Saturday, June 18, 2011

कामयाबी इंतज़ार भी कराती है




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2002 में भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल किये जाने के बाद भी अमित मिश्रा को खेलने के उतने अच्छे मौके नहीं मिले और बरसों तक टीम इण्डिया में उनका उपयोग केवल एक स्टेपनी की तरह ही किया गया. इस पूरी प्रक्रिया का उस खिलाड़ी पर क्या असर पड़ सकता है, यह शायद ही हमारे क्रिकेट प्रशासन ने सोचा हो, लेकिन अमित मिश्रा ने मौका आने पर अपनी काबीलियत साबित कर दी.

कामयाबी इंतज़ार भी कराती है


क्रिकेट को टीम का खेल माना जाता है, लेकिन सच्चाई यही है कि मैदान में हर खिलाड़ी एकाकीपन से जूझता रहता है. लेग ब्रेक बॉलर और दाहिने हाथ के लोअर ऑर्डर बेट्समैन अमित मिश्रा से ज्यादा अच्छी तरह इस बात को और कौन समझ सकता है? यह बात भी सच है कि क्रिकेट जेंटलमेंस गेम है और यहाँ की सभ्यता के पैमाने अलग ही हैं. 2002 में भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल किये जाने के बाद भी अमित मिश्रा को खेलने के उतने अच्छे मौके नहीं मिले और बरसों तक टीम इण्डिया में उनका उपयोग केवल एक स्टेपनी की तरह ही किया गया. इस पूरी प्रक्रिया का उस खिलाड़ी पर क्या असर पड़ सकता है, यह शायद ही हमारे क्रिकेट प्रशासन ने सोचा हो, लेकिन अमित मिश्रा ने मौका आने पर अपनी काबीलियत साबित कर दी. हाल ही में वेस्ट इंडीज़ से हुई वन दे सीरिज में भारत की तीन दो से जीत में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है.
24 नवम्बर 1982 को जन्मे अमित मिश्रा दिल्ली के हैं और क्रिकेट में उनका कोई गोडफादर नहीं रहा. उन्होंने जो कुछ भी अर्जित किया अपने खेल से. अनेक झंझावातों को पार करके उन्होंने अपनी मुकाम हासिल कार ही लिया. अमित मिश्रा की सफलता के कुछ सूत्र :

सही वक्त आने दें
अमित मिश्रा ने अंडर -19 में जिस तरह का क्रिकेट खेला था उससे भारतीय टीम में जगह पाने का रास्ता तो मिल गया था. 2000 -2001 में उन्हें फर्स्ट क्लास क्रिकेट में जगह मिली और वे 2002 में वेस्ट इंडीज़ के सामने खेलेनेवाली टीम इण्डिया में शामिल भी कर लिए गए थे लेकिन लेकिन उन्हें टीम इण्डिया में खेलने का मौका ही नहीं मिला. वे टीम में एक स्टेपनी की तरह साल भर तक रहे लेकिन मैदान में जौहर दिखाने के मौके से वंचित रहे. 2003 में उन्हें ढाका में टीवीएस कप में खेलने का मौका मिला और फिर वे मैदान के बाहर कर दिए गए. फिर दुबारा टीम इण्डिया के साथ खेलने का मौका उन्हें 2009 में ही मिल पाया जब दक्षिण अफ्रीका में आईसीसी चैम्पियंस ट्रोफी के लिए मैच हुए. इतने साल तक वे अपने खेल की तैयारियां करते रहे. खेल को और बेहतर बनाने की कोशिशों में लगे रहे.

निराशा से बचना ज़रूरी
अगर लम्बे समय तक किसी योग्य व्यक्ति को अवसर ना मिले तो इस बात का खतरा पैदा हो जाता है कि वह व्यक्ति किसी ना किसी तरह की निराशा या अवसाद का शिकार न हो जाए. अमित मिश्रा के साथ भी ऐसे मौके बहुत सी बार आये जब यह लगने लगा कि उन्हें कहीं बलि का बकरा या क्रिकेट की राजनीति का मोहरा तो नहीं बनाया जा रहा? निराशा के दौर में उनका मन क्रिकेट से संन्यास लेने का भी होने लगा था लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने आप को संभाला और और मैदान में डटे रहने का प्रयास करते रहे. अगर वे बीच के इन छह सालों में कभी भी संन्यास ले लेते तो फिर टीम इण्डिया में लौटने का तो सवाल ही नहीं था. घनघोर निराशा के दौर में भी वे मैदान में डटे रहे.

तकनीकी पक्ष को जानें
टीम इण्डिया से अलग होने के बाद अमित मिश्रा क्रिकेट गुरुओं और विशेषज्ञों से सलाह मशविरा करते रहे और अपने खेल की बारीकियों को उन विशेषज्ञों के नज़रिए से समझ कर सुधार करते रहे. विशेषज्ञ उन्हें बताते रहे कि उनकी आदर्श स्थिति क्या होनी चाहिए. उन्हें स्पिन करने के दौरान विविधता लानी चाहिए, सेकण्ड लाइन पर खेलना और कितना,कब स्पिन करना चाहिए, एक्स्ट्रा ओवर को कैसे कवर करना चाहिए आदि आदि बातों पर ध्यान देते और खेल को सुधारते रहे. उनके खेल का अपना स्टाइल रहा है लेकिन जब उन्हें लगा कि शायद वे कहीं कमज़ोर पद रहे हैं तो उन्होंने तत्काल उसमें सुधार का अभियान छेड़ दिया.

अवसर को मत चूको
टीम इण्डिया से किनारे किये जाने के बाद भी अमित मिश्रा अपने खेल में जुटे रहे. उन्होंने आईपीएल में डेल्ही डेयर डेविल्स और गत आईपीएल सीजन चार में डेक्कन चार्जर्स की तरफ से खेला. डेक्कन चार्जर्स की तरफ से उन्होंने कुल 19 ओवर लिए थे और फायनल में चार ओवर में 17 रन देकर पांच विकेट चटकाए. वे अपने आगाज़ के साथ ही एक झटके में पांच विकेट लेनेवाले छठे क्रिकेटर बन गए. आईपीएल को उन्होंने केवल शौक या मिलनेवाले करीब डेढ़ करोड़ रुपयों के लिए ही नहीं, अपनी प्रतिष्ठा की वापसी के लिए भी खेला था और वे अपने मकसद में कामयाब हो गए. यह शानदार पारी ही उनकी हाल ही की वेस्ट इंडीज सीरिज में जाने का माध्यम बनी.

प्रतीक्षा अपमान नहीं होता
अमित मिश्रा ने साबित कर दिया कि सही मौके के लिए प्रतीक्षा करने को नाक का सवाल नहीं बनाना चाहिए. एक दौर में उन्हें अनिल कुम्बले का विकल्प मानकर मौका दिया जा रहा था और उन्होंने इसका लाभ उठाया. अनिल कुम्बले के पूर्ण स्वस्थ होकर लौटने के बाद वे हरभजन सिंह के विकल्प बने. उन्होंने इस बात को समझा कि कोई भी मौका छोटा नहीं होता और अगर सही भूमिका के लिए इंतज़ार भी करना पड़े तो कर लेना ही ठीक होता है. क्या पता कल को उससे भी बेहतर कोई मौका आनेवाला हो?

राजनीति से दूर रहो
अमित मिश्रा ने कभी भी अपने साथ घटी घटनाओं को लेकर बयानबाजी नहीं की. क्रिकेट के पंडितों का कहना है कि अगर अमित जैसे खिलाड़ियों को आगे लाना हो तो टीम इण्डिया के कुछ वरिष्ठ खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए. अमित ने हर बार केवल अपने खेल के बूते यह विश्वास हासिल किया कि खेल में राजनीति नहीं आनी चाहिए. उन्होंने कभी मीडिया को बयान नहीं दिया और फिर भी कलात्मक स्पिन गेंदबाजी को उसका पुराना सम्मान लौटा दिया. अब वे यही कहते हैं कि मैं चयनकर्ताओं और सीनियर खिलाड़ियों का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे यह मौका दिया.

प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान, 19 june 2011

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