Saturday, April 02, 2011





महेंद्र सिंह धोनी खुद अपने अनुभव और विवेक से साहसिक फैसले लेते हैं और कामयाबी या नाकामी दोनों की ज़िम्मेदारी कबूलते हैं. पूरी टीम को साथ लेकर चलाना, टीम की हर कमी और खूबी से वाकिफ रहना, हर खिलाड़ी को आगे बढ़ाने का मौका देना, टीम में आपस में विश्वास को बनाये रखना, मौके और माहौल को देख रणनीति बनाना और उसे बदलना और इस सब से बढ़कर हार या जीत के बाद भी उससे अपने व्यक्तित्व को प्रभावित नहीं होने देना निश्चित ही एक अच्छे कप्तान की खूबी है.


कूल कप्तान और कार्पोरेट लीडर : महेंद्र सिंह धोनी

आईआईएम इंदौर के स्ट्रेटेजिक मैनेजमेंट के प्रोफ़ेसर प्रशांत कुलकर्णी की टीम की स्टडी बताती है कि महेंद्र सिंह धोनी में सफल कप्तान के साथ-साथ सफल कार्पोरेट लीडर के गुण भी हैं. टीम की हार-जीत तो लगी ही रहती है, लेकिन कामयाब लीडर उसे ज्यादा गरिमामय बना देता है. धोनी केवल अपने लिए नहीं, पूरी टीम इण्डिया के लिए खेलते हैं. पूर्व कप्तान कपिल देव का मानना है कि धोनी एक ग्रेट गेम्बलर हैं जो खेल के हर दांव को खेलने में माहिर हैं. धोनी की लीडरशिप में ही टीम इन्डिया टी-20 सिरमौर बनी. सीबी सीरिज, बोर्डर-गावसकर ट्राफी और आई पी एल 2010 में चेन्नई सुपर किंग की जीत हुई. हालात को सूंघने और बेबाक निर्णय लेने की उनकी कला जगजाहिर है.

धोनी ने मीडिया को कभी तवज्जो नहीं दी, फिर भी वे मीडिया के प्रिय सितारे हैं. धोने को दिखाते हैं तो टीवी चैनलों की टीआरपी बढ़ जाती है. पर लगता है कि उन्हें टीवी वालों से एलर्जी है. अपनी शादी के वक्त रिरियाने- गिड़गिड़ाने के बावजूद उन्होंने फूटेज नहीं लेने दी और बेचारे न्यूज चैनलवालों को धोनी की शादी के घोडीवाले से बात करके ही संतोष करना पड़ा था. टीम इण्डिया में धोनी से भी वरिष्ठ खिलाड़ी भी हैं और वे भी धोनी के फैसलों को गंभीरता से स्वीकार करते हैं. टीम इण्डिया को इस मुकाम तक लाने में धोनी का योगदान बहुत ज्यादा है. वे खुद अपने अनुभव और विवेक से साहसिक फैसले लेते हैं और कामयाबी या नाकामी दोनों की ज़िम्मेदारी कबूलते हैं. पूरी टीम को साथ लेकर चलाना, टीम की हर कमी और खूबी से वाकिफ रहना, हर खिलाड़ी को आगे बढ़ाने का मौका देना, टीम में आपस में विश्वास को बनाये रखना, मौके और माहौल को देख रणनीति बनाना और उसे बदलना और इस सब से बढ़कर हार या जीत के बाद भी उससे अपने व्यक्तित्व को प्रभावित नहीं होने देना निश्चित ही एक अच्छे कप्तान की खूबी है.

2005 के उस धोनी को याद कीजिये जिसने पाकिस्तान के खिलाफ वन डे में 148 और श्रीलंका के खिलाफ 183 रन बनाये थे और आईसीसी ओडीआई रेटिंग में नंबर वन बने थे. पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ ने उनकी लहराती जुल्फों की तारीफ के थी, लेकिन उप कप्तान बनते ही उन्होंने अपनी जुल्फें कटवा दीं और खेलने का तौर तरीका भी बदला. जब उन्हें कप्तानी मिली तब उनके व्यवहार में एक अलग ही तब्दीली थी. वे धोनी से 'मि. केप्टन कूल' हो चुके थे. उनकी आक्रामकता उनके फैसलों में नज़र आने लगी, हाव भाव में नहीं. टी-20 में सिरमौर बनने के जश्न में युवी और श्रीसंत डांस कर रहे थे, लेकिन धोनी शांत थे. ट्राफी मिलते ही उन्होंने अपने युवा साथियों को सौपकर यह सन्देश दिया कि यह आप सबकी है. क्रिकेट के तथाकथित विशेषज्ञ धोनी से इसलिए दुखी रहने लगे कि धोनी अपने दिमाग का इस्तेमाल बाखूबी करने लगे हैं.

धोनी फिटनेस के लिए जिम के बजाय बेडमिन्टन और फ़ुटबाल खेलने में ज्यादा यकीन रखते हैं. वे छात्र जीवन में फ़ुटबाल टीम के गोलकीपर रहे हैं. उत्तराखंड के रहनेवाले धोनी के पिता नौकरी की खातिर रांची गए और वहीँ के हो गए. वे पिछले आईपीएल में सबसे महंगे खिलाड़ी थे. विज्ञापनों से कमाई के मामले में शाहरुख़ खान के बाद धोनी ही हैं, उनकी एक विज्ञापन की तीन साल की डील ही २१० करोड़ रूपए की है. महिलाओं में उनकी लोकप्रियता गज़ब की है और हाल यह है कि उनसे धोनी को बचाने के लिए अलग महिला बॉडीगार्ड्स की जरूरत पड़ती है!

प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान
03 अप्रैल 2011 को प्रकाशित

1 comment:

sanjay patel said...

बिलकुल नये अंदाज़ में प्रशांतजी का नज़रिया आपने अपने क़लम से रेखांकित किया है प्रकाश भाई.बधाई.