Sunday, August 21, 2011

बदल डाले सफलता के मायने

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बदल डाले सफलता के मायने

सफलता का अर्थ केवल पद, दौलत और शोहरत ही नहीं होता. सफलता का असली अर्थ है आप जो सही समझते हों, उसे हिम्मत के साथ कर रहे हों. कुछ कुछ ऐसा करना जिससे पूरे समाज को लाभ होता हो, इस तरह अन्ना हजारे के आन्दोलन के प्रमुख रणनीतिकार अरविन्द केजरीवाल ने सफलता के मायने ही बदल डाले. हरियाणा के हिसार में 1968 में जन्मे अरविन्द केजरीवाल में आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली और कुछ समय जमशेदपुर में टाटा स्टील में काम करने के बाद यूपीएससी के जरिये आईआरएस में चुने गए. दिल्ली में आयकर विभाग में 1992 में नौकरी शुरू की. 2006 में वे एडिशनल कमिश्नर (इनकम टेक्स) के पद से नौकरी छोड़कर 'परिवर्तन' नामक संस्था में काम करने लगे. उन्होंने पीसीआरएफ (पब्लिक काज़ रिसर्च फंड) नामक संस्था भी खादी की. सूचना के अधिकार, जन लोकपाल कानून के पक्ष में और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके संघर्ष उनकी अलग ही पहचान बने, जो आयकर अधिकारी रहते संभव नहीं थी. उन्हें अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिल चुके हैं, जिनमें मैग्सेसे अवार्ड भी है. अरविन्द केजरीवाल की सफलता के कुछ सूत्र :
पद नहीं, कर्म बनाते हैं बड़ा
अरविन्द केजरीवाल अगर अभी भी आयकर विभाग में ही होते तो और भी बड़े पद तक पहुँच जाते. भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात आयकर विभाग में हजारों लोग नौकरी पाने के लिए बड़ी कीमत देने को तैयार रहते हैं, ऐसे में अरविन्द केजरीवाल का नौकरी छोड़ना कई लोगों को अजीब लगा. हिसार और नांगल में पढ़ाई करनेवाले अरविन्द ने साबित किया कि अगर कोई व्यक्ति ठान ले तो फिर कुछ भी करना मुश्किल नहीं होता. वे आज किसी पद पर नहीं है लेकिन अपने रणनीतिक कौशल, ईमानदारी और बुद्धिमत्ता से उन लोगों को बेनकाब कर दिया जो बड़े बड़े पदों पर काबिज हैं.
सही रणनीति ज़रूरी
अरविन्द केजरीवाल ने अपने आन्दोलनों की सही शुरुआत पर ध्यान रखा. उन्होंने हमेशा सही लोगों को साथ लिया और सही लोगों के साथ ही रहे. उन्होंने अपने अभियान की शुरूआत मज़दूर किसान शक्ति संगठन में अरुणा राय और हर्ष मंदार के साथ की. पानीवाले बाबा संदीप पांडे और शेखर सिंह भी उनके सह-कार्यकर्ता रहे. हर्ष मंदार लोकपाल के मुद्दे पर लोगों की राय बना रहे थे लेकिन अरविंद केजरीवाल यह मुद्दा अपने तरीके से उठाने लगे और अन्ना के खास रणनीतिकार बने. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक घंटे बिजली बंद रखने के उनके अनुरोध का भी कई जगह असर पड़ा. उन्होंने जन लोकपाल बिल के बारे में चांदनी चौक इलाके में यह जनमत संग्रह करवाकर कि कपिल सिब्बल के चुनाव क्षेत्र में भी 85 प्रतिशत वोटर जन लोकपाल के पक्ष में हैं, लोगो को चौंका दिया. युवाओं को अन्ना के आन्दोलन से जोड़ने में उनकी प्रमुख भूमिका रही.
आरोपों से ना घबराएँ
अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ लोगों ने आरोपों की झड़ी लगा दी लेकिन वे उससे विचलित नहीं हुए. शासकीय सेवा में उनके वरिष्ठ रहे लोगों ने भी आरोप लगाये. उनकी पत्नी (जो आयकर विभाग में ही प्रमुख पद पर हैं) के तबादले को लेकर भी उन पर आरोप लगाये गए. कॉंग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने भी उन पर आरोप लगाए थे. बिहार में नीतीश कुमार सरकार के लिए लोकायुक्त बिल का खाका बनाने में भी अरविंद केजरीवाल ने मदद की थी, उस पर भी आरोप लगे. अन्ना के आन्दोलन में मुस्लिमों और ओबीसी की भागीदारी को लेकर भी अरविन्द केजरीवाल पर आरोप लगाये गए.
हवा के रुख को पहचानो
अच्छा नाविक वह है जो केवल अपनी पतवार के भरोसे नहीं रहता, बल्कि हवा के रुख को भी पहचानता और उसकी मदद लेता हो. अरविन्द केजरीवाल ने यह बात तभी समझ ली थी जब वे आरटीआई आन्दोलन से जुड़े. उन्होंने पाया कि लोग भ्रष्टाचार से तो सभी लोग पीड़ित हैं लेकिन बहुत कम लोग ही खुलकर सामने आते हैं. छोटी मोटी जनसुविधाओं के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है. भ्रष्टाचार के प्रति लोगों के गुस्से को सामने लाकर कोई भी बड़ा आन्दोलन खड़ा किया जा सकता है. उन्होंने आरटीआई को भ्रष्टाचार से लड़ाई का हथियार बनाकर इस्तेमाल किया और उसके फायदे को हजारों लोगों तक पहुँचाया. सार्वजानिक वितरण प्रणाली की खामियों की तरफ भी उन्होंने ध्यान दिलवाया, जिससे बड़ी संख्या में लोग उनसे जुड़े.
पारदर्शिता से काम करो
अपने सभी आंदोलनों के लिए अरविन्द केजरीवाल के एनजीओ लोगों से चंदा लेते है और उस चंदे के बारे में एनजीओ की वेबसाइट पर उसकी पूरी जानकारी भी देते हैं. वे वहां पर अपने बारे में कम और अपनी संस्था के काम के बारे में ज्यादा सूचनाएं देते हैं, जिससे यह नहीं लगता कि वे अपने आप को आगे बढ़ा रहे हैं. अपनी किसी भी संस्था में काम करनेवाले सभी सहयोगियों के बारे में भी पूरी जानकारी देते हैं. इण्डिया अगेंस्ट करप्शन की वेबसाइट पर भी इसी तरह की जानकारी मौजूद है. इतना ही नहीं, वे अपनी भावी योजनाओं के बारे में भी खुलकर चर्चा कराते हैं.
लड़ाई जीतना, युद्ध जीतना नहीं
बहुत कम नेता और कार्यकर्ता 'लड़ाई' और 'युद्ध' का अंतर समझ पाते हैं. एक युद्ध जीतने के लिए कई कई लड़ाइयाँ लड़नी होती है. हर लड़ाई युद्ध की जीत में महत्वपूर्ण होती है, लेकिन कई बार कुछ लड़ाई हारकर भी युद्ध जीत लिए जाते हैं. इसके लिए ज़रूरी है अपने हथियारों की धार कराते रहना, जीत का हौसला बुलंद रखना और हर रणनीति सोच समझकर बनाना और सही तरीके से उस पर अमल करना. अन्ना के आन्दोलन के दौरान कई बार लगा कि अब शायद मामला उलटा हो गया है लेकिन वक़्त ने साबित किया कि बात कुछ और ही है.
प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान, 21/08/2011

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