Tuesday, June 02, 2015

श्रीलंका में डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी सम्मानित

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कोलम्बो (श्री लंका) के कॉनकॉर्ड ग्रैंड होटल में 25 मई को हुए कार्यक्रम में प्रकाश हिन्दुस्तानी को ब्लॉग पर श्रेष्ठ समसामयिक लेखन के लिए 11,000 रूपए, प्रशस्ति पत्र, अंग वस्त्रम् और श्रीफल से सम्मानित किया गया।प्रकाश हिन्दुस्तानी को सम्मानित करते हुए श्रीलंका के सीनियर ड्रामेटिस्ट सोमरत्न विठाना, उत्तरप्रदेश के पूर्व मंत्री नकुल दुबे और आयोजन समिति के के के यादव। प्रकाश हिन्दुस्तानी  पांचवे इंटरनेशनल ब्लॉगर्स सम्मलेन के मुख्य सत्र के मुख्य वक्ता भी थे, उन्होंने सृजनात्मक साहित्य और ब्लॉग लेखन पर भाषण दिया
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पांचवे इंटरनेशनल ब्लॉगर्स सम्मलेन में  डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी  का भाषण 

सृजनात्मक साहित्य में हिन्दी ब्लॉग का योगदान

मैथ्यू अर्नाल्ड ने कहा है पत्रकारिता जल्दबाजी में लिखा गया साहित्य है, लेकिन मेरा कहना है कि ब्लॉगिंग सुविचारित और समयबद्ध साहित्य है। एक ऐसा साहित्य जो हर जगह उपलब्ध है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अभिव्यक्त किया गया साहित्य ब्लॉग साहित्य के रूप में सामने आ गया है। अब साहित्य को पढ़ने के लिए छपी हुई किताबों की निर्भरता खत्म हो गई है। त्रैमासिक, मासिक, साप्ताहिक और दैनिक अखबारों में भी अब साहित्य पढ़ने के लिए इंतजार करने की जरूरत नहीं। किताबों का वह दौर लगभग खत्म हो गया है, जब किताबों में गुलाब के फूल रखकर प्रेमी-प्रेमिका को भेजे जाते थे। अब यह बात अब केवल रोमांटिक कल्पना ही बची है। जिसकी मौत कगार पर है, लेकिन साहित्य हमेशा से ही सामूहिक प्रेम, बंधुत्व, भाईचारा और नई दिशाएं तलाशने तथा अभिव्यक्ति का माध्यम रहा है। साहित्य के बिना जीवन सुना सा है। 


साहित्यकारों और साहित्य के पाठकों के लिए ब्लॉग एक अनमोल तोहफा है। अभिव्यक्ति का बेजोड़ हथियार। यहां अभिव्यक्ति के बाद भरपूर आत्मसंतोष मिलता है। ब्लॉगिंग के माध्यम से बेहतर लेखन भी संभव हो पाया है, क्योंकि लेखक खुद अपने आप को बार-बार सुधार सकता है। इसके साथ ही लेखन के क्षेत्र में नेटवर्किंग भी आसान हो गई है।

किसी भी सृजनात्मक ब्लॉगर के लिए अपने पाठकों के सामने वैश्विक सौहाद्र्र को बढ़ाना एक प्रमुख लक्ष्य होता है। इसके साथ ही उसका लक्ष्य होता है साहित्य के लिए नई जमीन तलाशना। हिन्दी में ब्लॉगिंग अंग्रेजी की तुलना में देरी से शुरू हुई। 2003 में हिन्दी का पहला ब्लॉग 9-2-11 सामने आया। 2007 में यूनिकोड के आगमन के बाद हिन्दी की ब्लॉगिंग में तेजी आई। आज हिन्दी में करीब 50 हजार ब्लॉग मौजूद है। खुशी की बात यह है कि इसमें से एक चौथाई ब्लॉगर्स महिलाएं है। 

ब्लॉगिंग की कुछ बेमिसाल खूबियां है, जिसके कारण सृजनात्मक साहित्यिक के सृजनकर्ता ब्लॉगिंग की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यहां विधा का चयन करने की पूरी छूट है। कहानी, कविता, व्यंग्य, निबंध, समीक्षा आदि में से रचनाकार कुछ भी चुन सकता है। यहां भाषा के बंधन से भी मुक्त साहित्य रचने की आजादी है। ब्लॉगर चाहे तो अपने ब्लॉग में एक से अधिक भाषा में सृजन कर सकता है। 


ब्लॉगिंग के माध्यम से साहित्य के सृजन में सबसे बड़ी सुविधा यह है कि यह मुक्ति का मार्ग है। साहित्य के ठेकेदारों से मुक्ति यहीं संभव है। यहां विषय चयन की पूरी आजादी है और शब्द सीमाओं का भी कोई बंधन नहीं है। महात्मा गांधी ने कहा था कि अगर आपको गलतियां करने की आजादी नहीं है, तो ऐसी आजादी बेमानी है। ब्लॉगिंग की दुनिया में आपको गलतियां करने की पूरी आजादी है। ब्लॉगिंग मानसिक दबाव से मुक्ति दिलाती है। यह अपने पाठकों तक तत्काल पहुंच कराती है। भौगोलिक सीमाओं से बाहर ब्लॉगिंग के जरिये आप दुनियाभर में कहीं भी पहुंच सकते है। 

ब्लॉगिंग के माध्यम से रचनाकार पूरी तरह आत्मनिर्भर होकर सृजन कर सकता है। क्योंकि वह यहां खुद ही लेखक, प्रकाशक और मुद्रक है। गूगल ऐडसेन्स से जोड़कर वह अपने ब्लॉग में धनोपार्जन भी कर सकता है। हालांकि अभी हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में विज्ञापनों का अच्छा प्रतिसाद नहीं मिल रहा है, लेकिन अनेक ब्लॉगर सीधे विज्ञापन दाताओं से संपर्क कर ठीक ठाक पारिश्रमिक पा रहे है। यह एक बहुत बड़ी शुरूआत है। 

सृजनात्मक साहित्य जगत में महिला ब्लॉगर्स की प्रेरणादायक उपस्थिति पूरे समाज को उत्साहित करने वाली है। ब्लॉगिंग के क्षेत्र में करीब एक चौथाई महिलाएं है और अधिकांश सृजनात्मक साहित्य रच रही है। मुझे यह बताते हुए खुशी है कि इस सत्र के बाद का सत्र महिला ब्लॉगर्स के लिए विशेष तौर पर समर्पित है। यहां हम जिन विशिष्ठ महिला ब्लागर से मिलेंगे उनमें आकांक्षा यादव, सुनीता प्रेम यादव, डॉ. सर्जना शर्मा, डॉ. रचना श्रीवास्तव, डॉ. अनिता श्रीवास्तव और डॉ. उर्मिला शुक्ल सहित अनेक प्रमुख महिला ब्लागर मौजूद हैं। यहां सभी का नाम लेना संभव नहीं हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति मात्र प्रेरित करने और आशा जगाने वाली है। 

 इस कार्यक्रम में हिन्दी साहित्य जगत के अनेक सितारें है जो ब्लॉगिंग के जरिए विश्व भर में अपनी पहचान बना चुके हैं। इसका काफी श्रेय श्री रवीन्द्र प्रभात को जाता है। हिन्दी ब्लॉगिंग के क्षेत्र में एक आंदोलन तैयार करने और ब्लागर्स के लिए नई जमीन खोजने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वे भी बधाई के पात्र है। 

हिन्दी के साहित्यिक ब्लागर्स को सादर नमन करते हुए मैं उनके योगदान को रेखांकित करना चाहता हूं। यहां पर उपस्थित सर्वश्री रवीन्द्र प्रभात, कृष्णकुमार यादव, जीतेन्द्र दीक्षित, ललित शर्मा, सुनीता प्रेम यादव, आकांक्षा यादव जैसे प्रमुख हिन्दी ब्लॉगर्स की उपस्थिति में मैं उन हिन्दी साहित्य के ब्लॉगर्स कोे याद करना चाहता हूं, जिन्होंने अपनी साहित्यिक कृतियों को ब्लॉग के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने में अनूठा योगदान दिया है और साहित्य सृजन के लिए नई जमीन तोड़ी है। शायद ही कोई साहित्यकार हो, जो आज ब्लॉगिंग के क्षेत्र में न हो। कुछ ऐसे ब्लॉगर्स भी है, जिन्होंने साहित्यिक ब्लॉगिंग में विशेष कार्य किए है। उन सब के नाम यहां लेना संभव नहीं है। हो सकता है उनमें से कई नाम छूट गए हो और कई नाम इसलिए नहीं लिए जा सकते क्योंकि अगर वह सूची पढ़ी जाए तो उसमें घंटों बीत सकते है। मेरे ध्यान में उदय प्रकाश, अरुण आदित्य, मौलश्री, प्रभात रंजन, रमेश उपाध्याय, अशोक कुमार पाण्डेय, अरुण देव, देवेन्द्र कुमार देवेश, पंकज चतुर्वेदी, रचना, फिरदौस खान, शशांक द्विवेदी, अजय ब्रह्मात्मज, विभा रानी, शरद कोकास, कुमार अम्बुज, विवेक, अनुराग वत्स, महेश आलोक, गिरिश कुमार मौर्य, शशि भूषण, चन्दन, निलय उपाध्याय, अरविन्द श्रीवास्तव, कृष्णमोहन झा, प्रियंकर, शिखा वाष्र्णेय, अर्चना देव जैसे  अनेकानेक नाम बिना विचारें सामने आ रहे है। कबाड़खाना, जानकी पुल, परिकल्पना, समालोचना, हम कलम, समवादी, कलम, भोज पत्र, जनशब्द, आवाहन, अनहद नाद आदि ब्लॉग साहित्य सृजन में अपनी विशेष पहचान बना चुके है। मुझे मालूम है कि मैंने कुछ नाम ही लिए हैं। सभी तक पहुंच पाना संभव नहीं है। 

कोलंबो में आयोजित इस समारोह में आप सभी का हार्दिक धन्यवाद देते हुए शुभकामनाएं व्यक्त करना चाहता हूं कि साहित्य के क्षेत्र में आपका योगदान लगातार बना रहे। हिन्दी में ब्लॉगिंग भविष्य में और भी आसान और लोकप्रिय हो और ब्लॉगर्स के काले अक्सर दुधारू भैंस की तरह अर्थ प्राप्ति का माध्यम बने। 

आप सभी का धन्यवाद।

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