Wednesday, December 24, 2014

मदन मोहन मालवीय को भारत-रत्न देने का अर्थ !


                                                                                       
        

    मालवीय जी बीएचयू के संस्थापक न होते तो भी क्या उन्हें भारत-रत्न मिलता? कल 25 दिसंबर को मालवीय जी के जन्मदिन के मौके पर बीएचयू में एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मालवीय जी को भारत रत्न की घोषणा करनेवाले थे, लेकिन एक दिन पहले ही राष्ट्रपति जी के एक ट्विट ने मालवीय जी और अटल बिहारी वाजपेयी को भारत-रत्न की सूचना देकर इस मामले में नया मोड़ दे दिया.
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--मदन मोहन मालवीय ने स्काउट के क्षेत्र में भी कार्य किया और स्काउट से ही प्रेरित होकर उन्होंने सेवा समिति नाम की संस्थाएं बनाई। 

--मदन मोहन मालवीय के पूर्वज मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र से इलाहाबाद आए थे। इसीलिए उन्हें मालवीय कहा गया। 

--बीएचयू की स्थापना में उन्होंने ७ साल तक कठोर मेहनत की। 

--इंदौर के श्री गौड़ विद्या मंदिर की स्थापना में उनकी प्रमुख भूमिका थी।
--'सत्यमेव जयते' उनका बोधवाक्य था. 

--बीएचयू भारत का ऐसा विश्वविद्यालय है जिसका क्षेत्रफल दो हिस्सों में करीब 4000 एकड़ का है। इस विश्वविद्यालय की अपनी हवाई पट्टी भी है। 

--बनारस के घाट से गंगा नदी का पानी नहर द्वारा विश्वविद्यालय परिसर तक लाया गया. 


पं. मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न देने की घोषणा सुखद है। उन्होंने शिक्षा, पत्रकारिता, वकालत, स्वाधीनता संग्राम जैसे क्षेत्रों में इतना महत्वपूर्ण कार्य किया है कि अगर उन्हें हरेक क्षेत्र के लिए अलग-अलग भारत रत्न भी दिया जाए, तो कम होगा; पर भारत रत्न एक ही बार दिया जा सकता है। देर से ही सही पंडित मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न देने से भारत रत्न सम्मान की ही गरिमा बढ़ेगी। 

1909 और 1918 में पं. मदन मोहन मालवीय अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके है। इसलिए कोई यह भी नहीं कह पाएगा कि उन्हें भारत रत्न देने का पैâसला भाजपा की सरकार का दलगत फैसला है। वाराणसी के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना करने में उनका प्रमुख योगदान रहा है। गंगा की सेवा में भी उन्होंने उस दौर में अभियान चलाए है जब कोई गंगा की बात नहीं करता था। बीएचयू में उन्होंने एक विशाल गौशाला की स्थापना की, जो गाये के प्रति उनके धार्मिक और पर्यावरणी योगदान का प्रतीक थी। वे हिन्दुस्तान टाइम्स समूह के चेयरमैन भी रहे और उन्हीं के प्रयासों से समूह का हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान प्रकाशित होने लगा। पत्रकारिता में उनका योगदान ‘भारत’ अखबार को लेकर भी माना जाता है। 

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना 1916  में हुई थी। लगभग 100 साल से यह विश्वविद्यालय भारत का प्रमुख विश्वविद्यालय है। वे इस विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे और उनके बाद डॉ. एस. राधाकृष्णन भी इस विश्वविद्यालय के कुलपति रहे है। डॉ. राधाकृष्णन बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति बने। जिस दौर में पं. मदन मोहन मालवीय ने कार्य किया वह दौर जातिवादी और सांप्रदायिक था। मालवीय जी ने जाति परंपरा को तोड़ने के प्रयास किए और सैकड़ों की संख्या में पिछड़े वर्ग के लोगों को मंदिरों में प्रवेश करवाया।

भारत के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ में ‘सत्यमेव जयते’ भी है। पं. मदन मोहन मालवीय ने सत्यमेव जयते को अपना गुरु मंत्र माना  और हमेशा इसी दिशा में कार्य किया। पं. मदन मोहन मालवीय ने कांग्रेस की स्थापना के एक साल बाद ही कांग्रेस में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी थी। कांग्रेस के अधिवेशन में उनके प्रभावशाली भाषण से कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष दादा भाई नौरोजी और राजा रामपाल सिंह बहुत प्रभावित हुए। जिनके प्रेरणा से वे हिन्दी साप्ताहिक हिन्दुस्तान शुरू कर पाए। बाद में यह अखबार दैनिक समाचार पत्र में परिवर्तित हुआ। ढाई साल संपादक रहने के बाद उन्होंने विधि की पढ़ाई शुरू की और इलाहाबाद में पढ़ाई करने लगे, उसी दौरान उन्हें अंग्रेजी दैनिक द इंडियन यूनियन के संपादक का कार्य करने का मौका मिला। 1891 में उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। 1916 में हुए लखनऊ पैक्ट के तहत मुसलमानों को अलग से चुनाव क्षेत्र दिए जाने का उन्होंने विरोध किया। 

वकालत के क्षेत्र में काम करते हुए उनमें संन्यास की भावना जागृत हुई और उन्होंने अपना जीवन समाज सुधार के काम में समर्पित करने का फै सला किया। अपने इस फैसले से वे हटे जब उन्हें पता चला कि अंग्रेजी हुकूमत ने चोरी-चोरा कांड में177 स्वाधीनता सैनानियों को फांसी की सजा सुनाई है। पं. मदन मोहन मालवीय ने स्वाधीनता सैनानियों का केस लड़ा और उनमें से 156 1928 स्वाधीनता सैनानियों को निर्दोष साबित करके अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराया। कांग्रेस के खिलाफत आंदोलन से वे जुड़े रहे। संतुष्टिकरण की नीति के खिलाफ भी उन्होंने काम किया और असहयोग आंदोलन में उनकी बड़ी भूमिका रही। 

सायमन कमीशन के खिलाफ बगावत करने वालों में मालवीय जी भी प्रमुख थे। 1928 में हुए इस आंदोलन में लाला लाजपत राय और पंडित जवाहर लाल नेहरु के साथ उन्होंने कंधे  से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी। 1932 में स्वदेशी आंदोलन के भी वे अगुवा रहे। नाफरमानी आंदोलन में वे कांग्रेस के 450 स्वयंसेवकों के साथ जेल भी गए। 
--प्रकाश हिन्दुस्तानी 
24 दिसंबर 2014 

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