Wednesday, November 03, 2010


कार्निवाल के देश में गुरिल्ला राष्ट्रपति
जवानी में उन्होंने गुरिल्ला लड़ाई लड़ी, पकड़ी गयीं और सेना के टॉर्चर को सहा. तीन साल जेल में रहीं, रिहा हुई तो पढ़ाई करने की कोशिश की. पीएचडी करना चाही, पर न कर सकीं. अर्थशास्त्र की पढ़ाई की,
पर पीजी की डिग्री भी नहीं ले सकीं. ग्रीक थियेटर और डांस का शौक था, अधूरा रह गया. राजनीति में सक्रिय रहीं. एनर्जी मिनिस्टर बनीं. अच्छा काम किया. पहली दफा राष्ट्रपति पद की दावेदार रहीं और संघर्ष के बाद जीत गयीं. जी हाँ, आपने सही सोचा -- ये हैं ब्राज़ील की डिल्मा रौसेफ़. बुल्गारिया के प्रवासी की बेटी. चौदह की आयु में पिता को खो दिया, सोलह की होते-होते मार्क्सिस्ट एक्टिविस्ट बनीं. बीस की उम्र में शादी कर डाली. माँ बन सकीं तीस में, और शादी चल नहीं सकी. ब्राज़ील में फौजी तानाशाही के खिलाफ संघर्ष में जवानी खर्च कर डाली. तरह-तरह के जुल्म सहें, संघर्ष किये, घर-परिवार दांव पर लगा दिया और अंत में राजनीति में शिखर को छू लिया. वे अब फुटबाल और कार्निवाल, अमेजान और साम्बा के देश ब्राज़ील की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में पहली जनवरी को शपथ लेंगी.

ब्राज़ील की राष्ट्रपति चुनी जानेवाली डिल्मा रौसेफ़ के बारे में उनके विरोधी कहते हैं कि तानाशाही के खिलाफ लड़नेवाली वे खुद तानाशाह जैसी हैं. --''वे बेहद लोकतांत्रिक हैं अगर आप उनसे सौ फीसदी सहमत रहें!'' यह कहा है उनके एक करीबी राजनैतिक सहयोगी ने. उनके मूड के बारे में कहा जाता है कि वे पल में तोला, पल में माशा हो जाती हैं. ''ऐसा लगता है कि वे हर हफ्ते अपने दिमाग की डिस्क की फार्मेटिंग करती है". तभी तो उन्होंने ब्राज़ील के अबोर्शन कानूनों का समर्थन किया, लेकिन कहा कि मैं 'प्रो-लाइफ' एक्टिविस्ट हूँ. उन्होंने 'गे मैरेज' का विरोध किया, लेकिन कहा कि वे समलैंगिक सिविल राइट्स की हिमायत करती हैं क्योंकि यह मानव अधिकारों से जुदा मामला है!

एकॉनमिस्ट के रूप में डिल्मा रौसेफ़ की चुनौतियां भी कम नहीं. अर्थ व्यवस्था मज़बूत करना है. जीडीपी ऊपर ले जाना है, गरीबी-अमीरी की खाई कम करना है, ब्राज़ील में भी बिजली की भारी कमी है, चीनी महंगी हैं, स्लम्स बढ़ गए हैं, शिक्षा-स्वास्थ्य-शांति की दरकार है. देशी-विदेशी क़र्ज़ का बोझ है, अपराध बहुत ज्यादा हैं. सरकार में अभी वे एकछत्र नेता नहीं हैं. पूरा चुनाव ही उन्होंने 'गरीब, कामगार और युवा' वोटरों को रिझाते हुए लड़ा और जीता है, अब वे उनकी ओर आस लगाये हैं.

डिल्मा रौसेफ़ का चुनाव लड़ना भी दिलचस्प रहा. उन्होंने युवा वोटरों को रिखाने के लिए सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स का जमकर उपयोग किया. रोजाना लाखों ट्विट्स उन के पक्ष में होते रहे. टेलीफोन पर वियतनाम वार पर फ़िल्म बनानेवाले अमेरिकी फिल्मकार ओलिवर स्टोन सहित अनेक देशों के पत्रकार, कलाकार, लेखक प्रचार में मदद करते रहे. ओलिवर स्टोन की टेप की गयी आवाज़ लोगों को डिल्मा रौसेफ़ के पक्ष में वोट डालने की अपील कर रही थी.

१४ दिसंबर १९४७ को जन्मी डिल्मा रौसेफ़ ने जीवन में कभी हार नहीं मानी. वे एक बेटी की माँ और बच्चे की नानी हैं. परिवार की चाहत में उन्हें दो बार शादी करना पड़ी. जीवन के उत्तरार्ध में उन्हें एक्सीलर लिम्फोमा नामक कैंसर से भी लड़ना पड़ा. कीमोथेरेपी के कारण उन्हें महीनों इलाज कराना पड़ा. जिस कारण उनके सर के बाल झड़ गए और वे विग के सहारे काम चलाती रहीं. हेयर रिप्लेसमेंट और कॉस्मो डेन्टेस्ट्री करानेवालीं डिल्मा रौसेफ़ का दिल फौलाद का है और यही उनकी खूबी है.
---प्रकाश हिन्दुस्तानी

(दैनिक हिन्दुस्तान, 07 नवंबर 2010 को प्रकाशित)

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