Sunday, August 28, 2011

जीने की कला ने पहुंचाया शीर्ष पर


रविवासरीय हिन्दुस्तान (28 अगस्त 2011) के एडिट पेज पर मेरा कॉलम


जीने की कला ने पहुंचाया शीर्ष पर


रवि शंकर रत्नम अन्ना हजारे के समर्थक और सहयोगी हैं. वे महर्षि महेश योगी के शिष्य थे. उन्होंने २६ साल की उम्र में १९८२ में आर्ट ऑफ़ लिविंग की स्थापना की थी. आज इसकी शाखाएं १५२ देशों में है. २०१० में फ़ोर्ब्स ने उन्हें भारत का पांचवां सबसे प्रभावशाली व्यक्ति लिखा था. उन्होंने दलाईलामा के साथ जेनेवा में भी एक संस्था खोली है जो गरीबों की मदद करती है. सितार वादक रवि शंकर ने उन पर आरोप लगाया था कि योगी रवि शंकर उनकी ख्याति का लाभ उठा रहे हैं, तब उनके शिष्यों ने उन्हें 'श्री श्री रवि शंकर' नाम दिया. अपने शिष्यों में वे 'श्री श्री' नाम से ही पहचाने जाते हैं.लोग कहते हैं कि वे खुद बहुत बड़े 'ब्रांड' हैं. उनकी संस्थाएं करोड़ों रुपये सेवा कार्य पर खर्च करती हैं.गंगा और यमुना के सफाई अभियान में भी वे जुड़े हैं. योग क्रिया 'कपाल भांति' और 'सुदर्शन क्रिया' को आजमाकर उसके माध्यम से लाखों लोगों को प्रभावित करनेवाले 'श्री श्री' की सफलता के कुछ सूत्र :
बचपन मत भूलो
आप कितने भी बड़े हो जाएँ, बचपन को ना भूलें. बचपन की सहजता, मासूमियत और ईमानदारी को कलेजे से लगाये रखें, जिससे कि आप हमेशा तनावमुक्त और अपनत्व से भरे रह सकते हैं. श्री श्री अब भी अपने आप को बच्चा ही कहते हैं, ऐसा बच्चा जो शरीर से बड़ा हो चुका है लेकिन मन से पूरी तरह निश्छल है.अगर बचपन की कोई कटुता मन में है तो उसे निकाल देने में ही भलाई होती है. अपने बचपन को याद करने के अलावा आप अपने आसपास के बच्चों से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं.
सहजता ही अध्यात्म
मैंने जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं किया है जो सहज नहीं है या बनावटी है. बनावटीपन और दिखावा तो बोझ की तरह होते हैं जिन्हें ढोना पड़ता है. मेरे लिए सहज रहना अध्यात्म का ही एक अंग है. यही मेरी जीवनशैली है. मैं सहज और सरल जीवन जीता हूँ और इसी में खुश हूँ. मेरी सलाह पर हजारों लोगों ने जीवन जीने का यही मार्ग चुना है और वे सब इससे खुश है.
यथार्थ को स्वीकारो
सहज-सरल जीने का तरीका यह है कि 'एक्सेप्ट द सिचुएशन एज इट इज़'. इसका मतलब यह नहीं है कि आप गलत बातों का समर्थन करे, बल्कि इसका अर्थ यह है कि आप गलत बात की तह में जाने की कोशिश करें और उसे दूर करे. अगर आप किसी समस्या में फंस गए हैं तो वहीँ रहना यथार्थ नहीं है, बल्कि आप हालात को समझ कर समस्या से निजात पायें तो आप ज्यादा सहज जीवन जी सकते हैं.
हंसो, पर फंसो मत
हमेशा हंसने यानी खुश रहने की दशा तभी आ सकती है, जब आप कहीं भी फंसे ना हों. हमेशा विवादों से दूर रहने की कोशिश करो. अगर विवाद की दशा आ ही जाए तो जीतनी जल्दी हो सके, बाहर निकालने की कोशिश करो. अपनी ऊर्जा का हमेशा सकारात्मक उपयोग आप तभी कर सकते हैं, जब आप तनावरहित और प्रसन्नचित्त हों.
शाश्वत कुछ भी नहीं
जीवन का कोई भी नियम शाश्वत नहीं. दूध पीना अच्छा होता है, पर हमेशा अच्छा नहीं. कई रोगी दूध पीकर और बड़े रोगी हो सकते हैं. ज़हर किसी की जान ले सकता है, लेकिन ज़हर से ही कई जीवनरक्षक दवाइयाँ बनाती है. डीडीटी का आविष्कार करनेवाले वैज्ञानिक को नोबेल प्राइज़ दिया गया था, आज डीडीटी दुनिया के अधिकांश देशों में प्रतिबंधित है. कोई भी बात हर व्यक्ति और हर काल में अच्छी ही हो, ज़रूरी नहीं होता. इसलिए बात बात पर शोक मनाना अच्छी आदत नहीं.
मुफ्त कुछ भी नहीं
प्रकृति ने हमें हमारी सबसे बहुमूल्य वस्तु मुफ्त में दी है, ऑक्सीजन,लेकिन हम उसका मोल कहाँ समझ पाते हैं? कोई भी वस्तु मुफ्त में दो तो उसका महत्व लोग नहीं समझते, इसलिए शुल्क लेना ज़रूरी है, और उस आय से वही वस्तु उन लोगों को मुफ्त उपलब्ध कराना ज़रूरी है, जिसकी उसे सख्त ज़रुरत हो. यह व्यवसाय नहीं, समाज का हिट करने के लिए है. इसीलिये 'आर्ट ऑफ़ लिविग' के लिए शुल्क रखा गया है.
नयी तकनीक अपनाओ
नयी तकनीक केवल उपकरणों के मामले में ही नहीं, जीवन जीने के बारे में भी अपनानी चाहिए तभी बेहतर जीवन जी सकते हैं. हम नयी तकनीक कार और नयी तकनीक के फोन पर ही अटक जाते हैं और नयी तकनीक से सांस लेने के बारे में सोचने का वक़्त नहीं है. हम दूसरों की ख़ुशी में अपनी खुशी पाने की तकनीक भी खोते जा रहे हैं. जबकि हमें वैसी नयी तकनीक खोजते रहना चाहिए जो हमें सुख प्रदान करे.
संगीत की शक्ति
संगीत में हमें शक्ति देने और नयी ऊर्जा से भर देने की अपार ताकत मौजूद है, लेकिन हमने गाना, बजाना, नृत्य करना कम कर दिया है. मेरी ऊर्जा का एक खास स्रोत संगीत है, और कई तरह का संगीत मैं सुनाता हूँ,जिसमें से कई बार तो मुझे वह समझ में भी नहीं आता, लेकिन फिर भी आनंद देता है. संगीत में एक और शक्ति है, और वह शक्ति है एकात्मकता पैदा करने की.
हमारे जीवन का लक्ष्य है आनंद की प्राप्ति और अहिंसा तथा शांति के बिना वह संभव नहीं है. हमारे पास जो है उससे संतुष्ट हुए बिना हम हर तरीके से साधन जुटाने में लगे हैं. और यह हमारे दुःख का कारण बन जाता है. मैंने तय कर लिया है कि मैं खुश रहूंगा और मैं खुश हूँ. आप भी यह करके देखिये.
प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान, 28 अगस्त 2011 (संपादकीय पेज)

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