Sunday, December 05, 2010

अजीम प्रेमजी ने 8846 करोड़ का दान दिया. अजीब शख्स है !!! IPL टीम नहीं खरीदी, हवाई जहाज़ बेड़ा नहीं लिया, कैलेंडर नहीं छापे, फिल्में नहीं बनाईं, किसी आईलैंड की मिल्कियत नहीं चाही, मीडिया टायकून नहीं बना.... ढाई करोड़ दे पामेला एंडरसन से घर की झाड़ू भी नहीं लगवाई....क्या दूसरे धंधेबाज़, साहूकार, शराब व्यवसायी, भू माफ़ि...या शिक्षा लेंगे?

भारतीय बिल गेट्स अजीम प्रेमजी
विप्रो के प्रमुख अजीम प्रेमजी माइक्रोसाफ्ट के बिल गेट्स के रास्ते पर हैं. दो दिन बाद, 7 दिसंबर से प्रेमजी की संपत्ति में से 8, 846 करोड़ रुपये के बराबर संपत्ति अजीम प्रेमजी फाउंडेशन नामक दान खाते में ट्रांसफर होना शुरू हो जायेगी. विप्रो के उनके परिवार के 79.36 प्रतिशत हिस्से में से 8.6 प्रतिशत हिस्सा कम हो जाएगा. इससे शिक्षा की बेहतरी के लिए काम होगा. उनका मानना है कि दान ह्रदय की प्रक्रिया है, दिमाग या हाथों की नहीं. एक अच्छा काम सौ सलाहों से बढ़कर होता है और वे यह काम किसी मीडिया अटेंशन के लिए नहीं कर रहे. बिल गेट्स के 27 अरब डॉलर और वारेन बफेट के 31 अरब डॉलर दान के मुकाबले यह दस प्रतिशत भी नहीं है, लेकिन भारत में अभी तक इस से बढ़कर कोई दान नहीं हुआ.

अजीम प्रेमजी भारत की तीसरी सबसे बड़ी साफ्टवेयर कंपनी विप्रो (पुरानी वेस्टर्न इंडिया प्रोडक्ट्स) के प्रमुख हैं. उनका नाम भारत के सबसे मालदार लोगों में शुमार है, फ़ोर्ब्स ने उन्हें दुनिया के सबसे धनी 50 लोगों में शामिल किया है, एशियावीक उन्हें विश्व के सबसे पावरफुल लोगों में गिनता है. अपने पिता की 'साबुन तेल' कंपनी को 1980 में उन्होंने नए ज़माने की कंपनी में तब्दील कर दिया. ऐसी कंपनी, जिसने दुनिया का पहला 'एसईआई - सीएमएम (पीपल केपेबिलिटी मेच्योरिटी मॉडल) लेवल फाइव' हासिल किया. जो कंपनी अल्काटेल, नोकिया, सिस्को, एरिक्सन, नोर्टल जैसी कम्पनियों के साथ काम करती है और जीई के साथ मेडिकल सिस्टम्स के क्षेत्र में नयी-नयी खोजों में लगी है.

अजीम प्रेमजी गल्फ के शेख नहीं हैं, जिन्होंने तेल बेचकर खरबों कमाए हों. उन्होंने अपनी योग्यता से यह मंजिल हासिल की. बीते साल विप्रो का मुनाफा 4,593 करोड़ से ज्यादा का था. वे चाहते तो आईपीएल की टीम खरीदने, फ़िल्में बनाने, हवाई जहाजों का बेड़ा खरीदने, मीडिया टायकून बनने में 'कुछ' हिस्सा झौंक सकते थे, लेकिन उन्होंने शिक्षा का स्तर उठाने के लक्ष्य को चुना. यों भी वे दिखावे से दूर रहते हैं. हवाई जहाज में यात्रा करनी हो तो इकानॉमी (कैटल ?) क्लास में आते-जाते हैं. रुकने के लिए महंगे फाइव स्टार होटल स्युइट्स के बजाय अपनी ही कंपनी का गेस्ट हाउस चुनते हैं. वे ऐसे उद्यमी हैं, जिन्होंने साफ़-साफ़ कहा था कि मेरा बेटा मेरा उत्तराधिकारी नहीं हो सकता, उसमें अनुभव की कमी है. मंदी के दौर में उन्होंने अपना वेतन दस प्रतिशत घटाया, लेकिन दूसरे डाइरेक्टरों का वेतन कम नहीं किया.

अजीम प्रेमजी को बहुत बुरा लगा जब उन्हें वाल स्ट्रीट जर्नल ने 'दुनिया का सबसे धनी मुस्लिम इंटरप्रेन्योर' लिखा. उन्होंने आपत्ति की कि कभी भी किसी को सबसे धनी हिन्दू, सिख, यहूदी या बौद्ध नहीं कहा जाता. अमेरिका में आतंकी हमले के बाद अमेरिकी दूतावास ने उनसे अनुरोध किया गया कि वे 'इस्लामिक स्कूलों में आधुनिकता' का ज्ञान देने की पहल करें. उन्होंने साफ़ कहा कि सभी को क्यों नहीं; शिक्षा ही है जो सभी को आगे ले जा सकती है और यह सभी को मिलनी चाहिए. पद्मभूषण से सम्मानित प्रेमजी विप्रो को वैश्विक कंपनी के रूप में देखना चाहते हैं और चाहते है कि कम से कम टॉप टेन में तो उस का शुमार हो ही.

24 जुलाई 1945 को जन्मे अजीम प्रेमजी के पिता व्यवसाय में थे. उनके दादा का बड़ा कारोबार था और वे बर्मा में 'राईस किंग' माने जाते थे. देश विभाजन के वक़्त उनके दादा को पकिस्तान में केबिनेट मंत्री बनाने का प्रस्ताव खुद जिन्ना ने रखा था, लेकिन वे पकिस्तान नहीं गए. मुंबई में स्कूली पढ़ाई के बाद अजीम ने स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री के लिए एडमिशन लिया था, लेकिन पिता के निधन के कारण वापस आना पड़ा. यह डिग्री उन्होंने बाद में हासिल की. मानद डी. लिट. सहित कई डिग्री उनके पास है, लेकिन उनका असली लक्ष्य है प्राइमरी शिक्षा को बेहतर बनाना. देखते हैं. अब कौन उनका अनुसरण करता है?
--प्रकाश हिन्दुस्तानी

दैनिक हिन्दुस्तान
5 दिसंबर 2010

2 comments:

Arun sathi said...

प्रेरक व्यक्तित्व

honesty project democracy said...

काश ऐसा हर उद्योगपति करता....