रविवासरीय हिन्दुस्तान के एडिट पेज पर 11 सितम्बर 2011 को प्रकाशित मेरा कॉलम
फौलादी इरादों की कामयाबी
रूडी (रुडोल्फ विलियम लुइस) गुलियानी ने न्यूयॉर्क के मेयर रहते हुए 11 सितम्बर 2001 के बाद हालात को अच्छी तरह से संभाला, वरना न्यू यॉर्क शहर की मुश्किलें और बढ़ जातीं. उन्होंने आतंकी हमले से सहमे शहर के जख्मों पर मरहम और इरादों को फौलाद की परत दी. उन्होंने मेयर के सीमित अधिकारों और असीमित हौसलों से काम किया. उससे उनका कद बढ़ गया और वे राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरे. न्यूयॉर्क पर हमले के पहले अप्रैल 2000 में 55 वर्षीय गुलियानी को पता चला कि उन्हें प्रारंभिक अवस्था का प्रोस्टेट कैंसर है और उन्हें नेओअडजुवेंट लुप्रोनहार्मोनल थैरेपी और फिर एक्सटर्नल बीम रेडियोथैरेपी लेनी होगी. वे अपने कैंसर का इलाज करा रहे थे, तभी आतंकवाद के कैंसर ने न्यू यार्क शहर पर हमला कर दिया. उन्होंने अपनी बीमारी और न्यूयार्क शहर के जख्मों से राहत दिलाने की मज़बूत कोशिश की. रूडी गुलियानी के हौसले और सफलता के कुछ सूत्र :
'मेयर ऑफ़ द वर्ल्ड'
जिस दिन न्यूयॉर्क पर आतंकी हमला हुआ, गुलियानी अपनी कैंसर की बीमारी से पूरी तरह उबरे नहीं थे और परिवार के मोर्चे पर वे तनावग्रस्त थे. न्यू यॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद वे अपने स्टाफ,दमकलों, नागरिकों और पत्रकारों के साथ तत्काल पीड़ितों की मदद करने पहुंचे. उस वक़्त वहां धुल और धुंएँ के गुबार उठ रहे थे, वे जलती हुई बिल्डिंग के अंदर घायलों की मदद के लिए पहुंचे और वहां पर पूरे दिन और पूरी रात डटे रहे, एक मिनिट के लिए भी आराम करने नहीं रुके.मौके पर ही सुरक्षा और बचाव के सैकड़ों फैसले लेने थे, उन्होंने तत्काल फैसले किये और राहत कार्य शुरू किये. 'टाइम' पत्रिका ने उन्हें २००१ का 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' चुना और शीर्षक दिया 'मेयर ऑफ़ द वर्ल्ड'.
त्वरित मदद की तैयारी
न्यूयॉर्क पर आतंकी हमले के बाद अगले दिन सुबह करीब तीन बजे पहली बार टीवी देखा. उन्होंने टीवी यह सोचकर चालू रखा कि कहीं कोई और आतंकी हमला ना हो जाए. जब जागना असंभव हो गया तब वे धूल और कीचड़ से सने जूते अपने बिस्तर के पास ही रखकर लेटे, इस तैयारी से कि अगर ज़रुरत पड़े तो मिनट भर में ही मदद के लिए दौड़ सकें. मुश्किल दौर में उन्हें नींद नहीं आई तो उन्होंने राय जेन्किन्स की लिखी चर्ची की जीवनी में दूसरे विश्वयुद्ध से सम्बंधित अध्याय पढ़ना शुरू कर दिया. जिस बात ने उन्हें प्रभावित किया, वह थी चर्चिल का भाषण --मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है सिवाय खून, आंसू और पसीने के. गुलियानी ने उस वक़्त की तुलना विश्व युद्ध के दिनों से करते हुए अपनी तैयारी कर ली थी.
पुनर्निर्माण का हौसला
गुलियानी ने १९४० के लन्दन को याद किया, जब युद्ध की विभीषिका के बीच वहां पुनर्निर्माण का दौर शुरू हुआ था. बर्बादी के उस मंज़र में उन्होंने कल्पना कर ली कि न्यूयॉर्क को फिर से उसके उसी दौर में कैसे लौटाया जाए. लोगों के हौसलों को बनाये रखने में क्या क्या मददगार हो सकता है. उनके हर वाक्य ने लोगों को हौसला दिया -- ''हमें कोई भी हमला आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता...हम फिर नया न्यूयॉर्क बनायेंगे, जो पहले से भी ज्यादा मज़बूत और शानदार होगा...हम दुनिया को बता देंगे कि हमारे हौसलों को कोई तोड़ नहीं सकता...हम दुनिया के सामने मिसाल रखेंगे.'' उनकी इस हौसला अफजाई का एक एक लफ्ज़ लोगों के दिलों पर राज करने लगा और लोगों ने गुलियानी को अपना असली नेता माना.
हर दिन उत्साह बरकरार
11 सितम्बर 2001 गुलियानी के लिए फिसलन का दौर शुरू होने का दिन था जो उनके लिए शीर्ष पर जाने का दिन बना. दो बार मेयर रहने के बाद 11 सितम्बर को ही न्यूयॉर्क में नए मेयर के चुनाव के लिए प्रारम्भिक वोट डलने थे और गुलियानी भूतपूर्व मेयर होने की कगार पर थे, लेकिन उन्होंने अपने काम से 'भूतपूर्व' को 'अभूतपूर्व' में तब्दील कर दिया. मेयर के पद पर वे हर दिन संघर्ष करते रहे, कभी अपने राजनैतिक विरोधियों से, कभी खुद के अधीनस्थ सहयोगियों से, कभी मीडिया से, कभी सडकों पर कब्ज़ा जमाये लोगों से. मेयर के रूप में उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि अब वे इस पद से हटने ही वाले हैं.
प्रशासन पर पकड़
मेयर के रूप में गुलियानी की प्रशासन पर मज़बूत पकड़ रही. उनके कार्यकाल में पुलिस की व्यवस्था चक चौबंद रही. अपराधों में एक -तिहाई कमी हुई. आर्थिक सुधार के लिए उन्होंने ऐसे करीब सात लाख लोगों की पहचान की जो हकदार नहीं होते हुए भी सरकारी सेवा का लाभ ले रहे थे. अपराधों में कमी और सेवा में सुधार से न्यूयॉर्क में संपत्तियों के दाम बढ़ गए थे.जनता कि शिकायतों पर तत्काल ध्यान दिया जाने लगा था और लोगों में यह भाव वापस आने लगा था कि वे एक 'वैश्विक शहर' के बाशिंदे है.
सिद्धातों से समझौता नहीं
अपने सिद्धांतों से समझौता गुलियानी को मंज़ूर नहीं रहा. न्यूयॉर्क के पुनर्निर्माण के लिए सउदी अरब के प्रिंस वालिद बिल तलाल का एक करोड़ डॉलर का चेक उन्होंने इस बात पर लौटा दिया कि प्रिंस ने इस्राईल का समर्थन नहीं करने की शर्त रख दी थी. अपने सिद्धांतों पर अड़े रहने के कारण उन्होंने मेयर रहते कई अफसरों को हटा दिया था. उनका कहना है कि आज का न्यूयॉर्क दस साल पुराने शहर से ज्यादा सशक्त और गरिमामय है. वे मानते हैं कि अगर लोगों को बराक ओबामा और उनके बीच चुनाव करना हो तो लोग ओबामा की जगह उन्हें चुनना पसंद करेंगे. अपनी सेहत, ख़राब वैवाहिक रिश्ते, बच्चों के कारण विवादों में रहने के बावजूद गुलियानी आम तौर पर शांत रहते हैं और यह बात पादरी पर छोड़ते हैं कि मैं कैसा कैथलिक हूँ.
प्रकाश हिन्दुस्तानी
(दैनिक हिंदुस्तान के एडिट पेज पर 11 सितम्बर 2011 को प्रकाशित)
1 comment:
सम्मानीय प्रकाश जी@ 9 / 11 के आतंकी हमले से सबसे सक्ती शाली देश से हमें ये सिकने को मिला की -------"हमारे पास सबकुछ होते हुवे भी कुछ नहीं हैं" हमें और अपनी शक्ति मजबूत करना होंगी ........... shripal singh panwar
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