Friday, January 21, 2011



देवबंद से बदलाव की बयार मौलाना वस्तनवी

अगर आप हमेशा पीछे ही देखते रहेंगे तो आगे कैसे जायेंगे? इसी विचार से दारुल उलूम के मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तनवी की भूमिका का पता चलता है. वे 145 साल पुराने दारुल उलूम, देवबंद के पहले कुलपति है जो उत्तरप्रदेश के बाहर के हैं. वस्तनवी के पद संभालते ही वे लोग सक्रिय हो गए जो पीछे और केवल पीछे ही देखना पसंद करते हैं. वस्तनवी गुजरात के वस्तन गाँव के रहने वाले हैं जो सूरत के पास है. वे पद संभालते ही विवादों में आ गए, क्योंकि उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री को गालियाँ नहीं दीं, जैसा कि चलन में है और इसीलिये वस्तनवी की निंदा हो रही है.

वस्तनवी खास हैं. वे मौलाना हैं पर फेसबुक में उनके नाम का पेज है, उनके नाम के ब्लोग्स भी हैं. वे ऐसे फतवे जारी नहीं करते कि दवा में अल्कोहल का इस्तेमाल हराम है; कि औरतों को नौकरी नहीं करनी चाहिए; कि वन्दे मातरम गाना गलत है; कि कैमरेवाले मोबाइल गैर इस्लामी हैं; कि वोट धर्म के नाम पर ही देना चाहिए; कि लडके-लड़कियों की पढाई साथ नहीं होना चाहिये ; कि टेस्ट ट्यूब बेबी इस्लाम विरोधी है आदि आदि. वस्तनवी प्रगतिशील हैं और जानते हैं कि आजादी की लड़ाई में देवबंद ने कितनी बड़ी भूमिका निभाई थी. वस्तनवी के होते दारुल उलूम का नाम अलग कारणों से लिया जायेगा. यह भ्रम दूर होगा कि वहां केवल उर्दू, अरबी और फारसी ही सिखाई जाती है. वे खुद एमबीए हैं और दारुल उलूम के अन्य राज्यों के संस्थानों में मेडिकल, इंजीनियरिंग और कंप्यूटर की भी पढाई होती है. वे यह भ्रम तोड़ सकते हैं कि मुस्लिम मुख्य धारा से कटे हैं. दारुल उलूम के कई फतवे इस बात के सबूत हैं -- जैसे मुस्लिम किसी को भी वोट देने को आज़ाद हैं, वे चाहें तो वन्दे मातरम गा सकते हैं, ईद पर गाय की कुर्बानी करना उचित नहीं आदि.

वस्तनवी ने पद संभालने के बाद यह बात साफ़ की कि अब फतवे विस्तृत रूप से जरी किये जायेंगे. मीडिया ने कई बार फतवों की गलत व्याख्या की है और इससे गलतफहमियां फ़ैली हैं. हर फतवा किसी न किसी सन्दर्भ के साथ, किसी की याचिका पर जारी होता है, उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिये. हर फतवा सामान्य आदेश नहीं होता. हम ऐसा कोई आदेश जारी नहीं करनेवाले, जो समाज के लिए नुकसानदेह हो. अगर हमें फतवे को जारी करने के लिए इंटरनेट की जरूरत पड़ी, तो उसका भी उपयोग करने से नहीं हिचकेंगे.

गुजरात में जन्में वस्तनवी का जीवन शिक्षा के क्षेत्र में ही समर्पित रहा है. उन्होंने अपनी एमबीए की डिग्री महाराष्ट्र के से प्राप्त की और वहीं उन्होंने अनेक शैक्षणिक संस्थाओं का संचालन भी किया. पढ़ाई के बाद उन्होंने आदिवासी इलाकों में सेवा कार्य को चुना. महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले के अक्कलकुआ में उन्होंने जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम कायम किया जो शिक्षा का केंद्र बना. यहाँ जीवन की हर विधा की शिक्षा दी जाती है. उन्हीं की मेहनत का फल है कि अक्कलकुआ शिक्षा का केंद्र बन गया और यहाँ से १४ कालेज और १० स्कूलों का संचालन होने लगा.

शिक्षाविद होने के साथ ही वस्तनवी कुशल संगठक भी हैं. पूरे पश्चिमी भारत में मदरसों का नेटवर्क खड़ा करने में उनकी बड़ी भूमिका रही है. वे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड के सदस्य भी हैं. वे महाराष्ट्र का प्रतिष्ठित मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अवार्ड से भी नवाजे जा चुके हैं. अब मौलाना वस्तनवी के सामने नयी ज़िम्मेदारी है और वे नयी शुरूआत करने जा रहे हैं.
प्रकाश हिन्दुस्तानी

दैनिक हिंदुस्तान
23 जनवरी 2011

2 comments:

SHRIPAL said...

ABHI TAK KA PHALA ISNAN HAIN JISNE DO DHARM KO EK SUI MAIN PROKAR SAMANTA KE BHAV DHEKE , INKI SOCH BHAUT HI KABILE TARIF HAIN.............. SHRIPAL

arun dev said...

welcome....
der aayad durust aayad