Sunday, July 24, 2011

संघर्ष से थामा कामयाबी का दामन

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संघर्ष से थामा कामयाबी का दामन

सेलेब्रिटी के रूप में फ़िल्म स्टार, खिलाड़ी, नेता, उद्योगपति, सामाजिक कार्यकर्ता आदि को तो सभी जानते हैं, लेकिन कोई किसान भी किसी देश में सेलेब्रिटी माना जाने लगे, यह अनोखा काम हरचावरी सिंह चीमा ने कर दिखाया है. उन्होंने यह बात भी गलत साबित कर दी कि ग्लोबल इंडियन केवल आईटी, मैनेजमेंट या फाइनेंस के क्षेत्र में ही मशहूर हो सकते हैं. वे किसान परिवार के है और अब भी मूल रूप से किसान ही हैं. उन्होंने किसान के रूप में ही दौलत और सम्मान हासिल किया और वह भी अफ्रीकी देश घाना में. वे ४० साल पहले अमृतसर से विस्थापित हुए थे. उन्होंने अपनी लगन, मेहनत और दृढ़ता से भारत का नाम रोशन किया. उन्होंने यह मिथक भी तोड़ा कि बड़ा उद्यमी, नेता, अभिनेता या खिलाड़ी बनकर ही भारत का नाम रोशन किया जा सकता है. उन्होंने वहां सुपर मार्केट के मैनेजर के रूप में अपना करीयर शुरू किया था और अब वे घाना के जानेमाने किसानों में से हैं. घाना के राष्ट्रपति उन्हें दो बार सर्वश्रेष्ठ किसान के रूप में सम्मानित कर चुके हैं. कहते हैं कि सिख कौम मेहनती और बहादुर होती है और इसके लोग दुनिया में कहीं भी जाएँ, अपनी मुकम्मल जगह बना ही लेते है. हरचावरी सिंह चीमा की गिनती सफलतम अनिवासी भारतीयों में होती है. हर्चावरी चीमा की सफलता के कुछ सूत्र :
सारे मिथक तोड़ो
हरचावरी सिंह चीमा ने अपनी कामयाबी की दास्तान स्याही से नहीं, पसीने से लिखी है. सारे मिथक तोड़ते हुए वे आगे बढ़ते ही रहे. यूएसए, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों में तो हर कोई जाना चाहता है, लेकिन वे पहुँच गए पश्चिमी अफ्रीका के देश घाना. अनुभव के नाम पर मुंबई की कपड़ा मिल में मज़दूरी का अनुभव था और परिवार खेती किसानी करता था. न कोई बड़ी पूंजी, न कोई रहनुमा, न कोई आईआईएम या आईआईटी की डिग्री. वे कामयाबी की सभी सीढ़ियाँ अपनी मेहनत से चढ़ते चले गए, बिना किसी की मदद के, बिना पूर्व नियोजित लक्ष्यों के.उन्होंने अपनी नयी मंजिल खुद तय की और वहां तक पहुंचे. दुनिया में सभी जगहें अच्छी हैं और ईमानदारी से काम करो तो कामयाबी मिलटी ही है, यही उनका दर्शन रहा.
मूल धंधा मत छोड़ो
हरचावरी सिंह चीमा चालीस साल पहले घाना गए तो थे एक सुपर मार्केट शृंखला के मैनेजर बनकर लेकिन जब वहां मंदी का दौर आया और वह सुपर मार्केट बंद हो गया जहाँ वे नौकरी करते थे. उन्होंने घाना छोड़कर वापस भारत आने के बजाय वहीँ रहने का फैसला किया और खुद का व्यवसाय शुरू करने की सोची. उन्होंने पोल्ट्री फार्म खोला लेकिन उसमें कोई खास कमाई नहीं हुई. अनेक किस्म की परेशानियों के कारण उन्हें मज़बूरन वह व्यवसाय बंद करना पड़ा. घाना जाने के पहले वे मुंबई में एक कपड़ा मिल में काम कर चुके थे, और उन्हें लगा कि अगर कपड़ा बनाने का व्यवसाय शुरू किया जाए तो शायद कामयाबी मिले. उन्होंने एक छोटी सी मेन्युफेक्चरिंग यूनिट खोली लेकिन वहां भी नाकामी ही हाथ लगी. हाल यह था कि उन्हें अपने परिवार के खाने के लिए खुद मक्का की फसल लेनी पड़ती थी. उन्हें लगा कि किसान परिवार का होने के नाते उन्हें खेती को ही अपनाना चाहिए और खेती ही उनका भाग्य बना सकती है. लेकिन वहां भी खेती बारिश पर निर्भर थी और किसानों तक को खाने के लाले पड़ रहे थे. हिम्मत नहीं हारते हुए उन्होंने खेती में अनेक प्रयोग किये. यह महसूस किया कि अगर सब्जियों की पैदावार की जाये और उन्हें यूरोप निर्यात किया जाए तो अच्छी आय हो सकती है. उन्होंने वही किया और कामयाब हुए.
हर काम में विशिष्टता हो
हरचावरी सिंह चीमा का काम करने का अंदाज़ अलग है. घाना में वैसे तो हजारों किसान हैं जो रोज़मर्रा में संघर्ष कर रहे हैं लेकिन चीमा ने अलग राह पकड़ी. उन्होंने शोध किया कि वे घाना में कौन कौन सी फसलें ले सकते हैं और क्या क्या निर्यात कर सकते हैं. उन्होंने 25 तरह की सब्जियों के निर्यात की संभावनाएं खोजी, उनका उत्पादन और निर्यात शुरू किया. वे घाना से यूरोप के देशों को हजारों टन सब्जियां निर्यात कर रहे हैं, जिससे घाना को विदेशी मुद्रा मिल रही है और चीमा को अच्छी कमाई. सब्जियों के उत्पादन और निर्यात के बाद उन्होंने अनाज का उत्पादन शुरू किया और आधुनिक तकनीक अपनाकर अधिक से अधिक उत्पादन शुरू किया. घाना के राष्ट्रपति उन्हें दो बार सम्म्मानित कर चुके हैं.
पूरी मज़दूरी दो, पूरा टैक्स भरो
मज़दूरों को उनका पसीना सूखने से पहले पूरी मज़दूरी मिल जानी चाहिए और सरकार को वक़्त के पहले उसका टैक्स. अगर इस पर अमल हो जाये तो तनाव से तो बचा ही जा सकता है, लोकप्रियता भी पाई जा सकती है. इस व्यवहार से हरचावरी सिंह चीमा अपने मज़दूरों में विवादों से दूर रहते हैं और पसंद किये जाते हैं. सरकारी अफसरों को लगता है कि अगर टैक्स वक़्त पर मिल जाये तो उनका काम आसान हो जाता है. कभी भी मज़दूरों की तरफ से उनकी कोई शिकायत किसी को नहीं मिली. इसका एक और फायदा यह है कि उन्हें जब भी मज़दूरों की ज़रुरत पड़ती, वे उपलब्ध हो जाते हैं. खेती में मजदूरों की उपलब्धता बहुत मायने रखती है.
सारी दुनिया अपना घर
जब हरचावरी सिंह चीमा की नौकरी चली गयी, तब कई लोगों ने उन्हें सलाह दे डाली थी कि अब उन्हें वापस भारत लौट जाना चाहिए. लेकिन उन्होंने इस सुझाव को नहीं माना. उन्होंने अपना घर बदला ज़रूर लेकिन घाना में ही. घाना की राजधानी के घर से वे उपनगर में गए और फिर वहां से बाहरी इलाके में. उनका कहना था कि घाना के लोग बहुत अच्छे हैं और उन्हें कभी भी उनसे कोई दिक्कत नहीं हुई, ऐसे में वे घाना क्यों छोड़ें? वे कहते हैं कि हो सकता है कि मैं कनाडा या यू एस में ज्यादा दौलत कमा लेता लेकिन मेरे लिए सारी दुनिया ही घर है. मैं यहाँ भी जिअतना धन कमा रहा हूँ, मेरे और मेरे परिवार के लिए काफी है.
किसान से उद्यमी
हरचावरी सिंह चीमा आज घाना के नंबर वन किसान हैं जो खाद्यान्न और सब्जियां उत्पादित करते हैं. उनका कहाँ है कि अब नंबर वन के आगे मैं इस क्षेत्र में कहाँ जा सकता हूँ? बेहतर है कि मैं अपने काम को विस्तार दूं. इसी इअरेड से उन्होंने अब पैकेजिंग इंडस्ट्री में कदम रखा है और अपने कारोबार को विस्तार देने में जुटे हैं. उनकी परियोजनों को देखकर दुनिया भर के अनेक उद्यमी घाना में निवेश करने जा रहे हैं और वे मानते हैं कि घाना का विकास सभी के लिए अच्छा रहेगा. वे किसान से आएग बढ़कर कुछ करना चाहते हैं, घाना के लिए भी और अमृतसर के लिए भी.
प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान 24 july2011

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