Sunday, December 08, 2013

वीकेंड पोस्ट के 7 दिसंबर  2013 के अंक में  मेरा कॉलम


बच के  रहना !

समाजवादी पार्टी के  सांसद नरेश अग्रवाल ने  कहा है कि लोग इस कदर  डर  गए हैं कि झूठे  प्रताड़ना मामलों से बचने  के लिए निजी संस्थानों में महिला कर्मचारी नियुक्त ही नहीं करना चाहते। उन्हें डर लगता है कि  क्या पता, कब कोई महिला झूठे मामले में फंसा दे।  प्रख्यात फेमिनिस्ट और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने कहा   है कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ न्यायमूर्तिगणों ने प्रमुख न्यायमूर्ति से प्रार्थना  की है कि सुप्रीम कोर्ट की तमाम महिला कर्मचारियों को कहीं और भेज दिया जाए और भविष्य में किसी भी महिला को इंटर्न न रखा जाए। हाल यह है कि लोगों ने महिलाओं की मदद करना ही बंद कर दिया है, कोई महिला कितने भी संकट में हो, उसकी मदद गले का फंदा बन सकती है, यह धारणा बनाने लगी है। इंदौर की एक जानलेवा घटना  याद है आपको ? चंचल राठौर नामक एक किराएदारिन ने मकान-मालिक रूपकिशोर अग्रवाल नामक व्यवसायी के खिलाफ़ बलात्कार की झूठी रिपोर्ट दर्ज करा दी  थी, जिस पर  रूपकिशोर अग्रवाल को गिरफ्तार किया गया।  बाद में जमानत पर छूटने के बाद रूपकिशोर अग्रवाल ने आत्महत्या कर ली, जिसके बाद झूठी शिकायत करनेवाली महिला पर मुक़दमा चला और कोर्ट ने उसे चार साल की कैद की सजा दी। पूरा अग्रवाल  परिवार लम्बे समय तक 'कानूनी आतंकवाद' झेलता रहा और न्याय से वंचित रहा क्योंकि कोई भी फैसला उन्हें जीवन नहीं लौटा सकता था। 
भारतीय कानून महिलाओं को सुरक्षा देने के नाम पर 'महिला आतंकवाद का आधिकारिक रूप' बनते जा रहे हैं।  कानून सभी के लिए समान  होना चाहिए, और अगर महिलाएं पीछे हैं तो उन्हें आगे लाने का प्रयास भी होना चाहिए।  लेकिन महिलाओं को आगे लाने  के नाम पर कुछ महिला संगठन जो रवैया अपनाये हुए हैं, उससे महिलाओं का सम्मान और न्याय तो शायद ही बढ़े, पर  महिलाओं का आतंक ज़रूर बढ़ेगा। तरुण तेजपाल के मामले में कई महिला संगठनों का दोहरा चरित्र सामने आ गया, जब कुछ महिला संगठनों की नेताओं ने तेजपाल का बचाव करने की कोशिश की।  'तहलका' की एमडी शोमा  चौधरी  के घर की नाम  पट्टिका  को  पोतने को लेकर ये महिला संगठन ऐसे  बिफरे, मानो शोमा का ही मुंह  काला कर दिया गया हो। ये संगठन तेजपाल को क्यों बचाते रहे? 

प्राइमरी स्कूल तक में झूठी चुगली करनेवाले बच्चे को शिक्षक अपने स्तर  पर समझाते हैं, लेकिन कोई महिला अगर झूठी शिकायत कर दे और यह साबित भी जाए कि शिकायत झूठी है तब भी उसके खिलाफ कोई प्रावधान नहीं ? इंदौर के रूपकिशोर अग्रवाल की  आत्महत्या के बाद भी उस महिला का कुछ नहीं हुआ, मामला आत्महत्या के लिए उकसाने का बना, झूठे केस का नहीं। महिला द्वारा  शिकायत करने की समय सीमा का भी कोई बंधन नहीं है, शिकायत  कभी भी की जा सकती है और शिकायत सही पाई जाए तो महिला को एक लाख तुरंत? महिला का नाम गोपनीय रखने का क़ानून है, यानी अपराधी का चेहरा भी उजागर नहीं  होगा,लेकिन अगर वह पुरुष है तो सरे राह जूते तय !

अब हाल यह है कि भारत में  'फ्री मैन  क्लब' बनने शुरू हो गए हैं, इन्हें नाम दिया गया है --  'मैन गोइंग देयर ऑन वे' . इसकी वेबसाइट भी है -www.mgtow.com . इसके अनुसार घरेलू हिंसा के ८० फ़ीसदी मामले फ़र्ज़ी होते हैं ; बलात्कार के जाधिकतर मामलों में पीड़ित पुरुष होते हैं , न कि महिला ; इस वेबसाइट में झूठे मामलों में फसाये गए लोगों को कानूनी लड़ाई लड़ने का रास्ता भी बताया गया है। यह भी जानकारी दी गयी है महिलाओं को किस तरह से ''लाइफ चेंजिग लाइ'' यानी जीवन को बदलने वाले झूठ का प्रशिक्षण दिया जाता है। 

आज हमारे अपने जीवन मूल्यों की जगह क़ानून ने ले ली है।  माता बहनों को सम्मान की बात अब बकवास लगती है। अब आप किसी बच्चे या बच्ची को पीठ  शाबासी से नहीं थपथपा सकते --क्या पता, पाँच -दस साल बाद वह जाकर शिकायत कर दे तो आप गए आईपीसी की धारा 354 में। 
प्रकाश हिन्दुस्तानी 
(वीकेंड पोस्ट के 7 दिसंबर  2013 के अंक में  मेरा कॉलम)

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