Monday, January 17, 2011


अमेरिकी गवर्नर बनी अमृतसर की बेटी


उन्होंने पढाई तो की है अकाउंट्स के लेखन की, पारिवारिक धंधा है कचरे का प्रबंधन, उन्हें सम्मान मिला है 'फ्रेंड्स ऑफ़ टैक्स पेयर्स' का, रिकार्ड बनानेवाली टी पार्टी का आन्दोलन चलने में उनकी भूमिका भी रही है, वे हैं अमेरिका की मशहूर इंडियन, जिन्होंने साउथ कैरोलिना प्रान्त की 116वीं गवर्नर की शपथ ली हैं. उनके पहले भारतीय मूल के पीयूष अमृत जिंदल अमेरिकी गवर्नर बन चुके हैं, जो बॉबी जिंदल के नाम से मशहूर हैं. अब अमृतसर की बेटी ने नम्रता रंधावा गवर्नर बनी हैं, जो वहां शादी के बाद निक्की बेली बन गयी हैं. वे वर्तमान में अमेरिका की सबसे कम उम्र की गवर्नर भी हैं.

निक्की ने अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की राजनीति में बहुत काम किया है. पार्टी में उन्होंने सक्रिय रहकर स्थानीय मेडिकल, सैन्य, म्युनिसिपल अफेयर्स कमेटियों में जूतियाँ घिसी हैं. टैक्स पेयर्स की समस्याओं की लड़ाइयाँ लड़ीं हैं, वहां के व्यावसायिक संगठनों में महत्वपूर्ण काम किया है लेकिन गवर्नर पद पर निक्की की उम्मीदवारी का वहां के मीडिया ने बहुत मजाक उड़ाया था. जब उनका चुनाव प्रचार अभियान ज़ोरों पर था तभी एक स्थानीय प्रमुख अखबार ने पहले पेज पर हेडिंग था -- निक्की? कौन ?? अब उन लोगोने को जवाब मिल गया है -- निक्की, द गवर्नर. और अब उन्हें यह भी इखाना पड़ रहा है कि आगामी प्रेसिडेंशियल इलेक्शन में भी निक्की का रोल बहुत ही महत्वपूर्ण रहनेवाला है क्योंकि एशियाई मूल के वोटर उनसे काफी प्रभावित हैं.

निक्की के लिए गवर्नर के पद तक की राह कोई आसान नहीं रही. अनिवासी और वह भी सिख होने के नाते रुकावटें बहुत ज़्यादा थी. माइकल हेली से शादी के कारण उन्होंने ईसाई धर्म अपनाया तो सिख नाराज़! ईसाइयों ने उन्हें अपने धर्म का नहीं माना. हर अनिवासी के प्रति जो नज़रिया वहाँ रहता है, वही निक्की से प्रति भी रहा. कभी उनके विवाहेतर संबंधों को लेकर तरह-तरह की अफवाहें उडाई गयी, तो कभी उनके दोनों भाई निशाने पर रहे जो पगड़ी नहीं बांधते. चरित्र हत्या और लांछन के विरोधियों के हथियार भी उनके सामने नाकाम रहे क्योंकि उनके पति उनके साथ थे, दोनों भाई और बहन भी चुनाव प्रचार में जुटे थे. उनके पिता और माँ ने भी चुनाव प्रचार में सक्रिय मदद की थी. चुनाव प्रचार के दौरान जब किसी ने पूछा कि क्या वे जीतने की आशा रखती हैं तो उन्होंने कहा था कि मैं कोई भी काम अधूरा नहीं छोड़ती. अगर मुझे जीतना है ती जीतना ही है. शपथ लेते ही उन्होंने कहा है कि वे चाहेंगी कि सरकार का कामकाज में मितव्ययिता बरती जाए.

निक्की तीन बार हाउस ऑफ़ रिप्रे. का चुनाव जीत चुकी थी.पिचले चुनाव में छः भारतवंशी उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमे से केवल निक्की ही जीत सकीं. लम्बी चुनाव प्रक्रिया के दौरान वहां कई उतार चढ़ाव आये और वे हरेक को पार करती गयी. अपनी जीत के बारे में वे शुरू से ही मुतमईन थीं. गवर्नर का चुनाव जीतने के बाद उन्होंने पंजाबी स्टाइल के भव्य आयोजन अपने खर्च से किये, जिनमें किसी भी प्रान्त का कोई भी शामिल हो सकता था. मतलब साफ़ है कि उनकी निगाहें आगे भी कुछ देख रही हैं.

इसी हफ्ते 20 जनवरी को निक्की अपना चालीसवाँ बर्थ डे मनाएँगी. उनके पिता केमेस्ट्री के प्रोफ़ेसर डॉ अजीत रंधावा अमृतसर से अमेरिका जाकर बसे गये थे. निक्की की माँ raaj रंधावा ने कारोबार शुरू किया था, जिसमें वे काफ़ी कामयाब रहीं. नम्रता कौर रंधावा ने मेथादिस्त चर्च और गुरुद्वारे, दोनो में शादी की और आज भी प्रार्थना के लिए दोनों में जाती हैं, लेकिन आधिकारिक तौर पर उन्होने अपना धर्म ईसाई घोषित किया है. वे एक बेटे और एक बेटी की माँ हैं. उनका एक भाई २० साल से अमेरिकी फौज में है.

-- प्रकाश हिन्दुस्तानी

(हिन्दुस्तान,
16 जनवरी 2011)

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