़्त गुज़ारा. बरसों बाद वे फिर गजनी के लिए शरीर सौष्ठव में जुट गए. इसी तरह अपने बालों को लेकर भी प्रयोग करते रहते हैं. आमिर की भूमिकाओं में भी विविधता रही है. मंगल पांडे में क्रांतिकारी की भूमिका हो या इश्क का प्रेमी, लगान का किसान हो या फ़ना का आतंकवादी. सरफरोश का पुलिस अफसर, रंगीला का टपोरी, राजा हिन्दुस्तानी का गाइड,अकेले हम अकेले तुम का सिंगर, दिल, दिल चाहता है और क़यामत से क़यामत तक का आशिक, तारे ज़मीन पर का टीचर, रंग दे बसंती का विद्रोही, मन का कासानोवा जैसी अनेक भूमिका वे निभा चुके हैं. हर भूमिका में वे अपनी अलग छाप छोड़ते हैं.
व्यावसायिकता पर ध्यान
आमिर खान को इस बात का पूरा एहसास है कि फ़िल्म कलाकार फिल्मों से ज्यादा कमाई विज्ञापनों से करते हैं. उन्होंने परदे पर अपनी छवि से युवाओं को लुभाने पर ज्यादा जोर दिया इसी कारण उन्हें अच्छे विज्ञापन मिले. कोक, टाइटन, टाटा स्काय, अतिथि देवी भव, नमस्कार कोलकाता, टोयोटा इनोवा, मोनेको बिस्किट, सेमसंग मोबाइल, आदि मुख्य हैं. एक टेलीकाम कंपनी के विज्ञापन से उन्हें करीब ३५ करोड़ रुपये की आय हुई जो किसी मेगा बजट फ़िल्म की कमाई के बराबर मानी जा सकती है. आमिर खान अपनी एड फिल्मों की शूटिंग के लिए खासा वक़्त देते हैं, उस पर रिसर्च करते हैं और गंभीरता से उस पर काम करते हैं.
सही प्रमोशन, वक़्त पर
आमिर खान जानते हैं कि फिल्मों के प्रचार का दर्शकों पर असर पड़ता है लेकिन वह असर सबसे अच्छे नतीजे तभी दे सकता है जब वह सही वक़्त पर और अनोखे अंदाज़ में हो. उन्होंने नकारात्मक विज्ञापन शैली के फायदों को समझा और अपनाया. इसीलिये जिस तरह से लगान का प्रचार किया गया उसी तरह जाने तू.. का नहीं किया गया. पीपली लाइव का प्रचार अलग था और थ्री इडियट्स का अलग. पीपली लाइव की क्रेडिट उन्होंने अपनी पत्नी किरण राव को दी और धोबीघाट की भी. उन्होंने इन फिल्मों से बहुत रूपया नहीं बनाया लेकिन नाम कमाने के लिए ऐसी फ़िल्में कारण ज़रूरी था. डेल्ही बेली में उन्होंने एक विवादस्पद गाने के बहाने प्रचार पाया और पहले ही हफ्ते में अच्छी कमाई कर ली.
मीडिया मैनेजमेंट
आमिर का मीडिया मैनेजमेंट का तरीका अलग है. वे जानते हैं कि कब उन्हें मीडिया की ज़रुरत पड़ती है और कब मीडिया को उनकी. नेगेटिव पब्लिसिटी में उन्हें महारथ हासिल है और शाहरुख़ खान के बारे में बयान देकर उन्होंने काफी प्रचार पाया. पहली पत्नी रीना दत्ता से तलाक और किरण राव से ब्याह, भाई फैसल की बीमारी और कस्टडी जैसे मुद्दों पर वे मीडिया में कभी नहीं आये ना ही कुछ बोले. उन्हें यह कला भी आती है कि किन किन राजनेताओं से नजदीकियां मीडिया में सुर्खी बनाती है और किस शब्दावली पर मीडिया बहस पर आमादा हो जाता है.
पुरस्कारों से दूरी
नए कलाकार के लिए के लिए पुरस्कार प्रोत्साहन भी होता है और पब्लिसिटी का माध्यम भी. आमिर उससे ऊपर उठ चुके हैं. लगातार कई साल तक पुरस्कार नहीं मिलने से उनमें इन पुरस्कारों के प्रति उपेक्षा भाव आ गया. खासकर फिल्मफेयर पुरस्कार को लेकर. उन्हें 1989 में राख, 1990 में दिल, 1091 में दिल है कि मानता नहीं, 1992 में जो जीता वही सिकंदर, 1993 में हम हैं रही प्यार के, 1994 में अंदाज़ अपना अपना, 1995 में रंगीला के लिए बेस्ट हीरो के लिए नामिनेट किया गया था लेकिन अवार्ड मिला 1996 में राजा हिन्दुस्तानी के लिए. मंगल पांडे, गजनी और तारे जमीन पर के लिए भी उनका नामिनेशन हुआ, लेकिन तब तक उनका मोह इन पुरस्कारों से खत्म हो चुका था. अब वे अवार्ड के कार्यक्रम में नहीं जाते और इस कारण भी लोग उन्हें याद रखते हैं.
प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान 10 june 2011

1 comment:

shripal singh panwar said...

india main is trah ka vatran nahi hotaha................... prakash ji sahi hain.........."प्रयोगधर्मी गालीबाज़ आमिर" hain............