Monday, January 27, 2014

दोमुंहेपन का है यह दौर

वीकेंड पोस्ट के 25 जनवरी 2014  के अंक में  मेरा कॉलम




      ये दौर दोमुंहे होने का है।  सच्चे आदमी को  कोई स्वीकार ही नहीं कर पाता।  ऐसा क्यों हो गया कि बगैर नक़ाब के आप को दूसरे लोग पसंद ही नहीं  कर पाते। घर में बीवी से भी सच कह दो तो वह बुरा मान लेती  है।  बच्चे भी। इसके बावजूद  कभी-कभी  ऐसा लगता है कि दुनिया अचानक प्रेममय हो गयी है,  तभी तो  'सॉरी' और थैंक्स'  की तरह ही 'लव यू' जैसे शब्द भी कॉमन हो गए हैं।  जैसे सॉरी बोलते वक़्त कई लोगों के चहरे पर आप साफ़ साफ़ पढ़ सकते हैं --''अबे साले, मैं शरीफ नज़र आना चाहता   हूँ, इसलिए बोल रहा  हूँ; वरना काहे का सॉरी-वारी?'' अथवा --''ले कह रहा हूँ सॉरी, अब भेजा  मत खा '' .  यही हाल 'थैंक्स' का  है, लोग  कंप्यूटर की तरह 'थैंक्स' बोल देते  हैं।  ''थैंक्स बोल दिया ना,  अब क्या जान लेगा बे?''  या फिर थैंक्स बोलते ही हिसाब हो गया बराबर! वे  कहाँ गए  सॉरी या थैंक्स अपनी जुबान से  नहीं बोलता था, लेकिन अपनी आँखों या मुस्कान से ये शब्द बोल देता था। आजकल जिसे देखो, 'लव यू' बोल रहा है। आम जनजीवन   में भी और राजनीति में भी।

      राजनीति में तो इसका चरम देखने को मिलता  है। आज़ादी के बाद का  वह दौर  याद कीजिए -- कॉंग्रेस के एक नेता को  अधिकांश  नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल को प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में थे, पंडित जवाहरलाल  नेहरू को नहीं। लेकिन गांधीजी चाहते थे, नेहरू प्रधानमंत्री बनें।  गांधीजी ने कॉंग्रेस के नेताओं से बात करने  के बजाए वल्लभ भाई पटेल को बुलाया और कहा --''सरदार, जवाहर को प्रधानमंत्री बन जाने दो क्योंकि अगर जवाहर प्रधानमंत्री नहीं बना तो उसका दिल टूट जाएगा। '' …और इस तरह नेहरू प्रधानमंत्री बन गए। अब आप ऐसी बात  की कल्पना भी नहीं कर सकते। अब तो  ग्राम पंचायत के चुनाव में पंच बनाने तक के मुद्दे पर तलवारें खिंच जाती हैं।  

     राजनीति में लोग अकसर नैतिकता और सिद्धांत की बात करते हैं, लेकिन थोड़े ही वक़्त में उनकी सच्चाई सामने आ जाती है। अब आप नरेन्द्र मोदी को ही ले लीजिए।   नरेन्द्र मोदी कह रहे हम लालकृष्ण आडवाणी जी के सपने को   साकार करेंगे।  भाई, आडवाणी जी का पहला  सपना तो प्रधानमंत्री बनना है और आप बीच में घुस गए 'पीएम इन वेटिंग'  बनकर। 'पीएम इन वेटिंग' मुहावर ही गढ़ा गया था आडवाणी जी के लिए।   अब अगर  एनडीए को बहुमत मिल जाए तो क्या आप आडवाणी जी का सपना साकार होने देंगे ? 

    आप सड़क से गुजर रहे हों और कोई भिखारी कटोरा लेकर खड़ा हो और आप उस कटोरे में एक दो रुपये का सिक्का दाल दें।  अब वह भिखारी यह कहता फिरे कि उसने आपसे कोई भीख नहीं मांगी  थी, आपने ही उसके कटोरे में सिक्का डाल दिया था और फिर वह कहे कि आपको सिक्का डालने के लिए पछताना पड़ेगा।  अब आप क्या महसूस करेंगे और क्या उस खिखरी से बदला लेने जायेंगे? इस बात को राजनीति में यों देखिये कि अब केजरीवाल कह रहे हैं कि हमने कॉंग्रेस से कोई सहयोग नहीं माँगा था। आपने दिल्ली के उप राज्यपाल को क्यों नहीं लिखकर दे दिया कि हमें कॉंग्रेस की मदद नहीं चाहिए। मुख्यमंत्री बनने के लिए रायशुमारी की नोटंकी करनेवाले केजरीवाल को क्या यह नहीं मालूम कि लोगों ने उनकी पार्टी को बहुमत नहीं दिया था और क्या लोगों का वोट रायशुमारी नहीं?

     राहुल गांधी फरमा रहे हैं कि हमारी पार्टी  संविधान के अनुसार चलती है और अगर यूपीए को बहुमत मिला तो सांसद मिलकर ही नेता का चुनाव करेंगे। कितने लोगों को इस बात पर यकीन होगा ? शायद किसी को भी नहीं। सीधे सीधे क्यों नहीं कह देते कि सम्भावना नहीं नज़र आ रही, इसलिए अभी यह कह रहे हैं, सम्भावना बहते ही गद्दी हड़प लेंगे। 

      भारतीय राजनीति में दोमुंहेपन का यह दौर चरम पर है। अधिकांश क्षेत्रीय पार्टियां अवसरवादी हैं और चिकने लोटे की तरह वे कभी यूपीए तो कभी एनडीए की तरफ हो जाती हैं।  लोकसभा चुनाव में शायद इस बार सबसे घटिया नेताओं से हमारा सामना होगा। 

--प्रकाश हिन्दुस्तानी  
(वीकेंड पोस्ट के 25 जनवरी 2014  के अंक में  मेरा कॉलम)


Monday, January 20, 2014

ऐसे बन जाइए आप भी प्रगतिशील !

वीकेंड पोस्ट के 18 जनवरी 2014  के अंक में  मेरा कॉलम




(जनहित में जारी )
आज बाजार में एक अनोखा पार्लर देखा। प्रोग्रेसिव पार्लर, लिखा था -हमारे यहां आपको प्रोग्रेसिव यानी प्रगतिशील बनाया जाता है।  प्रगतिशील कहलाने के सर्टिफिकेट मिलते हैं।  ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती और कुछ लोग बन जाते हैं प्रगतिशील। जैसे ब्यूटी पार्लर में जाकर स्त्रियां हसीन और पुरुष जवांमर्द होने का भ्रम पाल लेते हैं, वैसे ही ये प्रगतिशील लोग पत्रकारिता में, राजनीति में, धर्म में घुस गए हैं और न केवल अपना पार्लर चला रहे हैं, बल्कि उनसे असहमत लोगों के खिलाफ फतवा भी जारी कर देते हैं। नैतिकता का ठेका इन्हीं के पास है। 
 इन पार्लरवालों के पास तरह-तरह के क्रीम, लोशन, तेल, पावडर और न जाने कैसी  जड़ी बूटियां हैं कि पूछो मत। मैंने अपने  भेदिये से कुछ फार्मूले पता किए हैं। जनहित में यहां उजागर कर रहा हूं।
- प्रगतिशील कहलाने की पहली सीढ़ी है बीड़ी। 'बीड़ी जलइले जिगर से पिया, जिगर में बड़ी आग हैÓ जैसा कालजयी गाना यों ही नहीं बना।  आप धूम्रपान करते हो या नहीं, बीड़ी पीना शुरू कर दीजिए। बीड़ी किसी भी इनसान को तत्काल प्रभाव से प्रोग्रेसिव बना देती है। दिल्ली में, जेएनयू में यह आजमाया हुआ फार्मूला है। अनेक बड़े लोग भी बीड़ी पीते हैं, जैसे जी-टीवी के सुभाष चंद्राजी। 
-  अगर आप समलैंगिकता के विरोधी भी हों, तो भी इसके समर्थन में बयान दीजिए। इसे व्यक्तिगत आजादी से जोडि़ए। गे सेक्स को प्रगतिशीलता का प्रतीक और पैमाना कहिए। इसके पक्ष में कुतर्क कीजिए। दुनियाभर के कानूनों का जिक्र कर डालिए। गे सेक्स के विरोध में बोलने वालों को धर्मांध, दकियानूस, पिछड़ा घोषित कीजिए।
- हमेशा बहुसंख्यक वर्ग को गालियां दीजिए, कोसिए। हिन्दू, बहुसंख्यक होने के कारण गालियां खाने के स्वाभाविक हकदार हैं ही। उन्हें हमेशा गाली ही दें, पुरुषों को भी  जल्लाद-धूर्त-शोषक कहें, भले आप पुरुष हों।  याद रखें आपको प्रगतिशील कहलाना है तो इसके लिए हिंदुओं को हमेशा कोसना अनिवार्य है।  औरतों की तरफदारी में मर्दों को गाली देना पवित्र माना गया है। 
- हमेशा भारतीय सभ्यता और संस्कृति की बखिया उधेड़ते रहें। भारत से खराब देश विश्व में कोई नहीं। सवर्णों ने, ब्राह्मणों ने कितने भी बलिदान दिए हों, उन्हें तो शोषक ही कहना पड़ेगा। याद रखिए कि अतीत में इस वर्ग का कोई भी ऐसा आदमी समाजसेवक नहीं हुआ, शोषक ही हुआ, उसने कोई त्याग नहीं किया। विप्र समाज का अपमान कीजिए। धर्म की हर बात को घटिया कहना जरूरी है प्रगतिशील कहने के लिए।  
-   एसएमएस सर्वे को हमेशा सही करार दीजिए, बाकी सभी को खाप पंचायत कहिए।  टीवी न्यूज चैनल पंचायत की तारीफ कीजिए। अलग-अलग समाजों के संगठन का विरोध यह कहकर कीजिए कि ये लोग समाज को बांट रहे हैं। 
- एनिमल वेलफेयर पर भाषण दीजिए और गौवंश की हत्या को विकास का आवश्यक अंग कहिए। सूअर के मांस भक्षण को धर्म से जोडि़ए। रावण की जयजयकार कीजिए। असुरों के सुर से सुर मिलाइए।  बुजुर्गों की अनसुनी करते रहिए, अनुभवी को पिछड़ा और युवा को हमेशा महान। 
-  होली पर पानी बचाने की बात कीजिए, दीपावली पर बिना शोर के त्योहार मनाने का दावा कीजिए। नए साल के स्वागत का जश्न फूहड़ तरीके से, अश्लील नाच- गानों के साथ, शराब पीकर, मुर्गा खाकर मनाइए। पवित्र नवरात्र को व्यभिचार पर्व कहेंगे तो ज्यादा प्रगतिशील बन जाएंगे। 
- अगर आप महिला हैं तो लिव इन रिलेशन में रहिए, शादी हो गई हो तो एकाध तलाक प्रगतिशील बना देगा।  अगर आप पुरुष हैं तो छुट्टे सांड की तरह रहिए। आजाद, बेखौफ और अराजक। जिम्मेदारी से दूर। बातों के सूरमा! लेकिन अगर आप पुरुष या महिला दोनों नहीं हैं, तब तो आप सच्चे प्रगतिशील हुए। तभी तो एक 'टीवी खाप शोÓ में एक महिला ने कहा था --'जब मुझे पता चला कि मेरा बेटा (?) वैसा है तो मुझे उस पर गर्व हुआ।Ó
धन्य हैं ये प्रगतिशील लोग। 
-- प्रकाश हिन्दुस्तानी 

(वीकेंड पोस्ट के 18 जनवरी 2014  के अंक में  मेरा कॉलम)


Saturday, January 11, 2014

भ्रष्टाचार प्रकोष्ठ के नेता का इंटरव्यू

वीकेंड पोस्ट के11 जनवरी 2014  के अंक में  मेरा कॉलम

 भ्रष्टाचार प्रकोष्ठ के नेता का इंटरव्यू 


( महान पार्टी के नेता के इंटरव्यू का ट्रांसस्क्रिप्ट  )

मैं : सर, मैं भ्रष्टाचार लाइव चैनल से हूँ।  आपके कुछ बाइट्स चाहिए।

नेता  : वो तो ठीक है, पर ये कौन सा चैनल है ?

मैं : भ्रष्टाचार लाइव !  अभी अभी चालू हुआ  है सर। 

नेता : ये क्या नाम है चैनल का ?

मैं : सर, यह सच्चा चैनल है।  देश और प्रदेश में हर तरह के चैनल हैं ना;   न्यूज़, फ़िल्म, संगीत, धर्म, युवा, कार्टून, खेल, फैशन, बिजनेस  चैनल जैसा  ही यह भ्रष्टाचार लाइव चैनल है!

नेता : ये चैनल नेशनल  है या रीजनल ?

मैं ; सर, मैं तो नेशनल चैनल से हूँ , हमारे रीजनल चैनल भी हैं भ्रष्टाचार लाइव एम पी -सीजी,  भ्रष्टाचार लाइव यूपी-उत्तराखंड,  भ्रष्टाचार लाइव दिल्ली एन सी आर, भ्रष्टाचार लाइव राजस्थान,  भ्रष्टाचार लाइव बिहार-झारखंड … 

नेता : बहुत अच्छे ! पार्टी ने मुझे प्रकोष्ठ  का प्रमुख बनाया है और आप भ्रष्टाचार लाइव के ब्यूरो चीफ हैं।  मिलते रहा करो। 

मैं : सर, आपके बाइट्स चाहिए दो तीन मुद्दों  पर।  

नेता  : क्यों मुझे मरवाएगा क्या? भाग यहाँ से..... 

मैं : मैं ऐसा कैसे सोच सकता हूँ सर? दादा, आप तो माई बाप हो, आप की दया के किस्से तो सब जानते हैं।  आप कितने दयालु हो यह किसी से छुपा है क्या ? मैं तो क्या मेरा मालिक भी आपके गुणगान में लगा रहता है , हमारा चैनल आप का सेवक है.....सर, मेरी नौकरी चली जाएगी बाइट नहीं मिली तो ....  

नेता : ठीक है, ठीक है … चल पूछ.… 

मैं :  थैंक यू  सर, ( माइक अड़ाने के बाद) भ्रष्टाचार प्रकोष्ठ का नेता बनकर कैसा लग रहा है ?

नेता  :  अबे हट, तेरे कू  तो येई नई पता के मैं भ्रष्टाचार प्रकोष्ठ का नहीं, भ्रष्टाचार उन्मूलन प्रकोष्ठ का प्रमुख हूँ। हट....  हट....  हट....  हट.... 

मैं :  सर, मेरा मतलब ये ही था ---- (माइक को नेता के मुंह के और पास लगाते हुए) आप भ्रष्टाचार के लिए क्या करनेवाले हैं ?

नेता : जैसा पार्टी के माननीय अध्यक्ष ने कहा है, हम किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को सहन नहीं करने वाले। एक-एक को चुन-चुन कर जेल भिजवाकर रहेंगे। हमारी नीति साफ़ है। हम साफ़ सरकार देंगे। हमारी सरकार के रहते किसी का भी हक़ मारा नहीं जा सकता। 

मैं : सर-सर. सर, एक और बाइट प्लीज़ ! जबसे आप इस प्रकोष्ठ के प्रमुख बने हैं पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार रुक गया लगता है , आपके राष्ट्रीय नेता भी यह बात कह चुके हैं, अब क्या आप अपने अनुभव का लाभ दूसरे राज्यों को भी देंगे?

नेता : ये सवाल बड़ा ही इंटेलेक्चुअल है। बिल्कुल बिल्कुल सही।  पार्टी जो भी आदेश देगी सेवा के लिए,  करेंगे। 

मैं : सर, एक और सवाल,  आपको बहुत बहुत बधाई सर, कि आप एक महा आयोजन करवा रहे हैं, जिसमें बीस लाख लोगों को इकठ्ठा किया जाएगा। इसका उद्देश्य क्या है ?


नेता : हमारी नीतियों के समर्थन में बीस-तीस लाख लोग आ रहे हैं -- यही बताने कि ईमानदारी की मिसाल हमने रखी है, वह सही है। 

मैं : ( माइक हटा, केबल  समेटते हुए)  सर, एक काम करा दो ना, मेरा एक कजिन है  ई  ई,  आर पी सिंह दरबार,  कोई मलाईदार पोस्टिंग मिल जाती तो। … 

नेता  ; अबे तू ठहरा पंडित तो तेरा भाई सिंह कैसे हो गया रे ? मेरे को चूना लगाएगा?

मैं : सर भाई नहीं है पर भाई जैसा है ,  सेवा शुल्क चुका  देगा 

नेता : ये बोल.  करा दूँगा, सेवा शुल्क ! हें हें हें, अच्छा वर्ड बनाया है रे। 

मैं  : सर गरीबों की तरफ से एक याचना है।  नए शहर में बड़े चौक पर गरीबों की गुमटियां न हटाई जाए सर ,रोजी रोटी का सवाल है बेचारों का,  बेचारे गरीब कहाँ जाएंगे  …?

नेता  : तेरी गुमटी है, कौन सी ?

मैं : बड़े भैया की है जो प्रॉपर्टी का काम करते हैं....सब उनकी ही है बीस-पच्चीस होगी सर.

नेता : ठीक है, उनको बोलो रैली में, भंडारे में सबको आना चाहिए पार्टी के साथ।  गरीबों की पार्टी है, लगना  भी चाहिए।

मैं : थैंक्यू सर, थैंक्यू  सर , एक और जरा सी बात है …हमारे सम्पादक जी ने धन्यवाद कहा है और एक और प्रार्थना की है कि उनके जो भाई पुलिस में ए एस पी हैं न,  उनको ट्रांसपोर्ट विभाग  में ट्रांसफर चाहिए सर  …। 

नेता  ; मैं एयरपोर्ट जा रहा हूँ, तू भी गाड़ी में बैठ जा, रस्ते में बात कर लेंगे।  तू तो अपना ही आदमी है, मिलकर काम करेंगे तो दोनों आगे तक जायेंगे। 

मैंने माइक कैमरामैन को दिया और कहा तू चल, मैं नेताजी के साथ जा रहा हूँ। कैसेट अपने पास ही रखना, नेता जी काम करेंगे तो ही खबर चलवाएंगे, वरना ……। 

--प्रकाश हिन्दुस्तानी 
(वीकेंड पोस्ट के11 जनवरी 2014  के अंक में  मेरा कॉलम)





Monday, January 06, 2014

चला गया 2013 !

वीकेंड पोस्ट के 4 जनवरी 2014  के अंक में  मेरा कॉलम


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2013 में यह हुआ :
  --सलमान और राहुल गांधी  की शादी नहीं हो सकी।  बेचारे दोनों  चिरकुंवारे।  काम-धंधे के मारे। पकिस्तान की वीना मलिक भारतीय, ब्रिटिश, आस्ट्रेलियाई आदि के प्रेमियों की वेटिंग  लिस्ट अधूरी छोड़ गई और दुबईवाले की हो गई। बेचारी पूनम पाण्डे,  शर्लिन चोपड़ा और पायल रोहतगी का यहाँ-वहाँ डोरे डालना (या  बांटना ?) कोई काम नहीं आ पाया। 
  --राहुल के प्रधानमंत्री पद की घोषणा नहीं हो सकी।  मोदी की हो गई।  चैनलवालों ने तो केजरीवाल, करात, मायावती, मुलायम, जयललिता और न जाने किस किस को प्रधानमंत्री का दावेदार बता डाला। अभी और भी कई भावी प्रधानमंत्री आयेंगे। 
  --मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापसी दस साल बाद भी नहीं हो सकी।  पार्ट टाइम पॉलिटिशंस पिछड़ गए बेचारे। अब वास्तव में काम-धंधा  खोजना होगा।  छतीसगढ़ में भी यही हुआ। शीला  आंटी ने बहुत काम किया था, लेकिन लोगों ने फिर भी खिलाफ में हवा बना दी और उनका फिर सी एम बनने का सपना धरा रह गय़ा।  डॉक्टर हर्षवर्धन 32  विधायकों के टॉनिक के   बावजूद मरीज़ हर्षवर्धन बन गए।  राजस्थान में लोगों ने रॉयल फेमिली की ही नेता को फिर चुना। 
  --तरुण  तेजपाल, आसाराम और नारायण साईं की जमानत नहीं हो सकी। लोग कि बाबा लोग अति करने  में मारे गए। अहंकार भी था, जो ले डूबा।  तेजपाल का तेज जाता रहा।  उसे मोनिका लेविंस्की का रोल करना भारी  पड़ा और उससे भी भारी  पड़ा माफ़ी मांगना। 
  -- सचिन  ने आखिरकार रिटायर होकर बड़ी राहत दी।  भारत रत्न- राज्यसभा सदस्य और न जाने क्या क्या हो गए और देशवासियों पर महान उपकार किया। कुछ लोगों का कहना है कि अब अभय कुरवीला और वेंकटेश प्रसाद को भी सचिन की राह पकड़ लेनी चाहिए। 
  --केजरीवाल शासन-प्रशासन कैसा भी चलायें --टीवी चैनलों पर एंकरों से भी ज्यादा वक़्त छाये रहे हैं और आगे भी छाये रहेंगे। वे टीवी चैनलों के लिए कपिल शर्मा के 'अवतार' हैं जिनके बिना बुलेटिन अधूरा रहता है।  केजरीवाल  जानते हैं कि दिल्ली की आई इस  ठण्ड में कोई परिवार 700 लीटर पानी रोज मांगेगा नहीं। ऐसी ठण्ड में लोग नहाना तो क्या, धोना भी नहीं चाहते!
  --संजय दत्त  खातिर जैल यात्रा पर हैं, पर वे जैसे पेरोल लेते हैं, वैसे तो भैनजी बच्चों को पानी पेशाब की छुट्टी भी नहीं देती। मान्यता दत्त की मान्यता है कि दुल्हन वही  जो  पेरोल दिलवाये। 
  --धूम-3 भी आ गई।  लोगों ने झेली।  आशा है यशराज का बैनर अब देश पर कृपा करेगा। अगर उदय चोपड़ा यश चोपड़ा का बेटा नहीं होता तो शायद अपने पैसे से ऐसी महँगी फ़िल्म में काम करना तो दूर, धूम-3 का महंगा टिकिट भी नहीं खरीद पाता। अब देश उदय की तरफ आशा भरी निगाहों से देख रहा है क्योंकि उन्होंने भी संन्यास की घोषणा की है।  
  --बीता साल दिल टूटने का भी रहा।  अण्णा का केजरीवाल से वैसे ही दिल टूटा,  ह्रतिक रोशन का सुजैन से।  जिआ खान ने आत्महत्या कर ली। नॉएडा के तलवार दंपत्ति को मिला। 
 --दिल टूट गया जब दौडियाकलां में खुदाई  हुई, कुछ मिला नहीं। गूगल पर सबसे ज्यादा  सर्च सनी लिओनी की हुई।   भारत महान है क्योंकि यहाँ क़ानून अंधा है, पी एम गूंगा, आसाराम संत, वाड्रा किसान। 
--प्रकाश हिन्दुस्तानी 
(वीकेंड पोस्ट के 4 जनवरी 2014  के अंक में  मेरा कॉलम)