Saturday, September 27, 2014

जीतन राम मांझी के ७ बिंदास बचन


वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (27 सितम्बर   2014)


मुझे बिहार  मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की साफगोई पर फ़ख़्र  होता है।  कम से कम एक मुख्यमंत्री तो है जो सच बोलने की हिम्मत रखता  है. यह बात दीगर है कि लोग उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते और यह पापी मीडिया उनके ख़िलाफ़ ज़हर उगलता है।  अपने जीवन  में वे हमेशा खरे उतरे हैं। गौर कीजिए कि जिस बन्दे ने कड़ी  मेहनत के बाद  पढ़ाई की, फिर क्लर्क  नौकरी की और फिर राजनीति में पैर रखा, विधायक बना और जब मंत्री बना तो मुख्यमंत्री ने शपथ लेते ही आरोपों चलते कुछ ही घंटों में हकाल दिया. कोर्ट ने आरोप ख़ारिज कर दिए। आज वहीँ बंदा सीएम होकर भी सच बोलता है तो लोगों को तकलीफ क्यों?

बयान नंबर  एक : ''दारू को दवा समझकर थोड़ी-थोड़ी ले लेने में हर्ज़ नहीं।''  इसी बात को जब  पंकज उधास ने गाकर कहा --'महँगी बहुत हुई शराब तो थोड़ी थोड़ी पिया करो'  तो सारी  दुनिया के लोग इसे गाने लगे. पंकज उधास ने तो यहाँ तक कहा कि 'पियो लेकिन रखो हिसाब ! थोड़ी थोड़ी पिया करो' !! तब भी किसी को बुरा नहीं लगा। मांझी साहब ने तो केवल पीनेभर की बात कही। मैं मांझी साहब की साफगोई पर उनके बयां  समर्थन करने में कुछ गलत  नहीं समझता। महंगाई बहुत है, ऐसे में भरपेट पीना संभव भी नहीं है. 

बयान नंबर दो : ''चूहा मारकर खाना खराब बात नहीं है. मैं भी चूहा खाता था''.  श्री  मांझी शौकिया तौर पर चूहा खाने की बात कर रहे थे जबकि लोगों ने उन पर तोहमतें लगाना शुरू कर दिया। लोग बैंकाक, सिंगापुर, शंघाई, टोकियो और न कहाँ कहाँ जाते हैं और वहां हजारों खर्च करके क्या खाते हैं पता है आपको? केंकड़े, साँप, बन्दर, कीड़े-मकोड़े, घोंघे, कॉक्रोच  और समुद्री जीव-जंतु!  हमारे बॉलीवुड की दर्जनों हीरोइनें कहती हैं --आई लव सी फ़ूड ! ये सी फ़ूड क्या होता है कभी सोचा है? चूहे फ़ोकट में मिलते हैं. इस पर कहे की आपत्ति?

बयान नंबर तीन : ''बच्चों की पढ़ाई के लिए अगर व्यवसायी कालाबाजारी करते हैं तो इसमें कोई गलत बात नहीं है. दो-चार हजार करोड़ की कालाबाजारी करने वालों पर सख्ती की जरूरत है।'' अब आप ही बताइए क्या गलत कहा? पटवारी, इंजीनियर, डॉक्टर, क्लर्क के यहाँ छापा मारना और 'तीन करोड़ का क्लर्क' जैसी फालतू खबरें बनवाना केवल समय खोटी करना ही तो है।  जब दो दो हजार करोड़ के घोटालेबाज छूट जाते हैं तब ये भी छूट ही जाएंगे। टाइम बर्बाद करने का कोई औचित्य नहीं है। 

बयान नंबर चार :  ''कालाबाजारी  और टैक्स चोरी सही है, बशर्त है कि चोरी थोड़ी मात्रा में हो और नेक इरादे से की जाए।'' हर कोई तो कहता है कि आटे में नमक बराबर चोरी चलती है, नमक में आटे समान नहीं. फिर माननीय सी एम ने यह भी तो कहा कि यह नेक इरादे से की जाए तो....अब आप ही देखिए उन्होंने यह नहीं कहा कि बलात्कार सही है अगर नेक इरादे से हो तो। उन्हें पता है कि बलात्कार नेक इरादे से हो ही नहीं सकते, इसलिए यह कहा ही नहीं। 

बयान नंबर पांच :''घूस खानी है तो खुद खाओ, दूसरों को मत खिलाओ''. कितने पवित्र विचार ! हम सुधरेंगे युग सुधरेगा। हम बदलेंगे युग बदलेगा। सच है या नहीं?

बयान नंबर छह : ''अगर दलितों को राजनीतिक ताकत बनना है तो उन्हें जनसंख्या भी बढ़ानी  होगी।  हमें अपनी जनसंख्या को 16 से बढ़ाकर 22 फीसदी करनी पड़ेगी।'' ऐसी बात कहने के लिए कलेजा चाहिए क्योंकि इस ज़माने में जहाँ जमात, वहीँ करामात!

बयान नंबर सात : ''सरकारी स्कूल की हालत पब्लिक  ट्रांसपोर्ट की गाड़ी जैसी ''.  हमारे प्रदेश में भी तो यही हाल है।  आगे नाथ न पीछे.... 

मैं सोचता हूँ कि काश ! हमारे प्रदेश में भी कोई ऐसा ही सच्चा सीएम होता जो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में जाकर भाषण पेल सकता। आजकल मांझी साहब  ब्रिटेन में विदेशी निवेश को आकर्षित करने गए  हैं। वे ब्रिटेन की संसद में भी जाएंगे। 
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वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (27 सितम्बर   2014)

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