Sunday, October 30, 2011

गुदड़ी के लाल की बेमिसाल कामयाबी

रविवासरीय हिन्दुस्तान (30 अक्तूबर 2011) के एडिट पेज पर मेरा कॉलम


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जज्बे से बने पंचकोटि महामनी विजेता

खुश रहने के लिए 'मालदार और मशहूर' (रिच एंड फेमस) होना ज़रूरी नहीं है, वास्तव में खुश रहने के लिए केवल मालदार होना ही काफी है. बिहार के पूर्वी चंपारण के सुशील कुमार केबीसी की बदौलत अब फेमस भी है और रिच भी. उनके घर में टीवी सेट नहीं होने से वे केबीसी देखने पड़ोसी के घर जाया करते थे. उन्हें लगता था कि वे केबीसी में गए तो साढ़े बारह लाख या पच्चीस लाख रुपये तक ज़रूर जीत सकते हैं. लेकिन वे जीत गए पूरे पंचकोटि महामनी यानी पांच करोड़ रुपये. जीवन में उन्होंने कभी हवाई जहाज में यात्रा नहीं की थी लेकिन केबीसी की बदौलत वे अपनी पत्नी के साथ विमान में बैठ मुंबई पहुंचे. इस शो के कारण ही उन्होंने जीवन में दूसरी बार जूते पहने. (पहली मर्तबा अपनी शादी में पहने थे). अभी इस कार्यक्रम का प्रसारण अभी बाकी है इसलिए सुशील कुमार को प्रोग्राम के समझौते के अनुसार मुंबई में ही हैं. आखिर क्या खूबी है सुशील कुमार में कि उन्होंने पांच करोड़ रुपये का सवाल एक झटके में ही लॉक कर दिया? सुशील कुमार की सफलता के कुछ सूत्र :
खतरों से डरें नहीं
सबके सामने दो ही विकल्प होते हैं -- सुरक्षित और शांत बने रहें या खतरा उठाकर कामयाब बनें. सुशील के सामने भी यही सवाल था. उन्होंने दूसरे विकल्प को चुना. इसके पहले केबीसी-4 में प्रशांत नामक एक युवक बारह सवालों का सही जवाब देकर पांच करोड़ रुपये के तेरहवें सवाल तक पहुंचा था लेकिन वह डबल डिप में मात खाकर एक करोड़ के पायदान से नीचे गिरकर केवल केवल तीन लाख बीस हज़ार ही ले जा सका था. केबीसी के सीजन फोर में बिहार की ही राहत तस्लीम ने बारह सवालों का सही जवाब देकर एक करोड़ रुपये जीते और पांच करोड़ के सवाल को खेले बिना ही एक करोड़ लेकर खेल छोड़ चली गयीं थी. बारहवें सवाल का सही जवाब देने और एक करोड़ रुपये जीतने के बाद सुशील कुमार को भी ऐसा ही लगा कि कहीं वे चक्रव्यूह में फंस तो नहीं जायेंगे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और चक्रव्यूह तोड़ने का फैसला किया.
हर जवाब बुद्धिमानी से
बिना खतरे के जीत यानी बिना सम्मान का ताज! हर सवाल का जवाब उन्होंने बुद्धिमानी से दिया. बारहवें सवाल का जवाब देकर जब सुशील ने एक करोड़ रुपये जीते तो ख़ुशी से चीख पड़े. उन्होंने अमिताभ बच्चन के पैर भी छुए और उनसे लिपट गए. जब तेरहवां सवाल सामने आया तब वे मन ही मन मुस्करा उठे. उन्हें उसका सटीक जवाब नहीं मालूम था लेकिन उनके पास दो दो लाइफ लाइन थी. उन्होंने एक लाइफ लाइन फोन ए फ्रेंड का उपयोग किया लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. तब उन्होंने अपनी दूसरी लाइफ लाइन डबल डिप का उपयोग किया जिसमें उन्हें चार जवाबों के विकल्प में से दो जवाब देने थे. यहाँ उन्हें यूपीएससी की तैयारी में अर्जित अपना सामान्य ज्ञान बहुत काम आया. उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग सावधानी और बुद्धिमत्ता से किया और विजेता बने.
जॅकपॉट सवाल व जवाब
1868 में अंग्रेजों को निकोबार द्वीप समूह बेच कर किस देश ने अपना आधिपत्य छोड़ा था? यह था जैकपॉट सवाल। और इस सवाल के जवाब के विकल्प थे


ए. बेल्जियम

बी. इटली

सी. डेनमार्क और

डी. फ्रांस

फोन ए फ्रेंड में सही जवाब ना पाकर भी सुशील आशावादी थे क्योंकि अपने सामान्य ज्ञान के खजाने के आधार पर वह दो जवाबों के बारे में निश्चिन्त थे –

फ्रांस ने भारत छोड़ा नहीं था और इटली ने कभी निकोबार पर कब्ज़ा नहीं किया था। इसका साफ़ साफ़ अर्थ था कि फ्रांस तो गया ही नहीं था और इटली आया ही नहीं था तो जाने का सवाल ही कहां था? इस तरह चार में से दो जवाब अपने आप ही कट गए थे। बचे थे दो जवाब और उन्हें दो जवाब देने की पात्रता डबल डिप में थी ही। इस तरह या तो डेनमार्क हो सकता था या फिर फ्रांस। सुशील का डेनमार्क जवाब सही निकला और वह जीत गए पांच करोड़ रुपए।
साधनहीनता बाधा नहीं
नाकाम लोग कामयाब होने की केवल चाह रखते हैं, जबकि कामयाब लोग अपनी कामयाबी के लिए प्रतिबद्ध रहते हैं. सुशील कुमार ने अपनी प्रतिबद्धता से बता दिया कि साधनहीनता कहीं भी सफलता में बढ़ा नहीं बन सकती. टूटी छत के तीन कमरे के कच्चे मकान में वे अपने माता-पिता, चार भाइयों, दो भाभियों और चार भतीजे-भतीजियों के साथ रहकर पढ़ाई करते थे. बीते मई में ही उनकी शादी सीमा कुमारी से हुई और वे मोतीहारी के नाका नंबर दो के नकछेद टोले के अपने घर से दूर पश्चिम चंपारण के बेतिया इलाके में चनपेटिया इलाके में नौकरी के कारण किराये का घर लेकर रहने लगे. नौकरी भी अस्थायी, महात्मा गाँधी नरेगा में कंप्यूटर डाटा एंट्री ऑपरेटर. वेतन से गुजरा होता नहीं था, इसलिए ट्यूशन पढ़ना मजबूरी थी. उन्होंने किसी भी साधनहीनता को बाधा नहीं बनने दिया, यहाँ तक कि घर में टीवी न होना भी उन्हें लक्ष्य पाने से नहीं रोक पाया.
सपने देखने में कैसा डर?
रूपया छठी इन्द्रीय की तरह है, उसके बिना आप बाकी पांच का आनंद नहीं ले सकते. शायद इसीलिये जब केबीसी के होस्ट अमिताभ बच्चन ने 'कौन बनेगा करोड़पति' के पंचकोटि महामनी विजेता युवक सुशील कुमार से पूछा था कि अब आपके सपने क्या हैं ? सुशील का जवाब था -- ''मैंने बहुत सपने देखे हैं, लेकिन जीवन की कड़वी सच्चाइयों ने मुझे बीच में ही रोक दिया था. मेरे ऊपर परिवार की ज़िम्मेदारी थी और छह हज़ार रुपये महीने की तनख्वाह! अब मैं अपने सपनों के बारे में, उन्हें अमली जामा पहनने के बारे में काम कर सकता हूँ.'' सुशील कुमार ने केबीसी-5 में पांच करोड़ रुपये का जीते हैं, इससे उनकी तात्कालिक आर्थिक तकलीफें दूर हो गयी हैं.
सफलता मंजिल नहीं, सफ़र
सुशील कुमार जानते हैं कि किसी भी क्षेत्र में सफलता कोई मंजिल नहीं, सफ़र है. पाँच करोड़ जीतने के बाद अब वे दिल्ली जाकर यूपीएससी की अपनी तैयारी करना चाहते हैं, क्योंकि अब उनके पास बेहतर संसाधन होंगे. उन्हें लगता है कि इससे उनकी नौकरशाह बनने की कोशिश आसान होगी और वे भारतीय प्रशासनिक या पुलिस सेवा में जा सकेंगे. वे अपने पढ़ने के शौक को भी पूरा करना चाहते हैं और अपनी लाइब्रेरी बनाना चाहते हैं. वे जानते हैं कि वे केवल पढ़ने के शौक के कारण ही यहाँ तक पहुंचे हैं.
सुशील कुमार इस इनामी धनराशि से अपने खुद के लिए और अपने माता-पिता और भाइयों के लिए मकान बनवाना चाहते हैं. साथ ही वे अपने भाई के कारोबार में भी धन लगायेंगे जो अभी केवल 1500 रुपये महीने में नौकरी कर रहे हैं. वे अपने इलाके में भी वाचनालय खोलना चाहते हैं. इसी दिसम्बर में वे अपने जीवन के अट्ठाईस साल पूरे कर लेंगे, तब तक पाँच करोड़ का चेक नकदी में आ चुका होगा और टैक्स देने के बाद भी वे करोड़पति ही रहेंगे.
प्रकाश हिन्दुस्तानी


हिन्दुस्तान 30 अक्तूबर 2011 को एडिट पेज पर प्रकाशित)

3 comments:

Abhay Bhalerao said...

Very good aapne satik likha.

Abhay Bhalerao
Indore

Swati Shobha Sevlani said...

Inspired by Sushil and your article.
Well penned.

shripal said...

गुदड़ी का लाल आज देश के गाँव और देश के नेता का लाल होगया तभी तो उसे नरेगा का ब्रांड अम्बेसडर बनाया बधाई 0000000000000000