Monday, September 01, 2014

सड़कें कैसी-कैसी !

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (30 अगस्त  2014)



बचपन में सड़कों के बारे में दो ही तरह की जानकारी थी। कच्ची सड़क और पक्की सड़क। गिट्टी और मिट्टी से जो सड़क बनती थी उसे कच्ची सड़क कहा जाता था, जिसके ऊपर मुरम बिछा दी जाती थी और दूसरी होती थी डामर की सड़क जिसे पक्की सड़क कहा जाता था। जैसे-जैसे बड़े होते गए, सड़कों के बारे में भी ज्ञान बढ़ता गया। सरकार का भी ज्ञान सड़क के बारे में बढ़ता गया। पहले इतना ही पता था कि कच्ची सड़क बनाने में ठेकेदार और नेता को कम कमाई होती है और पक्की सड़क बनाने में ज्यादा। 

अब कच्ची सड़कों का जमाना नहीं रहा। इसका सीधा अर्थ यह है कि नेताओं और ठेकेदारों की कमाई ज्यादा हो रही है। पहले सड़क बनाते वक्त केवल एक ही बार कमाई होती थी, कभी मौका मिलता तो उसे रिपेयर करने के नाम पर चाय-पानी का खर्चा निकल जाता होगा। अब सड़वेंâ ज्यादा सुविधाजनक और स्थायी कमाई का जरिया बन गई है। नेता और ठेकेदारों के अलावा गुंडों का भी आश्रयस्थल है यह सड़वेंâ। गुंडों का लायसेंसशुदा ठिया। गुंडों के बिना सड़वेंâ नहीं बन सकती और गुंडों के बिना उन सड़कों से कमाई नहीं हो सकती। 

अब सड़कों के नाम पर हाई-वे, प्रâी-वे, वैâरेज-वे, मोटर-वे, बाय-वे, ड्राय-वे, ट्रंक रोड, एक्सप्रेस-वे, सर्विस रोड, बायपास, सुपर कॉरिडोर, लिंक रोड और लेन होने लगी है। अपनी सुविधा से कोई भी नाम बोल दीजिए, पक्की सड़क ऐसी ही होती है। इंदौर में आजकल एक और सड़क लोगों के जी का जंजाल बनी हुई है, जिसे बीआरटी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सुपर एक्सप्रेस-वे या हाइ-वे अथवा प्रâी-वे ऐसी सड़क को कहते है जहां वाहन मल्टीलेन में चल पाते है, जहां ट्रैफिक क्रासिंग न हो, जहां सिग्नल न हो, जहां पार्विंâग न हो, जहां स्टॉपिंग न हो, जहां साइकिल, पैदल, स्वूâटर, बैलगाड़ी, ट्रैक्टर-ट्रॉली आदि नहीं चल पाती हो। यानि तेज गति के यातायात के लिए इन सब चीजों को वर्जित कर दिया जाता हो। यह बात और है कि इंदौर में ऐसा कुछ नहीं है। सबसे खास बात यह है कि ऐसे एक्सप्रेस-वे पर जाने के लिए टोल देना पड़ता है। इस टोल की वसूली सड़क बनाने वाली वंâपनी करती है। इसी टोल से सड़क का मैंटेनेंस किया जाता है। जगह-जगह ऐसी सड़कों पर टोल वसूली के लिए ठेकेदार के गुंडे बैठे होते है, जिनका काम लोगों से डरा-धमकाकर वसूली करना भी होता है। दूसरे राज्यों से आए ट्रक ड्रायवर इनके खास शिकार होते है। यह गुंडे लायसेंसशुदा गुंडे होते है और जहां वसूली नहीं करनी हो, वहां भी वसूली करते है। एक तरफा यातायात हो तो दो तरफा यातायात की वसूली करती है। निर्धारित शुल्क से ज्यादा झपट लेते है और उस सबका हिस्सा ठेकेदार के अलावा अफसरों और नेताओं तक भी पहुंचाते है। यह टोल आजकल भारत की सबसे बड़ी इंडस्ट्री बने हुए है। जरुरी नहीं है कि यह सड़क बनाने के बाद ही वसूली करें। आजकल इन्होंने बिना बनी और बिना मेंटेनेंस वाली सड़कों पर भी वसूली के रास्ते निकाल लिए है। कानून कायदे इन लोगों के लिए मामूली बात है। 

इंदौर शहर की बात करें तो यहां तरह-तरह की सड़वेंâ है। इनमें से ४ तरह की सड़वेंâ बहुत ही लोकप्रिय है। बायपास, लिंक रोड, सुपर कॉरिडोर और बीआरटी। यह सड़वेंâ लोगों को आने-जाने के अलावा बिल्डरों के भी काम आती है। विज्ञापन में यह बात लिखते ही कि उनके प्रोजेक्ट किस सड़क के पास है उनके प्रोजेक्ट के दाम बढ़ जाते है। इनमें से कुछ मार्गों पर अतिक्रमण करने के अच्छे भाव मिलते है। इसके पहले इंदौर में बान्ड सड़वेंâ भी लोग देख चुके है। इनमें सबसे दिलचस्प है बीआरटी की सड़वेंâ। बस रैपिड ट्रांसपोर्ट के लिए बना यह सड़क मार्ग इंदौर का वीआईपी सड़क मार्ग है। इस स़ड़क से आई-बस के अलावा केवल ४ पहिया वाहन ही गुजरते है। दिलचस्प नजारा तो तब देखने को मिलता है जब झाड़ू लगाने वाले कर्मचारी भी इन सड़कों की तो झाड़ू लगाते है, लेकिन इसके दोनों और बनी सड़कों को देखते तक नहीं। जब इस बारे में एक सफाईकर्मचारी से पूछा गया तो उसने कहा कि यह कलेक्टर की सड़क है और इसके दोनों तरफ महापौर की। 

तो यह है मजेदार बात कि इंदौर में सड़वेंâ भी कलेक्टर, महापौैर, आईडीए और पार्षदों की होती है। हर सड़क के अपने किस्से है, अपना इतिहास है और अब भविष्य भी। क्या पता कब किसी पार्षद की सड़क कलेक्टर की सड़क बन जाए। क्या बता कब कोई गली रीवर कॉरिडोर में तब्दील हो जाए। 
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वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (30 अगस्त  2014)

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