Saturday, November 15, 2014

‘चुम्बनिस्टों’ का अखिल भारतीय गाल सलाम

'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम ((15 नवंबर  2014) 





पिछले हफ्ते पूरे देश में ‘किस ऑॅफ लव’ के चर्चे रहे। केरल के कोच्चि शहर में आपस में चुम्मा-चाटी करते हुए युवक-युवती को पीटने वाले लोगों के खिलाफ यह अभियान था। इस अभियान को चलाने वाले लोगों का मानना है कि उन्हें चुम्मा-चाटी करना पसंद है और वे इसे खुलेआम करना बुरा नहीं मानते। इन लोगों का कहना है कि चूमना एक निजी प्रक्रिया है और इससे किसी को कोई खतरा नहीं है। नफरत पैâलाने वालों को रोकना चाहिए, मोहब्बत करने वालों को नहीं। ये लोग आईपीसी के अनुच्छेद २९४(ए) के तहत अभद्र हरकतों में चूमने को नहीं मानते। इन लोगों का कहना है कि सोशल पोलिसिंग के बहाने आरएसएस के लोग युुवाओं को तंग करते है। गुस्से में इन लोगों ने पेâसबुक पर पेज बना डाला और देशभर में चुम्बन प्रेमियों को यह संदेश दे डाला कि मोहब्बत खतरे में है। लिहाजा देशभर के नौजवान आरएसएस के खिलाफ लामबंद हो गए और अंतत: उन्होंने दिल्ली के झंडेवालान स्थित आरएसएस कार्यालय के सामने खुलेआम चुम्मा-चाटी की। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इन लोगों की आत्मा को शांति मिली। अब ये आगे और भी बड़े कार्यक्रम की योजना बना रहे है। 

कुछ साल पहले तक फिल्मों में चुम्बन के दृश्यों की इजाजत नहीं थी। चुम्बन की जगह अठखेलियां करते दो पूâलों को साथ-साथ दिखाकर काम चला लिया जाता था। जब से फिल्मों में चुम्बन की अनुमति मिली है तब से चुम्बन पर गाने भी आने लगे है। हिन्दी में ‘जुम्मा-चुम्मा दे दे’ और ‘एक चुम्मा तु मुझको उधार दे दे’ जैसे गाने चल पड़े, तो भोजपुरी में चुम्मा गीतों की बहार आ गई। इन्तेहा यह हो गई कि भोजपुरी में ‘लहंगा उठा के चुम्मा ले जा राजाजी’ जैसे गाने तक चल पड़े। बॉलीवुड वालों की तो हिम्मत ही नहीं है कि वे उसकी नकल कर सवेंâ। वैसे बॉलीवुड में अब श्लील-अश्लीलता की कोई सीमा बची नहीं है और फिल्में समाज का दर्पण है इसलिए आप आम जन-जीवन में भी ऐसे दृश्य देख सकते है। 

आमतौर पर एयरपोर्ट इलाके में और मुंबई के मेरिन ड्राइव, बांद्रा रिक्लेमेशन, वर्ली सी पेâस और दिल्ली के लोधी गार्डन जैसे इलाकों में प्रेमी-प्रेमिकाओं को गलबहिया और चुम्बन करते आसानी से देख सकते है। मध्यप्रदेश जैसे पिछड़े इलाकों में ऐसे नजारे देखने हो तो सुनसान पार्वâ में जाना पड़ता है। ‘चुम्बनिस्टों’ ने जनता की भावना को समझा है और उनके दीदार के लिए यह सुविधा अखिल भारतीय स्तर पर उपलब्ध कराने की ठानी है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। 

अभी भी भारत के कई इलाके बहुत पिछड़े है। लोगों की सोच आगे नहीं बढ़ रही। दोनों प्रेमी-प्रेमिका हैं और वे किस करना चाहते है तो करने दो। उनको भी मजे लेने दो और आप भी मजे लो। लेकिन नहीं। यह विघ्नसंतोषी लोग मोहब्बत के दुश्मन बने है। इनकी छाती पर क्यों सांप लौटता है? यह बात जगजाहिर है कि इन विघ्नसंतोषियों में से अधिकतर अविवाहित है और भारतीय संस्कृति का झंडा लेकर चल रहे है। 

ऐसा नहीं है कि ‘किस ऑफ लव’ जैसे अभियानों के पहले भारत में कोई और ‘शालीन’ आंदोलन नहीं हुए है। लोकतंत्र का पूरा मजा भारत के लोग उठा रहे है। पहले भी पब जाने वाले युवक-युवती ‘पिंक चड्डी’ आंदोलन कर चुके है। तहलका वाली निशा सूजन इस आंदोलन की अगुवाई कर चुकी है और तहलका के संपादक किस दौर से गुजर रहे है यह तो किसी को बताने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा देशभर में जगह-जगह ‘बेशर्मी मोर्चा’ के आंदोलन भी हो चुके है। महिला आजादी की दीवानी औरतें ब्रा जलाने के अभियान भी चौराहों-चौराहों पर कर चुकी है। आजादी के यह अभियान अभी महानगरों तक ही सीमित है। 

आप किसी से प्रेम करते हो यह अच्छी बात है, लेकिन इसका दिखावा करना कौन-सी शान की बात है? कोई भी मां अपने बच्चे से बेइंतेहा मोहब्बत करती है तो क्या यह जरूरी है कि वो उसका सार्वजनिक प्रदर्शन करें? लोग अपने पालतू जानवरों से भी बेपनाह प्यार करते है। कई लोग उसका दिखावा भी करते है। निश्चित ही यह एक निजी मामला है, लेकिन अगर प्यार करना ही है तो उन लोगों से करो, जो शोषित-उपेक्षित हैं। उन बेजुबानों से करो जो यहां-वहां भटक रहे है और कोई उन्हें देखने वाला नहीं। अंत में यहीं कहना चाहूंगा कि सभी ‘चुम्बनिस्टों’ को गाल सलाम। 
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