Monday, October 06, 2014

आपकी निजी पत्नी कैसी हैं?

'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (04 अक्टूबर 2014)



वह मित्र नाराज हुए जब मैंने उनका हाल पूछने के बाद उनसे पूछा- 'आपकी निजी पत्नी कैसी हैं?

कहने लगे - 'पत्नी तो निजी ही होती है।

मैंने कहा - 'आप ही तो कहते हो  'हमारी वाइफ ने हमें मिस किया। हमारी वाइफ हमारे बिना खाना नहीं खाती। हमारे बिना हमारी वाइफ बिस्तर पर नहीं जाती क्योंकि हमारे बिना उन्हें नींद नहीं आती है।  'हमारी वाइफ और हम पिक्चर देखने गए थे। 'हमारी वाइफ ने आज बहुत शॉपिंग की। 'हमारी वाइफ आज बहुत बिजी है। मैंने यह तो नहीं पूछा कि 'हमारी वाइफ कैसी हैं?

वह बिदक गए - 'बड़े बदतमीज हो यार! अपनी भाभी को ऐसे बोल रहे हो? ऊपर से कह रहे हो कि मैंने 'हमारी वाइफ नहीं कहा।  कह के तो देखो अभी तुम्हारा मुंह तोड़ देता हूं

मैंने दोहराया- 'मेरी आदरणीय भाभी कैसी हैं?

'साले, आज से मेरी-तेरी दोस्ती खत्म! ईडियट! उसने कहा

'ओके! मैंने कहा। फिर सोचने लगा कि कई लोग हर जगह 'मैं की जगह 'हम क्यों बोलते हैं? हमारा घर, मोहल्ला, शहर जैसी बात तो ठीक है, पर हमारी वाइफ! यह बात बिलकुल हजम नहीं होती। (मेरी निगाह में 'हमारी वाइफ कहने का अधिकार तो केवल पांडवों को था, जिनकी 'हमारी द्रोपदी थी। दुर्योधन ने शायद ही भानुमति को 'हमारी धर्मपत्नी कहा हो। 'हम फस्र्ट आ  गए। 'हमने अकेले ही काम कर डाला। 'हम गूसलखाने जा रहे हैं। भैया, गूसलखाने जाते हो तो अकेले ही जाते हो या पूरे मोहल्ले साथ? गूसलखाने नहीं,  स्टेशन के पास रेल की पटरी पर सामूहिक दिशा-मैदान के लिए जाते हो क्या? सामूहिक रूप से।  'हम फर्स्ट आ गए! तो क्या एक-दो लाख लोग फर्स्ट आते हैं?

कई लोग 'मैं और 'हम के बीच अंतर नहीं कर पाते। उन्हें लगता है कि अगर वे 'मैं की जगह 'हम कहेंगे तो उनकी बात का वजन बढ़ जाएगा और वे भी नवाबों-राजा-महाराजाओं की तरह सम्मान पाएंगे। दिलचस्प बात यह है कि ये ही लोग अकसर 'हम की जगह 'मैं बोलने लगते हैं। कोई काम पूरी टीम कड़ी मेहनत के  बाद संपन्न करेगी तब बोलते हैं -'मैंने टास्क पूरा लिया।  मैंने  मेहनत की, मैंने रात-दिन काम किया, आदि आदि, जबकि असलियत यह होती है कि सारा का सारा काम पूरी टीम कर रही होती है और क्रेडिट लेने लग जाते हैं ऐसे लोग! राजनीति में यह हमेशा ही होता है, मेहनत कोई करता है और फल कोई और खा जाता है।

खुशी की बात है कि साहित्य में तो कम से कम ऐसा नहीं है। साहित्यकार मैं और हम का अर्थ खूब जानते हैं। तभी तो किसी कवयित्री ने लिखा है -मैं, मैं हूं और तुम, तुम! काश मैं और तुम मिलकर हम बन जाते!

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 'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (04 अक्टूबर 2014)

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