Saturday, June 04, 2011

सलमान की विनम्रता और शरीरशौष्ठव

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सलमान खान आज भी करोड़ों युवक-युवतियों के चहेते हैं. लाखों लोग यह मानते
हैं कि किसी भी फ़िल्म में सलमान खान का होना ही उस फ़िल्म के मनोरंजक होने की गारंटी है. इस स्तम्भ में सलमान की अभिनय की समीक्षा नहीं की जा रही है, बल्कि एक कलाकार के व्यावसायिक रूप से कामयाब होने के फार्मूले पर चर्चा की जा रही है.

सलमान की विनम्रता और शरीर शौष्ठव
इंदौर में जन्मे अब्दुल रशीद सलीम सलमान खान उर्फ़ सल्लू महान नहीं, कामयाब हीरो हैं. हीरो के रूप में पहली ही फ़िल्म 'मैंने प्यार किया' (१९८९) ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी, और २२ साल बाद गत शुक्रवार को रिलीज़ 'रेडी' को भी अच्छी शुरूआत मिली. बीते साल उनकी 'दबंग' भी ब्लॉकबस्टर रही. २००९ में उनकी 'वांटेड' भी सुपर हिट थी. मैंने प्यार किया ने ६७ करोड़ का कारोबार किया था और दबंग ने १८७ करोड़ का. उम्र के ४६वे साल में भी वे अपने बूते फ़िल्म को सुपरहिट करने का माद्दा रखते हैं और उनकी अपनी निजी फैन फॉलोइंग तगड़ी है. अभी भी वे अपने दर्शकों को बॉडी दिखाते हैं और कई हीरो शरीर शौष्ठव से जलते है. वे १९८८ (बीवी हो तो ऐसी) से आज तक ८४ फिल्मों में छोटे बड़े रोल कर चुके है. इनमें दो तीन को छोड़कर सभी ने अच्छा कारोबार किया और कई तो सुपरहिट रही. सलमान खान ने टीवी पर दस का दम ( सीजन एक और दो) और बिग बॉस (सीजन चार) होस्ट किये, जिनके लिए उन्हें बड़ी धनराशि मिली और उए प्रोग्राम भी सुपर हिट रहे. सलमान खान आज भी करोड़ों युवक-युवतियों के चहेते हैं. लाखों लोग यह मानते हैं कि किसी भी फ़िल्म में सलमान खान का होना ही उस फ़िल्म के मनोरंजक होने की गारंटी है. इस स्तम्भ में सलमान की अभिनय की समीक्षा नहीं की जा रही है, बल्कि एक कलाकार के व्यावसायिक रूप से कामयाब होने के फार्मूले पर चर्चा की जा रही है. सलमान में भी कई कमजोरियां हैं, लेकिन उनकी खूबियाँ भी बहुतेरी हैं. उनकी व्यावसायिक कामयाबी के कुछ सूत्र :

विनम्रता
सलमान खान के नज़दीकी लोग जानते हैं कि सलमान खान निजी जिन्दगी में बेहद विनम्र और दरियादिल प्रवृत्ति के हैं. वे अपने घर पर आनेवाले सभी परिजनों से बेहद अपनेपन और विनम्रता से मिलते हैं. उनकी यह विनम्रता कई लोगों को अचम्भे में दाल देती है और कई लोग समझते हैं कि वे घर पर भी अभिनय करते हैं. आम बोलचाल में वे कभी किसी पर कटाक्ष नहीं करते और यही विनम्रता 'दस का दम' शो में उनकी कामयाबी का आधार भी बनी जहाँ वे सभी से प्यार से बतियाते नज़र आते थे. इसके अलावा वे आमतौर पर विवादों से बचाते हैं और ज़रा भी गलती होने पर उसे तत्काल सुधारने की कोशिश में जुट जाते हैं.

निश्चित दर्शक वर्ग पर लक्ष्य
'अजब प्रेम की गज़ब कहानी', 'इसी लाइफ में', 'ओम शांति ओम' और 'तीसमार खां' फिल्मों में उन्होंने अपना यानी सलमान खान का ही रोल किया. सलमान खान आम जनता के हीरो हैं और उन्ही के बीच उन जैसा लगाना चाहते हैं. उनकी खूबियों में उनका स्वाभाविक अभिनय महत्वपूर्ण कहा जाता है. अगर वे किसी लड़ाकू पात्र के रोल में हो तो सचमुच के लड़ाके लगते हैं और अगर किसी कमज़र्फ के रोल में हों तो वहां भी फिट लगते हैं. उन्होंने अपने आप को आम जनता से जोड़ रखा है और अपने एक खास दर्शक वर्ग के लिए मनोरंजन की कोशिश करते हैं.उन्होंने उसे अपनी यूएसपी बना लिया. कला फिल्मों में अभिनय करना उन्हें जमता नहीं और बहुत नए प्रयोग वे नहीं करते.

शरीर शौष्ठव पर ध्यान
हिंदी फिल्मों में दिलीप कुमार, देव आनंद,राज कपूर, शम्मी कपूर, संजीव कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन जैसे अनेक हीरो हुए हैं जिन्होंने अपने शरीर शौष्ठव पर कभी ध्यान नहीं दिया. सलमान का मानना है कि अगर हीरोइन के लिए शरीर का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है तो हीरो के लिए क्यों नहीं? अगर शरीर भी एक सम्पदा है, प्रॉपर्टी है तो फिर उसकी उपेक्षा कतई नहीं होनी चाहिए. आज देश के जिम्नेश्यम्स में सलमान की आदमकद तस्वीरें देखने को मिल जायेंगी. देश भर के हजारों नौजवान सलमान के जैसा बदन पाने के लिए प्रयास कर रहे हैं. भले ही उन पर शरीर के प्रदर्शन का आरोप लगे, वे स्वास्थ्य चेतना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं. इसे 'अजब प्रेम की गजब कहानी' फ़िल्म में भी फ़िल्म का हीरो रणवीर कपूर सलमान की बॉडी की तस्वीर पर अपना चेहरा चस्पा करके हीरोइन कैटरीना कैफ को प्रभावित करना चाहता है. 'दस का दम' शो में आई एक महिला ने कहा था कि जब वह गर्भवती थी तब उसने अपने कमरे में सलमान का फोटो लगा रखा था क्योंकि वह चाहती थीं कि उसकी होनेवाली संतान सलमान खान जैसी आकर्षक हो.

प्रोफेशनल अप्रोच
सलमान अपने बूते पर फ़िल्म को सफलता तक ले आने की कूवत रखते हैं और इसके लिए कड़ी मेहनत करते हैं उनकी फिल्मों का सफलता का प्रतिशत दूसरे कलाकारों की अपेक्षा बेहतर है. फ़िल्म के सेट्स पर वे अनुशासित रहने की कोशिश करते हैं. निर्देशक को सहयोग करते हैं और नए कलाकारों को प्रोत्साहन देते हैं. 'लन्दन ड्रीम्स', 'युवराज' और 'वीर' जैसी वीरगति प्राप्त फ्लाप फिल्मों के बाद भी वे झट से उठ खड़े हुए और अपने निन्मता की मदद को आगे आये. फ़िल्मी असफलता से वे चित नहीं होते और अगले अभियान में कूद पड़ते हैं. फिल हिट हो या फ्लॉप, वे उसे खेल भवन से लेते हैं.

सामाजिक सरोकार
सलमान के करीबी मनाते हैं कि सलमान हमेशा सहयोगी व्यवहार करते है. वे चैरिटी के लिए भी काफी काम करते हैं. 'बीइंग ह्युमन' नामक एनजीओ के माध्यम से तो वे ज़रूरतमंदों की मदद करते ही हैं, निजी तौर पर भी सभी की मदद करते हैं. यह संस्था स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काम करती है. कैंसर, थेलेसीमिया, ल्यूकेमिया जैसे भीषण रोगों से लड़ रहे लोगों की मदद के लिए उनका संगठन जरूरतमंदों की मदद करता है. उनका संगठन एक लाख लोगों का नाम रजिस्टर करने में जुटा है जो वक़्त आने पर देश भर में कहीं भी रक्तदान कर सके.सलमान ने 'फिर मिलेंगे'(2004) फ़िल्म में उन्होंने एड्स पीड़ित युवक का रोल किया था जिसकी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सराहना की थी.

सच्चे धर्मनिरपेक्ष
सलमान खान कभी भी कट्टरवादी नहीं रहे और इसीलिये वे खुद कट्टरवादियों के निशाने पर रहे. उनके पिता मुस्लिम हैं और माँ महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण. उनके घर में पूजा भी होती है, नमाज़ भी. एक बहन अलविरा की शादी अभिनेता अतुल अग्निहोत्री से हुई है. गणेशोत्सव में गणेश प्रतिमा स्थापना को लेकर उनके खिलाफ फतवा भी जारी हुआ था. उन्होंने हमेश ही अपने आप को खान कहने के बजाय भारतीय बताना पसंद किया. शिव सेना भी कई बार उनके खिलाफ मैदान में आई, लेकिन उन्होंने ऐसे मौकों पर विवाद से दूर रहन पसंद किया.

रचनात्मकता को महत्त्व
सलमान खान अपने निजी तनावों को दूर करने के लिए रचनात्मक तरीके अपनाते हैं. उन्हें बच्चों के साथ खेलने के अलावा पेंटिंग करने का भी शौक है. वे अपनी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी लगा चुके हैं और पेंटिंग्स से होनेवाली आय को सेवा के कार्य में दान दे चुके हैं. उनके मित्र मनाते हैं कि वे ठीक ठाक पेंटिंग बना लेते हैं. कैटरीना कैफ ने पिछले दिनों बयान दिया था कि उन्हें अभी तक सलमान ने पेंटिंग का विषय नहीं बनाया और वे चाहती हैं कि सलमान उन की पेंटिंग्स बनायें.
प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान 5 june 2011

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