Sunday, January 08, 2012

ताउम्र सीखने की ईमानदारी बरतें

रविवासरीय हिन्दुस्तान (08-01-2012) के एडिट पेज पर मेरा कॉलम


ताउम्र सीखने की ईमानदारी बरतें



‘याद रखिए, आप केवल अपने लिए ही नहीं, अपने घर-परिवार और समाज के लिए भी काम करते हैं। आप जो भी पाते हैं, इसी समाज से शेयर करते हैं। इसलिए आपका समाज के लिए भी कुछ दायित्व बनता है।’

मेट्रो मैन के नाम से विख्यात ई. (ईलात्तूवल्पिल) श्रीधरन साल 1990 में ही भारतीय रेल सेवा से रिटायर हो गए थे, लेकिन दिल्ली मेट्रो के एमडी पद से वह करीब एक सप्ताह पहले सेवानिवृत्त हुए हैं। केरल के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि श्रीधरन अब कोच्चि मेट्रो का कामकाज संभाल लें।
12 जून, 1932 को जन्मे ई. श्रीधरन को अस्सी साल में भी लोग नई जिम्मेदारियां सौंपना चाहते हैं। दरअसल, रेल सेवा से रिटायर होने के बाद उन्होंने कोंकण रेलवे की जिम्मेदारी संभाली थी और उसे पूरा करने के बाद बेहद चुनौतीपूर्ण दिल्ली मेट्रो का दायित्व संभाला।
पद्म विभूषण से सम्मानित श्रीधरन का मानना है कि जीवन में वही लोग कामयाब हो पाते हैं, जो हमेशा सीखने को तैयार रहते हैं। आईआईएलएम इंस्टिटय़ूट ऑफ हायर एजुकेशन के समारोह में साल 2008 में उन्होंने अपने अनुभव इस प्रकार बांटे थे :
हर जगह सीखें
मित्रो, सीखना जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है। आप कहीं भी हों, उम्र के किसी भी पड़ाव पर हों, सीखने का कोई मौका नहीं छोड़ें। पढ़ाई के बाद आप जहां कार्य करेंगे, वहां भी सीखने के अनेक अवसर आपको मिलते रहेंगे। प्रोजेक्ट मैनेजमेंट के तरीके की बात करें, तो मुझे लगता है कि दिल्ली मेट्रो में हमने कुछ ऐसी शैली अपनाई, जो प्रेरणादायी हो सकती है।
दिल्ली मेट्रो देश की कोई पहली मेट्रो नहीं है, पहली मेट्रो का श्रेय कोलकाता को है, जहां 17 किलोमीटर लंबी रेल लाइन है और वह भी ज्यादातर अंडरग्राउंड। लेकिन कोलकाता का अनुभव सुखद नहीं रहा, न तो कोलकाता के लिए और न ही देश के लिए। 17 किलोमीटर की लाइन डालने में 22 साल लग गए और इस बीच लागत भी करीब 14 गुना बढ़ गई। यह कोलकाता का ही सबक था कि हमने दिल्ली मेट्रो के लिए अलग शैली अपनाई। हमने वहां 10,500 करोड़ रुपये की 65.1 किलोमीटर की लाइन रिकॉर्ड सवा सात साल में बिछाई।
जब यह प्रोजेक्ट हमें सौंपा गया था, तब दस साल में इसे पूरा करने का लक्ष्य था, हमने पौने तीन साल पहले ही लक्ष्य प्राप्त कर लिया और वह भी तय बजट के भीतर। मैनेजमेंट के छात्रों के लिए यह एक सबक है। हमने दिल्ली मेट्रो को वर्ल्ड क्लास बनाया है, और वह भी मुख्य रूप से उधार के धन से। 10,500 करोड़ में से दो तिहाई धनराशि कर्ज की है और एक तिहाई सरकार की।
दिल्ली मेट्रो पर यह जवाबदारी है कि वह कर्ज ली गई राशि लौटाए। आज हम न केवल अपने मेट्रो परिचालन के खर्चें निकाल पा रहे हैं, बल्कि कर्ज चुकाने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था कर रहे हैं। हमने इस बात का पूरा खयाल रखा कि मेट्रो निर्माण के दौरान दिल्ली के लोगों को कम से कम असुविधा हो। इसके लिए मेट्रो के कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया था। लेकिन कोलकाता में ऐसा नहीं हो सका था।
वक्त की पाबंदी का महत्व
दिल्ली मेट्रो में वक्त की पाबंदी का अर्थ है, एकदम ठीक वक्त पर। हमें इस बात का इल्म था कि अगर हमें अपना प्रोजेक्ट वक्त पर पूरा करना है, तो हम में से हर एक को वक्त का पाबंद होना पड़ेगा। यह एक बुनियादी जरूरत थी। मुझे गर्व है कि दिल्ली मेट्रो में हम वक्त की पाबंदी मिनटों में नहीं, सेकंडों में मापते हैं। अगर कोई ट्रेन 60 सेकंड्स देर से चल रही है, तो हमारी नजर में वह विलंब से है। टोक्यो, सिंगापुर, हांगकांग जैसी जगहों पर भी तीन मिनट तक की देरी को ‘विलंब’ नहीं माना जाता।
मुझे यह बताते हुए खुशी है कि 1997-98 में हमारी 99.78 प्रतिशत मेट्रो ट्रेनें वक्त की पाबंद रहीं। मुझे लगता है कि वक्त की पाबंदी और कुछ नहीं, दूसरों के प्रति आपकी शालीनता है। आप लोगों को सेवा के लिए इंतजार नहीं करा सकते।
ईमानदार होने का मतलब
दिल्ली मेट्रो की दूसरी खूबी यह है कि वह अपने कर्तव्य के प्रति सत्यनिष्ठ है। सत्यनिष्ठ यानी सत्य के प्रति निष्ठा रखने वाला, जिसके नैतिक मूल्य ऊंचे हैं। सत्य के प्रति यही निष्ठा अच्छे चरित्र का आधार है। इसलिए करियर शुरू करते ही युवाओं को यह छवि अजिर्त करनी चाहिए। ईमानदार और सत्यनिष्ठ होने की छवि एक पासपोर्ट की तरह है। आप जहां भी जाएंगे, इनकी बदौलत अपनी छाप छोड़ते जाएंगे। हां एक और बात। अपने व्यवसाय में आगे बढ़ने के लिए आपको एक और चीज चाहिए और वह है ज्ञान यानी नॉलेज। आपको अपने विषय का श्रेष्ठ ज्ञाता होना ही चाहिए। अगर आप अपने विषय के ज्ञाता हैं, तो आपको कोई चोट नहीं पहुंचा सकता। अगर आप अपना काम ठीक से करना जानते हैं और उसे ठीक से करते हैं, तो लोग आपकी इज्जत करेंगे। आपके वरिष्ठ अधिकारी जहां आपके काम की सराहना करेंगे, वहीं जूनियर साथी आपके प्रशंसक बन जाएंगे।
तीन बातों का रखें ध्यान
दिल्ली मेट्रो परिवार में हमने एक बात का खास ध्यान रखा है और वह है सेहत। जी हां, मेरा कहना है कि आप अपनी सेहत का खास ध्यान रखें, क्योंकि अगर आप जीवन में कुछ भी पाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपका फिट रहना जरूरी है। अच्छी सेहत के बिना आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। अगर आप मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं, तो आप में कार्य करने की अद्भुत क्षमता महसूस होगी। इसलिए आप अपने जीवन को व्यवस्थित कीजिए। दिल्ली मेट्रो के प्रशिक्षण विद्यालय में हमने इस बात का खास ध्यान रखा है। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि दिल्ली मेट्रो वह संस्थान है, जहां मेडिकल बिल सबसे कम है।
दूसरी जरूरी बात यह है कि आप पौष्टिक भोजन और भोजन के वक्त का भी ध्यान रखें। यह बहुत कठिन काम नहीं है, पर आपकी सेहत के लिए जरूरी है। तीसरी और सबसे बड़ी बात यह है कि आपको व्यायाम जरूर करना चाहिए। आप एयरोबिक्स, वॉकिंग, जॉगिंग और योगासन में कोई या एकाधिक तरीका चुन सकते हैं। आप स्वस्थ होंगे, तभी तो आपका दिमाग चौकन्ना रहेगा।
याद रखिए, आप केवल अपने लिए ही नहीं, अपने घर-परिवार और समाज के लिए भी काम करते हैं। आप जो भी पाते हैं, इसी समाज से शेयर करते हैं। इसलिए आपका समाज के प्रति भी कुछ दायित्व है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान (08-01-2012) के एडिट पेज पर प्रकाशित

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