Friday, December 24, 2010




ना कानून से ऊपर, ना नीचे -- डॉ. मोहम्मद हनीफ़
आस्ट्रेलिया की सरकार ने भारतीय डॉक्टर मोहम्मद हनीफ़ को आतंकवाद समर्थक आरोपों से बरी करके साबित कर दिया कि कोई भी कानून से ऊपर कोई नहीं है और न ही कानून से नीचे. आस्ट्रेलिया ने डॉ. हनीफ़ को मुआवज़े के रूप में भी करीब दस लाख डॉलर दिए हैं और माफ़ी भी मांगी है. यह मामला उतना सीधा है नहीं, जितना नज़र आता है. डॉ. हनीफ़ को आस्ट्रेलियाई सरकार ने बिना किसी कानूनी दस्तावेजों के 2 जुलाई से 27 जुलाई 2007 तक, यानी 25 दिन बिना किसी सबूत के गिरफ्तार किये रखा, जो आस्ट्रेलिया के इतिहास की सबसे लम्बी बिना कारण, बिना सबूत गिरफ्तारी थी. वे पहले इंसान थे, जिन्हें आस्ट्रेलिया में 2005 के आतंक विरोधी क़ानून के तहत पकड़ा गया था और उनकी गैरकानूनी गिरफ्तारी के 48 घंटों के भीतर ही वहां के पूर्व प्रधानमंत्री जान हार्वर्ड उनके पक्ष में सक्रिय हो उठे थे. पूरा भारत और यहाँ का तंत्र उनके साथ खड़ा था. 27 जुलाई को उन्हें रिहा करके 29 जुलाई को जबरन भारत रवाना कर दिया गया, जब उन्होंने भारत आने के पहले वहां पत्रकार वार्ता करनी चाही तो रोड़ा डाला. लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद उन्हें 13 महीने बाद 30 अगस्त २००८ को निर्दोष करा दिया गया. करीब ढाई साल बाद आस्ट्रेलिया की सरकार ने माफ़ी मांगी. डॉ. हनीफ़ के साथ ज्यादती करने के बाद डॉ साल में करीब 30 हजार भारतीय विद्यार्थियों ने आस्ट्रेलिया में पढाई छोड़ दी जिससे आस्ट्रेलिया को करोड़ों डॉलर की आर्थिक चपत लगी.

डॉ. हनीफ़ को 2 जुलाई 2007 को ब्रिसबेन एयर पोर्ट पर भारत आते वक्त गिरफ्तार किया गया था. इलजाम थे कि उन्होंने ग्लासगोव इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर ३० जून 2007 को हुए हमले के आरोपियों की मदद की थी. ये भी कि हमलावर उनके रिश्तेदार थे. सबूत ये लगाया कि डॉ. हनीफ़ बिना रिटर्न टिकट के भारत क्यों जा रहे थे? उनके मोबाईल की सिम कहाँ हैं? डॉ. हनीफ ने कहा कि उनकी पत्नी ने 6 दिन पहले ही सीजेरियन के जरिये बेटी को जन्म दिया है और उनके खाते में डॉलर नहीं है कि वे रिटर्न टिकट ले सकें. डॉ. हनीफ़ ने ये भी कहा कि उनकी मंशा पत्नी और बेटी को लाने की है और बेटी का पासपोर्ट बना नहीं है, तब भी जांच अधिकारी नहीं माने. उन्होंने आस्ट्रेलियाई सरकार को मानसिक वेदना देने, प्रताड़ना करने, बिना कारण जेल में निरुद्ध रखने, योग्य रोजगार के हक से वंचित रखने, पेशे में भारी आर्थिक हानि आदि का ज़िम्मेदार बताया था. अब वहां की सरकार कहती है कि अगर डॉ. हनीफ चाहें तो वापस आस्ट्रेलिया में नौकरी या प्रेक्टिस कर सकते हैं. लम्बी लड़ाई के बाद हनीफ ने आस्ट्रेलिया के बजाय दुबई में जाकर प्रेक्टिस कराना बेहतर समझा.

डॉ. हनीफ के मामले में जांच एजेंसियों की सारी पोल खुल गयी. उनके हर बयान की रेकार्डिंग की गयी थी, जिसमें उन्होंने सारी बातें सच सच बयान की थी, लेकिन अधिकारियों ने यही कहा कि हमारे पास सारे सबूत उनके खिलाफ हैं. असलियत ये थी कि कोई आरोप साबित ही नहीं हुआ. ना डायरी, ना सिम, ना ही टिकट सबूत बन पाया. धर्म के आधार पर उन्हें सताया गया था. भारत के विदेश मंत्री ने इस पर तीखी टिप्पणी की थी और आस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री को फोन पर चेताया था.

कर्नाटक के चिकमंगलुरु जिले के रहनेवाले डॉ. हनीफ के पिता स्कूल शिक्षक थे. 29 सितम्बर 1979 को जन्मे हनीफ 18 साल के थे, तब एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गयी थी. हनीफ ने कड़ी मेहनत से मेडिसिन की पढाई जारी रखी प्रथम श्रेणी में डिग्री ली. 2006 में वे आस्ट्रेलिया गए और साल भर बाद ही वे झूठे मामले में फंस गए जिससे बरी होने और मुआवजा पाने में उन्हें तीन साल से भी ज्यादा लगे. अगर भारत में किसी पर ऐसे आरोप लगते तो शायद पूरी जिन्दगी भी दोषमुक्त होने में कम पड़ जाती.
--- प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान
२६ दिसम्बर २०१०

3 comments:

Anonymous said...

This is great man in Dr.Mo.Hanif

shripal singh panwar said...

This is great man in Dr.Mo.Hanif

honesty project democracy said...

उम्दा आलेख...लेकिन हनीफ जी उदहारण हैं अन्याय पर न्याय के जित की लेकिन हजारों हनीफ आज भी भारतीय या विश्व के विभिन्न देशों के जेलों में यातना झेल रहें हैं......