Friday, April 22, 2011

सचिन तेंदुलकर (38)




सचिन जुबान कम और बल्ला ज्यादा चलाने में यकीन करते हैं. सचिन किसी को भी शब्दों से जवाब नहीं देते, उनका हर जवाब बल्ला देता है सवाल चाहे उनकी फिटनेस पर हो या फ़ार्म पर, रिटायरमेंट पर हो या उम्र पर.



अनोखे सचिन की अनोखी बातें

सचिन तेंदुलकर महानतम क्रिकेटर हैं. उनकी किसी से भी तुलना उनका अपमान होगा. कहा जाता है कि उनके बनाये और तोड़े गए रेकार्ड्स पर कोई भी किताब सही नहीं होती क्योंकि जब तक किताब छपकर आती है, सचिन के नाम और भी नए रेकार्ड्स हो जाते हैं. अनेक पुरस्कारों और सम्मानों के अलावा उन्हें भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्मविभूषण' दिया जा चुका है पर लोग उन्हें 'भारत रत्न' से कम नहीं समझते. कोई भी दौलत, शोहरत, सम्मान और प्रशंसा उनके लिए मामूली है. कैटरीना कैफ उनकी फैन हैं और धोनी ने किसी क्रिकेटर का ऑटोग्रॉफ नहीं लिया लेकिन वे सचिन का ऑटोग्रॉफ संभालकर रखना चाहते हैं.

सचिन के पास अरबों की संपत्ति है लेकिन उनके पास एक-एक रुपये के वे 13 सिक्के भी हैं जो उन्होंने सबसे पहले जीते थे. उनके गुरु रमाकांत आचरेकर प्रैक्टिस के दौरान स्टंप पर एक रुपये का सिक्का रख देते थे, जो गेंदबाज सचिन का स्टंप उड़ा देता, सिक्का जीत जाता और अगर सचिन नाबाद रहते तो सिक्का सचिन जीत जाते. 24 अप्रैल 1973 को जन्मे सचिन 1987 में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत जिम्बाब्वे मैच में बॉल बॉय थे. सुनील गावस्कर ने अपने अल्ट्रा लाइट पैड और दिलीप वेंगसरकर ने इंग्लिश विलो का अपना क्रिकेट बैट सचिन को गिफ्ट किये थे, जो आज भी उनके लिए अनमोल हैं. सचिन के पिता रमेश तेंदुलकर मराठी साहित्यकार थे और संगीतकार सचिन देव बर्मन के फैन, इसीलिये उन्होंने अपने बेटे का नाम सचिन रखा. मुंबई के बांद्रा पूर्व में सचिन का परिवार डॉ धर्मवीर भारती का पड़ोसी था और सचिन के बल्ले से टकराकर जब घरों की खिड़कियों के कांच टूटते तो सचिन के पिता उन्हें डांटने के बजाय इनाम देते. बड़े भाई अजीत ने सचिन के भाई, दोस्त, गाइड और क्रिकेट-अभिभावक की भूमिका निभाई और खुद क्रिकेट प्रेमी होते हुए भी अपनी पूरी जवानी छोटे भाई के लिए समर्पित कर दी. आज लोग सचिन को क्रिकेट का भगवान तक कहते हैं लेकिन सचिन की सफलता का यह सफ़र आसान नहीं रहा. मेहनती, अनुशासित और ईमानदार खिलाड़ी सचिन की महान कामयाबी के कुछ सूत्र :

एक्शन स्पीक्स लाउडर देन वर्ड्स
सचिन जुबान कम और बल्ला ज्यादा चलाने में यकीन करते हैं. हर महान खिलाड़ी की तरह उनके भी अनेक आलोचक हैं लेकिन सचिन किसी को भी शब्दों से जवाब नहीं देते, उनका हर जवाब बल्ला देता है सवाल चाहे उनकी फिटनेस पर हो या फ़ार्म पर, रिटायरमेंट पर हो या उम्र पर. खुद पर उठी हर अंगुली का जवाब वे गरजते बल्ले से देते हैं. हर आरोप का खंडन एक्शन से, हर सवाल का जवाब बेहतर से बेहतरीन होता परफार्मेंस. जब-जब आलोचकों को लगता था कि अब सचिन का खेल ख़त्म, तब-तब सचिन फीनिक्स की तरह उभरकर सामने आये हैं.

बिना अभ्यास के मत खेलो
जिन्दगी में क्रिकेट हो या कुछ और, अभ्यास ज़रूरी है. आपने कितनी भी सेंचुरी मारी हो, कितने भी रेकार्ड्स बनाये हों, हर मैच के पहले उस मैदान पर प्रैक्टिस ज़रूर ज़रूर करो, जहाँ अगला मैच खेला जाना है. सामने आते हुई हर गेंद वही और वैसी गेंद नहीं होगी, जैसी पिछली थी. ध्यान रहे कि हर परीक्षा आखिर परीक्षा ही है, हर प्रोजेक्ट नया प्रोजेक्ट ही है, हर कंज्यूमर नया ही कुछ चाहता है. बिना अभ्यास के मैदान में जाना खतरे से खाली नहीं. हर खतरे से संघर्ष की पूरी तैयारी रखो.

सही वक़्त पर रिस्क लो
हर जगह नयी रणनीति होना चाहिए. जो शाट टेस्ट मैच में रिस्क हो सकता है, वन डे में ज़रुरत और टी 20 में अनिवार्यता हो सकती है. हर पारी की शुरूआत सावधानी से करना चाहिए. बगैर रिस्क उठाये तो कुछ नहीं हो सकता. लेकिन रिस्क कब उठाना है, तय करो. मैदान में जाते ही खतरनाक गेंदों पर रिस्क मत लो. पहले मैदान पकड़ो, फिर बहादुरी दिखाओ. रिस्क तो लेनी ही है, पर पहले आसान सवालों के जवाब देना ठीक होता है. रिस्क कहाँ लेना है, हर खतरा सोच समझकर उठाना ही अक्लमंदी है.

टीम की तरह खेलो
हर मैच में खेलते तो खिलाड़ी हैं, लेकिन जीतती या हारती टीम है. हमेशा टीम भावना से खेलो. अपनी सेंचुरी से ज्यादा टीम की जीत ज़रूरी होती है. काम ऐसा करो कि आपकी मौजूदगी से टीम का हौसला बढ़े और जीत करीब आने लगे. याद रखो, एक टीम में कैप्टन एक ही हो सकता है, इसलिए कैप्टन को जीत में मदद करो. यह भी मत भूलो कि हर मैच मैदान में ही नहीं खेला जाता, वह ड्रेसिंग रूम में और मीडिया में भी खेला जाता है.

ईमानदार रहो
ईमानदारी कभी भी ना छोड़ो, चाहे सौवीं सेंचुरी से ही क्यों ना चूक रहे हों. 450 वें वनडे में 20 मार्च 2011 को सचिन चार गेंदों पर दो रन बना कर आउट हो गए. हजारों दर्शक, करोड़ों फैन्स उनकी सौवीं सेंचुरी का इंतज़ार कर रहे थे. सचिन वेस्ट इंडीज़ के फ़ास्ट बॉलर रवि रामपाल की शॉट पर खेलने से चूक गए थे और बॉल सचिन के बैट से किनारा करते हुए विकेटकीपर ड्वेन थॉमस के हाथों में जा चुकी थी लेकिन अम्पायर स्टीव डेविस ने उन्हें नॉट आउट करार दे दिया था लेकिन फिर भी सचिन एक पल भी गवांये बिना पैवेलियन लौटने लगे और खुद को कैच आउट होने दिया. .... हो सकता था सचिन सौवीं सेंचुरी बना लेते, लेकिन क्रिकेट प्रेमियों के दिल में जो जगह उन्होंने बनाई है, वह बहुत बड़ी बात है.

सही तरीके से खूब कमाओ
पैसा हमारी ज़रुरत है, खूब कमाओ, लेकिन सही तरीके से. सचिन ने वर्ल्डटेल से 1995 में 30 करोड़ और 2001 में 80 करोड़ के विज्ञापन करार किये थे. 2006 में साची एंड साची से यही करार 180 करोड़ में किया. उन्होंने टूथ पेस्ट से लेकर टायर तक का विज्ञापन किया लेकिन कभी भी शराब या तम्बाखू उत्पादों के सरोगेट (छद्म) विज्ञापन नहीं किये. कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों के प्रति जागरूकता के विज्ञापन उन्होंने आगे बढ़कर किये. मुंबई और बंगलुरु में उनके तीन रेस्टोरेंट्स हैं और फ्यूचर ग्रुप के साथ वे हेल्थ प्रोडक्ट्स सेक्टर में आ रहे हैं.

दूसरों की मदद करो
सचिन हर साल 200 बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाते रहे हैं और अब इनकी संख्या 400 करने जा रहे हैं. कैंसर पीड़ितों के लिए उनके अभियान में एक करोड़ रुपयों से भी ज्यादा धनराशि इकट्ठा की गयी. चंदा इकठ्ठा करने के लिए सचिन ने बच्चों को क्रिकेट की कोचिंग की और ट्विटर पर अभियान चलाया. उनकी चौदह साल की बेटी सारा की प्रेरणा और मदद इन सब कामों में रहती है.

जो सही लगे, वही करो
सचिन को निजी जीवन में भी जो सही लगता है वही करते हैं. एक मानद डॉक्टरेट की उपाधि उन्होंने विनम्रता से नामंजूर कर दी, लेकिन इंडियन एयर फ़ोर्स में मानद ग्रुप कैप्टन का प्रस्ताव मान लिया. 1995 में जब सचिन 22 साल के थे, तब उन्होंने अपने से उम्र में 6 साल बड़ी डॉ अंजलि मेहता से शादी की थी, कई लोगों को यह जोड़ी बेमेल लगी लेकिन सचिन ने किसी की परवाह नहीं की. उनके साथी खिलाड़ियों ने कई बार उन पर ताने भी कसे लेकिन सचिन ने उन्हें नज़रंदाज़ कर दिया. विनोद काम्बली और अज़हरुद्दीन के बयानों पर वे चुप रहे. क्लबों में जाकर हंगामा करना, डांस करना उन्हें कभी भी पसंद नहीं रहा.

परिवार पर ध्यान ज़रूरी
सचिन पारिवारिक व्यक्ति हैं. वर्ल्ड कप जीतने के बाद टीम के साथ जश्न मनाते वक़्त स्टेडियम में उनके साथ बेटी सारा और बेटा अर्जुन भी टीवी पर नज़र आ रहे थे. सेलेब्रिटी होने के कारण वे परिवार के साथ कहीं भी आराम से नहीं जा सकते इसलिए कभी-कभी वे देर रात अपने ड्राइविंग के शौक को पूरा करते हैं. अपनी बीवी के साथ एक बार वे विग लगाकर वरली के सत्यम थियेटर में फ़िल्म देखने भी जा चुके हैं, लेकिन फिर भी इंटरवल के बाद पहचान लिए गए और वापस लौटना पड़ा. परिवार या मेहमानों के लिए वे खुद ही चाय बनाना पसंद करते हैं और कभी-कभी उनके परिवार को उनके हाथों का बना बैंगन का भुरता भी खाना पड़ता है !

प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान 24 april 2011

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