Thursday, October 29, 2009

मेरे संपादक :


श्रवण गर्ग : डबल रोल में संपादक




श्री श्रवण गर्ग ने पत्रकारिता जगत में दो योगदान दिए हैं। पहला तो उन्होंने सम्पादक नामक प्रजाति को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दूसरा इस प्रजाति की कार्यशैली में आमूलचुल परिवर्तन की व्यवस्था की। अखबार के सम्पादक को उन्होंने लायब्रेरी से बाहर निकालकर न्यू।ज डस्क की मेनस्ट्रीम में पहुँचाया और उसका दायरा अग्रलेख और सम्पादकीय पेज से बाहर फैलाया।

आज यदि हिन्दी पत्रकारिता का विस्तार मध्यप्रदेश से बाहर पूरे देश में हो रहा है, तो इसके पीछे श्री गर्ग की मेहनत भी छुपी है।श्री गर्ग के सम्पादक बनने से एक अच्छे रिपोर्टर कीजगह खाली हो गई थी, जो अभी तक खाली हीहै। श्री गर्ग की मूल प्रवृत्ति रिपोर्टर की ही है और वे रिपोर्टिंग से ही पत्रकारिता शुरू करके शिखर तक पहुँचनेवाले पत्रकार है। इस लम्बे सफर में उन्होंने कई पडाव हासिल किए, लेकिन अपनी मंजिल उन्होंने खुद तय की। खांटी किस्म के, मेहनती, पढने-समझने-जूझने वाले, सर्वोदयी किस्म के श्री गर्ग के व्यवहार से कई लोग उनके दुश्मन बन गए हैं, इनमें वे लोग भी हैं, जिन्होंने भी गर्ग की तरह ऊँचाइयों को नहीं छुआ है और वे उनसे जलन रखते हैं, लेकिन श्री गर्ग को किसी से कोई बैर नहीं। श्री गर्ग ने हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी और अब फिर हिन्दी पत्रकारिता में झंडे गाडे हैं। कई बार तो वे चुपचाप अपने संस्थान के लिए इस तरह कार्य में जुटे मिलते हैं जैसे कोई परमाणु बिजलीघर संचालित होता है। अग्रलेख, संपादकीय पेज और खबरों में भी वे न.जर आते हैं। बहुत कम लोग हैं जो अखबार देखकर ही भाँप जाते हैं कि इसके पीछे किसका दिमाग होगा।श्री गर्ग एक प्रोफेशनल हैं और सच्चे प्रोफेशनल की तरह अपने काम में जुटे रहते हैं। उनके सहयोगी उनमें एक कुशल प्रबंधक और निष्पक्ष अधिकारी पाते हैं। ऐसे बिरले ही सम्पादक हैं, जो बेहद प्रभावी और परिणाम देने वाले प्रबंधक भी हों। वे एक सम्पादक और प्रबंधक की भूमिका में विरोधाभास पाते हैं और इसीलिए उनके मतभेद लोगों से होते हैं। खबरों के चयन को लेकर उनकी प्राथमिकताएँ स्पष्ट हैं- वे लोगों की तरफ होते हैं। उन्हें 'विज्ञापनदाता की खबरों से ज्यादा चिन्ता पाठकों की खबरों' की होती है, लेकिन विज्ञापनदाता भी न.जरअंदाज नहीं होता।शौकिया फोटोग्राफर और कवि किस्म के लोग अगर पत्रकार बनें तो कामयाबी की आशा कम ही होती है। लेकिन इसका अपवाद हैं श्री गर्ग। श्री गर्ग की खूबी रही है कि जब भी कोई प्रोफेशनल इश्यू सामने आता है, वे सच्चाई की ओर होते हैं। वे ऐसे मौके पर अपने सारे पूर्वाग्रह एक तरफ रखकर पत्रकारिता के लिए सामने आ जाते हैं।

1 comment:

महेश शर्मा MAHESH SHARMA said...

श्रवण गर्ग जी पर लिखने के लिए धन्यवाद..वे एक बेहतरीन प्रशासक भी हैं और बेहतरीन इंसान भी..उनकी पत्रकारिता के बारे में लिखने के लिए मैं अपने को अधिकारी नहीं समझता लेकिन उनका न्यूज़ सेन्स,फोटो सेलेक्शन,उनके द्वारा तैयार ले-आउट....ऐसी कई बातें हैं जो उनके साथ रहकर ही सीखी जा सकती हैं ...