Saturday, March 01, 2014

(वीकेंड पोस्ट के  1 मार्च 2014   के अंक में  मेरा कॉलम)


  हे भगवान, तेरा शुक्र है … 

अगर राजनीति में भी छद्म नाम का चलन बंद हो जाए तो पहचान का संकट ही पैदा हो जाए। फिल्मों में यूसुफ़ खान दिलीप कुमार के नाम से जाने जा सकते हैं, राजीव हरी ओम भाटिया को लोग अक्षय कुमार के नाम से पहचान सकते हैं, मुमताज जहाँ बेगम देहलवी को लोग मधुबाला के नाम से पहचान सकते हैं, अजय देओल को सनी देओल के नाम से पहचान सकते हैं, पर अगर कोई उसके नेता-पिता-अभिनेता धर्मेन्द्र  को दिलावर खान पुकारे तो कौन पहचानेगा?  कौन पहचानेगा भाजपा की नेत्री हेमा मालिनी को आयशा बी कहें तो कौन पहचानेगा?   



आजकल जो कुछ हो रहा है उसे देखते हुए हर दिन अनेक बार मुंह से निकलता है कि हे भगवान, तेरा शुक्र है। 

-- हे भगवान, तेरा शुक्र है कि चीयर लीडर्स क्रिकेट में ही होती हैं, अगर राजनीति में भी होतीं तो? आप  नरेंद्र मोदी की सभा सुन रहे हों, वे कोई डॉयलाग बोलें  और चीयर लीडर्स झूम झूम कर नाचने लगें। बाद में विवाद हो कि फलां चीयर लीडर तो विदेशी बाला  थी और उसे बुलवाना अनैतिक कृत्य था! केजरीवाल कोई आरोप मढ़ें और चीयर लीडर लगे कूल्हे मटकाने ! क्या नज़ारा हो सकता है! क्रिकेट अगर तमाशा है तो फिर चुनाव को भी नेताओं ने तमाशे से क्या कम रहने  दिया है? राहुल गांधी मंच पर अपनी दादी, पापा, ग्रेट ग्रैंड फादर के बलिदान का जिक्र छेड़ें और चीयर लीडर का डांस चालू !

-- हे भगवान, तेरा शुक्र है कि आईपीएल में ही खिलाडियों की नीलामी होते है।  अगर राजनीति  के खिलाड़ियों  की भी नीलामी शुरू हो जाए तो? यहाँ नेताओं को तो कोई खरीदेगा नहीं, पर हो सकता है कि नेता लोग खुद पदों की बोलियां लगाने लगें।  नगर अध्यक्ष से लेकर बड़े बड़े मंत्री पद की बोलियां लगने लगे, जो ज्यादा का ऑफर दे, उसकी कुर्सी पक्की। जो सेवा भावी हो, उसे आजीवन निशुल्क सेवा का मौका दिया जाए और वह बेचारा बिना मेवे के सेवा करता रहे। 

-- हे भगवान, तेरा शुक्र है कि फिल्मों की तरह राजनीति में भी छद्म नाम चलते रहते हैं। अगर राजनीति में भी छद्म नाम का चलन बंद हो जाए तो पहचान का संकट ही पैदा हो जाए। फिल्मों में यूसुफ़ खान दिलीप कुमार के नाम से जाने जा सकते हैं, राजीव हरी ओम भाटिया को लोग अक्षय कुमार के नाम से पहचान सकते हैं, मुमताज जहाँ बेगम देहलवी को लोग मधुबाला के नाम से पहचान सकते हैं, अजय देओल को सनी देओल के नाम से पहचान सकते हैं, पर अगर कोई उसके नेता-पिता-अभिनेता धर्मेन्द्र  को दिलावर खान पुकारे तो कौन पहचानेगा?  कौन पहचानेगा भाजपा की नेत्री हेमा मालिनी को आयशा बी कहें तो कौन पहचानेगा?   संगीतकर ए  एस दिलीप कुमार को कौन पहचानता है, अल्लाह रक्खा रहमान यानी  ए आर रहमान को सब जानते हैं!

-- हे भगवान, तेरा शुक्र है कि इतनी महंगाई, इतनी मारा मारी, इतने दंगों-फसादों के बाद भी हमारा विश्वास कायम है।  कई बार तो हालत संता सिंह जैसी हो जाती है।  हुआ यह कि एक दिन संता अपनी बेटी को बुलाने उसके कमरे में गया. उसने दरवाज़ा थोड़ा सा खोला तो अंदर से सिगरेट की गंध आई.
“हे भगवान … मेरी बेटी सिगरेट पीती है !”
दरवाज़ा थोड़ा सा और खोला तो सामने टेबल पर व्हिस्की से भरा  गिलास दिखाई दिया ….
“ओह नो !!! ये तो शराब भी पीने लगी है !!!”
फिर दरवाज़ा पूरा खोला तो सामने  'अस्त व्यस्त' दशा में एक  लड़का  उसकी बेटी के साथ बैठा दिखाई दिया …
“ओहो तो ये सब इस लड़के का है, और मैं खामखाँ अपनी बेटी पर शक कर रहा था … भगवान तेरा लाख-लाख शुक्र है … !!!”
और संता दरवाज़ा बंद करके वापिस चला आया… !!!
--प्रकाश हिन्दुस्तानी 

(वीकेंड पोस्ट के  1 मार्च 2014   के अंक में  मेरा कॉलम)


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