Saturday, December 13, 2014

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (5 अप्रैल 2014  को प्रकाशित)



ये चुनाव भी कोई चुनाव है लल्लू?

इंदौर में लोकसभा के लिए मतदान में तीन हफ्ते भी हैं, लेकिन अखबार और टीवी चैनल के अलावा कहीं माहौल ही नहीं है। एक वह जमाना था जब चुनाव के महीने-डेढ़ महीने पहले शोर-गुल शुरू हो जाता था। तांगे- ऑटो पर लाउड स्पीकर लग जाते थे, दिन-रात प्रचार चलता रहता था।  जीतेगा भाई जीतेगा...फलानेजी  संघर्ष करो, हम आपके साथ हैं... देश का नेता कैसा हो .... जैसा हो.... जैसे नारे जगह-जगह सुनने को मिलते थे।  बच्चे चुनाव प्रचार में ज्यादा धूम मचाते। तरह-तरह की टोपियां, बिल्ले, चुनाव चिह्न के कटआउट बंटते। घरों पर पार्टियों के झंडे लहराते दिखते। पार्टी कार्यकर्ताओं की इज्जत होती थी, उन्हें किंग मेकर समझा जाता था। पान की दुकानों और चाय की गुमटियों पर राजनैतिक ज्ञान की गंगा बहती रहती। काका जोगिन्दर सिंह (धरतीपकड़), कर्नाटक के एचपी रंगास्वामी, डॉ. सुबुद्धि की चर्चा हर जगह होती। इन महानुभावों ने कभी चुनाव नहीं जीता, उल्टे दर्जनों बार हर चुनाव में जमानत जब्त कराकर नाम कमाया था। जैसे इंदौर में सुमित्रा महाजन ने सात बार से हर बार चुनाव जीतकर रिकॉर्ड बनाया, वैसे ही डॉ. सुबुद्धि ने तो लगातार 23 बार लोकसभा व विधानसभा चुनाव लड़कर हर बार जमानत जब्त कराने का रेकॉर्ड बनाया। उनका चुनाव एजेंडा हर बार एक ही होता था- 60 साल से बड़े नेताओं के चुनाव लडऩे पर रोक और दो जगह से किसी भी उम्मीदवार के लडऩे पर प्रतिबंध।
   अब तो लग ही नहीं रहा कि आम चुनाव होने वाले हैं। चुनाव आयोग ने लाउड स्पीकरों पर प्रचार पहले ही बंद करा दिया था, अब तो हर गतिविधि पर उसकी निगाहें रहती हैं। टीवी देखो या और अखबार पढ़ो तभी लगता है कि चुनाव आने वाले हैं। होर्डिंग पर रोक, प्रचार पर रोक, रैलियों पर नियम, शराब बांटने पर रोक, वोटरों को घुमाने-फिराने पर रोक, अखबारों में विज्ञापनों पर रोक, पार्टी खिलाने पर कंट्रोल... अब क्या खाक मजा बचा चुनाव में? बची-खुची कसर इंदौर में बीजेपी की उम्मीदवार ने पूरी कर दी।  अब ये विरोधी पार्टी वाले उनको चुनाव में टक्कर देने की जगह बलि का बकरा तलाशेंगे तो वोटरों को क्या खाक मजा आएगा? सुमित्रा ताई की जीत तय मानी जा रही है और उधर इंदौर के सट्टा बाजारी मुंह लटकाए बैठे हैं। और तो और बेचारे कार्टूनिस्ट भी बोर हो गए हैं और पिछले चुनाव के कार्टून ही रिपीट कर रहे हैं। जब चुनाव में ही कुछ नया नहीं है तो नया कार्टून क्या बनाना? चुनाव आयोग का नारा है सारा काम छोड़ दो, सबसे पहले वोट दो। आपके वोट से सरकार बनती है। हां भाई बनती है, पर सरकार के लिए विरोधी पार्टी यानी विपक्ष का होना भी तो जरूरी है।  किसको जीतना है, ये तो तय है है फिर काहे को करें मारामारी? चुनाव आयोग ने कितना जनविरोधी काम किया है- मतदान रखवाया है 24 अप्रैल को, यानी गुरुवार को।  शनि या सोम को मतदान होता तो सलंग छुट्टी मिल जाती। 
--प्रकाश हिन्दुस्तानी ©2014
(5 अप्रैल 2014  को प्रकाशित)

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