Wednesday, April 29, 2015

भारतीय नहीं, लेकिन हिन्दी की ताकत

न्यू जर्सी के अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में ऐसे अनेक हिन्दी सेवियों से संपर्क हुआ, जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं है। इनमें से कोई बेल्जियम में जन्मा, तो कोई अमेरिका में। लेकिन हिन्दी के प्रति उनका अनुराग उल्लेखनीय महसूस हुआ। इन अनूठे हिन्दी सेवियों से मिलकर वास्तव में खुशी और गर्व का अहसास हुआ, क्योंकि इनमें से कई तो ऐसे थे जो न कभी भारत आए और न ही उनका पेशा हिन्दी से जुड़ा था।
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डॉ. क्रिस्टी मेरिल भारतीय दलित साहित्य की शोधकर्ता और अनुवादक हैं. उन्होंने प्रेमचंद और चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी 'के साहित्य का शाब्दिक और मर्म का अनुवाद किया हैं. वैसे तो वे मिशिगन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं लेकिन उनकी हिन्दी और भारतीय समाज के प्रति समझ हमारे ही कई प्राध्यापकों से बेहतर है.
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अशेर घर्टनेर हिन्दी के अध्येता हैं. जयपुर और दिल्ली में हिन्दी की पढाई कर चुके है. रटगर्स विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र के निदेशक, लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के स. प्राध्यापक रह चुके है. अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के आयोजन में खास सहयोगी रहे। आजकल पर्यावरण पर काम कर रहे हैं. दिल्ली की झोपड़पट्टी वालों के संघर्ष पर शोध कर चुके हैं और अब कुछ ही महीने में इनकी किताब प्रकाशित होनेवाली है.
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बेल्जियम मूल की डॉ. गेब्रिएला निक इलिएवा से मिलते ही दिल बाग़ बाग़ हो जाता है. वे वेदों में महिलाओं की स्थिति पर पीएच-डी कर चुकी हैं और हिन्दी के विद्यार्थी उनके दीवाने हैं. जादूगरनी जैसी हैं, न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय में मध्य एशिया और इस्लाम विषयक अध्ययन के विभाग में हिन्दी और उर्दू कार्यक्रमों की संयोजिका है. शानदार हिन्दी बोलती हैं और गज़ब के उत्साह से हमेशा सराबोर रहती हैं.
g5रटगर्स विश्वविद्यालय की एसोसियेट डीन डॉ. मैरी करन का कहना था कि हम अंग्रेजी माध्यम से हिन्दी पढ़ाते हैं. हिन्दी की पढ़ाई एक निश्चित फ्रेमवर्क में ही करनी होती है. कक्षाओं का प्रबंधन, योजनाएं और शिक्षकों का प्रशिक्षण हमारी प्राथमिकताओं में है.
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ये सज्जन हैं ब्रैडली रुबिन्टन. 100 डॉलर खर्च करके हिन्दी पर हो रही चर्चा सुनने वास्ते पंजीकरण करानेवाले ये सज्जन न्यू यॉर्क क्षेत्र के 6 हवाई अड्डों के प्रभारी अधिकारी हैं.
उन्होंने न्यू यॉर्क बुलाया है!

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