Thursday, August 14, 2014

लोकसभा चुनाव के बाद मोदी की जीत पर पहली किताब


सभी मित्रों और हितैषियों का हार्दिक आभार.
सभी मित्रों और हितैषियों का हार्दिक आभार.
सभी मित्रों और हितैषियों का हार्दिक आभार.


 इस किताब को खरीदना चाहें तो कृपया यहाँ क्लिक करें :
http://www.infibeam.com/Books/narendra-modi-ek-tilism-auther-prakash-hindustani-hindi-prakash-hindustani/9788189495367.html


नरेन्द्र मोदी ने 26 मई 2014 को शपथ ली थी लेकिन यह किताब 25 मई 2014 को ही विमोचित होकर पाठकों के पास आ गई, शपथ के एक दिन पहले!

यह किताब रिकॉर्ड 5 दिन में लिखी गई और केवल 2 दिनों में मुद्रित हुई.
25 मई 2014 को इंदौर प्रेस क्लब में प्रकाश हिन्दुस्तानी की किताब 'चायवाले से प्रधानमंत्री - नरेन्द्र मोदी : एक तिलिस्म' का विमोचन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार  श्रवण गर्ग, इंदौर प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष व  पत्रकार कृष्णकुमार अष्ठाना और इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़ के डायरेक्टर डॉ पी. एन. मिश्र, प्रेस क्लब इंदौर के चैयरमैन प्रवीण खारीवाल, प्रेस क्लब के महासचिव अरविंद तिवारी, कार्यक्रम का संचालन करतीं श्रुति अग्रवाल और किताब के लेखक प्रकाश हिन्दुस्तानी .



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शीघ्र प्रकाश्य ........
जल्दी ही  गुजराती और मराठी में भी 




....मराठी में भी 



प्रकाश हिन्दुस्तानी की किताब 
'चायवाले से प्रधानमंत्री - नरेन्द्र मोदी : एक तिलिस्म' 
 मीडिया कवरेज 
The Times of India (26 may 2014)

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The Times of India (26 may 2014)

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Free press journal


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News Today (24 may 2014)

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www.webdunia.com 









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अग्निबाण (24 मई 2014)


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राजस्थान पत्रिका (25 मई 2014)


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आउटलुक 





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दुनिया इन दिनों






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'ब्रेकिंग बुक' मैंने नहीं, मित्रों ने गढ़ा है

प्रकाश हिन्दुस्तानी से कृष्णपाल सिंह जादौन की बातचीत

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिन्दुस्तानी इन दिनों नरेन्द्र मोदी पर लिखी एक किताब को लेकर चर्चा में है। यह किताब नरेन्द्र मोदी के चुनाव अभियान को लेकर लिखी गई है। दिलचस्प बात यह है कि इस किताब का विमोचन 25 मई 2014 को हो गया था, जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 26 मई को शपथ ग्रहण की थी। यह किताब नरेन्द्र मोदी के चुनाव अभियान को लेकर तो है ही उनकी चुनावी रणनीति और राजनीतिक पैतरेबाजी को लेकर भी थी। नरेन्द्र मोदी की ब्रांडिंग, मार्वेâटिंग और चुनावी व्यूह रचना को लेकर तुरत-फुरत में प्रस्तुुत यह किताब हाथों-हाथ ली गई।

 प्रस्तुत है प्रकाश हिन्दुस्तानी से कृष्णपाल सिंह जादौन की बातचीत:-

सवाल- आखिर नरेन्द्र मोदी पर किताब लाने की इतनी जल्दी क्यों थी?

जवाब- मैं दैनिक अखबार में चुनाव पर दैनिक कॉलम लिख रहा था। मुझे लग रहा था कि नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना बहुत मुश्किल है। अगर पूरी तरह जोड़-तोड़ की गई तो भी एनडीए किसी तरह बहुमत ला पाएगा। ऐसे में एनडीए के सहयोगी दलों के बीच टकराव की आशंका भी थी, लेकिन 16 मई को चुनाव के नतीजों ने पूरे देश को चौंका दिया। मेरे भी अनुमान गलत निकले। भाजपा और मोदी की एकतरफा जीत हुई। यह सब अप्रत्याशित था। मैं अवाक था। मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि मोदी ने आखिर क्या कमाल किया है, जो उन्हें इतनी सीटें मिली। एक मैनेजमेंट संस्थान के डायरेक्टर से बात होने पर उन्होंने कहा कि मोदी और भाजपा की जीत प्रबंधन के छात्रों के लिए तो एक केस स्टडी है ही, पत्रकारों के लिए भी एक केस स्टडी है। मैंने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए भाजपा और मोदी के अभियान की पुर्नसमीक्षा की, तो मुझे लगा कि इस पर एक किताब लिखी जानी चाहिए। प्रकाशक से बातचीत की, प्रकाशक ने मुद्रक से बातचीत की और बात बन गई। मेरी जिद थी कि अगर मोदी की जीत पर किताब बाजार लाई जाए तो इतनी जल्दी लाई जाए कि पाठकों की जिज्ञासा और बढ़े। मैंने प्रकाशक से अनुरोध किया कि क्या नरेन्द्र मोदी की शपथ के पहले किताब बाजार में पेश की जा सकती है। प्रकाशक ने कहा कि बेशक, अगर किताब प्रकाशन के फार्मेट में हमे मिल जाए तो हम 2 दिन में पुस्तक प्रकाशित कर सकते है। प्रकाशक ने यह भी कहा कि नरेन्द्र मोदी पर उनकी जानकारी के अनुसार 138 किताबें आ चुकी है और 100 से अधिक किताबें एक महीने में और बाजार में आ जाएंगी। ऐसे में पुस्तक को बाजार में लाने का टाइमिंग बहुत मायने रखता है। 5 दिन मेंं किताब लिखी गई और 2 दिन में उसकी छपाई संपन्न हो गई। 23 मई की रात तक किताब की छपाई और बाइडिंग का काम होता रहा और २४ मई की सुबह किताब की प्रति मेरे हाथ में थी। आनन-फानन में किताब को समीक्षार्थ समाचार पत्रों के कार्यालय भिजवाया गया। जिन्होंने उसे अच्छा प्रतिसाद दिया। 

सवाल- नरेन्द्र मोदी पर आई दर्जनों किताबों से आपकी किताब किस तरह अलग है?

जवाब- मेरी किताब नरेन्द्र मोदी की जीवनी नहीं है। न ही इसे सरकारी लाइब्रेरियों में थोक में बेचने के उद्देश्य से लिखा गया है। यह किताब नरेन्द्र मोदी का चुनावी अभियान और कामियाबी को लेकर लिखी गई है। मुझे लगता है कि देश में दो ही तरह के लोग है नरेन्द्र मोदी के समर्थक या उनके विरोधी। उन्हें नजरअंदाज कर सवेंâ, ऐसा कोई तीसरा वर्ग है ही नहीं।नरेन्द्र मोदी की जीवनी अनेक लेखकों ने लिखी है। उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल को लेकर भी अनेक किताबें है। नरेन्द्र मोदी की खुद की जिंदगी भारी उतार-चढ़ाव से भरी हुई है। जिससे वे खुद एक स्टोरी आइडिया है। उनके जीवन पर फिल्म भी बनाई जा सकती है। एक साधारण घर में पैदा हुआ व्यक्ति अपनी कुशलता, मेहनत और रणनीति के कारण राजनीति के शीर्ष पर पहुंचा। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण राजनैतिक पद तक पहुंचना किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसीलिए किताब का नाम दिया गया ‘चायवाले से प्रधानमंत्री : नरेन्द्र मोदी एक तिलिस्म’। किताब की भूमिका में यह बात स्पष्ट कर दी गई कि यह कोई नरेन्द्र मोदी की जीवनी नहीं है। यह नरेन्द्र मोदी के चुनाव अभियान को लेकर की गई छानबीन है, यह चुनाव के नतीजों की समीक्षा की विनम्र कोशिश है और भारतीय राजनीति में आए बदलाव का दस्तावेज है।
सवाल- आखिर इस जल्दबाजी की जरुरत क्या थी? इत्मीनान से और गहन अध्ययन करके किताब लिखी जा सकती थी।

जवाब- आजकल हर काम तेजी से होता है। फास्ट पूâड का जमाना है। लोग दुनियाभर की खबरें टीवी चैनलों पर लाइव देखना चाहते है। हाल यह है कि आजकल के अखबार खबरों का विश्लेषण कम और सूचनाएं ज्यादा देते है। इस आपाधापी में अखबार टेलीविजन बनना चाहते है। मैंने अखबार और टेलीविजन चैनल दोनों में काम किया है, इसलिए मुझे लगा कि अगर यहां त्वरित गति से काम किया जाए तो भीड़ से अलग किताब की पहचान बन सकती है। संयोग से प्रकाशक और मुद्रक साथ में थे और आनन-फानन में 116 पेज की किताब बाजार में आ गई। मजेदार बात यह रही कि 26 मई को नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 25 मई को ही इंदौर प्रेस क्लब में वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग, कृष्णकुमार अष्ठाना और मैनेजमेंट गुरु पीएन मिश्रा ने पुस्तक का लोकार्पण कर दिया। 25 मई के अखबारों में पुस्तक के विमोचन की खबर प्रमुखता से छपी। टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे अंग्रेजी के अखबार ने इस खबर को 3 कॉलम में सभी संस्करणों में छापा और अपनी वेबसाइट पर भी प्रमुख स्थान दिया। जिस कारण मुझे विश्व के कई कोनों से मित्रों, शुभचिंतकों और भाजपा नेताओं के फोन आना शुरु हो गए। आम धारणा थी कि किताब नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की कहानी है या उनकी जीवनी है, लेकिन किताब देखते ही लोगों के भ्रम दूर हो गए। 

सवाल- इस किताब में आपने क्या-क्या शामिल किया है?

जवाब- इस किताब में नरेन्द्र मोदी की निजी जिंदगी के बारे में कोई बात नहीं कहीं गई है। यह कहा जा सकता है कि यह किताब नरेन्द्र मोदी के चुनाव अभियान पर लिखी गई किताब है। जिसमें 21 मई 2014 तक की घटनाएं शामिल है। चुनाव जितने के बाद नरेन्द्र मोदी का पहला भाषण भी इसमें है और 20 मई 2014 को भाजपा संसदीय दल का नेता चुने जाने पर दिए गए भाषण का अंश भी है। संसद भवन की सीढ़ियों पर मत्था टेकते नरेन्द्र मोदी अंतिम आमुख पर है। दिलचस्प बात यह रही कि इतनी तेज गति से कई साप्ताहिक पत्रिकाएं भी नरेन्द्र मोदी के अभियान को कवर नहीं कर पाई, जो हमने कर दिखाया।

सवाल- 116 पन्नों में क्या-क्या आपने दिया?

जवाब- नरेन्द्र मोदी ने यह चुनाव युद्ध की तरह लड़ा। उन्हें बता था यूपी और बिहार को फतह करें बिना प्रधानमंत्री की गद्दी नहीं पाई जा सकती। इस किताब में नरेन्द्र मोदी की ब्रांडिंग, उनकी मार्वेâटिंग, स्टोरी टेलिंग का अंदाज, चुनाव अभियान की रोचक और दिलचस्प गतिविधियां युवा वोटरों पर विशेष ध्यान जैसी बातें शामिल है। मीडिया मैनेजमेंट पर नरेन्द्र मोदी ने विशेष ध्यान दिया। चैनलों को मैनेज किया गया और प्रिंट मीडिया में माहौल बनाया गया। सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग नरेन्द्र मोदी बखूबी जानते थे, जो उन्होंने कुशलता से उपयोग में लाकर मतदाताओं को रिझा दिया। उन्हें समाचार चैनलों की आपसी टीआरपी की प्रतिस्पर्धा का अच्छा ज्ञान है और उन्होंने समाचार चैनलों पर इस तरह इंटरव्यू दिए कि हर दिन वे ही बने रहे। नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान को बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से संचालित किया। सबसे पहले उन्होंने भारतीय जनता पार्टी में अपनी सुप्रीमेसी कायम की। बड़े नेताओं को दरकिनार किया। नए-नए नारे गढ़े। गुजरात के सीईओ से देश के पीएम तक का उनका सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा। उन्होंने विकास का फार्मूला प्रचारित किया और यूपी बिहार में मतदाताओं को जातिवाद से ऊपर उठकर वोट देने के लिए प्रेरित किया। स्टेच्यू ऑफ यूनिटी की कल्पना उनके चुनाव प्रचार का ही हिस्सा थी, जिसे उन्होंने भुला दिया। उन्होंने एक कुशल प्रकाशक की छवि बनाने की कोशिश की। स्थानीय टेव्नâोलॉजी पर बल दिया और जनभागीदारी तथा मिलजुलकर काम करने की बात हमेशा कहीं। एक कुशल प्रकाशक के रूप में अपनी छवि को प्रचारित करने में वे कामयाब रहे। सम्पन्न और उन्नत गुजरात में उनकी छवि को आगे बढ़ाने में मदद की। हर चीज को बढ़ा-चढ़ाकर बताना उनका मार्वेâटिंग पंâडा था। जिसे उन्होंने बुद्धिमानी से अंजाम दिया। 

सवाल- नरेन्द्र मोदी के भाषणों का इस जीत में कितना योगदान मानते है?

जवाब- नरेन्द्र मोदी अच्छे वक्ता है। उन्हें किस्से-कहानियां कहना खूब आता है। जनता की नब्ज पर उनका हाथ रहा है। वे खुद निम्न आय वर्ग के परिवार से आए है और आम आदमी के कष्ट जानते है। उन्हें बता है कि आम आदमी वैâसे सपने देखता है। आम आदमी के संघर्ष और सपनों को मिलाकर नरेन्द्र मोदी ने अपनी कामयाबी का रास्ता बनाया। अपने भाषणों में उन्होंने हर तरह का मार्वेâटिंग पंâडा अपनाया। उन्होंने साबित किया कि मार्वेâटिंग केवल किसी प्रॉडक्ट या सर्विस के लिए ही नहीं राजनीति के लिए भी जरुरी है। नरेन्द्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के लिए होस्टर ब्वाय के रूप में प्रचारित किए गए। उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया, जबकि लोकसभा चुनाव में संसद का सदस्य ही चुना जाता है। नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता को भुनाने के लिए भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साध लिए। पहला उन्होंने यह बात साबित कर दी कि हमारा ध्येय गुजरात की तरह पूरे देश का विकास करना है और भाजपा में किसी तरह का मतभेद मोदी को लेकर नहीं है। दूसरा उन्होंने कांग्रेस को भी निशाने पर ले लिया कि अगर यूपीए को बहुमत मिला तो उनका प्रधानमंत्री कौन होगा? जरा नरेन्द्र मोदी के भाषण तो देखिए- लोगों ने हमपर जो पत्थर पेंâके थे हमने उन्हें इकट्ठा कर एक नए गुजरात का निर्माण कर डाला। जब राहुल गांधी ने अपने परिवार के बलिदान की बात कहीं, तब नरेन्द्र मोदी ने जोर-शोर से इस बात को प्रचारित किया कि मैं चाय बेचने वाला साधारण घर का एक बच्चा हूं जिसे इस देश की जनता ने सिर-आंखों पर बैठा लिया है। उन्होंने एक आम आदमी के मन में यह आत्म-सम्मान का भाव जागृत किया कि कोई भी आदमी छोटा नहीं होता। चाय बेचने वाले लाखों लोगों ने नरेन्द्र मोदी में अपनी छवि देखी और चुनाव में वोट देकर मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में मदद की। प्रचार का कोई मौका नरेन्द्र मोदी ने नहीं छोड़ा। उत्तराखंड में प्रावृृâतिक आपदा के बाद उन्होंने दावा किया था कि हजारों गुजराती भाइयों को उन्होंने उत्तराखंड से सुरक्षित निकाल बाहर किया। 

सवाल- क्या नरेन्द्र मोदी ने मुद्दों से भटका दिया?

जवाब- नहीं, उन्होंने मुद्दों से नहीं भटकाया, बल्कि मुद्दों को अपनी तरफ मोड़ दिया। जैसे जब सोनिया गांधी ने जहर की खेती की बात कहीं तो उन्होंने कहा ६० साल से सत्ता में कौन है और जहर की खेती कौन कर रहा है, कौन जहर पैदा कर रहा है और कौन जहर उगल रहा है? राहुल गांधी ने जब बहुत गंभीर आरोप लगाए और कहा कि मोदी का गुब्बारा पूâटने वाला है और मोदी अडानी और अंबानी के लिए काम करते है। उन्होंने एक टॉफी के भाव में एक वर्ग मीटर जमीन का सौंदा कर डाला है। इस गंभीर आरोप को नरेन्द्र मोदी ने मजाक में यह कहकर उड़ा दिया कि शहजादे अभी बच्चे है और उन्हें टॉफी और गुब्बारे से ही पुâरसत नहीं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जब नरेन्द्र मोदी को कागजी शेर कहा, तो नरेन्द्र मोदी ने उन्हीं की स्टाइल में जवाब दिया कि दीदी आप एक कागजी शेर से क्यों डर रही हो? अगर असली शेर आएगा तो क्या करेंगी? नरेन्द्र मोदी ने साफ कहा कि मैं आपका चौकीदार रहूंगा। आपने कांग्रेस को 60 साल दिए है मुझे 60 महीने देकर देखिए। शुरुआत में उन्होंने बचकानी एबीसीडी भी सुनाई, जो नए वोटरों को आकर्षित करने के लिए थी। बातों को अपनी तरफ मोड़ने और अलग व्याख्या करने में भी नरेन्द्र मोदी का जवाब नहीं। जब प्रियंका गांधी ने कहा कि नरेन्द्र मोदी नीच राजनीति कर रहे है। तो उन्होंने अर्थ का अनर्थ करते हुए उसे अपनी जाति से जोड़कर इस तरह प्रचारित किया मानो प्रियंका गांधी ने उन्हें नीच कहा है।

सवाल- नरेन्द्र मोदी पर यह किताब है किसके लिए?

जवाब- 
मैंने नरेन्द्र मोदी पर किताब आम लोगों के लिए लिखी है। युवा, छात्र, दुकानदार, नौकरी पेशा वर्ग और गृहिणियां भी इस किताब को पढ़कर चुनाव अभियान के बारे में समझ सकती हैं। यह कोई महान शोध नहीं है। मुझे ऐसी कोई गलतफहमी नहीं है कि मैंने कोई बड़ा काम किया है। यह कोई कालजयी रचना नहीं है। यह किताब मेरे पत्रकारीय योगदान का हिस्सा है। यह किताब हिन्दी में है ताकि आम आदमी इसे समझ सवेंâ। यह बहुत मोटा ग्रंथ भी नहीं है। सीमित पृष्ठ है और दाम भी सीमित है। खास बात यह है कि इसमें आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया गया है, बहुत कठिन शब्दों से बचा गया है। यह किताब राजनीति की केस स्टडी है और पत्रकारिता की भी। 

सवाल- इस तेजी की कोई खास वजह?

जवाब- मैंने प्रिंट मीडिया में काम किया है। प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता टीवी में नहीं है, लेकिन टीवी की तेजी प्रिंट में नहीं आ सकती। मैंने कोशिश की कि इस किताब में प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता और टेलीविजन मीडिया की तेजी एकसाथ नजर आए। 

सवाल- ब्रेकिंग बुक क्या है?

जवाब- पत्रकार मित्रों ने ब्रेविंâग न्यूज की तर्ज पर इस किताब को ब्रेविंâग बुक लिख दिया है। यह मेरे लिए सम्मान और गर्व की बात है। अगर मेरी किसी किताब को लेकर कोई नई शब्दावली गढ़ी जाती है तो निश्चित ही यह फख की बात है। मैं इसके लिए मित्रों का आभारी हूं।

सवाल- क्या फिर कोई किताब लिखेंगे?

जवाब- किताब तो लिखूंगा, लेकिन ऐसी हड़बड़ी में शायद नहीं। 

सवाल- क्या मार्वेâटिंग का ऐसा मौका नहीं आएगा?

जवाब- पता नहीं।

सवाल- आपकी किताब के विज्ञापन दैनिक अखबारों में पहले पेज पर छपे, उन विज्ञापनों में घटें दरों पर थोक में किताबें बेचने का जिक्र है। क्या आपकी किताब कन्ज्यूमर आइटम है?

जवाब- मुझे लगता है कि नरेन्द्र मोदी की चुनावी रणनीति निश्चित ही कन्ज्यूमर आइटम थी। जिसे किताब के रूप में लिखा गया है। यह किताब साहित्य का कोई बड़ा योगदान नहीं है। पत्रकारिता की कोई अनमोल धरोहर भी नहीं है। यह एक जुनून का नतीजा है कि पत्रकारों को कितनी तेजी से काम करना चाहिए। वास्तव में यह किताब लिखते समय दिमाग में जुनून छाया रहा, जिसे लोगों ने पसंद किया। लोगों ने यह भी कहा कि जिस तेजी से नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे, उसी तेजी से आपने भी किताब लिख डाली। मुझे लगता है कि कुछ किताबें निश्चित ही कन्ज्यूमर आइटम होती है। इस किताब के बारे में पाठकों को पैâसला करने दीजिए। 

सवाल- अपने पत्रकारीय जीवन के बारे में भी कुछ बताइए?

जवाब- मैंने प्रिंट, टेलीविजन और वेब मीडिया में काम किया है। नईदुनिया से शुरुआत की फिर उस जमाने की सबसे प्रतिष्ठित पत्रिका धर्मयुग में काम किया। वहां से नवभारत टाइम्स में करीब डेढ़ दशक तक अलग-अलग पदों पर काम करने के बाद दैनिक भास्कर इंदौर में समाचार संपादक के रूप में काम किया। शाम का अखबार चौथा संसार शुरु किया। दुनिया में हिन्दी का पहला वेब पोर्टल वेब दुनिया शुरु करने वाला मैं ही था। वेब दुनिया का संस्थापक संपादक होने का मुझे आज भी फख है। केबल नेटवर्वâ में भी काम किया और सेटेलाइट चैनल में भी। केवल रेडियो बच गया है जहां मैंने काम नहीं किया है। मेरे लिए यह भी बड़े गौरव की बात है कि मैंने देश के अनेक लब्ध प्रतिष्ठ संपादकों के साथ काम किया है। जिनमें राजेन्द्र माथुर, राहुल बारपुते, अभय छजलानी, धर्मवीर भारती, गणेश मंत्री, विश्वनाथ सचदेव, सुरेन्द्र प्रताप सिंह, विद्यानिवास मिश्र, श्रवण गर्ग, कन्हैयालाल नंदन आदि शामिल है। ये वे संपादक है जिनमें पारस स्पर्श की क्षमता है और मुझे यह भ्रम है कि उनके स्पर्श मात्र से मुझे कुछ न कुछ ज्ञान अवश्य मिला होगा। 

सवाल- सोशल मीडिया का रोल भविष्य में क्या होगा?

जवाब- सोशल मीडिया में आम आदमी को अभिव्यक्ति की ताकत दी है। अब हर व्यक्ति पत्रकार है। छोटा-मोटा अखबार निकालने की तुलना में ज्यादा आसान और प्रभावी सोशल मीडिया का उपयोग है। हजार-दो हजार छपने वाले अखबार को निकालने से बेहतर है कि सोशल मीडिया पर अपनी बात ज्यादा बेहतर तरीके से कहीं जाए। ब्लॉगिंग ने भी अभिव्यक्ति को बढ़ावा दिया है। अब अभिव्यक्ति के लिए बड़े-बड़े पूंजीपतियों के संस्थानों पर निर्भर रहने की जरुरत नहीं है। यह अपने-आप में चमत्कारिक कार्य है। 
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खुशी तो बहुत हुई जब मंत्रालय में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जी को अपनी किताब भेंट की, तब उन्होंने मुस्कराकर कहा कि वे इसे पहले ही पढ़ चुकी हैं !( विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली. 14 जुलाई 2014)



                 
                    केंद्रीय मंत्री उमा भारती जी और नरेन्द्र सिंह जी तोमर को भी किताब भेंट की.





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सभी मित्रों और हितैषियों का हार्दिक आभार:

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