Wednesday, December 24, 2014

pk हर पात्र चरित्रहीन, हर कैरेक्टर ढीला

.... लेकिन फिल्म चल पड़ी है मार्केटिंग के सहारे 

pk का हर पात्र चरित्रहीन !  हर कैरेक्टर ढीला  !!

एलियन  (आमिर) -- पहली लड़की देखी, फिदा हो गया; 
जग्गू (अनुष्का) -- एक लड़का मिला, सो गई; 
सरफ़राज़ (सुशांत सिंह) -- एक दिन फिदा, अगले दिन जुदा;
न्यूज़ चैनल  हेड (बोमन ईरानी )  -- फट्टू और बेअक्ल; 
तपस्वी महाराज(सौरभ शुक्ल) --  चोर-ढोंगी;
जग्गू का पिता( परीक्षित साहनी) -- धर्मांध भक्त;
फुलझड़िया (रीमा) -- वेश्या; 
ब्रुगेस का बुड्ढ़ा (राम सेठी) -- 4 डॉलर का चोट्टा, 
भैरोंसिंह (संजय दत्त) -- बेअक्ल.

गानों के नमूने : ''नंगा पुंगा दोस्त''; ''लव इज़  वेस्ट ऑफ टाइम'', ''टर्की छोकरो...''

हिन्दूवादी संगठन फिल्म पीके का जितना विरोध करेंगे उतनी ही उसकी दर्शक संख्या बढ़ेगी। पीके कोई बहुत महान फिल्म है ऐसी तो कोई बात नहीं, लेकिन सही मार्केटिंग के कारण पीके 4 दिन में ही 100 करोड़ के क्लब में पहुंच गई। भारत के लोग धर्मप्राण लोग है और उदार भी। 'जय संतोषी मां' जैसी छोटे से बजट की फिल्म भारत में सुुपर डुपर हिट हो जाती है और 'ओह मॉय गाड' जैसी फिल्म भी चल पड़ती है। ऐसे में 'पीके' का चलना कोई बहुत आश्चर्य की बात नहीं है। 

धर्म पर बनी फ़िल्में खूब चलती  हैं। धर्म के विरोध  में बनी फ़िल्में भी खूब चलती हैं। लगता है कि धर्म आस्था और विश्वास से ज्यादा मनोरंजन का विषय बन गया है। 

पीके की कामयाबी का सबसे बड़ा कारण उसकी मार्केटिंग रणनीति है। राजकुमार हिरानी, विधुविनोद चौपड़ा और आमिर खान, फिल्म की वितरक यूटीवी मोशन पिक्चर्स की रणनीति के कारण फिल्म को अच्छा बिजनेस मिलना ही था। पीके एक साथ करीब 4 हजार सिनेमाघरों में भारत में और 844 सिनेमाघरों में विदेश में रिलीज हुई। पीवीआर समूह के 80 प्रतिशत सिनेमाघर में पीके एक साथ प्रदर्शित हुई। ये 80 प्रतिशत सिनेमाघर सवा चार लाख सीटों की क्षमता रखते है। इसके अलावा सिनेपोलिस के 110 सिनेमाघरों में यह फिल्म प्रदर्शित की गई। जिसकी क्षमता करीब 100,000 से अधिक है। इस तरह प्रतिदिन के शो में 25,00,000 दर्शक देख सकते है। इसी के साथ यह फिल्म छोटे शहरों में और सिंगल स्क्रीन थिएटरों में भी प्रदर्शित की गई। 


भारत के अलावा यह फिल्म उन 40 देशों में भी प्रदर्शित हुई जहां भारतीय मूल के लोग रहते है। इन 844 सिनेमाघरों में लगने वाली पीके में 10 भाषाओं में सबटाइटल  भी दिए गए थे। मध्यपूर्व, उत्तरीय अमेरिका, ब्रिटेन और नीदरलैण्ड में यह किसी भी भारतीय फिल्म का सबसे बड़ा प्रदर्शन था। सूरीनाम में करीब 500,000 भारतीय मूल के लोग है, जो भोजपुरी बोलते है, उन्होंने इस फिल्म का अच्छा प्रतिसाद दिया। ब्रिटेन में यह फिल्म 198 सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। ब्रिटेन में पहली बार किसी हिन्दी फिल्म के लिए 3 हफ्ते पहले से एडवांस बुकिंग  शुरू की गई थी। उत्तर अमेरिका में 75 स्थानों के 300 सिनेमाघरों में प्रदर्शित की गई। यहां तक की पाकिस्तान में भी यह फिल्म हिन्दी और अंग्रेजी में 70 सिनेमाघरों में प्रदर्शित की गई। पाकिस्तान में इस फिल्म के शो सुबह 9 बजे से अगले दिन सुबह 5 बजे तक लगातार दिखाए जाते रहे। इस फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत ने पाकिस्तानी प्रेमी युवक का रोल किया है। इसके अलावा आस्ट्रेलिया में 35 सिनेमाघरों में यह फिल्म प्रदर्शित हुई। इस बात का ध्यान रखा गया कि उन्हीं सिनेमाघरों में फिल्म लगे जहां 1000 सीटों से अधिक सीटें उपलब्ध हो। सिंगापुुर जैसे छोटे से देश में पीके 19 सिनेमाघरों में एक साथ रीलिज हुई। सिंगापुर के सबसे बड़े सिनेमाघर शृंखला ‘जीवी’ में पीके दिखाई जा रही है. 



पीके के प्रदर्शन की तैयारी महीनों पहले ही की जा चुकी थी। दिसंबर के महीने में तीसरा हफ्ता चुनने का कारण विद्यार्थियों की छुट्टियों का रहा। फिल्म के प्रचार में भी नए नए तरीके आजमाए गए। 31 जुलाई 2014 को,  फिल्म के रिलीज होने के साढ़े पांच महीने पहले ही आमिर खान का विवादास्पद पोस्टर बाजार में लाया गया। इसे बड़े अखबारों में पूरे पृष्ठ के विज्ञापन के रूप में प्रकाशित किया गया। आमिर खान को जिस ट्रांजिस्टर के साथ दिखाया गया उसकी नीलामी की भी खबरें प्रचारित की गई और यह कहा गया कि उसे डेढ़ करोड़ रुपए में खरीदने की बोली लग चुकी है। उसके बाद आमिर खान के नए-नए पोस्टर बाजार में आए, जिनमें उन्हें कभी बैंड वाले की पोशाक में तो कभी परंपरागत राजिस्थानी पोशाक में दिखाया गया। फिल्म बनी तो उसके सेटेलाइट अधिकार ही 85 करोड़ रुपए में बिक गए। फिल्म का संगीत 15 करोड़ में बिक गया। इस तरह 100 करोड़ रुपए तो फिल्म रिलीज होने के वक्त ही कमा लिए गए थे। 

कई लोगों का मानना है कि इसी विषय पर बनी ओह मॉय गाड (ओएमजी)  इससे बेहतर फिल्म थी। पीके में भले ही दिलचस्प विषय उठाया गया हो, यह बात तय है कि ऐसी फिल्म केवल भारत में ही बन सकती है और हिन्दू देवताओं के बारे में ही बन सकती है। इस फिल्म में कॉमेडी का तड़का इतना ज्यादा हो गया कि कॉमेडी के चक्कर में गंभीर मुद्दा गौण हो गया। फिल्म को देखकर निकले एक दर्शक ने कहा कि यह ऐसी फिल्म है जिसके किसी भी पात्र का कोई वैâरेक्टर नहीं है। यह फिल्म चरित्रहीन पात्रों को लेकर बनाई गई है। इस फिल्म में एलियन (आमिर) है, जो पहली लड़की को देखते ही फिदा हो जाता है। हीरोइन जग्गू (जगत जननी- अनुष्का शर्मा) है। जो किसी नौजवान लड़के से मिलती है और पहले ही दिन बिस्तर पर चली जाती है। सरफराज (सुशांत सिंह) ऐसे बंदा है जो एक दिन फिदा होता है और अगले ही दिन जुदा। चैनल का न्यूज हेड (बोमन ईरानी) डरपोक और बेअक्ल आदमी है। तपस्वी महाराज (सौरभ शुक्ला) एक चोर और ढोंगी है। जग्गू का पिता (परीक्षित सहानी) धर्मांध भक्त है।फुलझड़िया (रीमा) वैश्या है। बुलगारिया के बुग्रेस का बुड्ढा (राम सेठी) ४ डॉलर का चोट्टा है। भैरव सिंह (संजय दत्त) मूर्ख और लंपट व्यक्ति है। फिल्म के गानों की लाइनें भी यह बताती है कि हिन्दी फिल्मों के गीतों से भावनाएं और प्रेम के इजहार की बातें गायब है। एक गाने को बोल है नंगा-पुंगा दोस्त, दूसरा है ठरकी छोकरो और तीसरा है लव इज वेस्ट ऑफ टाइम...।

PK फिल्म का हर पात्र चरित्रहीन है! हर कैरेक्टर ढीला !!
--प्रकाश हिन्दुस्तानी 
24 दिसंबर 2014 





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