Tuesday, October 21, 2014

जिनको खड़ा नहीं होना चाहिए था ...... !

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (26 अप्रैल 2014)

जिनको खड़ा नहीं होना चाहिए था ...... !




इस चुनाव में बड़ी गड़बड़ी हो गई है. जिनको खड़ा नहीं होना चाहिए था, वे खड़े हो गए और जिनको घर बैठना था, वे दर दर वोट मांग रहे। यह हाल पूरे देश का है. अगर मेरे मनपसंद ये उम्मीदवार मैदान में होते तो चुनाव कितना दिलचस्प, रोमांटिक और ग्लैमरस हो जाता। अब आप ही बताइये--मैं ऐसी कौन सी गलत अपेक्षा रख रहा हूँ?

टोंक -सवाई माधोपुर से अजहरुद्दीन मैदान में क्यों हैं? संगीता बिजलानी क्यों नहीं? मथुरा से बसंती यानी हेमा क्यों चुनाव लड़ रही हैं-ऐशा या आहना क्यों नहीं? मुनमुन सेन क्यों  काली होने के लिए धूप में धूम रही हैं, जबकि उनकी दो दो जवान बेटियां यह काम अच्छी तरह कर सकती थीं। राइमा सेन आ जातीं, रिया सेन आ जातीं। राहुल गांधी मैदान संभाले हुए हैं; कल्पना कीजिये अगर उनकी बहन प्रियंका मैदान में होतीं तो माहौल कैसा होता! राखी सावंत चुनाव लड़ सकती हैं तो बेचारी सनी नियोनी ने क्या बिगाड़ा था? सनी को ज्यादा वोट मिल जाते, इसकी गारंटी महेश भट्ट ले सकते हैं।शत्रुघ्न सिन्हा लोकसभा के उम्मीदवार हैं, जो बीते 20 साल से अफवाह उड़वाते  रहते हैं कि बिहार के अगले मुख्यमंत्री वे ही होंगे। 20 साल में तो उनकी बेटी सोनाक्षी हीरोइन बन गई और तमाम बुड्ढे हीरो जैसे अक्षय कुमार, सलमान खान,अजय देवगन आदि की फिल्मों में टेका लगा रही हैं।बेचारे शत्रुघ्न को भी सहारा मिल जाता . अगर शत्रुघ्न की जगह सोनाक्षी का नाम उम्मीदवारी में होता तो मजा आ जाता। स्मृति ईरानी अब बहू से आंटी बन गई हैं, अगर टीवी कलाकार को ही लड़ना था तो सारा खान आ जातीं, प्रत्यूषा बनर्जी आ जातीं,करिश्मा तन्ना आ जातीं।  और कोई नहीं तो तारक मेहता वाली बबिताजी  यानी मुनमुन दत्ता आ जातीं, या फिर श्वेता साल्वे या मंदिरा बेदी क्या बुरी थीं? पर क्या कहें इन नेताओं को? इनमें कोई एस्थेटिक सेंस बचा है क्या? 

गुल पनाग को खड़ा कर डाला, बोले भूतपूर्व मिस इण्डिया है। तो फिर भूतपूर्व मिस वर्ल्ड ऐश्वर्या पर दांव लगाते. उसके तो सास - ससुर सब सांसद रह चुके हैं, बहू भी संसद में घूम आतीं। किसी का क्या चला जाता? यूं  भी सास से बनती नहीं है, बहस करना तो सीख ही गई होंगी।  सही रहता।  मनोज तिवारी, हेमंत बिरजे, कमाल खान कमाल, पिछली शताब्दी के हीरो विश्वजीत, किरण खेर, जावेद जाफरी,बप्पी लाहिड़ी, विनोद खन्ना आदि फुस्सी बमों की जगह एटम बमों, फुलझड़ियों, खिलते अनारों को मौका मिलता तो हमारा यह महान लोकतंत्र कहाँ जा पहुंचता? 

ये बात ठीक है कि  शाजिया इल्मी के पास मर्सीडीज़ गाड़ी है, पर टीवी  में तो एक से बढकर हीरोइन हैं।  किसी को भी दे    देते अंबिका आनंद या आभा सराफ़; श्वेता सिंह या सिक्ता देव; अफशा अंजुम या अवन्तिका सिंह; आरती पाठक या आफरीन क़िदवाई; अंजना कश्यप या शिरीन भान;बरखा दत्त या अलका सक्सेना; मिताली मुखर्जी या निधि राज़दान; निधि कुलपति या पाल्की उपाध्याय; रितुल  जोशी या ऋचा अनिरूद्ध; सुरभि भूटानी या अंकिता बेनर्जी; ऋतु वर्मा या आरफ़ा ख़ानम; ज्योतिका ग्रोवर या मोनीषा ओबेरॉय; सागरिका घोष या सोनिया वर्मा;सलमा सुल्तान या अविनाश कौर सरीन; सरला माहेश्वरी या वीना सहाय; कोई भी बेहतर ही होता। अगर किसी रेडियो  जॉकी  को भी मौका दे देते तो सोने  होता!

मेरी चिंता ग़लत  लोगों को टिकट को  है। लेकिन मैं  भी पक्का लोकतंत्रवादी हूँ। आशा छोड़नेवाला नहीं।  हूँ कि लोकसभा के  लोगों और लुगाइयों को ही मिलेंगे. आमीन !
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