
फ़ोर्ब्स की अरबपतियों की सूची में रतन टाटा का नाम इसलिए नहीं आता कि टाटा की 28 प्रमुख कम्पनियाँ अलग-अलग स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हैं. फ्लेगशिप कंपनी टाटा सन्स में रतन टाटा का व्यक्तिगत शेयर 65 फीसदी बताया जाता है, लेकिन रतन टाटा की व्यक्तिगत संपत्ति को कंपनी अलग से नहीं दिखाती. कह सकते हैं कि रतन टाटा जितनी संपत्ति पर नियंत्रण रखते हैं वह फ़ोर्ब्स सूची में आने के लिए काफी है. |
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बेहतर प्रबंधन से बने बेमिसाल
रतन टाटा, ऐसे भारतीय उद्योगपति हैं जिनका दुनिया में बहुत सम्मान है. रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा ग्रुप ने वेल्थ क्रियेशन में दुनिया की टॉप 50 बिजनेस ग्रुप में जगह बनाई है. टाटा ग्रुप पूरी दुनिया में 96 तरह के बिजनेस करता है. माना जाता है कि रतन टाटा की संपत्ति बिल गेट्स और वारेन बफेट से भी ज्यादा है लेकिन फिर भी फ़ोर्ब्स पत्रिका की अरबपतियों की सूची में रतन टाटा का नाम इसलिए नहीं आता कि टाटा की 28 प्रमुख कम्पनियाँ अलग-अलग स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हैं. फ्लेगशिप कंपनी टाटा सन्स में रतन टाटा का व्यक्तिगत शेयर 65 फीसदी बताया जाता है, लेकिन रतन टाटा की व्यक्तिगत संपत्ति को कंपनी अलग से नहीं दिखाती. कह सकते हैं कि रतन टाटा जितनी संपत्ति पर नियंत्रण रखते हैं वह फ़ोर्ब्स सूची में आने के लिए काफी है. भारत के बाहर ब्रिटेन, यूएसए, चीन, थाईलैंड, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, मोरक्को, नीदरलैंड, इटली सहित करीब 56 देशों में टाटा का साम्राज्य खड़ा है. स्टील, कोयला, संचार, बीमा, आईटी, ऑटोमोबाइल, केमिकल जैसे बुनियादी क्षेत्रों के अलावा टाटा का साम्राज्य होटल, शीतल और गर्म पेय, कास्मेटिक, नमक कंस्ट्रक्शन, कलपुर्जे, लेदर गुड्स, कपड़ा आदि तमाम क्षेत्रों में भी है. टाटा ने बीते दशक में 18 अरब डॉलर लगाकर कोरस, जगुआर, लैंड रोवर, टेटली, देवू, पियाजियो एयरो इंडस्ट्री, रिट्ज़ कार्लटन (बोस्टन) जैसी अनेक विश्व विख्यात कंपनियों पर आधिपत्य किया और दुनिया भर में धाक जमा दी. इसके बावजूद जो बात रतन टाटा में दूसरे अरबपतियों से अलग है वह है सामाजिक जवाबदेही. कार्पोरेट सोशल रेस्पंसीबिलिटी (सीएसआर) को टाटा ने नए मायने दिए हैं. तमाम आरोपों और आपत्तियों के बावजूद रतन टाटा ने दुनिया में ख़ास जगह बनाई है, क्या है उनकी खासियत और क्या रहे उनकी सफलता के कुछ सूत्र :
हर नाकामी से सीखो
1937 में जन्मे रतन टाटा ने कार्नेल और हार्वर्ड से आर्किटेक्चर और हार्वर्ड से मैनेजमेंट की में डिग्री लेने के बाद २५ साल की उम्र में फेमिली बिजनेस में कदम रखा. उन्होंने जमशेदपुर के स्टील प्लांट में हजारों मजदूरों के साथ शॉप फ्लोर पर भी काम लिया. उनका पहला बड़ा प्रोजेक्ट नेल्को (नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रानिक्स) था, जो 40 फीसदी घाटे में थी और मार्केट शेयर केवल 2 फीसदी. रतन टाटा नेल्को नहीं चला पाए. उन्हें मुंबई की इम्प्रेस मिल्स का काम सौंपा गया, जो बंद करनी पड़ी. इंडिका कार परियोजना की लागत 500 करोड़ आंकी गयी थी जो 1700 करोड़ तक पहुँच गयी थी. रतन टाटा ने हर नाकामी से सबक लिया और यही उनके प्रबंधन में झलकता है.
नयी टेक्नॉलॉजी से दोस्ती करो
एकाधिकार जमाकर, सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार के बीज बोकर, फायनांस की फर्जी कम्पनियाँ बनाकर येन केन मुनाफा कमाना ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए. नयी टेक्नॉलॉजी को तो केवल प्रोडक्शन में ही महत्त्व नहीं दिया गया, बल्कि नए प्रोडक्ट चुनने में भी रतन टाटा ने हाई टेक बिजनेस चुने. टाटा टेलीकाम, टाटा फायनांस, टाटा केल्ट्रॉन, टाटा हनीवेल, टाटा हाईटेक ड्रिलिंग, टाटा एलेक्सी, प्लंटेक जैसी कम्पनियाँ रतन टाटा की दें हैं. रतन टाटा ने टोम्को बंद कर दी और फार्मा, सीमेंट, कपड़ा, कोस्मेटिक के कारोबार से हाथ खींच लिए. इस सब का असर अच्छा हुआ और ग्रुप का कारोबार तेजी से बढ़ा.
हर सोच बड़ी हो
रतन टाटा का फार्मूला है कि हर सोच बड़ी रखो. छोटी सोच रखनेवाला 1200 करोड़ डॉलर के खर्च से कोरस स्टील कंपनी का अधिग्रहण नहीं कर सकता था. इसमें खतरे भी थे, लोगों ने कहा था कि टाटा ग्रुप बरबाद हो जाएगा, पर एक ही दिन में टाटा के शेयर ग्यारह प्रतिशत चढ़ गए. जब उन्होंने जगुआर और लैंड रोवर डील की, तब भी ऐसी ही बातें हुई थीं. जब उन्होंने न्यूयॉर्क में पीयरे व बोस्टन में रिट्ज़ कार्लटन होटल खरीदा और टेटली की डील की तब भी लोगों ने शक की निगाह से देखा था. बड़ी सोच के कारण ही टाटा ग्रुप वैश्विक हो सका है.
भारतीय उपभोक्ता का महत्त्व
रतन टाटा इस बात की अहमियत जानते हैं कि भारतीय उपभोक्ता भी बहुत महत्वपूर्ण है. आप 121 करोड़ लोगों को अनदेखा कैसे कर सकते हैं जो आप के ग्राहक होने की क्षमता रखते हैं. टाटा ने सोडियम युक्त नमक बेचना शुरू किया तो कई और कम्पनियाँ बाजार में आ कूदीं. टाटा अगर मुंबई में ताज, न्यूयॉर्क में पीयरे व बोस्टन में रिट्ज़ कार्लटन होटल चलाता है तो देश भर में जिंजर नामक दर्जनों बजट होटल भी. अगर वह करोड़ रूपये से भी महंगी जगुआर और लैंड रोवर बनता है तो दुनिया की सबसे सस्ती नेनो भी. घर में या घर से निकलते ही कोई न कोई टाटा प्रोडक्ट आपको दिख ही जाएगा.
विवादों में शक्ति मत गँवाओ
रतन टाटा जैसी शख्सियत विवादों में न हो यह संभव नहीं, उनकी पहली कोशिश विवाद को टालने की ही रहती है. अगर विवाद गले पद ही जाए तो उस से जल्द से जल्द बाहर निकलकर काम में जुट जाना ही अक्लमंदी है. चाहे 25 साल इम्प्रेस मिल्स में दत्ता सामंत की यूनियन की हड़ताल हो या सिंगूर में नेनो प्लांट की भूमि का मामला, हाल ही में नीरा रादिया टेप कांड में जिक्र आने के बाद रतन टाटा की छवि को धक्का लगा है लेकिन अपने कारोबार पर से उनका ध्यान हटा नहीं है. नेताओं से अपने संपर्कों को वे प्रचारित नहीं होने देते और मीडिया से दूरी रखते हैं.
मानव संसाधन को प्राथमिकता
टाटा समूह को दुनियाभर में अच्छा नियोक्ता माना जाता है. रतन टाटा का मानना है कि हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारे लोग ही हैं. जब देश में श्रम कानून बने भी नहीं थे, तब से टाटा समूह ने काम के घंटे, साप्ताहिक अवकाश आदि के नियम बनाये थे, उनमें से कई नियम आगे जाकर कानून बने. मुंबई में ताज होटल पर हुए आतंकी हमले के बाद रतन टाटा ने जिस तरह हर एक कर्मचारी की मदद की, चाहे वह एक दिन आनेवाला अस्थायी कर्मचारी ही क्यों ना हो, वह पूरे कार्पोरेट जगत के लिए आदर्श है. टाटा समूह के अस्पताल, शिक्षा और खेल संस्थान अपनी अलग पहचान रखते हैं.
क्वालिटी का पर्याय
रतन टाटा ने ब्रांड टाटा को क्वालिटी का पर्याय बनाने की जिद में पूरे ग्रुप को ही फिर से डिजाइन किया, इसके लिए कंपनियों के विलय और अधिग्रहण को हथियार बनाया गया. आगे की योजनाएं, ग्राहकों का रुझान, वित्तीय संरचना पर फोकस किया गया. ग्रुप में से भाई भतीजावाद को ख़त्म कर प्रतिभों को आगे लाया गया, निवेशकों को रिझाने में वे कामयाब रहे. अपनी प्रतिभा और मेहनत के बूते पर टाटा समूह के प्रमुख बीते १४ साल से उत्तराधिकारी तलाश रहे हैं और अब उनका भरोसा है कि दिसंबर २०१२ तक वे यह जिम्मेदारी किसी और को सौंप देंगे.
प्रकाश हिन्दुस्तानी
हिन्दुस्तान
1 मई 2011 को प्रकाशित