Sunday, May 29, 2011

लक्ष्य पर टिकी थी निगाहें

रविवासरीय हिन्दुस्तान के एडिट पेज पर मेरा कॉलम

सोलह साल के इम्मादी पृथ्वी तेज ने आईआईटी-जेईई में 4 लाख 68 हजार विद्यार्थियों में पहला स्थान पाया. यह पृथ्वी का पहला प्रयास था. पृथ्वी ने 1000 में से 970 अंकों का स्कोर अर्जित किया. अब पृथ्वी आईआईटी मुंबई में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में प्रवेश चाहता है. विदेश जाकर डॉलर कमाने के बजाए यूपीएससी की परीक्षा देकर भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाना पृथ्वी का नया लक्ष्य है.

लक्ष्य पर टिकी थी निगाहें


केवल सोलह साल के इम्मादी पृथ्वी (तेलुगु उच्चारण पुरुध्वी) तेज ने आईआईटी-जेईई में 4 लाख 68 हजार विद्यार्थियों में पहला स्थान पाया. यह पृथ्वी का पहला प्रयास था. पृथ्वी ने 1000 में से 970 अंकों का स्कोर अर्जित किया. अब पृथ्वी आईआईटी मुंबई में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में प्रवेश चाहता है. विदेश जाकर डॉलर कमाने के बजाए यूपीएससी की परीक्षा देकर भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाना पृथ्वी का नया लक्ष्य है. पृथ्वी आँध्रप्रदेश के तितुमाला का रहनेवाला है और विजयवाड़ा में श्री चैतन्य जूनियर कालेज का छात्र रहा है. पृथ्वी ने अपनी बुद्धि, मेहनत, योजनाबद्ध पढ़ाई और बगैर तनाव के वह मंजिल पा ली, जहाँ पहुंचना लाखों विद्यार्थियों का सपना होता है. पृथ्वी की इस बेमिसाल कामयाबी के कुछ सूत्र:

मज़बूत बुनियाद ज़रूरी

पृथ्वी के माता-पिता तिरुमाला में रहते हैं, जो एक छोटी सी जगह है और वहां आईआईटी में प्रवेश परीक्षा के लायक माहौल नहीं था. बेटे की पढ़ाई में रूचि देखते हुए उसके पिता ने उसे गुदिवाडा के विश्व भारती रेसिडेंसियल स्कूल में भारती करा दिया जहाँ उसने घर से दूर रहकर न केवल पढ़ाई की, बल्कि मैथ्स और साइंस के बुनियादी सिद्धांतों को कंठस्थ कर लिया. इन्हीं विषयों में गहरी समझ के कारण दसवीं की परीक्षा में उसे 96 प्रतिशत नंबर मिले और उसने आईआईटी-जेईई की तैयारी का लिए विजयवाड़ा में प्रवेश लिया. मूल विषयों की मज़बूत बुनियाद पृथ्वी की कामयाबी में महत्वपूर्ण रही.

लक्ष्य पर निगाहें
पृथ्वी की निगाहें छुटपन से ही आईआईटी पर थीं और उसे यह मालूम था कि वहां पहुँच पाना मज़ाक नहीं. उसके पिता इम्मादी नागेश्वर राव की तिरुमाला में ज्वेलरी की छोटी सी शॉप हैं और माँ रानी राव सामान्य गृहिणी हैं. पृथ्वी चाहता तो बचपन से ही ज्वेलरी शॉप का कामकाज संभालने का मन बना लेता, लेकिन उसका लक्ष्य शॉप नहीं थी. लक्ष्य को निगाह में रखते हुए स्कूलिंग के लिए पृथ्वी ने घर से दूर रहना मंजूर किया. निगाहे लक्ष्य पर, केवल लक्ष्य पर रखीं. छोटी-मोटी परेशानियों से विचलित हुए बिना पृथ्वी ने पढाई पर ध्यान दिया. परिवार का पूरा सपोर्ट तो था ही, पृथ्वी ने पूरी क्षमता लगा दी.

सही कोचिंग आवश्यक
पढ़ाई में बहुत अच्छा होने के बावजूद पृथ्वी को पता था कि बगैर सही कोचिंग के आईआईटी-जेईई क्रेक करना आसान नहीं. दसवीं के 96 प्रतिशत हासिल अंकों ने उसे हौसला दिलाया, लेकिन विजयवाड़ा में उसने जिस कोचिंग संस्थान में प्रवेश लिया वह इंजीनियरिंग का नहीं, मेडिकल में प्रवेश का अच्छा संस्थान माना जाता था. उस संस्थान के लिए भी यह चुनौती थी और उसके फैकल्टीज ने उस पर विशेष ध्यान दिया. पृथ्वी ने अपनी कामयाबी से साबित कर दिया कि जो सर्वश्रेष्ठ है वह किसी भी क्षेत्र में अपनी योग्यता साबित कर सकता है.

गाइडेंस पर पूरा अमल

पृथ्वी ने आईआईटी-जेईई के लिए अपने शिक्षको की सलाहों को हमेश ध्यान से सुना और उस पर अमल किया. अपनी कमजोरियों को जानने के लिए खुद नियमित रूप से अपने टेस्ट लिए. जो भी टेस्ट दिए वे इस गंभीरता से दिए मनो वही असली परीक्षा हो. सभी विषयों की तैयारी अच्छी तरह से की और यह भी ध्यान रखा कि उसकी अपनी दिलचस्पी और विशेष योग्यता किस में है और उसे किस सवाल का जवाब सबसे पहले देना है. दोस्तों के बजाए अपने टीचर्स से ही पढ़ाई के बारे में चर्चाएँ की और सभी विषयों के नोट्स परीक्षा के अनुसार ही बनाये.

सेल्फ स्टडी का सही तरीका
किसी भी परीक्षा में अव्वल आना हो तो टीचर्स केवल गाइड ही कर सकते हैं. पढ़ाई तो छात्र को खुद ही करनी होते है. पृथी ने अपनी पढाई का जो खाका बनाया था उस पर प्रतिदिन, प्रति सप्ताह और महीने भर के लक्ष्य निर्धारित थे. इसी तरह सेल्फ स्टडी के विषयवार लक्ष्य भी तय किये और उस पर अमल किया. हर विषय के हर प्रश्न को कई कई बार हाल किया. यह बार बार जांचा कि कहाँ कहाँ कोई कमी रह गयी है और उसे जल्दी दूर किया.

बगैर दबाव के पढ़ाई
पृथ्वी ने पढ़ाई और परीक्षा के दौरान दबाव के पढ़ने की कोशिश की. दबाव में नहीं आने का उसका फार्मूला यह रहा कि सारे बेसिक्स क्लियर कर पढ़ाई में जुटना चाहिए. पढ़ाई के दौरान दोस्तों, परिवारजनों और टीचर्स के दबाव में आये बिना पढ़ाई करना ही सफलता का रास्ता है. अगर आप दबाव में हैं तो पढ़ने में मन नहीं लग सकता और अगर दबाव झेलने की क्षमता नहीं हो तो परीक्षा में हड़बड़ी में गड़बड़ी हो सकती है.

टाइम मैनेजमेंट
परीक्षा की तैयारी ऐसे करें कि आपका टाइम मैनेजमेंट एकदम सटीक रहे. नींद पूरी हो और एक पल बर्बाद न हो. आपकी बॉडी क्लॉक इस तरह एडजस्ट हो जो आपको सपोर्ट करे. कई विद्यार्थी रात रात भर पढ़ते हैं और दिन में सोते हैं. जब दिन में परीक्षा का वक्त होता है तब उन्हें नींद आने लगती है. वक्त को बर्बाद किये बिना उसका सौ प्रतिशत सही इस्तेमाल करने की कला को समझना ज़रूरी है.

रिलेक्स होने की कला
पृथ्वी ने पढ़ाई के दौरान अपना क्रिकेट खेलना बंद नहीं किया. पढ़ाई और यहाँ तक कि परीक्षा के दौरान वह टीवी पर क्रिकेट देखने से नहीं चूका. हाँ, कुछ नयी फ़िल्में उसने परीक्षा के बाद देखने के इरादे से टाल दी थीं. पूरी पढ़ाई के दौरान उसने कभी भी आठ घंटे से कम की नींद नहीं ली. खेलते वक्त उसने यह ध्यान रखा कि कहीं वह थकान तो महसूस नहीं कर रहा. चौबीसों घंटे पढ़ाई करने की कोशिश उसने नहीं की क्योंकि वह जानता था कि यह संभव नहीं है.

अगला लक्ष्य भी निर्धारित

पृथ्वी ने आईआईटी मुंबई से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के डिग्री लेने के बाद का लक्ष्य भी निर्धारित कर लिया है. विदेश जाकर डॉलर कमाने के बजाए वह आईएएस बनकर अपने देश में ही लोगों की सेवा करना चाहता है. वह इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता कि आईआईटी केवल छात्रों के कारण महान संस्थान बने हैं, इन्हें महान बनाने में दूसरे फैक्टर भी हैं. वह मानता है कि हमारे कई नेता बहुत पढ़े लिखे हैं, कई तो आईआईटी और आईआईएम से निकले हैं और कई हार्वर्ड, केम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड में भी पढ़े हैं. अच्छा टेक्नोक्रेट बनकर वह देश के लिए काम करना चाहता है.

प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान 29 may 2011

Friday, May 20, 2011

ज़िद ने दिलाई यह मंज़िल




रविवासरीय हिन्दुस्तान के एडिट पेज पर मेरा कॉलम

महज़ पाँच साल की उम्र में मान की ममता से मरहूम रजनीकांत इसरार भी करते तो किससे? सो अपनी नियति खुद ही तय करने की ज़िद पाल ली. उन्होंने कुली से लेकर कंडक्टर तक का कम शान से किया, क्योंकि उनकी निगाह में कोई भी काम छोटा नहीं है. पद्मभूषण और दर्जनों अवार्ड्स पा चुके सुपरस्टार रजनीकांत एशिया में जैकी चैन के बाद सबसे ज्यादा मेहनताना लेनेवाले स्टार हैं. फ़ोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें भारत के सब से प्रभावशाली भारतीयों में से एक माना है.

ज़िद ने दिलाई यह मंज़िल

जीते जी किंवदंती बन चुके सुपरस्टार रजनीकांत मराठी परिवार के हैं और तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और हिंदी में से कोई भी उनकी मातृभाषा नहीं है. ये सब भाषाएँ उन्होंने सीखी हैं. रजनीकांत ने पांच साल की उम्र में मां को खो दिया था. हालात ने उन्हें मज़दूरी को विवश किया था. उन्होंने कुलीगीरी से लेकर कंडक्टर तक की नौकरी की. रंगमंच पर एक्टिंग के शौक के कारण उन्हें कन्नड़ नाट्य निर्देशक पुनप्पा ने एक धार्मिक नाटक में दुर्योधन का रोल दे दिया और यही उनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ. एक दोस्त ने उन्हें अपने खर्च से मद्रास फ़िल्म इंस्टीट्युट भेजा और दो साल तक उनका खर्च उठाया. लौटने पर उन्हें पहली फ़िल्म में छोटा सा नेगेटिव रोल मिला था, वह भी एक क्रूर पति का, फ़िल्म के हीरो कमल हसन थे. इसके बाद उन्होंने सात और फ़िल्में कीं. नौवीं फ़िल्म में उन्हें हीरो का रोल मिला और फिर उन्होंने पीछे नहीं देखा. पद्मभूषण और दर्जनों अवार्ड्स पा चुके सुपरस्टार रजनीकांत एशिया में जैकी चैन के बाद सबसे ज्यादा मेहनताना लेनेवाले स्टार हैं. फ़ोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें भारत के सब से प्रभावशाली भारतीयों में से एक माना है. रजनीकांत के सफलता के कुछ सूत्र :

असंभव कुछ भी नहीं
रजनीकांत ने निजी जीवन में और फ़िल्मी परदे पर जो कमाल किये हैं, वे बताते हैं कि इंसान के लिए असंभव कुछ भी नहीं है. हालात ये हैं कि संता बंता से भी ज्यादा जोक्स रजनीकांत को लेकर चल निकले हैं जो कमोबेश यही बात कहते हैं कि मेहनत और लगन से काम करो तो हर काम संभव है. रजनीकांत ने वयस्क होने के बाद कामकाज करते हुए कई भाषाएँ सीखीं, बिना किसी गॉडफ़ादर के सुपरस्टार का मुकाम पाया और यह सब अपनी मेहनत और पैशन के कारण. दृढ निश्चय हो तो साधनहीनता भी रुकावट नहीं बनती और न ही भाषा या क्षेत्र बाधा बनता है.

अपनी छाप छोड़ो
कोई भी काम करो, उस पर अपनी छाप ज़रूर छोड़ो. चाहे वह काम बस कंडक्टर का ही क्यों न हो. बस कंडक्टर के रूप में रजनीकांत खासे लोकप्रिय थे. कई यात्री इसी इंतज़ार में रहते कि वे उसी बस में जायेंगे, जिसमें रजनीकांत हों. रजनीकांत का टिकिट फाड़ने, पैसे गिनने और यात्रियों से बात करने का अंदाज़ ही निराला था. इसी स्टाइल ने उन्हें रंगमंच तक पहुँचाने में मदद की और वे सिनेमा की दुनिया में जा सके. सबक यह है कि कोई भी काम छोटा नहीं, बशर्ते आप उस पर अपनी छाप छोड़ें.

प्रोफेशनल रवैया रखो
आप जिस भी फील्ड में हों, अपने काम को प्रोफेशनल अंदाज़ में ही करें. व्यक्तिगत बातों को अपने व्यवसाय में हावी होने दें. इसी से आपकी गरिमा बनी रहती है. 62 वें वर्ष में चल रहे रजनीकांत से आधी उम्र की हीरोइनें उनके साथ काम कर रही हैं. आसिन, अनुष्का शर्मा, दीपिका जैसी हिरोइन उनके साथ काम कर रहीं हैं, लेकिन माधुरी दीक्षित ने उने साथ काम करने से मना कर दिया. बॉलीवुड में ऐसा किसीहीरो के साथ होता तो हंगामा हो जाता, लेकिन रजनीकांत ने कोई बयानबाजी नहीं की. अपनी हर फ़िल्म के डायरेक्टर, सिनेमाटोग्राफर, और पूरी टीम के साथ उनके सम्बन्ध बहुत प्रोफेशनल होते हैं. मीडिया में भी वे कभी लफ्फाजी नहीं करते.

बेहतर की जिद करो
आप जो भी कर रहो हो, उससे बेहतर और बड़ा करने की जिद अवश्य करो. यह जिद न होती तो रजनीकांत एक हीरो बनकर ही संतुष्ट हो जाते. हर फ़िल्म में उनका कद बड़ा होता गया है चाहे वह चाहे वो अंडरवर्ल्ड डॉन बिल्ला हो या मुरत्तु कलाई या फिर थिल्लू मुल्लू। इन फिल्मों में रजनी की स्टाइल ने उन्हें अलग पहचान दी। हिंदी में उनकी कई फ़िल्मों को मनचाही सफलता नहीं मिली, लेकिन वे हर फ़िल्म में कुछ न कुछ नया, भव्य और अनूठा करने की कोशिश करते हैं. दोहराव से बचने का यत्न करते हैं.

दान से निखरता है चरित्र
रजनीकांत के बारे में कहा जाता है कि हातिमताई की तरह दान देते हैं और किसी को इसकी खबर नहीं होने देते. लोग किसी भी काम में उनसे मदद लेने जाते हैं तो वे भरपूर मदद करते हैं पर इस शर्ट पर कि उसे प्रचारित नहीं किया जाए. अपने जन्मदिन पर उन्होंने कई साल तक हजारों लोगों को भोज दिए हैं, बिना उनकी सामाजिक हैसियत देखे. रजनीकांत को पता है कि वे अवाम के हीरो हैं और अवाम दिखावे से दूर स्वाभाविक लोगों को पसंद करती है. उन्हें लगता है कि कमाई को खर्च करने का सबसे अच्छा तरीका है उसे लोगों के साथ खर्च करना.

दिखावे से दूर रहें
रजनीकांत को अन्य हीरो की तरह शो ऑफ का शौक नहीं है. वे गंजे हैं और फिल्मों में तो विग पहनते हैं लेकिन रोजमर्रा में नहीं. वे इसे स्वीकार करते हैं कि फाइलों में विग पहनना ज़रूरी है. जहाँ तक शो ऑफ की बात है, वे कहते हैं कि मेरे जैसे फ़िल्मी हीरो के लिए शो ऑफ की सही जगह फ़िल्म का परदा ही है और वहीँ मैं अपना सारा ध्यान लगाता हूँ. रजनीकांत बड़बोलेपन से भी दूर हैं और आम तौर पर विवादों से दूर रहते हैं.

सामाजिक सरोकारों पर ध्यान
रजनीकांत ने फ़िल्मी दुनिया में रहते हुए भी सामाजिक सरोकारों की उपेक्षा नहीं होने दी. २००२ में जब कर्णाटक सरकार ने तमिल नाडू के लिए कावेरी नदी का पानी रोक लिया था तब वे दिन भर के धरने पर बैठे. जब पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने नदियों को जड़ने की घोषणा की तब उन्होंने इस काम में निजी तौर पर एक करोड़ रुपये के दान का ऐलान किया. वे हमेशा नेताओं से कहते रहे कि पानी जैसे मुद्दे पर राजनीति से बाज आयें और देश का हिट पहले देखें. श्रीलंका में तमिलों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ धरने पर बैठे.

परिवार भी महत्वपूर्ण
रजनीकांत एक पारिवारिक व्यक्ति हैं. अपने व्यवसाय की आपाधापी में भी वे परिवार से विमुख नहीं हुए. वे शादीशुदा दो बेटियों के पिता है और उनकी पत्नी एक स्कूल का संचालन करती हैं. परिवार के अलावा धर्म में भी उनकी आस्था है और वे सत्य साईं बाबा के भक्त रहे हैं. हर फ़िल्म के रिलीज होने के पहले वे परिवार सहित मंदिरों में जाते हैं. एक बेटी फ़िल्म व्यवसाय में ही है और दूसरी गृहिणी. रजनीकांत मनाते हैं कि परिवार और धर्म उन्हें भीतर से शक्ति देता है.
प्रकाश हिन्दुस्तानी
--

हिन्दुस्तान may 22, 2011

.............................................................................................

रजनीकांत के कुछ लतीफ़े :



1. जब रजनीकांत स्कूल जाया करते थे तो स्कूल में बंक मारना टीचर का काम हुआ करता था।

2. रजनीकांत जब भी प्याज काटता है, प्याज से पानी की बूंदें निकलती हैं। साइंटिस्ट कहते हैं कि ये प्याज के आंसू होते हैं।

3. अगर आप सोचते हैं कि रजनीकांत का दिमाग कम्प्यूटर से तेज चलता है तो आप थोड़ा सा गलत हैं। रजनीकांत का दिमाग चाचा चौधरी से तेज चलता है।

4. एक बार रजनीकांत ने अपने उस बैंक एकाउंट का चेक काट दिया जिसमें संयोग से रुपये नहीं थे। नतीजा ये हुआ कि बैंक बाउंस हो गया।

5. रजनीकांत के कैलेंडर में 31 मार्च के बाद सीधे 2 अप्रैल की डेट आती है, क्योंकि कोई भी उसे अप्रैल फूल नहीं बना पाता।

6. रजनीकांत इतना तेज है कि वह पूरी दुनिया का एक चक्कर लगाकर अपनी पीठ पर पीछे से आकर खुद को मुक्का मार सकता है।

7. 'नो वन इज परफेक्ट', इस जुमले को रजनीकांत पर्सनल इंसल्ट के रूप में लेता है।

8. अद्भुत, अविश्वसनीय, बुद्धिमान, शक्तिशाली, महान जैसे कई शब्द 1949 में डिक्शनरी में जुड़े। इसी साल रजनीकांत का जन्म हुआ था।

9. दुनिया 2012 में समाप्त नहीं होगी क्योंकि रजनीकांत ने लाइफ टाइम वैलीडिटी वाला मोबाइल सिम खरीद लिया है।

10. रजनीकांत के कम्प्यूटर में रिसाइकिल बिन नहीं है। उसे रजनीकांत ने डिलीट कर दिया है।

11. पॉल द आक्टोपस ने फीफा वर्ल्ड कप में बिलकुल सटीक भविष्यवाणियां की थीं। उससे किसी ने पूछा कि रजनीकांत कब मरेगा? उसी दिन पॉल बाबा की मौत हो गई।

12. रजनीकांत यदि 200 साल पहले पैदा होता तो आज ब्रिटेनवासी अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रहे होते।

13. रजनीकांत को बचपन में चिकेन पॉक्स नाम की बीमारी ने अपनी चपेट में लिया था। आज ये बीमारी दुनिया से गायब हो चुकी है।


14 .एक किसान ने अपने मक्के के खेत में कौवे उड़ने के लिए रजनीकांत की तस्वीर चिपका दी। नतीजा यह हुआ कि कौवे अगले ही दिन मक्की के वे दाने भी वापस ले आए, जो वे पिछले साल लेकर गए थे।

15. रजनीकांत की एक मात्र पर्सनल ई-मेल आईडी है "gmail@rajanikanth.com।"

16. जिस दिन रजनीकांत की रोबोट फिल्म रिलीज हुई थी, उस दिन टाइम्स आफ इंडिया को रजनीकांत ने 4 स्टार रेटिंग दी थी.


17. बिग बॉस सीजन 4 के दौरान एक दिन के लिए रजनीकांत बिग बॉस के घर गया था. नेक्स्ट डे बिग बॉस के घर में एकाउंसमेंट हुआ ‘रजनीकांत चाहते हैं कि बिग बॉस कन्फेशन रूम में आ जाएं’.

18. जब भी भगवान हैरान होते हैं तो ·हते हैं, ‘ओह मॉय रजनीकांत’.

19. रजनीकांत ·क्रिकेट भी अच्छा खेलता है. रणजी के एक मैच में अंतिम बाल पर जीत के लिए 10 रनों की जरुरत थी. रजनीकांत स्ट्राइक पर थे. बॉलर ने जब बॉल फेंकी, रजनीकांत ने बैट से उसे हवा में उछाल उसके दो टुकड़े कर दिये. एक टुकड़े को छक्के की ओर उछाला और दूसरे को बाउण्ड्री की ओर भेज दिया.


20. क्या आपको पता है कि गणपति जी के घर पर दस दिन के लिए रजनीकांत की प्रतिमा विराजित की जाती है?

Sunday, May 15, 2011

संकल्प ने बनाया आईएएस टॉपर

आईएएस टॉपर एस. दिव्यदर्शिनी को भरोसा था कि उनका चयन आईएएस के लिए हो जाएगा, लेकिन वे टॉप पर रहेंगी, इसकी कल्पना भी नहीं थी. एस. दिव्यदर्शिनी की इस महत्वपूर्ण सफलता के कुछ सूत्र :


रविवासरीय हिन्दुस्तान के एडिट पेज पर मेरा कॉलम

संकल्प ने बनाया आईएएस टॉपर


चेन्नई की 24 साल की एस. दिव्यदर्शिनी यूपीएससी की प्रशासकीय नौकरी की परीक्षा में टॉप पर रहीं. इसके पहले भी वे इस परीक्षा में बैठीं थीं, पर नाकामयाब रहीं. मध्यमवर्गीय परिवार की दिव्यदर्शिनी इसके बाद भारतीय स्टेट बैंक में प्रोबेशनरी अधिकारी के लिए चुनी गयीं लेकिन उन्होंने अपनी यूपीएससी परीक्षा की तैयारी भी जारी रखी. उन्हें भरोसा था कि उनका चयन आईएएस के लिए हो जाएगा, लेकिन वे टॉप पर रहेंगी, इसकी कल्पना भी नहीं थी. 2009 की परीक्षा देते वक्त वे अपनी लॉ की डिग्री के लिए भी पढ़ाई कर रही थीं. इस बार उन्होंने कोई भी मौका नहीं छोड़ा. चेन्नई में आईएएस के लिए उन्होंने कोचिंग क्लास जाना शुरू किया ताकि सही मार्गदर्शन मिल सके. एस. दिव्यदर्शिनी की इस महत्वपूर्ण सफलता के कुछ सूत्र :

कामयाबी का कोई शॉर्टकट नहीं

बड़े लक्ष्य को पाना हो तो कोई शॉर्टकट नहीं चलता. आर्ट्स में डिग्री लेने के बाद लॉ की डिग्री के लिए भी पढ़ाई के दौरान यूपीएससी की भी तैयारी करनेवाली दिव्यदर्शिनी मानती हैं कि जीवन में किसी भी क्षेत्र में कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. नियमित पढाई हो या प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी, केवल और केवल कड़ी मेहनत कामयाबी पाने की पहली सीढ़ी है. कामयाबी के लिए और भी कई बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है लेकिन कड़ी मेहनत के बिना वे सब बातें बेकार हो जाती हैं. शॉर्टकट के जरिये अगर कामयाब होने का सपना देख रहे हों तो उसे भूल जाइए.

उचित मार्गदर्शन प्राप्त करें
बिना मार्गदर्शन के भी कामयाबी मिल सकती है लेकिन इसमें आपका सफ़र लम्बा और दुश्वार हो सकता है. 2009 में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा देने के बाद मुझे यही महसूस हुआ. हर परीक्षा का कोई ना कोई पैटर्न होता है. अगर आप को उसकी जानकारी हो तो वह मदद मिल जाती है. मैंने जब इस परीक्षा की कोचिंग लेना शुरू की तो कई लोगों ने यह भी कहा कि आप तो पहले ही यह परीक्षा दे चुकी हैं, कोचिंग की क्या ज़रुरत? लेकिन आज मैं यह स्वीकार करती हूँ कि अगर मैंने कोचिंग नहीं ली होती तो टॉप में आना तो दूर, शायद सफल ही नहीं हो पाती.

योजनाबद्ध होकर पढ़ाई करें
यदि आपको भी इस या ऐसी ही कोई परीक्षा में बैठना है तो कोचिंग जाना और कड़ी मेहनत करना ही काफी नहीं है. उससे बढ़कर आपको पूरी योजना बनकर पढ़ाई करनी चाहिए. इसके लिए आपको हर एक विषय में अध्ययन की रणनीति बनानी होगी. हर विषय के लिए अलग रणनीति होना चाहिए क्योंकि कुछ विषयों में आपकी ख़ास दिलचस्पी हो सकती है, कुछ में नहीं. लेकिन पढ़ाई तो आपको सभी की करना होगी. बोरियत भरे विषयों में भी दिलचस्पी लें. मेरा अनुभव यही है कि जैसे जैसे हम किसी विषय के बारे में जानने लगते हैं, हमारी दिलचस्पी उसमें बढ़ती जाती है.

हताशा से बचें

मुझे दसवीं में आये नंबरों से बड़ी निराशा हुई थी. मुझे रिजल्ट में विशेष योग्यता की आशा थी, लेकिन मैं 74 प्रतिशत ही ला सकी. निराशा के वक्त मेरे माता पिता ने बहुत प्रेरणा दी. मैंने अगले साल नए सिरे से पढ़ाई शुरू की और बारहवीं की परीक्षा में 86 प्रतिशत नंबर लाकर अपना खोया आत्मविश्वास फिर हासिल कर लिया. मैंने कॉलेज में आते ही प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने का मन बना लिया था. मेरी दिलचस्पी मैनेजमेंट और कम्प्यूटर्स के बजाय कानून में ज्यादा थी. साथ ही यह स्कोअर्रिंग विषय भी है. यदि आप परफेक्ट हैं तो अच्छे नंबर पा सकते हैं. यूपीएससी में पहली नाकामी को मैंने यह सोचकर टाल दिया था कि मैंने कॉलेज में लॉ के साथ यह परीक्षा दी थी.

हर विषय पढ़ें
आपकी दिलचस्पी चाहे जिस में हो, पढ़ाई हर विषय की करते रहे. ध्यान रखिये कि केवल कॉलेज या प्रतियोगी परीक्षा के विषय पढ़ना ही काफी नहीं हैं. यह पढ़ाई आपको इंटरव्यू में तो मदद करेगी ही आपको एक बेहतर, मुकम्मल इंसान बनाने का रास्ता भी खोलेगी. आगे जाकर आप पाएंगे कि हर विषय की पढ़ाई से आपने जो भी सीखा है, वह बहुत ही काम का है और तब आपको खुशी होगी.

टाइम किलिंग मशीनों से सावधान

टीवी और फ़िल्में देखना, ड्राइविंग करना, चेटिंग करना, मोबाइल पर गप्पें लड़ाना किसे अच्छा नहीं लगता, लेकिन ये सभी टाइम किलिंग डिवाइसेस हैं. इनका उपयोग सावधानी से और ज़रुरत के हिसाब से ही करें. ये वक्त तो बर्बाद करती ही हैं, हमें अपने लक्ष्य से भी भटका सकती हैं. अगर आप स्मार्ट हैं तो इनका उपयोग अपने लक्ष्य को पाने में सहयोगी उपकरण के तौर पर कर सकते हैं, लेकिन यह आसान नहीं है. इन सब चीजों के लिए तो ज़िंदगी पड़ी है, वक्त के महत्त्व को समझें.

लक्ष्य के लिए समझौता नहीं
अपने लक्ष्य को पाने के लिए कभी भी समझौते न करें. जो लक्ष्य तय किया है उसे न केवल प्राप्त करें बल्कि पूरी तरह से सही रास्ते पर चलकर ही हासिल करें. यह बात बेहद किताबी लगती है, लेकिन कामयाबी का असली मज़ा तभी है जब कि उसे पाने के लिए आपने कोई समझौता नहीं किया हो. मैंने यूपीएससी में पहली बार नाकाम होने पर बैंक की नौकरी को हाँ कह दी और वहां काम भी शुरू कर दिया लेकिन मुझे लगता रहा कि मैं अपने लक्ष्य से भटक गयी हूँ. बैंक की नौकरी में शायद तनाव काम होंगे लेकिन मेरा लक्ष्य प्रशासकीय नौकरी ही था, और मैं यहीं खुश हूँ.

व्यवस्था को बदलो

मुझे देश में फैले भ्रष्टाचार से नफ़रत है और मैं उसे मिटाना चाहती हूँ. अब हर जगह भ्रष्टाचार की बार करने, गलियां देने और कुंठित होने के बजाय भ्रष्टाचार से लड़ने का सही तरीका मुझे यही लगता है कि मैं ऐसी पोजीशन में पहुँच जाऊं, जहाँ मैं भ्रष्टाचार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकूं. आईएएस अधिकारी के रूप में मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी जंग को महत्वपूर्ण मुकाम तक पहुंचा सकूंगी.

प्रकाश हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तान 15 मई 2011

Friday, May 06, 2011

हर सफ़र का अपना मज़ा है

रविवासरीय हिन्दुस्तान के एडिट पेज पर मेरा कॉलम




यदि आपने बहुत दौलत कम भी ली है और उसका मज़ा लेना चाहते हैं तो उसे किसी के साथ शेयर करे. ये लोग आपके कर्मचारी, शेयर होल्डर, समाज के दूसरे लोग -- कोई भी हो सकते हैं. यही हमारा धर्म और दर्शन भी है.


सफलता के सूत्र / नारायण मूर्ति

हर सफ़र का अपना मज़ा है

तीस साल पहले 1981 में छह मित्रों और केवल दस हज़ार रुपये की पूंजी से एन आर नारायण मूर्ति ने जिस इन्फोसिस कंपनी की स्थापना की थी, उसका कारोबार बीते साल करीब 30 ,000 करोड़ रुपये था. उन्होंने एक ऐसी कंपनी की नींव डाली, जिसे दुनिया की बेहतरीन कंपनियों में माना जाता है. 33 देशों में सवा लाख से भी ज्यादा लोग उनके साथ काम करते हैं. उनकी कंपनी को सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता सहित अनेक सम्मान मिल चुके हैं. एक अरब डॉलर कारोबार का आंकड़ा छूनेवाली यह पहली साफ्टवेयर कंपनी रही है. नारायण मूर्ति की तारीफ अमेरिका के राष्ट्रपति सहित अनेक दिग्गज कर चुके हैं.देश - विदेश में अनेक सम्मान पा चुके नारायण मूर्ति पहले पद्मश्री और बाद में पद्मभूषण से नवाजे जा चुके हैं. दुनियाभर के आई टी क्षेत्र में भारत की छवि चमकानेवाले नारायण मूर्ति की सफलता के कुछ सूत्र :

अनुभव से सीखने का महत्त्व
आप कोई भी बात कैसे सीखते हैं? अपने खुद के अनुभव से या किसी और से? आप कहाँ से और किस से सीखते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है. महत्वपूर्ण यह है कि आपने क्या सीखा और कैसे सीखा. अगर आप अपनी नाकामयाबी से सीखते हैं तो यह आसान है. सफलता से शिक्षा लेना आसान नहीं होता क्योंकि हमारी हर सफलता हमारे कई पुराने फैसलों के पुष्टि करती है. अगर आपमें नया सीखने की कला है, जल्दी से नए विचार अपना लेते हैं और उसे काम में अपना लेते हैं तभी सफल हो सकते हैं.

परिवर्तन को स्वीकारें
हमें सफल होने के लिए नए बदलावों को स्वीकार करने की आदत होनी चाहिए. मैंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढाई के बाद किसी हायड्रो पॉवर प्लांट में नौकरी की कल्पना की थी. पढाई के दौरान एक वक्ता के भाषण ने मेरी जिन्दगी बदल दी जिन्होंने कंप्यूटर और आई टी क्षेत्र को भविष्य बताया था. मैंने मैसूर में इंजीनियरिंग की पढाई की. फिर आईआईटी कानपुर में पीजी किया. आईआईएम अहमदाबाद में चीफ सिस्टम्स प्रोग्रामर के नौकरी की. पेरिस में नौकरी की और पुणे में इन्फोसिस की स्थापना की. बंगलुरु में कंपनी का कारोबार बढाया. जो जगह जहाँ मुफीद लगे, वहीं काम में जुट जाओ.

संकट की घड़ी को समझें
कभी कभी संकट सौभाग्य नज़र आता है. ऐसे में धीरज ना खोएं. आपकी कामयाबी इस बात में भी छुपी है कि ऐसा वक्त आने पर आप कैसे अपनी प्रतिक्रिया देते हैं? इन्फोसिस की स्थापना १९८१ में हम सात लोगों ने की थी और १९९० में मेरे सभी साथी चाहते थे कि हम यह कंपनी बेच दें क्योंकि ९ साल की मेहनत के हमें दस लाख डॉलर मिल रहे थे. यह मेरे लिए सौभाग्य नहीं, संकट था. मैं इस कंपनी का भविष्य जानता था. तब मैंने और केवल मैंने अपने साथियों को संभाला था और इन्फोसिस को बेचने से रोका था.

संसाधनों से बड़ा होता है जज्बा

इन्फोसिस के भी 5 साल पहले नारायण मूर्ति ने आई टी में देशी ग्राहकों को ध्यान में रखकर सॉफ्ट्रानिक्स नाम की कंपनी खोली थी, जो बंद कर देनी पड़ी. 2 जुलाई 1981 को इन्फोसिस रजिस्टर्ड हुई लेकिन उनके पास कंप्यूटर तो दूर, टेलीफोन तक नहीं था. उन दिनों टेलीफोन के लिए लम्बी लाइन लगती थी. कंपनी शुरू करने के एक साल बाद उन्हें टेलीफोन और दो साल बाद कंप्यूटर उपलब्ध हो सका था. जब इन्फोसिस अपना आईपीओ लेकर आई तब भी उसे बाज़ार में अच्छा रेस्पांस नहीं मिला था. पहला इश्यु केवल एक रुपये के प्रीमियम पर यानी ग्यारह रुपये प्रति शेयर जारी हुआ था. मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधारों के बाद १९९३ में इन्फोसिस का शेयर ८६ रुपये के प्रीमियम पर बिका.

किसी एक के भरोसे मत रहो

1995 में इन्फोसिस के सामने एक बड़ा संकट पैदा हो गया था जब एक ऐसी विदेशी कंपनी ने उनकी सेवाओं का मोलभाव एकदम कम करने का फैसला किया. वह ग्राहक इन्फोसिस का करीब 25 प्रतिशत बिजनेस देता था. उसकी शर्तें मानना कठिन था क्योंकि जिस कीमत पर वह सेवा चाहता था, वह बहुत ही कम थी और उस ग्राहक को खोने का सीधा मतलब था, अपना एक चौथाई बिजनेस खो देना. तभी तय किया गया कि बात चाहे टेक्नॉलॉजी की हो या अप्लीकेशन एरिया की, किसी भी देश की हो या एम्प्लाई की, कभी भी किसी एक बड़े ग्राहक पर निर्भर कभी भी मत रहो. आपका कामकाज इतना फैला हो कि कोई भी आप को आदेश ना दे सके.

आप केवल कस्टोडियन हैं
जो भी सम्पदा आपके पास है वह केवल आपकी देखरेख के लिए हैं. आप उसके अभिरक्षक हैं. वह भी अस्थायी तौर पर. बस. यह ना मानें कि वह सारी सम्पदा केवल आप और आप ही भोगेंगे. किसी भी सम्पदा का असली आनंद आप तभी उठा सकते हैं जब उसका उपभोग पूरा समाज करे.यदि आपने बहुत दौलत कम भी ली है और उसका मज़ा लेना चाहते हैं तो उसे किसी के साथ शेयर करे. ये लोग आपके कर्मचारी, शेयर होल्डर, समाज के दूसरे लोग -- कोई भी हो सकते हैं. यही हमारा धर्म और दर्शन भी है.

कुर्सी से ना चिपके रहें

साठ साल के होते ही नारायण मूर्ति ने अपनी कंपनी के चेयरमैन का पद छोड़ दिया और नॉन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बन गए. आम तौर पर कर्मचारियों को तो साठ साल में रिटायर कर दिया जाता है लेकिन डायरेक्टर अपने पद पर डटे रहते हैं. नारायण मूर्ति ने सभी को यह सन्देश दिया कि अगर किसी भी कंपनी को लगातार आगे बढ़ाना है तो उसमें नए खून की निर्णायक भूमिका रहनी चाहिए. नए खून में ही नयी बातों को स्वीकार करने की हिम्मत होती है और नए आइडियाज़ अपनाने में युवाओं को कोई हिचक नहीं होती.

मंजिल से ज्यादा मज़ा सफ़र में
जीवन में कोई भी लक्ष्य पा लेने में बहुत मज़ा आता है. हमें संतोष मिलता है कि हमने यह लक्ष्य प्राप्त कर लिया. लेकिन जीवन जीना हो तो उसका असली मज़ा सफ़र जारे रखने में है. कभी भी जीवन में संतुष्ट होकर ना बैठ जाएँ कि बस, बहुत हो चुका. जब आप एक मैच जीत जाते हैं तो अगले मैच की तैयारी शुरू कर देते हैं. कोई भी मैच जीतने की अपनी खुशी होती है और खेलने का अपना मज़ा है. सागर में चलते रहना और खेल में खेलते रहना बहुत मजेदार होता है.

प्रकाश हिन्दुस्तानी


हिन्दुस्तान
8 मई 2011