Sunday, January 09, 2011


आतंक के खिलाफ खड़ा एक सिंह


भले ही उन्होंने अपने नाम के मध्य से 'सिंह' हटा लिया हो, लेकिन वे हैं सिंह ही, तभी तो गत 13 नवम्बर को यूएस में ह्यूस्टन एअरपोर्ट पर जब उन्हें तलाशी के लिए रोका गया तो उन्होंने सिंह की तरह हुंकार कर कहा -- कोई भी मेरी पगड़ी को छूने की जुर्रत मत करना. उनकी गर्जना का असर हुआ और अमेरिकी आव्रजन अधिकारी ठिठके. तभी उन्होंने आव्रजन के नए नियम उन अफसरान को बताये जो उन्हें नहीं मालूम थे. वरिष्ठ अफसरों से इसकी पुष्टि कराने तक उन्हें बीस- पच्चीस मिनिट वहां रुकना पड़ा, लेकिन बात का हल्ला इतना मचा कि अमेरिकी विदेश विभाग को उनसे माफी माँगनी पड़ी. जब ये घटना घटी तब वे संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि थे. अब उन्हें ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की आतंक निरोधक समिति का प्रमुख बनाया गया है. श्री पुरी का कहना है कि सुरक्षा परिषद् में आतंक विरोधी फैसलों का असर जल्दी ही सामने आने लगेगा.

कूटनीतिक फैसलों का असर आने में वक़्त लगता है. यों भी भारत 19 साल बाद सुरक्षा परिषद् में हाजिर हो पाया है और वहां 'राखी का इन्साफ' जैसा काम नहीं होता. हरप्रीत पुरी को भरोसा है कि इस वर्ष के अंत या अगले वर्ष की शुरूआत तक सुरक्षा परिषद् में आतंकवाद के खिलाफ कोई बड़ी कार्यवाही का आरम्भ हो सकता है. संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश आतंकवाद के खिलाफ एक्शन प्लान पर काम शुरू कर सकते हैं. अल कायदा और तालिबान के खिलाफ कोई अभियान चलाया जा सकता है और आतंकियों की फंडिंग रोकने का कोशिश के साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत को स्थायी सदस्यता भी मिल सकती है. श्री पुरी की प्रमुख भूमिकाओं में प्रमुख है सुरक्षा परिषद् को और भी मज़बूत बनाना और भारतीय उपमहाद्वीप में आतंक को रोकना. अभी तो परिषद् के तीन चौथाई एजेंडे पर अफ्रीकी देशों के मुद्दे ही भरे रहते हैं.

हरप्रीत पुरी 1974 की बैच के आईएफएस हैं. वे कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं. ब्राजील में भारतीय राजदूत रहते हुए उन्होंने दोनों देशों के संबंधों को बेहतर बनाया, जिसका नतीजा है कि भारत - ब्राजील कारोबार बढ़ा. वहां हो रहे राजनैतिक बदलावों के बाद भी उन्होंने संबंधों पर आंच नहीं आने दी और भारतीय हितों की रक्षा की. ब्राजील से रिश्तों की महत्ता इसलिए भी है कि वह हमारे परमाणु संसाधनों को जुटाने में मददगार है. कूटनीति में कोई भी स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता, स्थायी होता है हमारे अपने देश का हित ! गत अप्रेल में ही उन्होंने निरूपम सेन की जगह यूएन में स्थाई भारतीय प्रतिनिधि का पद संभाला था. वे विदेश मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव भी रह चुके हैं.

हरप्रीत पुरी भी मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया की तरह अर्थशास्त्र के जानकार हैं और विश्व व्यापार संगठन के साथ हुए समझौतों में उन्होंने महती भूमिका निभाई थी. आप समझौते से असहमत हो सकते हैं लेकिन वैश्विक दबावों के सामने बेहतर से बेहतर कार्य की ही उम्मीद की जा सकती है. अब उनकी भूमिका आतंकवाद से निपटने की रणनीति बनने की है और वह रणनीति केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए होगी. वे एक कूटनीतिज्ञ हैं और जब राजनीतिक हदें ख़त्म होती हैं तक कूटनीति आगे बढ़ती है.
--प्रकाश हिन्दुस्तानी

दैनिक हिन्दुस्तान
08 जनवरी 2010

1 comment:

नया सवेरा said...

... prabhaavashaalee post !!