Saturday, March 22, 2014

ताकि सनद रहे (4) चुनाव में नारों का मज़ा

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  आजादी के वक्त नारे मन्त्र होते थे, अब मसखरी लगते हैं। नारों के  लिहाज़  से यह चुनाव मज़ेदार रहेगा। नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में वाराणसी से भी लड़ रहे हैं, जहाँ नारों का अपना आनंद है।
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आजादी के वक्त नारे मन्त्र होते थे, अब मसखरी लगते हैं। चुनाव  आते ही नए नए नारे सुनकर मज़ा आ जाता है। कितने फ़र्टाइल दिमाग हैं हमारे नेताओं के ! हजारों लफ्ज़ों की बात चार-छह शब्दों में हो जाती है। इक़बाल का  -  'सारे  जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां  हमारा ' आज भी गया जाता है।  गांधी जी ने  'भारत छोड़ो ' और 'करो या मरो ' का नारा दिया था, जिसने गजब ढा दिया।  नेताजी ने कहा था- 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' बेहद प्रभावी रहे। तिलक ने कहा था -'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है ', यह नारा जन जन की आवाज बना। बंकिम चन्द्र चटर्जी का नारा - 'वंदे मातरम् ' और और भगत सिंह के 'इंकलाब जिंदाबाद ' ने तो चमत्कार कर दिया था।  आजादी के बाद लालबहादुर शास्त्री का 'जय जवान जय किसान' खूब चला, जिसमें अटलबिहारी वाजपेयी ने 'जय विज्ञान ' भी जोड़ दिया था. अमेरिका में 'ब्लैक पॉवर', 'ब्लैक इज़ ब्यूटीफुल 'और 'ब्रेड एंड रोज़ेज़ 'जैसे नारे चले। वामपंथियों ने 'ईट दि रिच ' जैसे नारे दिए तो प्रगतिशीलों के  'एवरीमैन इज किंग', 'पॉवर टु द पीपल', 'गो फॉर ग्रोथ' जैसे नारे भी खूब चलन में रहे हैं। 
  

नारों के लिहाज़  से यह चुनाव मज़ेदार रहेगा। नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में वाराणसी से भी लड़ रहे हैं, जहाँ नारों का अपना आनंद है। भाजपा ने 2004 में 'इण्डिया शाइनिंग'  का नारा दिया था, जो पिट गया। भाजपा के लिए 'अबकी बार'  लकी है '--'अबकी बारी अटल बिहारी'  चल गया था। 
इस बार नारा है  'अबकी बार, मोदी सरकार' ; कैसा रहता है, देखेंगे। 'वोट फॉर इण्डिया' नारा भी चल पड़ा है। 'कसम राम की खाते हैं, मंदिर वहीँ बनाएंगे';  और  बाबरी गिराने  के बाद - 'ये तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है' चला था।  काशी  के बाद मथुरा का   वहाँ से हेमा मालिनी मैदान में हैं। कांग्रेस  के पास इस बार नारा है, 'मैं नहीं हम' ।   इसके पहले 'गरीबी हटाओ',  'जात  पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर'  और 'चुनिए उन्हें जो सरकार  चला सके'  जैसे नारों के बूते कांग्रेस  सत्ता  तक पहुंची थी।
उत्तरप्रदेश में मायावती - 'तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार' ; 'ब्राह्मण , ठाकुर , बनिया चोर ; बाकी सब हैं डीएस फोर' ,  'ब्राह्मण साफ , ठाकुर हाफ , बनिया माफ' ;  'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा , विष्णु ,महेश है'  जैसे नारे चलाती रही हैं. मुलायम सिंह का  'यूपी में है दम , क्योंकि यहां जुर्म है कम'  चमत्कार नहीं दिखा पाया। 'जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है'  नारे से सत्ता में आ चुके हैं। मुलायम के बेटे अखिलेश इस बार फिर उम्मीद से हैं और  'उम्मीदों की साइकिल' चला रहे हैं.

आप पार्टी वाले आजकल  'झाड़ू चलाओ, बेईमान भगाओ' का नारा दे रहे हैं।  उनके नारे बार बार बदलते रहे हैं।  'मैं भी आम आदमी', 'मैं भी अण्णा, तू भी अण्णा' , 'मुझे चाहिए पूर्ण स्वराज' आते-जाते रहते हैं। ये नारे भी खूब चर्चित रहे हैं --  'जब तक रहेगा समोसे में आलू , तब तक रहेगा बिहार में लालू' ; भाजपा की पुरा आत्मा जनसंघ का चुनाव चिह्न दीपक था और कांग्रेस का बैल की जोड़ी। जनसंघ का नारा   था 'जली झोंपडी़ भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल'  कांग्रेसी उसके जवाब में कहते थे --'इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं'.  डॉ. राम मनोहर लोहिया जी के दौर में जब संसोपा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी) बनी थी, नारा दिया गया था 'संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ'. 'एमवाई का राग है झूठा , राबड़ी को मिला अंगूठा';   'राजा नहीं फकीर है , जनता की तकदीर है' ( वीपी सिंह के लिए ) ; 'सेना खून बहाती है , सरकार कमीशन खाती है' ( बोफोर्स घोटाला ) नारे कभी अच्छे चलते थे।  नारों का चुनाव आयोग पर भी असर पड़ा है और वह भी नारे दे रहा है -- 'पहले अपना वोट डलेगा, चूल्हा उसके बाद जलेगा'  और 'सारे काम छोड़ दो सबसे पहले वोट दो !'

-- © प्रकाश हिन्दुस्तानी 



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