Saturday, May 16, 2015

प्रकृति का विशाल वालपेपर है नियाग्रा


अमेरिकी डायरी के पन्ने (7)



नियाग्रा वाटर फाल्स को दुनिया एक खूबसूरत चमत्कार की तरह देखती है। धरती का जीवंत वालपेपर। गजब की खूबसूरती। गजब की लोकेशन। गजब की व्यवस्थाएं। नियाग्रा नदी के ये झरने यूएसए और कनाडा की सीमाओं को बांटते है। एक तरफ अमेरिका है और दूसरी तरफ कनाडा। नियाग्रा वाटर वाल्स दुनिया के सबसे ऊंचे झरने नहीं है, लेकिन फिर भी ये दुनिया के सबसे लोकप्रिय पर्यटन केन्द्र है। करीब 15 लाख पर्यटक प्रतिवर्ष यहां आते है।


हनीमून मनाने वालों के लिए यह लोकप्रिय स्थान है और हर साल करीब 50 हजार जोड़े इस पर्यटन केन्द्र पर आकर यादगार वक्त बिताते है। कहा जाता है कि नेपोलियन के भाई जेरोम बोनापार्ट और उनकी पत्नी ने 1803 में इस स्थान पर हनीमून मनाया था उसके बाद ही यह जगह हनीमून मनाने वालों के लिए लोकप्रिय हो गई। ऐसा कहा जाता है कि लाखों करोड़ों साल पहले जब ग्लेशियर पिघलने लगे और पानी की बड़ी-बड़ी झीलें बनने लगी तो उस पानी ने प्रशांत महासागर तक जाने के लिए जो रास्ता चुना वह नियाग्रा नदी कहलाई। यह नदी जब आगे बढ़ी और झरनों के रूप में उसका पानी नीचे गिरने लगा तब यह दुनिया के सबसे खूबसूरत जल प्रपात में माना जाने लगा। दुनिया का सबसे ऊंचा जल प्रपात नियाग्रा से 15 गुना ऊंचा है, लेकिन जितना चौड़ा पाट यहां नदी का है और जिस तरह अर्धचन्द्राकार में नदी गिरती है वह शानदार है और इससे भी शानदार है इस जल प्रपात से हर एक मिनिट में गिरने वाला करीब 14 करोड़ लीटर पानी।


जब यह जल प्रपात नीचे गिरता है तब तीन प्रमुख झरने बनते है। उसमें से कनाडा की तरफ से गिरने वाला झरना करीब 173 फीट नीचे है और अमेरिका की तरफ गिरने वाला करीब 100 फीट। दिलचस्प बात यह है कि कनाडा की तरफ जो झरना गिरता है वह अर्धचन्द्राकार है जिसे घोड़े की नाल के आकार के कारण अंग्रेजी में होर्स शू फॉल कहा जाता है। नियाग्रा झरने के दोनों तरफ जो शहर है उनका नाम एक ही है। अमेरिका की तरफ वाला भी ओंटारियो और कनाडा की तरफ भी ओंटारियो। दो अलग देश होने के कारण एक ओंटारियो से दूसरे ओंटारियो जाना आसान नहीं। वीजा संबंधित दिक्कतें रास्ते में आती है। अगर किसी के पास दोनों देशों का वीजा है तो वो दोनों देशों से नियाग्रा की यात्रा कर सकता है। ऐसा कहा जाता है कि कनाडा की तरफ से नियाग्रा ज्यादा सुंदर दिखता है। मेरे पास कनाडा का वीजा नहीं था और अमेरिका के ओंटारियो से ही नियाग्रा का नजारा देखना पड़ा, लेकिन वह भी अच्छा खासा दिलचस्प था।

 नियाग्रा में रात का नजारा देखने और वहां के होटल में रात बिताने के बाद फिर सुबह-सुबह नियाग्रा देखने का लोभ रोकना आसान नहीं था। 13 अप्रैल 2015 को जब हम रात में नियाग्रा देखने के लिए रवाना होने वाले थे तभी जोरदार बारिश होने लगी। सस्ती सी बरसाती (5 डॉलर) खरीदने के बाद उसे ओढ़कर जब हम झरने तक पहुंचे तब बारिश थोड़ी धीमी हो चुकी थी, लेकिन तेज हवाओं ने हमारी बरसाती को प्रभावहीन बना दिया था। ठंड अच्छी खासी थी और ठिठुरते हुए नियाग्रा झरनों को देखना अपने आप में सुवूâन भरा था। जिस तरह से रात के वक्त नियाग्रा जल प्रपात पर रोशनी की व्यवस्था की गई थी वह अपने आप में यादगार थी। उसे देखकर लगा की अगर रात के वक्त नियाग्रा नहीं देखते तो कुछ छूट जाता। रंग-बिरंगी रोशनी में गिरते हुए पानी का नजारा ऐसा था मानो प्रकृति ने कोई बेहद विशाल वालपेपर हमारे लिए छोड़ दिया है। जब हम वहां पहुंचे तब लाइट एंड साउंड शो चल रहा था। बारिश के कारण हमने उस शो को देखना स्थगित रखा।


सुबह-सुबह होटल की खिड़की से बाहर का नजारा देखा तो मन प्रसन्न हो गया। सामने विशाल नियाग्रा नदी बहती हुई नजर आई। अप्रैल तक बर्फ पूरी तरह पिघल नहीं पाई थी। अमेरिका के तरफ से देखो तो झरना इसलिए विशिष्ट लगता था कि नियाग्रा नदी यहां झरने के बाद 90 डिग्री तक मुड़ जाती है। अमेरिका और कनाडा के बीच के जल प्रपातों के बीच जमीन का भी एक टुकड़ा है, जिसे बताया गया कि यह गोट आईलैण्ड है। गोट आईलैण्ड की तरफ भी एक छोटा सा झरना है। जिसे ब्राइडल वेल (दुल्हन के घूंघट की तरह) कहा जाता है। इसके बाद भी एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा है उसे लूना आईलैण्ड कहा जाता है। अमेरिका की तरफ से नियाग्रा झरने को देखो तो 90 डिग्री का विशाल झरना, फिर लूना आईलैण्ड, फिर ब्राइडल वेल के झरने और फिर गोट आईलैण्ड। इसके बाद का हिस्सा कनाडा में है।


नियाग्रा में जिस तरह पर्यटकों की भीड़ थी और थक्का-मुक्की तो नहीं हो रही थी, लेकिन हालात उससे कम भी नहीं थे। झरने की तरफ से पानी के बारीक कणों के कारण विशालकाय इन्द्रधनुष बन गए थे। हर कोई उन इन्द्रधनुषों के पास अपनी तस्वीर खिंचवाना चाहता था। ऐसा लग रहा था मानो विशाल झरने में एक जीवंत इन्द्रधनुष ने वालपेपर में और वृद्धि कर दी हो। दुनियाभर के पर्यटक यहां नजर आए। हर उम्र, रंग और आय वर्ग के। इसमें बड़ी भारी संख्या भारतीयों और चीनियों की भी थी। हम जिस बस में नियाग्रा गए थे उसका ड्रायवर भी चीनी था और हम पर्यटकों की गाइड भी एक चीनी युवती थी, जो ठीक से अंग्रेजी नहीं बोल पा रही थी, लेकिन जब वह चीनी भाषा में कमेंट्री करती तो वह ज्यादा अच्छी थी। उसकी एक ही चीज ने प्रभावित किया कि वह हर बात चार-चार बार कहती थी। मसलन अगर उसे कहना हो कि हम लोग सुबह 6.50 मिनिट पर मिलेंगे, तो वह
कहती थी मार्निंग  सिक्स फिफ्टी, सिक्स फिफ्टी फिर वह उसे दोहराती थी मार्निंग सिक्स फाइव ज़ीरो, सिक्स फाइव ज़ीरो। थोड़ी ही देर में हमने देखा कि उसने अपने बेग में से एक झंडा निकाला और दृष्टिहीनों के काम आने वाली छड़ी भी अपने बेग से निकाली और झंडा छड़ी में लगा दिया। उसका झंडा पीले रंग था। हमने देखा कि वहां पर्यटकों के बहुत सारे समूह थे और उन सबके गाइड कोई न कोई रंग का झंडा लिए थे। अधिकांश पर्यटक दलों में गाइड का काम युवतियां ही कर रही थीं, अपवाद स्वरूप ही युवक गाइड नजर आ रहे थे।

अप्रैल के दूसरे सप्ताह में भी जबरदस्त ठंड थी। तापमान 2 डिग्री सेल्सियस के आसपास था। वहां जाने के पहले अखबारों में खबर पढ़ी थी कि भारी ठंड के कारण नियाग्रा जल प्रपात जम गया था। बर्फ की बड़ी-बड़ी पहाड़नुमा चट्टानें नीचे जमी हुई थी। नदी के दोनों तरफ की बर्फ पिघली नहीं थी और सफेद चादर जैसी बन गई थी। 1848 में इतनी ज्यादा ठंड पड़ी थी कि पूरा नियाग्रा जल प्रपात ही जम गया था और नदी का पाट भी पूरी तरह से बर्फ बन गया था, जिस पर लोग चहलकर्मी कर रहे थे। 1911 में भी ऐसे ही बर्फ जमी थी। इस बार भीषण ठंड के कारण नियाग्रा जम गया था, लेकिन पानी की धाराएं नीचे से बह रही थी। हमें बताया गया कि अगर दिसंबर से फरवरी के बीच यहां आए तो यहां का नजारा अलग मिलेगा। चारों तरफ जमी हुई बर्फ सूर्य की रोशनी से चमकती है और अलग ही नजारा पेश करती है। रात को चांदनी इस स्थान को खूबसूरत बना देती है।

अमेरिका और कनाडा दोनों ही सम्पन्न देश है और उन्होंने नियाग्रा फॉल्स को एक बहुत बड़े कारोबार में तब्दील कर दिया है। दोनों ही तरफ गगनचुंबी इमारतें हैं, जिनमें से 95 प्रतिशत होटल है। ये होटल इस तरह बनाए गए हैं कि उनके कमरों की खिड़कियों से ही आप नियाग्रा जल प्रपात का नजारा देख सकते है। यानि आपको अपने होटल से बाहर निकलने की जरूरत ही नहीं है। एक गगनचुंबी होटल ने तो अपनी छत पर्यटकों के लिए खोल रखी है और वह वहां जाने का टिकिट बेचती है। यानि अगर आप उतनी ऊंचाई से झरना देखना चाहें तो अलग से पैसा दीजिए। अमेरिका और कनाडा के महंगे से महंगे होटल यहां उपलब्ध है। अगर आपके जेब में ज्यादा पैसे कूद रहे हों तो लाख डेढ़ लाख रुपए रोज का कमरा भी आपको मिल सकता है। सर्दी के दिनों में यानि दिसंबर से फरवरी के बीच यहां पर्यटक कम आते हैं तो यह होटल वाले भी सब्जी की दुकानों की तरह अपने कमरे का किराया घटाते-बढ़ाते है। इसके बाद भी कई पर्यटक मोल-भाव करते है और किराया कम करवाकर ही मानते है। टूर पैकेज के नाम पर यात्रियों को ले जाने वाले थोक में ग्राहक उपलब्ध कराते है इसलिए उन्हें और भी सस्ती दरों पर यह कमरे उपलब्ध है।


अमेरिकी लोग पैसा बनाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते। वे हर बार कोई न कोई नया तरीका निकाल देते है और फिर उसमें एक और नया तरीका पैसा कमाने का ढूंढ लेते है। 1848 में यहां भाप से चलने वाली नौंकाएं यात्रियों को नदी के एक तरफ से दूसरे तरफ ले जाने लगी थी। छह साल बाद ही इन नौंकाओं की जगह विलासितापूर्ण नौंकाओं ने ले ली। उन्होंने एक और नया धंधा खोजा, नदी में यात्रियों को घुमाने का। डॉलर खर्च कीजिए और आधे घंटे की नदी की यात्रा कीजिए। नदी में से ही ऊपर से गिरते झरने को निहारिए। इतनी बड़ी मात्रा में जब पानी झरने से नीचे गिरता तो पानी बेहद बारीक-बारीक कणों में छितरकर नयनाभिराम दृश्य पैदा करता है। पहाड़ों के बादलों के मानिन्द इस माहौल में ले जाने के लिए एक अलग सेवा शुरू की गई है, जिसका नाम है- ‘मैड ऑफ द मिस्ट’। हमें बताया गया कि नदी में विशालकाय बर्फ की चट्टानों के कारण यह सेवा अभी बंद है, क्योंकि इन चट्टानों से टकराकर कोई भी नाव उलट सकती है। जैसे की टाइटेनिक फिल्म में जहाज बर्फ की चट्टान से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है वैसा नजारा यहां देखने को न मिले इसीलिए यह ऐहतियात बरती गई। मैड ऑफ द मिस्ट का किराया बचने की खुशी हुई। इसके अलावा नियाग्रा प्रपात के आसपास पर्यटकों के लिए अलग से ही शहर बस गए है। इन शहरों में पर्यटकों को लुभाने की हर कोशिश की जाती है। शराबखाने, एम्युजमेंट पार्क, वैक्स म्यूजियम, हेलीकॉप्टर से नजारा देखने की व्यवस्था, बंगी जम्पिंग जैसी कई सुविधाएं यहां उपलब्ध करवाई जाती है। मछली पकड़ने के शौकिन मछली मारने के लिए भी यहां आते है। इस इलाके में करीब दर्जन भर वाइन फैक्ट्रियां भी है। नियाग्रा नदी से गिरने वाले पानी का करीब-करीब आधा हिस्सा पनबिजली योजनाओं में उपयोग में आ जाता है। इस तरह इस झरने का उपयोग व्यावसायिक रूप से बिजली बनाने में भी किया जा रहा है। इस इलाके की बिजली की काफी मांग यहीं से पूरी हो जाती है।


नियाग्रा में भारतीयों के लिए खाने-पीने की हर सुविधा उपलब्ध है। यहां आप शाकाहारी भोजन भी खरीद सकते हो। एक रेस्टोरेंट में बिना लहसून व प्याज का जैन फूड भी उपलब्ध था। 'इंडिया किचन'  नामक एक बड़ा सा रेस्टोरेंट एक भारतीय का मिला, जिसमें शाकाहारी थाली से लेकर भेल पूरी और पानी पूरी तक हर तरह के व्यंजन उपलब्ध थे। 7 डॉलर की भेल पूरी खाने के पहले हमने डॉलर का रुपयों में परिवर्तन करके अंदाज लगाया कि इतनी महंगी भेल पूरी तो हम भारत में कभी नहीं खा सकते।

कॉपीराइट © 2015 प्रकाश हिन्दुस्तानी

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