Sunday, December 25, 2011

क्रिसमस की वह मुबारक़बाद

रविवासरीय हिन्दुस्तान (25 - 12 - 2011) के एडिट पेज पर मेरा कॉलम



क्रिसमस की वह मुबारक़बाद

त्योहारों के बारे में एक धारणा यह है कि वे अपनों और परायों का भेद खत्म कर देते हैं। सिर्फ अपने-पराये ही नहीं, ऐसे मौकों पर अक्सर दुश्मन भी गले मिल जाते हैं। ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद का क्रिसमस के मौके पर बधाई संदेश देना ऐसा ही एक मौका था। किसने सोचा था कि एक कट्टर इस्लामी माने जाने वाले ईरान जैसे देश का नेता ईसाई बंधुओं को उनके पावन पर्व पर शुभकामनाएं देगा? लेकिन यह तब मुमकिन हुआ, जब ब्रिटेन के चैनल फोर ने उनसे क्रिसमस संदेश देने का आग्रह किया और वह मान गए। उस समय यह बहुत बड़ी खबर थी, क्योंकि वह महज तीन साल पहले ही ईरान के राष्ट्रपति बने थे और अपने कई विवादास्पद बयानों की वजह से चर्चा में थे।

अगर क्रिसमस की भावना आपके दिल में नहीं है तो वह क्रिसमस ट्री के नीचे भी नहीं मिलेगी. क्रिसमस का सन्देश ही है कि आप अकेले नहीं है और कोई भी शख्स पराया नहीं है. इसीलिये लोग आपसी बैर भुलाकर भाईचारे की बात करने लगते हैं. क्रिसमस आते ही फिजाओं में प्रेम का सन्देश फैलने लगता है और हर चीज़ कोमल, अपनत्व से भरी और सुन्दर नज़र आने लगती है. ब्रिटेन के चैनल फोर पर ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद का यह भाषण इसी बात की तरफ इशारा करता है कि क्रिसमस सभी धर्मों का है और सभी प्रेम चाहते हैं. ये वही अहमदीनेजाद हैं जिन्होंने कभी कहा था कि जो भी देश इस्राईल को मान्यता देगा, उसे जलाकर खाक कर दिया जाएगा.दुनिया के नक्शे से ईस्राईल का नामो निशान मिटा दिया जाएगा. ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद का यह भाषण एक ऐतिहासिक धरोहर बन चुका है. ईरान के छठवें और वर्तमान राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने कभी यह भी कहा था कि परमाणु शक्ति अल्लाहताला का आशीर्वाद है और हम उसे पूरे इस्लामी जगत में फैलाना चाहते हैं. वे परिवार को नियोजित करने के कट्टर विरोधी रहे हैं और सात करोड़ के ईरान की आबादी १२ करोड़ जल्दी देखना चाहते हैं. इसके लिए लड़कियों की विवाह की आयु घटाकर १६ साल करने के पक्षधर हैं. उनके क्रिसमस सन्देश के भाषण का अंश :

हम ईश्वर की रचना

अहमदीनेजाद ने अपने संदेश की शुरुआत परंपरागत ढंग से की,"ईसा मसीह के जन्म के मौके पर मैं उनके अनुयायियों को मुबारकबाद देता हूँ. उस सर्वशक्तिमान ने इंसानों के लिए ब्रह्माण्ड की रचना की और इंसान बनाये. उन्होंने इंसान को ऐसा बनाया कि वह परिपूर्णता की हद तक काबिल बनाया. इंसान की ज़र्रे से शुरू होनेवाले सफ़र में रास्ता दिखाने के लिए पैगम्बर भेजे जिन्होंने मोहब्बत और भाईचारे का पैगाम दिया और इंसानों के मिलजुलकर प्रेम से रहने की शिक्षा दी. माता मरियम के बेटे यीशु ने लोगों को अन्याय और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष की प्रेरणा दी. पैगम्बरों के बताये रास्ते से भटकने के कारण इंसान की रह में मुश्किलात आये. ईश्वर के दूतों की बातों को भूलना इंसानियत को भारी पड़ा, खासकर यीशु की शिक्षा को. इसी कारण हमारे समाज, घर-परिवार, नैतिकता, राजनीति, सुरक्षा और अर्थ व्यवस्था पर दबाव आने लगे क्योंकि हमने देवदूतों के संदेशों की अनदेखी की.''

अगर आज यीशु होते

इसके बाद अहमदीनेजाद आज की दुनिया की दूसरी गड़बड़ियों की ओर ले जाते हैं, जो हमें दुनिया की राजनीति तक ले जाती है, "अगर आज यीशु धरती पर होते तो वे जोर-ज़बरदस्ती करनेवाले बददिमागी विस्तार्वादियों के खिलाफ जनता के साथ खड़े होते.
अगर आज यीशु धरती पर होते तो वे न्याय, मानवता और प्रेम की झंडाबरदारी कर रहे होते और दुनिया भर युद्धोत्तेजना फैलानेवाले विस्तार्वादियों की जबरदस्ती के खिलाफ संघर्ष कर रहे होते.अगर आज यीशु धरती पर होते तो दुनिया में फ़ैल रही आर्थिक और राजनैतिक दमनकारी नीतियों के खिलाफ जूझ रहे होते, वैसे ही, जैसे कि वे आजीवन जूझते रहे थे.आज के दौर की तमाम समस्याओं का समाधान केवल ईश्वर के दूतों के सहयोग से ही संभव है. उनके नक्श ए कदम पर चलकर ही हम इन परेशानियों से निजात पा सकते हैं, जिन्हें अल्लाह ताला ने इंसानियत के भले के लिए धरती पर भेजा था.''

''आज, दुनिया के तमाम मुल्कों में बुनियादी बदलाव की मांग जोर पकड़ती जा रही है. अब इसका रुख साफ़ हो रहा है. बदलाव की मांग, कायापलट की मांग, मानवीय मूल्यों पर वापस लौटने की मांग, और अब यह मांग है दुनिया में सबसे अव्वल रहने की. इन तमाम मांगों का जवाब सच्चा और असली होना चाहिए. इनमें सबसे पहली ज़रुरत है इन उद्देश्यों में मकसदों, इरादों और दिशाओं में बदलाव की. अगर निरंकुश इरादों पर लगाम न कसी गयी और इन्हें मुल्कों के सामने चुनौती के रूप में यों ही खड़े रहने दिया गया तो ये बातें उन मुल्कों के ही परेशानी का सबब बन जायेगी.''

एक किरण भी चमत्कारी

"दुर्योग से आज के संकट और भेदभाव बहुस्तरीय हैं. आशा की एक किरण भी ऐसे में चमत्कार कर सकती है. अच्छे भविष्य की आशा और न्याय की उम्मीद, सच्ची शांति और सदभाव के माहौल का भरोसा, सदचरित्र और धर्मपरायण शासकों की चाह जो अपनी प्रजा से प्रेम करते हों और उनकी सेवा करने की इच्छा रखते हों, वैसा ही, जैसा कि उस सर्वशक्तिमान ने वादा किया था. हमें यकीन है कि यीशु फिर लौटेंगे, इस्लाम के उस परम सम्मानित संदेसा वाहक के बच्चे के साथ और नेतृत्व करेंगे दुनिया को मोहब्बत, भाईचारे और न्याय दिलाने के लिए.''

''अब यह जवाबदारी है ईसाई और अब्राहमिक आस्था के अनुयायियों की, कि वे उस पवित्र वचन के पालन करनेवालों के पथ को तैयार करें और भविष्य में आनेवाले उस आनंदकारी, चमकीले और अनोखे काल का आगमन आसान और संभव हो सके. मुझे उम्मीद है कि हम सब मुल्कों की मिलीजुली एकसूत्र में होनेवाली कोशिशों से वह सर्वशक्तिशाली विधाता अपने शासन से धरती को रोशन करेगा और धरती पर उसका नूर नज़र आएगा. सभी को यीशु के जन्म की वर्ष गाँठ पर मुबारकबाद. दुआ है कि आनेवाला नया साल खुशिया, सम्पन्नता, शांति, भाईचारा और मानवता लाये. आप सब कि कामयाबी और खुशियों के लिए मेरी शुभकामनाएं."

निस्संदेह, इस संदेश में अहमदीनेजाद का अपना एजेंडा छिपा था। लेकिन इसमें कहीं कोई दुर्भावना नहीं थी, कोई कट्टरता नहीं थी। और सबसे बड़ी बात है कि सीधे किसी के खिलाफ कुछ नहीं कहा गया था। ऐसे संदेश से हम यह उम्मीद करते हैं कि वह दूरियां पाटेगा। लेकिन कुछ हद तक हुआ इसका उल्टा ही। राष्ट्रपति अहमदीनेजाद के इस भाषण पर दुनिया भर में तूफान-सा उठ खड़ा हुआ। ब्रिटेन के तमाम अखबारों ने इस पर प्रतिक्रियाएं प्रकाशित कीं। पक्ष और विपक्ष में।

टाइम्स, मिरर, बिजनेस पोस्ट, इंटरनेशनल हेराल्ड ट्रिब्यून, डेली मेल आदि ने या तो इस भाषण की सराहना की या फिर कुछ शब्दों/वाक्यांशों के लिए आलोचना की। पर इससे पश्चिमी देशों को इस बात का आभास तो हो ही गया कि शांति और सद्भाव के लिए हर कोई अपने-अपने ढंग से सोच रहा है। तारीफ और आलोचना करने वाले सिर्फ पश्चिमी देशों में ही नहीं थे, अहमदीनेजाद के अपने देश ईरान और दूसरे इस्लामिक में भी यही हाल था। यह संदेश ईसाइयों के लिए था, लेकिन इसने असर सब पर दिखाया।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

दैनिक हिन्दुस्तान (25 - 12 - 2011) को प्रकाशित

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