Tuesday, December 02, 2014

देश का सबसे अक्ल (दौलत) मंद टाइम्स मीडिया समूह

देश की सबसे ज्यादा कमाऊ मीडिया कंपनी  है  - बैनेट, कोलमैन एंड कंपनी । यह कंपनी टाइम्स ऑफ इंडिया, इकॉनोमिक्स टाइम्स, महाराष्ट्र टाइम्स, नवभारत टाइम्स, फेमिना, फिल्मफेयर जैसे अनेक प्रकाशनों के अलावा भी कई धंधों में है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया जो काम करता है,  उसी की नकल देश के दूसरे प्रमुख प्रकाशन समूह भी करते है। यह कंपनी अनेक भाषाओं के दैनिक अखबार छापना शुरू करती है, तो दूसरे अखबार मालिक भी नकल शुरू कर देते है। दैनिक भास्कर समूह, दैनिक जागरण समूह, अमर उजाला समूह, राजस्थान पत्रिका समूह जैसे ग्रुप ‘फॉलो द लीडर’ फॉर्मूले के तहत चलते है। टाइम्स ने मुंबई टाइम्स शुरू किया, भास्कर ने सिटी भास्कर चालू कर दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने जैकेट एड चालू किए, दूसरे अखबारों ने भी कर दिए। टाइम्स ऑफ इंडिया ने  8  की बजाय 10 कॉलम शुरू किए। दूसरे अखबारों ने भी विज्ञापनों में 10  कॉलम चालू कर दिए। टाइम्स ऑफ इंडिया रंगीन हुआ, तो दूसरे अखबार भी रंग-बिरंगे हो गए। टाइम्स ऑफ इंडिया ने क्लासीफाइड सेक्शन के फोन्ट का साइज छोटा किया तो दूसरे अखबारों ने भी नकल शुरू कर दी। टाइम्स ऑफ इंडिया ने जितने पुलआउट शुरू किए है, धीरे-धीरे हिन्दी के प्रमुख अखबारों ने भी किसी न किसी रूप में उससे मिलते-जुलते पुलआउट शुरू कर दिए। टाइम्स ऑफ इंडिया ने टीवी चैनल, इंटरनेट संस्करणों, नए पोर्टल, मोबाइल एप, रेडियो आदि शुरू किए, तो सब की निगाहें इस तरफ चली गई। टाइम्स ऑफ इंडिया देश के तमाम मीडिया घरानों के लिए ‘प्रॉफिट मेकिंग मीडिया कंपनी का मॉडल’ है। टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के हिन्दी अखबारों में भाषा की दुर्गति शुरू हुई, तो दूसरे हिन्दी प्रकाशनों ने भी उसे अपना लिया। टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रिंट और इंटरनेट संस्करणों में सेमी पोर्नो कंटेंट शुरू हुआ, तो सभी ने इसे सक्सेसफुल  बिजनेस फॉर्मूले की तरह अपना लिया। 

मैंने 15 साल से भी ज्यादा इस समूह में काम किया है। दावे से कह सकता हूं कि नौकरी करने के लिए इससे अच्छी कंपनी अभी तक नहीं मिली। यहां सरकारी कानूनों का अधिकतम पालन होता है। पत्रकारों को दूसरे जगह की तुलना में ज्यादा आजादी है। वेतन के बारे में इतना कहना ही काफी होगा कि इस कंपनी के 100  प्रतिशत कर्मचारी आयकर दाता है। टाइम्स ऑफ इंडिया प्रकाशन समूह में काम करने वाले चपरासी भी आयकर दाता है। एक जमाना था जब यह ग्रुप टाइम्स आई फाउंडेशन के नाम से एक संस्था चलाता था और नेत्रदान को बढ़ावा देने का काम करता था। पुस्तकों के विज्ञापन इसके प्रकाशनों में 50  प्रतिशत छूट पर छपते थे। विधवा महिलाओं के वैवाहिक विज्ञापन नाम मात्र की कीमत पर छापे जाते थे। अब न तो टाइम्स आई फाउंडेशन की गतिविधियां है और न ही पुस्तकों को बढ़ावा देने की कोई पहल। भारतीय ज्ञानपीठ के पीछे इसी समूह का प्रमुख योगदान रहा है।

अब जो टाइम्स ऑफ इंडिया या बैनेट, कोलमैन एंड कंपनी बची है, वह ऐसी कंपनी के रूप में जानी जाती है, जिसका एक मात्र और केवल एक मात्र लक्ष्य अधिक से अधिक मुनाफा कमाना है। इस कंपनी के वार्षिक मुनाफे का आकार हजार करोड़ से ऊपर है। अभी भी इसके प्रकाशन मुनाफा कमाने की दृष्टि से शीर्ष प्रकाशन की श्रेणी में रखे जा सकते है। इस कंपनी की चेयरमैन है श्रीमती इंदु जैन। जो एक परम विदुषी महिला है और जिनका दुनियाभर में बहुत सम्मान है। उनके बड़े बेटे समीर जैन इस कंपनी के वाइस चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। समीर के छोटे भाई विनीत जैन इस कंपनी के एमडी हैं। इसके अलावा समीर जैन की बेटी-दामाद भी कंपनी के डायरेक्टरों में शामिल हैं। भारत की इस सबसे कमाऊ मीडिया कंपनी के सर्वे-सर्वा इन दिनों जमकर माल कूट रहे हैं। कंपनीज एक्ट 1956 के सेक्शन 217 (2ए) के अनुसार किसी भी कंपनी के उन सभी कर्मचारियों और डायरेक्टरों के नाम उजागर करना आवश्यक है, जिनका वेतन 5 लाख रुपए या उससे अधिक प्रतिमाह है। 

बैनेट, कोलमैन एंड कंपनी की सालाना 2013-14  की रिपोर्ट में बताया गया है कि कंपनी 81 लोगों को इस श्रेणी में रखती है, जो पांच लाख रुपए प्रतिमाह से अधिक पाते है। दिलचस्प बात यह है कि इन 81 लोगों में से तीन लोग ऐसे है जो इसका आधे से भी ज्यादा हिस्सा पा रहे है। ये तीन लोग 58 प्रतिशत राशि पा रहे है और बचे हुए 78 लोग 46 प्रतिशत। इन बचे हुए 78 लोगों में से भी कंपनी के वाइस चेयरमैन विनित जैन की बेटी तृष्ला जैन और उनके पति सत्यन गजवानी भी शामिल है। 



सन् 2013-14 में कंपनी की चेयरमैन श्रीमती इंदु जैन ने 15 करोड़ 53 लाख रुपए मेहनताना पाया। उनके बड़े बेटे और वाइस चेयरमैन समीर जैन ने 37 करोड़ 52 लाख रुपए पाए। इन दोनों से ज्यादा कमाई कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर विनीत जैन की रही जिन्होंने 31 मार्च 2014 को खत्म हुए वित्तीय वर्ष में 46 करोड़ 38 लाख रुपए वेतन पाया। विनीत जैन को इसके अलावा 17 करोड़ 50 लाख रुपए ‘वन टाइम स्पेशल बोनस’ रुपए भी दिए गए। इस तरह विनीत जैन की कमाई 63 करोड़ 88 लाख रुपए रही। समीर जैन की बेटी ने इस वित्तीय वर्ष में 69 लाख रुपए पाए। जबकि उनके पति ने 51 लाख। बैनेट, कोलमैन एंड कंपनी पब्लिक लिमिटेड कंपनी है, जिसे अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करना ही पड़ती है, जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया समूह की कई कंपनियां ऐसी है जो प्रायवेट लिमिटेड कंपनी है। 

विनीत जैन का मेहनताना कंपनी ने लगातार बढ़ाया है। 2010-11 की तुलना में 2013-14 में उन्होंने 184 प्रतिशत ज्यादा वेतन पाया है। 2010-11 में समीर जैन सबसे ज्यादा तनख्वाह पाने वाले संचालक थे, जिन्होंने 18 करोड़ 70 लाख रुपए कमाए थे। उनके छोटे भाई विनीत ने 16 करोड़ 30 लाख और उनकी माता श्रीमती इंदु जैन ने 15 करोड़ 39 लाख रुपए मेहनताना पाया था। 2010-11 में समीर जैन के दामाद सत्यन गजवानी ने 93 लाख रुपए वेतन पाया था, तब वे कंपनी के सीईओ रवीन्द्र धारीवाल के एक्जीक्यूटिव आसिस्टेंट थे। 

यह जरूरी नहीं कि इस रिपोर्ट में दिखाया गया धन ही  सी2सी (यानि कॉस्ट टू कंपनी) हो। बैनेट, कोलमैन एंड कंपनी में करीब 11 हजार कर्मचारी काम करते है। जिनमें सबसे ज्यादा वेतन पाने वाले गैर जैन अधिकारी है। कंपनी के सीईओ रवीन्द्र धारीवाल। उन्हें कुल मिलाकर 2013-14 में पांच करोड़ 58 लाख रुपए मिले। 4 साल पहले उनका वेतन 3 करोड़ 8 लाख रुपए था। इस कंपनी के अन्य हाइली पैड अधिकारियों में अरुणाभदास शर्मा (ईडी एंड प्रेसीडेंट) है. जिन्हें 3 करोड़ 66 लाख वेतन मिला है। सीओओ श्रीजीत मिश्रा को 2 करोड़ 91 लाख, आर. सुन्दर को 2 करोड़ 64 लाख, जॉय चक्रवर्ती को 2 करोड़ 29 लाख रुपए वेतन मिला। 

इन 81 उच्चतम वेतन पाने वालों में संपादकीय विभाग के 10 लोग भी नहीं है। 11वें नंबर पर टाइम्स ऑफ इंडिया के एडिटोरियल डायरेक्टर जयदीप बोस है, जिन्हें 1 करोड़ 94 लाख रुपए मिले, जबकि सन 2010-11 में उनका वेतन 4 करोड़ 24 लाख रुपए था। इस बारे में बताया गया है कि उनका मेहनताना लगभग आधा नहीं किया गया, बल्कि पूर्व के वेतन भत्तों में से कुछ एडजस्ट किया गया है। इकोनॉमिक्स टाइम्स के एडिटोरियल डायरेक्टर राहुल जोशी, इकोनॉमिक्स टाइम्स के ही आर. श्रीधरण, निकुंज डालमिया सीनियर एडिटर, शैलेन्द्र स्वरूप भटनागर चीफ एडिटर मार्केट एंड रिसर्च, संतोष रामचंद्र मेनन असिस्टेंट एक्जीक्यूटिव एडिटर, बोधीसत्व गांगुली डेप्यूटी एक्जीक्यूटिव एडिटर, ओमर कुरैशी सीनियर वीपी और नबील मोहिद्दीन उन लोगों में शामिल है, जिन्हें कंपनी ने सबसे ज्यादा वेतन पाने वालों में गिना है। इन 81 लोगों में हिन्दी-मराठी के किसी भी प्रकाशन का कोई भी व्यक्ति नहीं है। 


यह कोई छोटी बात नहीं है कि जब दुनियाभर में अखबार प्रकाशित करने वाली कंपनियां मुनाफे के लिए संघर्ष कर रही है, तब टाइम्स ऑफ इंडिया समूह  देश का सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाले समूह के रूप में अपनी धाक जमा रहा है। इस पूरी कंपनी पर जैन परिवार का ही नियंत्रण है। कंपनी की वित्तीय स्थितियों के बारे में जानकारियां कम ही बाहर आ पाती है। अब इस कंपनी के शेयर देश के शेयर बाजारों में लिस्टेड है। इस समूह में बैनेट, कोलमैन एंड कंपनी के अलावा 63 कंपनियां शामिल है। 

इस कंपनी की तरक्की की तेजी की शुरूआत 1987 में हुई जब अशोक कुमार जैन से उनके बेटे समीर जैन ने कामकाज संभाला। समीर जैन ने आक्रामक तरीके से समूह के कारोबार को फैलाया आदर्शवादी नीति को उन्होंने दरकिनार कर दिया और मुनाफे, केवल मुनाफे पर ध्यान केन्द्रित किया। वे सारे प्रकाशन, जो समूह के कुल मुनाफे का 2 प्रतिशत या उससे कम देते थे, बंद कर दिया गया। इलेस्ट्रेटेट वीकली ऑफ इंडिया, इवनिंग न्यूज ऑफ इंडिया, धर्मयुग, पराग, सारिका, यूथ टाइम्स, दिनमान,  टाइम्स ईयर बुक आदि बंद कर दिए गए।

अपने दृष्टिहीन युवा बेटे की मृत्यु के बाद समीर जैन कुछ-कुछ आध्यात्मिक हो गए और हरिद्वार में एक कोठी बनवाकर गंगा किनारे काफी समय बिताने लगे, लेकिन वे आध्यात्मिक तभी होते है जब उनका ठिकाना हरिद्वार में हो। हरिद्वार छोड़ते ही वे एकदम हार्डकोर बिजनेसमैन बन जाते है। अब उम्र के छह दशक पूरे करने वाले समीर जैन ने अपने छोटे भाई विनीत को प्रमुख जिम्मेदारियां सौंप दी है। विनीत जैन भी बिजनेस के मामले में अपने पिता या मां पर नहीं, बड़े भाई पर गए है। 

समीर जैन से भी ज्यादा आक्रामक और तेजी से फैसले लेने वाले विनीत जैन ने एक अमेरिकी पत्रिका को इंटरव्यू में कहा कि हम कोई मीडिया या न्यूज के बिजनेस में नहीं है, हम है विज्ञापन के बिजनेस में। अगर हमारी इनकम का 90 प्रतिशत हिस्सा विज्ञापनों से आता है तो हमें यह कहने में हर्ज नहीं होना चाहिए कि हम विज्ञापन की दुनिया के लोग हैं। 

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